बाल तस्करी का धंधा -अखिलेश आर्येन्दु

कई सचों में एक सच यह भी है कि भारत में बचपन सुरक्षित नहीं है। सरकार भले ही बच्चों की सुरक्षा और उनके विकास के बड़े-बड़े दावे करे लेकिन सच्चाई इससे कहीं बहुत दूर है। इस सच्चाई को संयुक्त राष्ट्र संघ की बाल अधिकार संधि की 20वीं वर्षगांठ पर दिए आंकड़े जारी हुए थे, वे तो इसी बात को बयां करते हैं। इस आंकड़े के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ 40 लाख से ज्यादा बच्चे तस्करी के शिकार होते हैं। इसके बावजूद राज्य और केंद्र सरकारें यह दावा करती नहीं थकतीं कि हम इस अमानवीय कृत्य को रोकने का भरसक प्रयास में लगे हुए हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ‘ट्रैफिकिंग इन वूमेन एंड चिल्ड्रन इन इंडिया’ नामक रपट के मुताबिक मासूम बच्चों की तस्करी रोकने की जितने भी कोशिशें की जातीं हैं उनमें ऐसी तमाम खामियां होतीं हैं जिनका फायदा उठाकर बच्चों के तस्कर उनकी तस्करी करने में कामयाब हो जाते हैं। जब तक उन खामियों को सिद्दत से दूर करने की कोशिश हर स्तर पर नहीं किया जाएगा इस अमानवीय कृत्य को रोका नहीं जा सकता है।

दरअसल, मासूम बच्चे सरकार के लिए ऐसे किसी फायदे या दबाव वाले वर्ग में नहीं आते हैं जिससे केंद्र और राज्य सरकारें उनपर गंभीरता से गौर करें। मासूम बच्चों को लेकर केन्द्र सरकार ने जो कायदे-कानून बनाए हैं वे तस्करों के लिए भय नहीं पैदा करते। छः से लेकर 10 साल की उम्र के इन बच्चों की तस्करी उन राज्यों से अधिक होती है जहां गरीबी और बेरोजगारी ज्यादा है या सरकारी तंत्र बहुत ही भ्रष्ट है। इन राज्यों में राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, असम, दिल्ली, उ.प्र., हरियाणा और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। जो बच्चे तस्करी के जरिए अपहरण करके लाए जाते हैं उनमें से ज्यादातर से वेश्यावृत्ति, कारखानों में बेगारी और दूसरे अमानवीय कार्य कराए जाते है या धनी परिवारों में उन्हें बेंच दिया जाता है। इसके अलावा ऐेसे बच्चे होटलों,, भट्ठों या कारखानों में बिना दिहाड़ी के रात-दिन काम करने के लिए अभिसप्त होते हैं।

केंद्र ने अभी तक बच्चों के अपहरण और तस्करी रोकने के लिए जो कानून बनाए हैं उनमें ऐसा कुछ नहीं है कि बच्चों की तस्करी रुके। दूसरी बात जो संस्थाएं मासूम बच्चों के विकास, सुरक्षा और उनके सेहत को लेकर कार्य करतीं हैं वे बच्चों की तस्करी और अपहरण को लेकर कभी संवेदित नहीं रहीं हैं।सबसे गौर करने वाली बात यह है कि समाज में जिस वर्ग से ये बच्चे संबध्द होते हैं समाज उनके प्रति कभी सहानुभूति नहीं रखता है। इस लिए जब भी गरीब परिवार के बच्चों का अपहरण होता है उसको लेकर न तो कोई हायतोबा ही मचाया जाता है और न ही पुलिस एफआईआर लिखकर बच्चों को ढूंढ़ निकालने में दिचस्पी ही दिखाती है। जबकि अमीर परिवार के बच्चों के अपहरण पर मीडिया और प्रशासन दोनों पूरी मुस्तैदी के साथ अपने-अपने कर्तव्यों को निभाने में जुट जाते हैं।

सभ्य समाज इन बच्चों के प्रति न कोई अपनी जिम्मेदारी मानता है और न ही प्रशासन के लिए इनका कोई महत्त्व है। शायद इनके मां-बाप भी लापरवाह होते हैं। जो गरीब माता-पिता अपने बच्चों के प्रति सजग होते हैं वे तस्करों के चंगुल से अपने मासूमों को बचाने में इस लिए असफल साबित होते हैं क्योंकि उनकी और भी कई तरह की मजबूरियां होती हैं जिसके चलते बच्चे तस्करों के हाथों चढ़ जाते हैं। दिल्ली में हर साल हजारों की तादाद में छोटे बच्चों का अपहरण होता है, जिनमें से कुछ की ही एफआईआर लिखी जाती है। ज्यादातर गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले बच्चों की गुमसुदी की रपट लिखी ही नहीं जाती। एक जानकारी के मुताबिक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तिसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली सहित अनेक राज्यों से हर साल लाखों की तादाद में बच्चे गायब हो जाते हैं लेकिन इनकी अपहरण की रपट तक नहीं लिखी जाती है और यदि किसी की लिखी भी जाती है तो पुलिस मुस्तैदी के साथ उन्हें ढूढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती है।

बच्चों के अपहरण के मामले को अतिसंवेदनशील दायरे में न तो पुलिस मुहकमा मानता है और न तो मीडिया ही उतना तरजीह देता है जितना देना चाहिए। इसलिए अपहरण कर्ताओं के हौसले लगातार बुलंद होते चले जाते हैं। कुछ प्रदेशों में तो पिछले कुछ सालों से यह उद्योग का रूप ही धारण कर चुका है। भारत के अलावा विदेशों में खासकर अरब देशों में यह मनोरंजन उद्योग में शामिल हो चुका है। अरब देशों में पिछले कई सालों से लगातार एक रौगटें दहला देने वाली खबर आती रही है। वह है, अरब देशों में वहां के शेखों के मनोरंजन के साधन के रूप में भारतीय बच्चों का इस्तेमाल। जिस बर्बरता के साथ ऊंट की पूंछ में बच्चो को रस्सी के सहारे बांधकर घसीटा जाता है वह सभी बर्बरताओं को मात करदेने वाला होता है। यह घोर अमानवीय खेल वहां आज भी खेला जाता है। ये बच्चे किसी विकसित देश से अपहरण करके नहीं लाए जाते हैं बल्कि भारत और भारतीय उपमहाद्वीप के होते हैं। अरब देशों में बच्चों के साथ हो रहे घोर अमानवीय क्रूरताओं के विरोध में न तो केंद्र सरकार कभी आवाज उठाती है और तो मानवाधिकार के लोग ही। मीडिया मेें भी इसके खिलाफ कोई सनसनीखेज समाचार प्रसारित नहीं होता है। मतलब असहाय और गरीब बच्चों के हक में आवाज उठाने के लिए कोई सार्थक प्रयास किसी के जरिए किसी भी स्तर पर नहीं किए जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप बच्चों के साथ हो रहे घोर कू्ररता के व्यवहार और उनके शोषण में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

केंद्र और राज्य सरकारें बच्चों की शिक्षा, सेहत और विकास को लेकर लंबी-चौड़ी बातें करते हैं। लेकिन गरीब बच्चों की सुरक्षा के मामले में हद से ज्यादा लापरवाही देखने को मिलता है। सरकार के लिए गबीबों के बच्चे और गरीब परिवार सबसे निचले पायदान पर माने जाते हैं। इस लिए इनकी सुरक्षा को लेकर जब सवाल उठाए जाते हैं तो बहुत लापरवाही तरीके से इनपर गौर करने का कोरा आश्वासन मिलता है। इसका फायदा उठाकर अपहरण उद्योग से जुड़े माफिया गरीब परिवार के बच्चों को चोरी से उठा ले जाते हैं या कुछ पैसे देकर खरीद ले जाते हैं। जाहिर है जब तक केंद्र और राज्य सरकारें माफिया-तंत्र का पूरी तरह से सफाया नहीं करतीं बच्चों के अपहरण को रोका नहीं जा सकता है।

सवाल यह है कि जब आज सारी दुनिया में मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण और शोषण के खिलाफ चारों ओर आवाज बुलंद की जा रही है, तो ऐसे में गरीब और असहाय बच्चों के प्रति हो रहे घोर अमानवीय क्रूरताओं के प्रति आवाज क्यों बुलंद नहीं की जा रही है ? क्या गरीब और असहाय के बच्चे मानव समाज के अंग नहीं हैं ? क्या इनको सुरक्षित जीने का वैसा हक नहीं है जैसे अमीरों के बच्चों को है? अब जबकि दुनिया से सभी तरह की गैरइंसानी बर्ताव के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है, गरीब और असहाय बच्चों के साथ हो रहे गैरइंसानी बर्ताव को रोके जाने की जरूरत है। यह पूरे विश्व समाज के हक में तो है ही, सब को जीने के प्रकृति के नियम के मुताबिक भी है।

-लेखक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

4 COMMENTS

  1. बल तस्करी बहुत अफसोसजनक, चिंतनीय और निंदनीय है. श्री अखिलेश जी बिलकुल सत्य कह रहे है, यह समस्या बहुत बड़ी है और सरकार बिलकुल भी गंभीर नहीं है. आमिर परिवार का बच्चा चोरी हो तो जमीं आसमान एक हो जाता है किन्तु गरीबो के बच्चे अपहृत होते रहते है.
    २५-३० साल पुरानी फिल्म में भी भीख मंगवाने के लिए बच्चो की चोरी को दर्शया गया था. आज सुचना तंत्र बहुत अच्छा है फिर भी वारदाते कम नहीं हो रही है.
    यह उद्योग एक पूर्ण नियोजित है, इसकी शाखाएँ पुरे देश में फैली है. सरकार को सख्त से सख्त सजा का प्रावधान रखना चैये, हो सके तो दोषियों को फांसी की सजा भी देनी चैये.

  2. अच्‍छी रपट है। प्रदेशवार कुछ आंकड़े जुड़ जाएं तो रपट में और जान आ जाएगी। गांधी के अंतिम आदमी के पक्ष में आवाज उठाने के लिए बधाई।

  3. भाई, आपने तो कमाल का
    यह मंच तैयार किया है !
    अब तो हम इसके नियमित पाठक हो गए.
    ================================
    आपको शुभकामनायें
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

  4. भारत में इतने बड़े बड़े तस्करी काण्ड होने के बाद भी सब कुछ खुलेआम चल रहा है क्यूंकि गरीबों की और ध्यान की फुर्सत किसे है?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,753 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress