बचपन की यादें

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सोचता हूॅ फिर से एक बार
बचपन में चले जाते
न कभी समय की चिंता होती
न कभी घडी देखते
जब बजती स्कूल की घंटी
तब किताब, कलम काॅपी समेटते
निकल जाते रास्ते पर
किसी दोस्त को हंसाते
तो किसी को चिढाते
जब बजती प्रार्थना की घंटी
तब दौड कर आते
कतार में सामने वाले की पेट खिचते
जब होता दोपहरी
तब रोता मुन्ना महारि
फिर मिलता हमको भोजन
दाल , भात लगता शहरी
खूब मजे करते और पढते
कभी कभी खूब झगडते
छुट्टी होती शाम को
चीखते  चिल्लाते मां की हाथो की रोटी खाते
दादा के साथ कोई गीत गुनगुनाते
दादी की कहानी से अपनी कहानी बनाते
फिर दोस्तो को सुनाते
सोचता हूॅ फिर से एक
बार बचपन में चले जाते

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