मोदी की कुटनीतिक दांव से पस्त चीन और पाकिस्तान

0
143

  अरविंद जयतिलक

कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर चीन और पाकिस्तान को मोदी कुटनीति के आगे घुटने टेकने पड़े हैं। चीन ने पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए कश्मीर मसले को दोबारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने की पहल की लेकिन सुरक्षा परिषद के दूसरे स्थायी सदस्य देशों ने उसकी कूटनीतिक खेल की हवा निकाल दी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों मसलन अमेरिका, फ्रांस, रुस और ब्रिटेन सभी ने भारत के रुख का समर्थन किया। इन सभी स्थायी सदस्य देशों ने चीन और पािकस्तान को आईना दिखाते हुए कहा कि यह एक द्विपक्षीय मसला है। चीन और पाकिस्तान दोनों के मंसूबे पर पानी फिर गया है। सुरक्षा परिषद में करारी मात मिलने के बाद अब चीन यह कहकर अपनी खीझ मिटा रहा है कि इस मसले का समाधान यूएन चार्टर, सुरक्षा परिषद के तहत शांतिपूर्ण तरीके से द्विपक्षीय एग्रीमेंट के जरिए होना चाहिए। लेकिन भारत समेत सभी देशों ने इसे खारिज कर दिया है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब चीन और पाकिस्तान को मोदी कूटनीति के आगे नतमस्तक होना पड़ा है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में भी रोड़े अटकाकर पाकिस्तान का हौसला बुलंद करने की कोशिश की। लेकिन इस मसले पर भी भारत को ऐतिहासिक कूटनीतिक जीत मिली जब मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया। अब चीन और पाकिस्तान दोनों को अच्छी तरह समझ में आ गया होगा कि कश्मीर मसले पर दुनिया किसके साथ है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान खुद कहते सुने जा रहे हैं कि कश्मीर मसले पर दुनिया भारत के साथ है। याद होगा जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद चीन और पाकिस्तान दोनों ने दुनिया भर में धारणा फैलाने की कोशिश किया कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। लेकिन उनका दांव उल्टा पड़ गया। अब जिस तरह पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती के मामले लगातार सामने आ रहे हैं और जिस तरह पिछले दिनों ननकाना साहिब पर हमला हुआ उससे पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने आ गया है। अल्पसंख्यकों को लेकर चीन का रवैया भी पाकिस्तान जैसा ही है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो कह चुके हैं कि मुस्लिमों को लेकर चीन दोहरी नीति अपना रहा है। उन्होंने आरोप लगाया था कि चीन अपने नागरिक उइगर मुसलमानों को प्रताड़ित कर रहा है। उन्होंने एक किस्म से स्पष्ट कर दिया कि जिस तरह पाकिस्तान में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं ठीक उसी तरह चीन में भी अल्पसंख्यक सुरक्ष्ति नहीं है। अमेरिका के इस तल्ख टिप्पणी से चीन बौखलाया हुआ है। उसके बौखलाने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि उसे लग रहा है कि इसके पीछे भारत का हाथ है। दूसरी ओर भारत की मंशा के मुताबिक फ्रांस द्वारा सुरक्षा परिषद में आतंकियों के वित्त पोषण पर प्रहार के लिए लाए गए प्रस्ताव को भी मंजूरी मिल चुकी है। इसमें भी चीन व पाकिस्तान को मोदी की कुटनीति नजर आ रही है। गौर करें तो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुटनीतिक दांव से चीन व पाकिस्तान को बार-बार असहज होना पड़ रहा है। चीन को तब भी असहज होना पड़ा था जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के सतत प्रयास से भारत को मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में शामिल किया गया। दरअसल एमटीसीआर में शामिल होने के बाद भारत अब दूसरे देशों को अपनी मिसाइल टेक्नोलाॅजी बेच सकेगा और जरुरत पड़ने पर अमेरिका से प्रिडेटर ड्रोन्स को खरीद भी सकेगा। गौरतलब है कि यह वही तकनीक है जिसने अफगानिस्तान में तालिबान के ठिकानों को पूरी तरह तबाह किया था। चीन ने भारत द्वारा ब्रह्मोस मिसाइल के परीक्षण को लेकर भी अपनी आपत्ति जतायी और कहा कि यह अस्थिरता पैदा करने वाला कदम है। मजेदार बात यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुपरसोनिक मिसाइल तैयार करने वाली कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस को उत्पादन बढ़ाने के निर्देश दे दिए हैं जिससे चीन बौखलाया हुआ है। गौरतलब है कि मलेशिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया ब्रह्मोस मिसाइल को खरीदने की कतार में हंै। ये वहीं देश हैं जो दक्षिणी चीन सागर में चीन की साम्राज्यवादी नीति से परेशान हैं। अगर भारत इन सभी देशों को ब्रह्मोस मिसाइल बेचता है तो चीन की मुश्किलें बढ़नी तय है। अमेरिका के साथ लाॅजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम आॅफ एग्रीमेंट सप्लाई एग्रीमेंट (एलईएमओ) ने भी चीन की चिंता बढ़ायी है। इस समझौते से दोनों देशों के युद्धपोत और फाइटर एयरक्राफ्ट एक दूसरे के सैनिक अड्डों का इस्तेमाल तेल भराने एवं अन्य साजो-सामान की आपूर्ति के लिए कर सकेंगे। इससे चीन खौफजदा है और उसे लग रहा है कि भारत और अमेरिका उसकी घेराबंदी कर रहे हैं। उधर, भारत-जापान मजबूत होते रिश्ते और दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग, रक्षा उपकरण तकनीक और गोपनीय सैन्य सूचना संरक्षण समेत कई महत्वपूर्ण समझौते से भी चीन परेशान है। भारत और जापान को एक साथ आने से दक्षिणी चीन सागर में उसके बढ़ते हस्तक्षेप को लगाम लगा है और अब वह धौंसबाजी के बजाए शांति के शब्दों को उच्चारित कर रहा है। चीन इसलिए भी असहज है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-ईरान चाबहार समझौते को जमीनी आकार देकर भारत को घेरने की चीनी रणनीति की हवा निकाल दी है। भारत-ईरान चाबहार समझौता चीन की ग्वादर रणनीति पर भारी पड़ गया है। गौर करें तो चाबहार बंदरगाह भारत के लिए जितना सामरिक रुप से महत्वपूर्ण है उतना ही आर्थिक रुप से भी। अब भारत चाबहार से इस इलाके में चीन व पाकिस्तान के बीच होने वाली कारोबारी और रणनीतिक गतिविधियों पर आसानी से नजर रख सकेगा। चूंकि ईरान चाबहार को ट्रांजिट हब बनाना चाहता है वह भी एक किस्म से भारत की ही रणनीति के अनुकूल है। इस बंदरगाह ने भारत को अफगानिस्तान और राष्ट्रकूल देशों से लेकर पूर्वी यूरोप तक संपर्क उपलब्ध करा दिया है। अब भारत की वस्तुएं तेजी से ईरान पहुंचेगी और वह वहां से नए रेल व सड़क मार्ग के द्वारा अफगानिस्तान समेत मध्य एशियाई देशों को भी भेजा जा सकेगा। यानी  अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के लिए अब भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यहां समझना होगा कि किसी भी राष्ट्र की विदेशनीति को प्रभावित करना या अपने अनुकूल बनाना आसान नहीं होता। वह भी तब जब अमेरिका जैसे ताकतवर देश की विदेशनीति को प्रभावित करनी हो। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने यह कमाल कर दिखाया है। उन्होंने दशकों पुराने अमेरिका की पाकनीति को काफी हद तक प्रभावित किया है। अन्यथा यों ही नहीं अमेरिका की प्रतिनिधि सभा भारत के साथ रक्षा संबंध विकासित करने और रक्षा उपकरणों की बिक्री तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में अन्य नाटो के सहयोगी देशों के साथ लाने की पहल के तहत द्विदलीय समर्थन वाले बिल को मंजूरी देती। प्रधानमंत्री मोदी की सधी हुई कुटनीति का नतीजा है कि अमेरिका पाकिस्तान पर लगातार दबाव बढ़ा रहा है। वह पाकिस्तान को लगातार धमकी दे रहा है कि वह अपनी धरती पर पसरे आतंकी शिविरों को नष्ट करे। अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर भर भी रोक लगायी है। इसका श्रेय भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है। गौर कीजिए तो इससे पहले अमेरिका पाकिस्तान के पक्ष में लामबंद होता था और जब भी पाकिस्तान संरक्षित आतंकी भारत पर हमला करते थे वह पाकिस्तान के बचाव में उतर आता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुटनीतिक धार ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच दूरिया बढ़ा दी है। पहले जब भी कभी प्रतिबंधों की बात आती है तो अमेरिका पाकिस्तान के साथ-साथ भारत को भी किसी प्रकार की अमेरिकी सहायता प्रदान करने पर रोक लगा देता था। यानी उसके पलड़े पर भारत और पाकिस्तान बराबर थे। लेकिन वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान को पहले जैसा न तो अमेरिका से करोड़ों डाॅलर की आर्थिक मदद मिल रहा है और न ही कुटनीतिक समर्थन। हालात तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक दांव से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच दूरियां बढ़ती ही जा रही है। उधर, चीन को भी पाकिस्तान का पक्ष लेने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बार-बार लज्जित और अपमानित होना पड़ रहा है। अंतर्राष्टीय बिरादरी में उसकी साख गिरती जा रही है। वह दिन दूर नहीं जब मोदी के कूटनीतिक दांव से विवश होकर चीन को भी अपनी साख बचाने के लिए पाकिस्तान से मुंह मोड़ना पड़ जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,024 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress