चीनी कूटनीतिक आक्रमण और साम्यवादी खटराग

3
147

CPI(M)खबरदार चीन के खिलाफ कुछ बोले तो जन-अदालत लगाकर नाक, कान, हाथ, पैर आदि काट लिए जाएंगे। वर्ग-शत्रु घोषत कर अभियान चलाया जाएगा। जुवान खोली तो हत्या भी की जा सकती है। याद रहे चाहे चीन कितना भी भारत के खिलाफ अभियान चलाये कोई कुछ कह नहीं सकता है, बोल नहीं सकात है। इस देश में साम्यवादियों के द्वारा चीनी कानून लागू किया जाएगा। पश्चिम बंगाल की तरह भारतीय लोकतंत्र की हत्या होगी और उसके स्थान पर बस साम्यवादी गिरोह देश पर शासन करेंगे। सबकी जुबान बंद कर दी जाएगी और कोई चूं शब्द बोला तो उसे गरीबों का दुश्मन घोषित कर हत्या कर दी जाएगी। चीनी साम्यवादी आतंक के 60वें सालगिरह पर यह फरमान जारी किया है देश के साम्यवादियों ने। साम्यवादी चरमपंथी 3 अक्टूबर से चीन के खिलाफ बोलने वालों को मौत के घाट उतारने का अभियान चलाने वाले हैं। भले पश्चिम बंगाल में माओवादियों और साम्यवादी सरकार के बीच दोस्ताना लडाई चल रही हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दोनों के बीच समझौता है। चीन को अपना आदर्श मानने वाली कथित लोकतंत्रात्क पार्टी माक्र्सवादी काम्यूनिस्ट पार्टी और भारतीय काम्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी) एक ही आका के दो गुर्गे हैं। भले चीन भारत के खिलाफ कूटनीतिक युद्ध लड रहा हो लेकिन इन दोनों साम्यवादी धरों का मानना है कि चीन भारत का शुभचिंतक है लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का नम्बर एक दुश्मन।

चीन भारत के खिलाफ पूरी ताकत से कूटनीतिक अभियान चला रखा है लेकिन भारतीय साम्यवादी, चीनी वकालत पर आमादा है। देश के सबसे बडे साम्यवादी संगठन के नेता का. प्रकाश करात ने चीन के बनिस्पत देश के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज्यादा खतरनाक बताया है। अपनी पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी के ताजा अंक में उन्होंने लिखा है कि देश की कारपोरेट मीडया, संयुक्त राज्य अमेरिका, दुनिया के हथियार ऐजेंट और आरएसएस के गठजोड के कारण चीन के साथ भारत का गतिरोध दिखाई दे रहा है, वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। का. करात के ताजे आलेख का कुल लब्बोलुआब है कि चीन तो भारत का सच्चा दोस्त है लेकिन आरएसएस के लोग देश के जानी दुश्मन है। शुक्र है कि का. करात ने अपने कार्यकर्ताओं को आरएसएस के खिलाफ अभियान चलाने का फरमान जारी नहीं किया है। हालांकि साम्यवादियों के सबसे बडे दुश्मन के रूप में आरएसएस चिन्हित है। गाहे बगाहे ये उनके खिलाफ अभियान भी चलाते रहते हैं। अभी हाल में ही संत लक्ष्मणानंद की हत्या साम्यवादी ईसाई मिशनरी गठजोड का प्रमाण है। केरल में, आंध्र प्रदेश में, उडीसा में, बिहार और झारखंड में, छातीसगढ में, त्रिपुरा में यानी जहा साम्यवादी हावी हैं वहां इनके टारगेट में राष्ट्रवादी हैं। साम्यवादी कहे या नहीं कहे लेकिन आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या इनके एजेंडे में शमिल है। देश की स्मिता की बात करने वालों को अमेरिकी एजेंट ठहराना और देश के अंदर साम्यवादी चरंपथी, इस्लामी जेहादी तथा ईसाई चरमपंथियों का समर्थन करना इस देश के साम्यवादियों की कार्य संस्कृति का अंग है।

चीनी फरमान से अपनी दिनचर्या प्रारंभ करने वाले ये वही साम्यवाद हैं जिन्होंने सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्ता कहा था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने दिल्ली दूर और पेकिंग पास के नारे लगाते रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने सन 62 की लडाई में आयुध्द कारखानों में हडताल का षडयंत्र किया था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने कारगिल की लडाई को भाजपा संपोषित षडयंत्र बताया था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने पाकिस्तान के निर्माण को जायज ठहराया था, ये वही साम्यवादी है जो देश को विभिन्न संस्कृति का समूह मानते हैं, ये वही साम्यवादी हैं जो यह मानते हैं कि आज भी देश गुलाम है और इसे चीन की ही सेना मुक्त करा सकती है, ये वही साम्यवादी हैं जो बाबा पशुपतिनाथ मंदिर पर हुए माओवादी हमले का समर्थन कर रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जो महान संत लक्ष्मणानंद सरस्वती को आतंकवादी ठहरा रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जो बिहार में पूंजीपतियों से मिलकर किसानों की हत्या करा रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने महात्मा गांधी को बुर्जुवा कहा लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ के माथे ऐसे कलंक नहीं लगे है। फिर भी साम्यवादी करात को चीन नजदीक और राष्ट्रवादी दुश्मन लगने लगे हैं। यह करात नहीं चीन का एजेंडा भारतीय मुंह से कहलवाया जा रहा है। आलेख की व्याख्या से साफ लगता है कि करात सरीखे साम्यवादी चीनी सहायता से भारत के लोकतंत्र का गला घोटना चाहते हैं। भारत की काम्यूनिस्ट पार्टी माओवादी ने अपने ताजे बयान में कहा है कि हमें किसी देश का एजेंट नहीं समझा जाये लेकिन उसके पास से जो हथियार मिल रहे हैं वे चीन के बने हैं। इसका प्रमाण विगत दिनों मध्य प्रदेश पुलिस के द्वारा चलाये गये अभियान के दौरान मिल चुका है। चीन लगातार अरूणांचल, कश्मीर, सिक्किम पर विवाद खडा कर रहा है, नेपाल में भारत के खिलाफ अभियान चला रहा है, पाकिस्तान को भारत के खिलाफ भडका रहा है, अफगानिस्तान में तालिबानियों को सह दे रहा है फिर भी का0 करात के नजर में चीन भारत का सच्च दोस्त है। आज पूरी दुनियां ड्रैगन के आतंक से भयभीत है लेकिन भारतीय साम्यवादियों को ड्रैगन का खौफ नहीं उसकी पूंछ पर लगी लाल झंडी दिखई दे रही है। पेकिंग को साम्यवादी मक्का और चीन को साम्यवादी शक्ति का केन्द्र मानने वाले भारतीय साम्यावादी गिरोह के सरगना का आलेख इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि एक ओर जहां चीन अपने आतंक और साम्यवादी साम्राज्य का 60 वां वर्षगांठ मना रहा है वही दूसरी ओर चीन भारत के उत्तरी सीमा पर दबाव बढा रहा है। ऐसे में का. करात के आलेख के राजनीतिक और कूटनीतिक अर्थ लगया जाना स्वाभाविक है। आलेख में करात लिखते हैं कि पष्चिमी देश आरएसएस के माध्यम से षडयंत्र कर भारत को चीन के साथ लडाना चाहता है।

करात के इस आलेख की कूटनीतिक मीमांसा की जाये तो यह लेख केवल करात का लेख नहीं माना जाना चाहिए। इसके पीछे आने वाले समय में चीन की रणनीति की झलक देखी जानी चाहिए। अगर चीनी विदेश मंत्रालय के भारत पर दिये गये बयान को देखा जाये तो कुछ इसी प्रकार की बातें चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी विगत दिनों कही है। चीनी विदेश मंत्रालय कहता है कि भारत की मीडिया पूंजीपरस्तों के हाथ का खिलौना बन गयी है। यही करण है कि भारत और चीन के संबंधों को बिगाडने का प्रयास किया जा रहा है। चीन ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा है जिससे भारत को डरना चाहिए। लेकिन कार्यरूप में चीनी सेना ने भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया। भारतीय सीमा के अंदर आकर पत्थडों पर चीन लिख, भारतीय वायु सीमा का चीनी वायु सेना ने उलंघन किया, दलाई लामा के तमांग प्रवास पर चीन ने आपति जताई और अब कष्मीरियों को को अलग से चीनी बीजा देने का मामला प्रकाश में आया है। ये तमाम प्रमाण भारत के खिलाफ चीनी कूटनीतिक आक्रमण के हैं, बावजूद साम्यवादी करात के लिए चीन भारत का सच्च दास्त है। करात अपने ताजे आलेख से केवल अपना विचार नहीं प्रकट कर रहे हैं अपितु संबंधित संगठनों को धमका भी रहे हैं।

लेकिन करात को भारत में रह कर चीन की वकालत नहीं करनी चाहिए। इस देश के अन्न और पानी पर पलने वाले करात को यह समझना चाहिए कि चीन एक आक्रामक देश है। चीन से आज दुनिया भयभीत है। चीन के साथ जिस किसी देश की सीमा लग रही है उसके साथ चीन का गतिराध है। चीनी दुनिया में चौधराहट स्थापित करने और साम्यवादी साम्राज्य के विस्तार के लिए लगातर प्रयत्नशील है। ऐसी परिस्थति में चीन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का मित्र कैसे हो सकता है। चीन भारतीय लोकतंत्र से भयभीत है। उसे लग रहा है कि भातीय हवा अगर चीन में वही तो चीनी साम्यवादी साम्राज्य ढह जाएगा। इसलिए चीन भारत को या तो समाप्त करने की रणनीति बना रह है या साम्यवादी सम्राज्य का अंग बनाने की योजना में है। कुल मिलाकर प्रकाश करात चाहे जितना चीन की वकालत कर लें लेकिन चीन तो चीन है जिसके बारे में नेपोलियन ने कहा था इस राक्षस को सोने दो अगर जगा तो यह दुनिया के लिए खतरा उत्पन्न करेगा। करात साहब विचारधारा अपने पास भी है। लाल गुलामी छोड कर वंदेमातरम बोलने की आदत डालिए।

-गौतम चौधरी

3 COMMENTS

  1. gautam sir bahut acha likha hai aapne.. aapne jo fact samne rkhe hai unke piche aap ka gehan adhyan saaf jhalakta hai.. aap ka article pad k dil ko khushi hui..rajesh frm dehradun

  2. चीन का समर्थन करने वालों को तोप में बांधकर चीन की ओर मुंह करके उड़ा देना चाहिए। … खाते यहां की हैं और गाते चीन की हैं।

  3. काफी बढिया लेख है और इसमें कम्युनिष्टों के असली चेहेरे का सठीक विश्लेषण किया गया है । लेखक इसके लिए बधाई के पात्र हैं । कम्युनिस्टों की भारत विरोधी और चीनी समर्थक चित्र बीच बीच में सामने आता रहा है । भारत पर चीनी आक्रमण के दौरान बहुत से लोगों ने कम्युनिस्ट नेताओं को कोलकाता के सडकों पर चीनेर चेयरमैन- आमादेर चेय़रमैन का नारा देते हुए सुना है । उनके लिए चीन ही सब कुछ है । खैर ये पुरानी बातें हैं । शनिवार को सुबह ही समाचार पत्रों में माकपा महासचिव प्रकाश करात के हवाले से बयान छपा है । उसमें उन्होंने कहा है कि भारत और चीन में कोई विवाद नहीं है और अमेरिकी समर्थकों द्वारा चीनी सेना द्वारा काल्पनिक घुसपैठ की बातों को प्रचारित किया जा रहा है । श्री करात से पूछा जाना चाहिए कि चलीए ये बातें मीडिया द्वारा प्रचारित किया जा सकता है लेकिन चीन हमेंशा अपने आधिकारिक दस्ताबेजों में अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा बताता है । मा. करात का इस पर क्या कहना है । क्यूबा, वेनेजुएला आदि देशों के बारे में हर तीसरे दिन पोलित ब्यूरो द्वारा बयान जारी किया जाता है । माकपा की पोलित ब्यूरो इसको लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं कर रही है । क्या माकपा का भी स्टैंड वही है जो बीजिंग में बैठे हुए उनके आकाओं का है । भारत में चीनी एजेंट हो या फिर अमेरिकी एजेंट दोनों राष्ट्र के लिए खतरनाक है । आवश्यकता इस बात की है चीनी एजेंट व अमेरिकी एजेंटों का असली रुप देश की जनता के सामने लाना चाहिए । श्री चौधरी जी को बेहतरीन लेख के लिए पुनः अभिनंदन ।
    समन्वय
    भुवनेश्वर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,042 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress