चीनी भाषा की अभिव्यक्ति समस्या

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डॉ. मधुसूदन

सूचना: यह आलेख किसी राजनीति से प्रेरित नहीं है। कोरोना की समस्या के कारण पूछे गए प्रश्नों के उत्तर वो भी मेरी सीमित जानकारी और 18 दिन के (2007) प्रवास के अनुभव पर आधारित है|
आलेख  चीनी और विस्तृत चीनी कुल की भाषाओं की जटिलता उजागर करने का सीमित उद्देश्य रखता है।
मेरे इस आलेख का आधार मेरा  प्रवास, एवं कुछ अध्ययन और कुछ चीनी मित्र भी है| आलेख प्रश्नोत्तरी के रूप में प्रस्तुत है|  

प्रश्न (१)
चीन शेष संसार से प्रायः कटा हुआ लगता है। इस विषय में चीनी भाषा की जटिलता भी कारण प्रतीत होती है। आप की क्या सोच है?
उत्तर(१)
चीन इस संसार में अवश्य है, पर अपनी जटिल भाषा के कारण कटा हुआ है। भूतकाल में, चीन की  दिवाल भी उसे अलग थलग रखती थी।  भाषा की मर्यादित जानकारी के कारण, संसार के शेष देश भी स्वयं को चीन से कटे हुए अनुभव करते (होंगे)  हैं। यह समस्या चीनी भाषा की जटिलता के कारण भी है, और शायद चीनी शासन की नीति के चलते भी हो सकती है। ऐसा मैं मानता हूँ। साथ साथ चीन अपनी गुप्त यंत्रणाओं (?) के कारण भी स्वयं कटा कटा ही रहता है।

प्रश्न (२) आपके चीनी प्रवास के विषय में कुछ कहें।

उत्तर (२) मुझे १७-१८ दिन  (२००७) का  चीनी प्रवास का  सीमित अनुभव है। मेरी दृढ़ मान्यता : चीन की कठिन और जटिल भाषा भी उसे अलग रखती है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी चीन अलग प्रतीत होता है। हर चलते  फिरते प्राणी को चीनी खा जाता है। इस शाकाहारी को बडा अचरज है।

प्रश्न (३)
 तो फिर, ऐसे चीन में, अहिंसक बौद्ध धर्म और मन्दिरों का भी प्रभाव (क्यों) कैसा है?
उत्तर (३) मेरी दृष्टि में और कुछ जानकारों के अनुसार बौद्ध मन्दिरों का और चीनी दिवाल, प्रतिबंधित नगर (सीटी ), इत्यादि ऐतिहासिक स्थलों का पूरा पूरा उपयोग पर्यटन के लिए और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में होता है|

प्रश्न (4)
आपके प्रवास का  कुछ विशेष (अनुभव) बताइए।
उत्तर (4)
हमारे प्रवास में, बडे-बुढे (वृद्ध चीनी जन) बडे नगरों में दिखे ही नहीं। मार्गदर्शक (गाईड)
भी कुछ प्रश्नों को टालता था। चीनी शासन अच्छाइयाँ ही दिखाना चाहता होगा।
पालतु पशु जैसे कि कुत्ता, बिल्ली, गौ इत्यादि भी बेजिंग,  शांघाय ऐसे नगरों में बाहर घुमते दिखे नहीं।

प्रश्न (5) आप को प्रवेश वीसा कैसे उपलब्ध हुआ?
उत्तर(5)
हमें हमारे पर्यटन की सारी सूक्ष्मताएँ (Details) लिखित देनी पडी थीं। प्रवास का दिनांक सहित दैनंदिन विवरण  देना पडा था। जो विसा के लिए अनिवार्य (आवश्यक) था। हम लोग कुल ४० शाकाहारी प्रवासी साथ थे।

प्रश्न (6) शाकाहारियों को कठिनाई हुयी होगी?
उत्तर(6) जी, काफी कठिनाई हुई |  कहीं कहीं भारतीय भोजन के लिए होटलें थीं | और फल मिल जाते थे। दूध मिल जाता था| सबेरे का अल्पाहार मात्र अच्छे स्तर का होता था। उसी से और फिर फलाहार से काम चला लेता था।

प्रश्न (7) दुभाषिए मिले होंगे?
उत्तर (7) केवल मार्गदर्शक साथ था| जो कुछ ठीक काम की ही अंग्रेजी जानता था|
पर चीन में ऐसे सही चीनी (विश्व में भी ) और अंग्रेजी दोनो  भाषा  जाननेवाले कम ही अपेक्षित  (होते) हैं। और, चीनी और अंग्रेज़ी दोनो भाषा के अच्छे जानकार तो और भी कम ही अपेक्षित हैं।

प्रश्न (8) चीनी भाषा की मर्यादा के विषय में कुछ कहें।
उत्तर: (8) चीनी भाषा में वर्तमान, भविष्यत्‌ और भूतकाल नहीं होता।
विशेषण और क्रिया विशेषण का भी अभाव होता है। मूलतः चित्रों वाली भाषा है।
और चित्रमय शब्दोंवाली भाषा की अभिव्यक्ति की सीमाएँ, होती हैं। भाषा स्थूल होने का मेरा अनुमान  है|
चीनी में, सूक्ष्म अर्थ व्यक्त करने की क्षमता की अपेक्षा  मैं नहीं करता|

घन घन बाजे कलश टकोरे|
अवशेषों से हुंकार उठी है ||
टूटे फूटे इतिहास पुराण से|
युगांतरी ललकार उठी है||

प्रश्न (9) चीनी भाषा जटिल मानी जाती होगी?
आपका तार्किक और अनुमान बताइए |

उत्तर(9) चीनी (भाषा कुल की) जटिलता सभी भाषा वैज्ञानिक जानते हैं।
औसत चीनी भाषा की अध्ययन अवधि अंग्रेज़ी की अपेक्षा, तीन गुना (भाषा शिक्षण संस्थाएँ) बताती  हैं।
और चीनी कुल की भाषाओं के नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बोलते हुए भी कम ही सुना जाता है।
अनुमान किया जा सकता है, कि चीनी भाषा में वैचारिक अभिव्यक्ति भी सीमित ही होगी। भाषा के कुल शब्द भी एक लाख से कम (७०-८० हजार) ही माने जाते हैं। औसत शाला में मात्र ७-८ हजार शब्द पढाए जाते हैं। १२-१५ हजार शब्द विश्वविद्यालयीन शिक्षा से पढाए जाते हैं।
शब्द संख्या की जानकारी विद्वत्ता का लक्षण समझी जाती है। समाचार पत्र सरल शब्दों का उपयोग करते हैं। (यह सुनी हुई बात  है।)

प्रश्न  (१०) अभिव्यक्ति की कल्पना कठिन होगी?
जैसे बालक सीमित शब्दावली का प्रयोग करता है, तो अधूरी अभिव्यक्ति ही कर पाता है। बडे अनुमानसे अर्थ लगा लेते हैं। चीनी और चीनी परिवार की भाषाएँ भी इसी प्रकार काम चलाती होंगी (मेरा अनुमान है)। विचार संप्रेषण जटिल होता होगा ऐसा अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त कारण हैं।

प्रश्न (११) चीनी भाषी से वार्तालाप कैसे होता है?

उत्तर(११) चीनी कुल कुल की भाषाओं के देशों का शेष विश्व के देशों से वार्तालाप भी पूर्णतः संभव नहीं होता। संप्रेषण में सूक्ष्मताए कठिन और असंभव होती होंगी ऐसा अनुमान करने पर्याप्त कारण है।
 इस लिए भ्रान्त संप्रेषण हो जाता है।  
चीन और चीनी कुल की भाषा के उपयोग कर्ता देशों को संसार के अन्य देशों के साथ परस्पर संवाद की समस्या का होना अपेक्षित है।
चीनी भाषा ही अपर्याप्त है। इस तथ्य की पुष्टि कुछ निम्न तथ्यों का निरीक्षण करनेपर होती है।

प्रश्न (१२) चीनी कुल की भाषा वाले उत्तरी कोरिया और यु.एस.ए. के बीच विश्व युद्ध की भयकारी संभावना के पीछे भी इस जटिल अनुवाद की समस्या का होना माना जाता है।

उत्तर (१२) *यु एस ए और उत्तर कोरिया एक दूजे  से शत्रुवत (दूरी का) भयंकर पैंतरा लेते हुए पाए गए,क्यों कि  *यु. एस. ए. और उत्तर कोरिया एक दूजे को सही सही समझ नहीं पाए होंगे; ऐसा मानने के लिए आधार है। कुछ माह के  पहले की ही निम्न बात है।
एन. बी. सी. (The National Broadcasting Company, U S A ) के *अलेक्सान्डर स्मिथ* कहते हैं:
* One of the reasons the United States and North Korea could find themselves in a dangerous military standoff is that they don’t fully understand what each other is saying, according to experts.*
*यु एस ए और उत्तर कोरिया एक दूजे  से शत्रुवत (दूरी का) भयंकर पैंतरा लेते हुए पाए गए,क्यों कि  *यु. एस. ए. और उत्तर कोरिया एक दूजे को, यथार्थ में  दूसरा क्या कह रहा है, ये  पूर्णतः समझ नहीं पाए।
 U.S.-North Korea Standoff: Miscommunication Is Biggest Threat–by Alexander Smith  भ्रान्त सम्प्रेषण ( मिसकम्युनिकेशन ) इस भयंकर गम्भीर स्थिति का महत्तम कारण उसे प्रतीत होता (था) है.

प्रश्न (१३)
क्या, उत्तरी कोरिया और यु.एस.ए. के बीच विश्वयुद्ध होते होते टल गया।
उत्तर (१३)
उत्तरी कोरिया और यु.एस.ए. के बीच विश्वयुद्ध होते होते टल गया।
यु एस ए-और उत्तर कोरिया के बीच वास्तव में युद्ध की घोषणा थी या ये विवाद का भ्रांत अनुवादित संप्रेषित  समाचार  था?  इस प्रश्न का उत्तर अभी भी शायद नहीं दिया जा सकता.  प्रश्न पूछा  जा सकता है, पर उत्तर आज भी स्पष्ट नहीं है। इससे अधिक कुछ स्पष्ट भी शायद हो नहीं सकता। यह आलेख भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा न उस उत्तर का शोध है। आलेख आपको इस प्रश्न का एक मह्त्वपूर्ण कारण समझाने का प्रयास करता है। जो लेखक को ही स्पष्ट नहीं है; उसकी स्पष्टता कैसे करें।
मुझे जो प्रश्न पूछे गए थे उन पर आधारित यह आलेख है।

(१४) कुछ वैयक्तिक परिचय:

बंधुओं,  हमारी देवनागरी लिपि और भाषा संस्कृत की बराबरी विश्व की कोई भाषा कर नहीं सकती। जो मैं दस वर्ष पूर्व मानता नहीं था.
आज मानता हूँ। विषय पर १०० से अधिक आलेख दाल चुका हूँ।

विनम्रता से कहता हूँ। मैं गुजरात का प्रादेशिक स्वर्ण पदक विजेता, पी.एच. डी, प्रोफेसर, जिसने ३२ वर्ष अंग्रेज़ी माध्यम में इन्जिनियरिंग अमरिका की एक प्रतिष्ठित युनिवर्सीटी में पढाई है। मैं ब्राह्मण नहीं हूँ। गुजराती वणिक हूँ। मुझे इस सत्य को समझते समझते आधा जीवन लगा;  
हमारी देवनागरी की, संस्कृत की और संस्कृत निष्ठ हिन्दी की बराबरी सारे संसार में मुझे नहीं मिली।

हमारे  भाषा विषयक हर प्रश्न का उत्तर हमारे पास है। मेरे प्यारे भारतीय हिरना अपनी नाभि में सुगंध लिए उसे तुम कहाँ ढूँढ रहे हो?
अस्तु । प्रश्न पूछ सकते हैं।

1 COMMENT

  1. चीनी भाषा के बारे में जानने के पश्चात और अंग्रेजी भाषा की कमीआ सर्व विदित होने के पश्चात भी भारत के लोग स्वंत्रता के ७० वर्षो के पश्चात भी अंग्रेजी भाषा को सस्कृत और हिंदी की अपेक्षा अधिक पसन्द करते हैं। अपना प्रसार प्रचार माध्यम बर्ग के लोग , व्यापारी वर्ग भी हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी का प्रचार करते हैं। हिंदी फिल्मो , धारावाहिक कार्यकर्मो की नामावली अंग्रेजी में होती हैं। भारत में अभी भी बहुत अधिक लोगो में अभी भी मानसिक दासता हैं। चीनी और अंग्रेजी भाषा की कमीआ को देखते हुए भारतीया लोगो को संस्कृत और हिंदी भाषा को अधिक महतब देना चाहिए। ऐसा कहा जाता के जो बस्तु आपको चारो और दिखाई देती हैं , लोग उसी में अधिक रुचि लेना आरम्भ कर देते हैं। संस्कृत और हिंदी एक वैज्ञानिक भाषाए हैं। लोगो को संस्कृत और हिंदी भाषाओ के महत्ब को समझते हुए हिंदी भाषा को सर्व व्यापी बनादे हिंदी फिल्मो और धारावाहिक कार्यकर्मो की नामावली हिंदी में हो ,पदार्थो के कवर पर हिंदी लिखी हो , दुकानों के नाम भी हिंदी में लिखो हैं। ऐसे कई पग हिंदी के प्रसार प्रचार के लिए उठाये जा सकते हैं।

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