हिन्दी के शब्दों से कुछ पक्तियों को निकाल कर बनायी गयी रचना इतने में इतना, तो नमक डाले कितना, की कुछ लाइनें आज उमा भारती पर बिल्कुल सटीक बैठती है। पिछले कुछ वर्षो से हम गंगा को साफ करने के लिये अरबों खरबों रूपये खर्च करते आ रहे है, किन्तु गंगा जितनी कल गंदगी को लेकर थी, आज भी उतनी ही है। गंगा, यमुना का तो बुरा हाल है उसने अपना रंग ही बदल दिया है। ऐसा क्यों है ? इस पर अब फिर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है और एक प्लान ‘निर्मल होगा नीर’ तैयार किया गया है ताकि गंगा व यमुना को प्रदूषण से मुक्त किया जा सके।
जब कांग्रेस की सरकार थी और जयराम रमेश पर्यावरण मंत्री थे तब केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है कि 2020 तक गंगा का पानी फिर से अमृत हो जायेगा। इसके लिए उसने गंदे पानी तथा औद्योगिक अपशिष्ट का प्रवाह रोकने के लिये ’मिशन स्वच्छ गंगा’ चलाया जायेगा, मकसद को पूरा करने के लिये सात आईआईटी ;कानपुर, दिल्ली, मद्रास, बांबे, खड़गपुर, गुवाहाटी और रुड़की की सेवायें ली जा रही हैं। इसके विशेषज्ञ ’नदी घाटी प्रबंधन योजना’ तैयार कर बतायेंगे कि जरुरी बुनियादी संरचनाओं के निर्माण में कितने धन की आवश्यकता है? इस जरुरी धन के लिये केन्द्र तथा राज्य सरकारें मिलकर निवेश करेंगी, विश्व बैंक से भी इस परियोजना के लिये एक अरब डाॅलर की वित्तीय मदद का वादा किया है। किन्तु ऐसा क्या हुआ जिसके चलते पिछला प्लान असफल रहा इस पर किसी के पास चर्चा के लिये समय नहीं है। इसका मूल कारण इस उदेश्य को लेकर इससे जुड़े अधिकारियों का नकारात्मक रवैया है। वह हमेशा से गंगा-यमुना मे बहने वाले गंदे सीवर के पानी, कारखानों के केमिकल को कारण बताकर अपना पीछा छुडाते आए है। लेकिन उन पहलूओं पर कभी गौर नहीं किया जिससे कारण यह कार्य हुआ। वास्तव में देखा जाय तो गंगा-समुना में आज जो प्रदूषण है उसके लिये स्थानीय निकाय ही नहीं, उससे ज्यादा वहां का विकास प्राधिकरण जिम्मेदार है। विकास के नाम पर शहर की दलाली करने वाले इस विभाग ने सारे पोखरे, शहर के भू माफियाओं को तहसील विभाग की मिली भगत से कब्जा करवा दिये और अब वहां आलीशान कोठियां बनी हैं जिसमें बड़े बड़े अधिकारी व प्रभावशाली लोग रह रहें है। अब वह रिहायशी एरिया है इसलिये जनहित में कुछ नहीं किया जा सकता। जिन तालाबों में शहर का पानी इकठ्ठा होता था। वह पानी अब इस व्यवस्था के चलते सडकों पर आ गया और इस रास्ते से होता हुआ व गंगा-यमुना व अन्य नदियों में मिलकर जल को प्रदूषित कर रहा है। इसी तर्ज पर नगर निगमों ने भी अपना मैल नदियों में मिला कर इस कार्य में चार चांद लगा लिया है।। रही सही कसर सरकार ने पूरी कर दी, बांध बना दिया और अब गंगा व अन्य नदियों में इनकी मंशा का पानी रह गया है। गंगा-यमुना का हिमालय से आने वाला पानी तो पहले ही रोक लिया है। वह है कहां कि इस प्रदूषण को बहाकर समुद्र में ले जाय इसलिये गंगा के साथ- साथ सभी नदियों का पानी प्रदूषित है। अगर वह हिमालय से आने वाले जल का चालीस प्रतिशत पानी भी नदियों में जाने दिया जाता तो इन नदियों का हाल इस तरह का नहीं होता लेकिन फिर इससे जुडे लोग इस तरह से ऐश नहीं कर रहे होते। ।
जहां तक गंगा एक्शन प्लान की बात है तो इसको लेकर काफी चहल कदमी हुई थी और उस समय उसे साफ करने को लेकर लोगों में एक जोश था किन्तु जब टिहरी में बांध बना तो पानी के अभाव में जो कछार बने उसकी ऐसी आपाधापी मची की हजारों एकड भूमि प्रदेशों को मुफ्त मे मिल गयी, इतना ही नहीं, इस जमीन का स्थानीय अधिकारियों ने खूब भूनाया। रातों रात वह करोड़पति और गंगा को साफ करने वाले रोड़पति बन गये। फिर वहां के भू माफियों के कब्जे में स्थानीय निकाय के चलते अरबो रूपये की यह जमीन चली गयी। जिसके कारण लोगों ने गंगा को साफ करने से किनारा कर लिया। उसके बाद फिर करोड़ो रूपये खर्च किये गये किन्तु कुछ नहीं हुआ मामला शिफर रहा। इस प्लान पर कार्य करने के नाम पर कारखानो से सिर्फ अधिकारियों ने दलाली की, आज भी वह व्यवस्था कायम कर दलाली खा रहे है। फिर ऐसे में फिर से गंगा के लिये खर्च करना महज सब्जबाग दिखाना और अपने लोगों के हाथों पैसा कंमवाना ही है। इसके अलावा कुछ नहीं। अगर गंगा पर नजर डाले तो हम पाते है कि गंगा को मोक्ष दायिनी हमारे शास्त्रों में कहा गया है और इतिहास में वर्णित है कि महराज हरिशचन्द्र ने इसी गंगा की रक्षा के लिये अपना सबकुछ गंवा दिया था। इस में मनुष्य के मरने के बाद उसे प्रवाहित करने की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। जो आज भी अनवरत जारी है। अकाल मृत्यु प्राप्त करने वाले को इसलिये प्रवाहित किये जाने का प्रावधान था ताकि उसके अंतिम यात्रा को परोपकार मे बदला जा सके और इसमें रहने वाले जीव उनका शिकार कर अपना जीवन यापन कर सके। इस तरह के मनुष्यों की लाश बहकर समुद्र तक जाती थी और फिर भी गंगा बहती थी, लोग स्नान करते थे और वह साफ रहती थी। दूसरा कारण गंगा का तीव्र वेग था जो सभी कुछ बहाकर ले जाता था। यह बहाव अब या तो बारिश के समय में मिलता है या फिर किसी त्योहार पर, जब बबाल होने की संभावना हो अन्यथा सभी कुछ बेकार।।
अब उमा भारती पर गंगा को साफ करने की जिम्मेदारी है जो धार्मिकता के लिये जानी जाती हैं लेकिन तमाम प्रयासों व आलीशान होटलों में बैठक कर अरबों रूप्ये लुटा देने वाली यह मंत्री गंगा को अब तक साफ नहीं कर पाई इसके पीछे कुछ कारण थे, जिसपर अब विचार कर लेना चाहिये। पहले इस प्रकिया पर सरकार की तरफ से कर निर्धरण होता था, जो आज भी चला आ रहा है। शमशान घाट पर भले ही शवदाह गृह बने हो किन्तु घाट का ठेका आज भी हो रहा है। आज भी लाशें जल रही है और अवशेष शास्त्रों के अनुसार गंगा व जो नदी जहां है उसमें बहाये जा रहे है। सरकार इस बात को गंदगी का आधार तो मान रही है किन्तु उन अधिकारियों को कुछ नहीं कहना चाहती जो कि पोखरों व कछारों के जमीनों को बेशकीमती भाव में बेचकर गंगा को प्रदूषण की राह पर ढकेलने के प्रमुख कारक बने हुए है।।