स्पष्ट जनादेश, वो क्या होता है???

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दिवस दिनेश गौड़

मित्रों बहुत दिनों से दिमाग में यही सवाल चल रहा है कि चारों ओर थू थू होने के बाद भी आखिर यह कांग्रेस सत्ता में आती कहाँ से है? मै केवल मेरे आस पास के क्षेत्र की बात नहीं कर रहा, क्यों कि यहाँ तो राजस्थान में भी कांग्रेस की ही सरकार है| मेरे साथ के सहकर्मी महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल, केरल, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि जगहों से हैं| अब जहाँ तक वे अपने अपने क्षेत्रों के बारे में बताते हैं उससे मुझे तो यही लगता है कि कांग्रेस की धज्जियां तकरीबन सभी जगह उड़ चुकी है| फिर मै भी टेलिकॉम में काम करता हूँ, अत: काम से यहाँ वहां काफी घूमना भी होता रहता है| तब पता चलता है कि लोगों के दिल से तो कांग्रेस गायब हो चुकी है| तो क्या मै यूँही इतने दिनों से उन मतदाताओं को कोस रहा था जिन्होंने कांग्रेस को विजयी बनाया? शायद व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा व्यय कर दी| क्यों कि मुझ े तो ऐसा ही लगा कि कोई भी पढ़ा लिखा समझदार व्यक्ति ऐसे ही इन नेताओं के झूठे लुभावनों में नहीं पड़ता| आखिर इतने सालों से वह भी तो इस पार्टी की करतूत देख रहा है|

कारण साफ़ है कि भारत में अब कांग्रेस की कभी जीत नहीं होती अपितु विपक्ष की हार हो जाती है| अब यह कैसे संभव है? संभव है, हमारे देश में कुछ भी असंभव नहीं है| अब वोटिंग मशीन में गड़बड़ी का विवाद हो या दारू पिला कर, मुर्गा खिला कर, पैसे दे कर जुटाई भीड़ हो, मुझे तो कांग्रेस की जीत पर शंका है| विपक्ष की हार का लाभ ही इस तथाकथित महान पार्टी को मिलता है| गड़बड़ दरअसल मतदाता में नहीं हमारी चुनावी प्रणाली में है| कहने को तो भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है किन्तु इस लोकतंत्र में लोक गायब है| यहाँ सर नहीं सीट गिनी जाती हैं| मान लीजिये हमारे प्रदेश में ५० सीटें हैं और आपके प्रदेश में ७०| आपकी ७० सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई, मान लीजिये सभी वोट कांग्रेस को ही मिले और हमारे यहाँ ५० सीटों पर भाजपा विजयी रही और सभी वोट भाजपा को मिले| किन्तु आपके क्षेत्र में पड़ने वाले वोटों की संख् या है पांच करोड़ और हमारे यहाँ यह संख्या है सात करोड़| अब अधिक लोगों ने तो भाजपा को चुना है किन्तु सीट कांग्रेस के पास अधिक हैं, अत: सरकार बनाने का अधिकार कांग्रेस को मिलेगा| फिर कैसा लोकतंत्र है ये?

दूसरी गड़बड़ थोड़ी अलग है| हमारे यहाँ चुनाव अधिकतर एम्एलए, एमपी, पार्षद या सरपंच के नाम पर होते हैं, प्रधान मंत्री की तो किसी को पड़ी भी नहीं है| कोई भी बने हमें क्या, हमारे यहाँ का एम्एलए तो हमारी जात का, हमारी बीरादरी का या हमारे क्षेत्र का ही होना चाहिए| मानें या न मानें किन्तु ऐसे विचार अधिकतर पिछड़े व अशिक्षित लोगों के मन में आते रहते हैं| मै ऐसा नहीं कहता की पढ़ा लिखा नागरिक दूध का धुला है| बात तो यह है कि बेचारे बहुत से पढ़े लिखों को तो मौका ही नहीं मिल पाता कि वे यह निर्णय करें कि हमारा नेता कौन हो? घबराइये नहीं सच कहता हूँ|

पहले मै मेरी व्यथा ही सुना देता हूँ| अब तक तो मुझे थोडा बहुत पढ़ कर आपको यह पता चल ही गया होगा कि मै एक कांग्रेस विरोधी नागरिक हूँ| वोट देने का अवसर मिले तो भाजपा ही फिलहाल पहली पसंद है| किन्तु वोट देने का मौका मिले तो सही| मेरी तो गलती यही है कि मै पढ़ा लिखा नागरिक हूँ| मुझे पहले पढ़ाई के लिये घर से दूर किसी अन्य शहर में आना पड़ा, फिर नौकरी के लिये भी अपने शहर से दूर ही रहना पड़ा| क्या करें ह मारे छोटे शहरों में कहाँ नौकरियां हैं? सरकारी नौकरी कोई देता नहीं ब्राह्मण जो ठहरा| अब चुनाव के दिन एक दिन की छुट्टी में मै अपने घर जा कर वोट देकर वापस भी आ जाऊं? चलो मै तो ऐसा करता ही हूँ, मेरा गृह नगर यहाँ से ३८० किमी की दूरी पर ही है, किन्तु उन लोगों का क्या जो हज़ारों मील की दूरी पर बैठे हैं? चुनाव प्रणाली चाहती है कि वे लोग एक दिन में यह काम पूरा कर लें, क्या यह संभव है? ऐसे में मारे जाते हैं भाजपा के अनगिनत वोट|

यकीन मानिए ऐसे अनगिनत वोट अधिकतर भाजपा के नाम पर पड़ने वाले ही होते हैं| अपने घर से कोसों दूर बैठे ये पढ़े लिखे नागरिक जिन्हें वोट देने का अधिकार तो है किन्तु समय नहीं| रही बात उच्च वर्ग के व्यापारियों कि तो उनमे से अधिकतर की पहली पसंद है कांग्रेस| कैसे? वो ऐसे कि अपने कई व्यापारी मित्रों को इसी की लालसा करते देखा है| सभी एक स्वर में बोलते हैं कांग्रेस की सरकार आ जाए तो हमारे ऊपर नीचे काम आसानी से हो जाते हैं| भाजपा के शासन में कुछ दिक्कत आती है|

राजस्थान में तो यही होता देखा है मैंने|

तीसरी गड़बड़ यह कि यहाँ जितना मज़ाक लोकतंत्र का उड़ता है उतना तो शायद दुनिया के किसी भी देश में नहीं होता होगा| कैसे? वो ऐसे कि १२० करोड़ की आबादी वाले देश में वोट पड़ते हैं ६० करोड़| जिनमे से जो दल ३० करोड़ की बाज़ी मार गया वो अपनी सरकार बना गया| किन्तु यहाँ इतने राजनैतिक दल हैं कि कोई एक दल तो यह बाज़ी मार नहीं सकता| गठबंधन तो जैसे कम्पलसरी है| जिसके पास २४-२५ करोड़ का आंकड़ा पहुच गया वह लगता है शेष ५-६ करोड़ के जुगाड़ में| ऐसे में काम आते हैं निर्दलीय उम्मीदवार| अब निर्दलीय उम्मीदवार का कंसेप्ट ही क्या है मुझे यह समझ नहीं आता| ये तो चुनाव लड़ते ही इसलिए हैं कि अंत के जुगाड़ में जो दल अधिक माल दे वहीँ अपने आपको बेच दें| किसी और का फायदा हो न हो इन्हें जरूर मलाई मिलती है| मज़े की बात तो यह है कि ऐसे उम्मीदवार जीतते भी हैं| अब इन्हें जिताने वालों से कोई पूछे कि क्या सोच कर उन्हें वोट दिया था कि यही हमारे देश की बागडोर संभालेगा, या हमारे मौसा जी का बेटा खड़ा हुआ था अत: जीता दिया| मै यह नहीं कहता कि सभी निर्दलीय उम्मीदवार बिकाऊ हैं, किन्तु इनका कंसेप्ट मेरी समझ के बाहर है| किसी प्रकार जोड़ तोड़ करके कुछ निर्दलीय व कुछ क्षेत्रीय दलों को मिला कर कोई एक दल सरकार बनाने का दावा तो कर देता है साथ ही इसे लोकतंत्र की जीत का उदाहरण जरूर बताता है| अब बताएं कि कहाँ है य हाँ लोकतंत्र? १२० करोड़ के देश में से केवल २५ करोड़ लोगों की पसंद को पूरे देश पर थोप दिया जाता है और जीत है ये लोकतंत्र की? देश की २०% आबादी हमारा नेता चुनती है और हम बन जाते हैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा?

तो यह कहानी है जनादेश(?) की| एक आम आदमी के उदाहरणों के साथ, ऐसा नहीं कि इन प्रोफ़ेसर ने यह कहा, उन डॉक्टर ने वह कहा, इस किताब में यह लिखा है उस किताब में वह लिखा है| जनादेश एक आम आदमी से जुड़ा है अत: आम आदमी की भाषा में मैंने इसे रखने की कोशिश की है|

सबकी अपनी मजबूरी होती है तो इसका मतलब यह नहीं कि यही निजाम हमेशा चलता रहेगा| विकल्प और भी बहुत से मिल जाएंगे| सबसे पहले तो होना यह चाहिए कि मतदाता को केवल उन्ही उम्मीदवारों के नाम पता हों जो कि प्रधान मंत्री पद के दावेदार हैं| इससे लाभ यह होगा कि मै रहने वाला राजस्थान का हूँ किन्तु कर्नाटक में बैठा भी अपने देश का नेतृत्व करने वाले को चुन सकता हूँ| मुझे अपने शहर जा कर किसी विशेष पोलिंग बूथ पर जाने की आवश्यकता नहीं है|

या एक तरीका यह हो सकता है कि एक ही व्यक्ति दो वोट डाले, एक तो अपने क्षेत्रीय उम्मीदवार के नाम और एक प्रधान मंत्री के नाम| कम से कम अपने घर से दूर बैठे व्यक्ति अपना प्रधान मंत्री तो चुन सकते हैं|

अगर यह भी संभव न हो तो ऐसी सुविधा दी जाए कि वोटिंग ऑनलाइन हो सके| मै देश के किसी भी कोने में बैठा अपने शहर के क्षेत्रीय उम्मीदवार को वोट दे सकूं| ऐसा बिल्कुल संभव है| और इसमें कोई गड़बड़ी की आशंका भी नहीं है| जब भारतीय प्रबंधन संस्थान (CAT ) की परीक्षा ऑनलाइन हो सकती है तो चुनाव क्यों नहीं? अब यह तो अजीब विडम्बना है कि हम मोबाइल से एसएम्एस करके इन्डियन आइडल या बिग बॉस तो चुन सकते हैं, किन्‍तु इन्टरनेट के उपयोग से प्रधान मंत्री नहीं चुन सकते|

देखते हैं शायद कभी न कभी इन विकल्पों को अपना लिया जाए| इतना तो मै आश्वस्त हूँ कि ऐसा होने पर कम से कम ये घटिया राजनीति खेलने वाली कांग्रेस तो किसी हालत में नहीं जीत पाएगी|

9 COMMENTS

  1. और ha ek bat बताना भूल ही गया चूँकि mai जोधपुर se हु जो सीएम साहब का गृह क्षेत्र है अत थोडा ज्यादा ही सक्रीय व् राजनीतिक दृष्टि से ,हमारे व् पास vali vidhansabha से कोंग्रेस हर gayi पर सीएम साहब जित गए ,क्योकि उनके samaj वालो ने कुछ दिन मितिंक करके अनेको काम karane वाले अपने ही समाज के भाजप के बंधू की जगह सीएम साहब को वोट देने की अपील कर दी व् हमेशा से भाजपा को वोट देते ए एक समाज ने जोधपुर के पूर्व राजा{ जो अपने किले में हुवे hadase की vajah से fase हुवे the} के prabhav में कोंग्रेस को वोट dal diye natija…………………..lekin sab कुछ prabhav hote हुवे bhi एक dusari vidhan sabha क्षेत्र से कोंग्रेस us क्षेत्र से bahut ज्यादा tadat में हर gayi jaha lagabhag 90 % log shikshit है keval us से ही itana ज्यादा gaip mila की काम shikshit logo की tatad वाले dusare mohalo में भाजपा के paksh में pade कम वोट kavar ho गए,saf है jaha jagaruk shikshit matadata ने mat diya vaha कोंग्रेस hari……………

  2. कुछ esa hi अनुभव मुझे भी आया था जब भाजपा पंजाब me loksabha चुनाव हारी थी उस समय मई वहा काम करता था वहा मेरे साथ काम करने वाले सभी इंजिनियर भाजपा के पक्ष में थे , सुप्र्वैजर व् मजदूर भाजपा व् बसपा में आधे आधे बठे थे लेकिन jo abhi अभी dubayi से काम कर लोठे थे इसे मिस्त्री मुझे बताते ki गाव वाले व् शहर के लोग भी केवल केवल दारू के लिए ही कोंग्रेस को वोट देते है बसपा अपनी जातिगत nishtha के वजह से वोट ले जाती है व् भाजपा अपनी हिंदुत्व के कारन ,लेकिन कोंग्रेस की दारू दोनों par भारी पड़ती है भाजपा का वोटर केवल चर्चा करता है कोंग्रेस को गलिय बकता है lkin वोट नहीं डालता
    जब भी वोटिंग प्रतिशत में अगर २ % भी कमी अजय पिछले चुनावो से तो भाजपा लोकसभा व् विधान सभा चुनाव हार जाती है लेकीन नगर पालिका अदि के चुनावो में जबरदस्त जातिगत समीकरण से जितना ज्यादा वोट पड़ता है उअताना कोंग्रेस को फायदा होता है अपने राजस्थान में भी केवल व केवल जातिवाद के चलते भाजपा सत्ता के बहार हो गयी जबकि हर जगह वसुंधरा की तारीफ हो रही थी लेकिन गुजर-mina factar की वजह से भाजपा को सीधे सीधे २०-२५ सितो का नुकसान हुवा,और वोतिक % भी पहले की तुलना में संभवत २-३% काम हुवा मतलब भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाताओ ने बहुत कम वोट डाला था,हमारे क्षेत्र में मात्र ४८% मतदान हुवा था जबकि पिचली bar ५८ % मतदान हुवा था हलाकि तब चुनाव क्षेत्र छोटा था जब तक पढ़ा लिखा व् सोच समझ कर मतदान देने वाला वर्ग जागरुक होकर मतदान नहीं करेगा भाजपा हमेशा हारेगी कोंग्रेस केवल दारू के भरोसे jitati है

  3. करोडो लोग एक व्यक्ति को जान तो सकते है लेकिन पहचान नही सकते. यह जानने का काम लोग मिडिया द्वारा करते हैं – वह भ्रष्ट मिडीया दुष्ट को सज्जन बना देती है तथा सज्जन को दुष्ट. इस लिए जिसको हम पहचानते नही उसे वोट डालने का अर्थ यह हुआ की हम अपना मताधिकार मिडीया के हवाले कर रहे हैं. यह राष्ट्रियता को खतरे मे डाल सकती है. अतः मुझे लगता है की छोटे निर्वाचन क्षेत्र से राज्य के प्रतिनिधी चुने जाए यह बेहतर व्य्वस्था है.

  4. दिवस जी अपने इस सम्बन्ध में अपना आकर्षण प्रदर्शित किया इससे हार्दिक प्रसन्नता हुई और आपकी जानकारी के लिए बता दूं की जयपुर में भी ये प्रदर्शन होने वाला है उसके लिए आपको अपनी जिला/तहसील मुख्यालय पर जाना होगा ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक को देखे
    https://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/Gyapan30/Nirdesh2.aspx

  5. अहतशाम भाई आपका कहना सही है कि भाजपा की गलतियों का फायदा कांग्रेस को मिलता है| भाजपा के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है, जिनके सहारे वह कांग्रेस को नंगा कर सके| किन्तु भाजपा में सफल विपक्ष के गुण भी नहीं है| ये तो डॉ. स्वामी हैं जिन्होंने अकेले अपने दम पर नेहरु गांधी परिवार का सच दुनिया के सामने ला दिया| भाजपा को चाहिए कि वह डॉ. स्वामी के साथ मिलकर उन्हें और मजबूत बनाए|
    आदरणीय मीणा जी आपकी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद|
    आपके कथन से मै पूरी तरह सहमत हूँ कि लेखक को निष्पक्ष होना चाहिए| किन्तु साथ ही यह भी कहना चाहूँगा कि निष्पक्षता का प्रश्न तब आता है जब हमारे सामने दो पक्ष हैं और हमें दोनों के विषय में कुछ नहीं पता| यहाँ तो कहानी पूरी तरह से साफ़ है| कांग्रेस का सच तो अब सभी जान चुके हैं| यदि मुझे आतंकवादियों और भारत के वीर जवानों पर चर्चा करनी है तो जाहिर सी बात है कि मै यहाँ निष्पक्ष नहीं हो सकता क्यों कि सच मै जानता हूँ कि हमारे जवान अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये लड़ रहे हैं और आतंकवादी केवल भय का वातावरण फैला कर मासूम जनता का संहार कर रहे हैं|
    फिर भी मेरे man में आए इन सवालों से आप भी सहमत हैं, अत: इस के मै आपका आभारी हूँ|
    धन्यवाद, सादर, दिवस…
    शैलेन्द्र भाई आपका भी आभार| आपने अपनी टिप्पणी में कहा कि “स्वामी रामदेव इस कार्य में लगे हुए है २७ फरवरी और २३ मार्च को अपने क्षेत्र में जहा भी आप इस समय रह रहे है होने वाले प्रदर्शन में जरूर शामिल होइएगा|” कृपया विस्तार से इसके बारे में बताइये| मै इस समय जयपुर का रहने वाला हूँ| क्या जयपुर में भी ऐसा कुछ हो रहा है? कृपया मार्गदर्शन दें|
    आदरणीय आर सिंह जी आपका भी धन्यवाद| आपसे भी मै पूरी तरह से सहमत हूँ| भाजपा को भी चाहिए कि वह अपने प्रधानमन्त्री के दावेदार का नाम उजागर करे| वैसे सभी जानते हैं कि यह भार श्री आडवानी जी ही संभालेंगे| और कांग्रेस के बारे में भी हम आश्वस्त हैं कि राहुल गांधी को इसका जिम्मा सौंपा जाएगा| किन्तु मेरा प्रश्न कुछ और ही है| और यहाँ तो ऐसे ऐसे खेल लोकतंत्र के साथ खेले जा रहे हैं जिसकी कोई सीमा नहीं| एक ऐसे व्यक्ति को हमारा प्रधानमन्त्री बना दिया गया जो कभी भी चुनाव नहीं लड़ा| अब आप ही बताइये क्या इससे ज्यादा लोकतंत्र का अपमान कुछ और हो सकता है?

  6. दिवस दिनेश गौड़ जी ऐसे तो यह आप जैसों युवकों के लिए इतिहास के पन्नों के पलटने की बात है पर मेरे जैसों के लिए तो आँखों देखी घटना है.आपात काल के बाद १९७७ में जो चुनाव हुआ उसमे जनता ने कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त दी.प्रधान मंत्री पद के लिए बहुत दावेदार खड़े हो गए,पर जय प्रकाश नारायण के हस्तक्षेप के कारण मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री अन गए. आपने शायद ये भी पढ़ा होगाकि सब निर्वाचित लोग मंत्रिमंडल के साथ महात्मा गाँधी की समाधि पर शपथ लिए. सत्यनिष्ठा और इमानदारी की कसमें खाई.पर स्वार्थ लिप्तता का ये आलम रहा की वह सरकार तीन वर्षों में धरासाई हो गयी.इंदिरा जी के पुनः स्थापन का पूर्ण व्योरा आपको उस समय के इतिहास के पन्नो को पलटने से मिल जाएगा.अगर कठिनाई हो तो मैं भी उन सब बातों को इन पन्नों में भी दुहरा सकता हूँ.मैं यह सब जिक्र इस लिए कर रहा हूँ की कांग्रेस का बार बार सत्तारूढ़ होना असल में विपक्ष की बार बार दुहराई जाने वाली गलतिओं का परिणाम है.जनता ने एकबार और अवसर दिया था जब अटल जी प्रधान मंत्री बने थे,पर उसके बाद क्या हुआ यह तो ज्यादा दिन पहले की बात नहीं है और इसके गवाह आप जैसे युवक भी हैं.भारतीय जनता पार्टी के आप बहुत बड़े समर्थक हैं,पर क्या आप कह सकते हैं की भारतीय जनता पार्टी सता उसके हाथ में आने पर किसको प्रधान मंत्री बनाएगी?भारतीय जनता पार्टी या अन्य किसी भी पार्टी से ,जो कांग्रेस के मुकाबले में आना चाहती है उसे एक ऐसे चेहरे को सामने लाना होगा जो सोनिया राहुल के मुकाबले में जनता के सम्मुख खड़ा हो सके.जनता कांग्रेस को हटा भी दे तो भी कौन यह दावे के साथ कह सकता है जो दूसरी पार्टी आएगी वह कांग्रेस से बेहतर साबित होगी.१९७७ से आज तक बहुत अवसर आये,पर अच्छी सरकार कभी नहीं आयी.जहाँ तक मामला भ्रष्टाचार का है उसके बारे में मेरा जो विचार है उसके अनुसार सरकारे बदलने उसमे कोई बदलाव नहीं आयेगा.

  7. दिवस जी चिंता न करे सत्ता के साथ व्यवस्था परिवर्तन तय है स्वामी रामदेव इस कार्य में लगे हुए है २७ फरवरी और २३ मार्च को अपने क्षेत्र में जहा भी आप इस समय रह रहे है होने वाले प्रदर्शन में जरूर शामिल होइएगा

  8. “भारत में अब कांग्रेस की कभी जीत नहीं होती अपितु विपक्ष की हार हो जाती है|”

    आपके पूरे लेख में उक्त पंक्ति विशेष रूप से विवेचना के लायक है, हालाँकि इस बारे में आपकी विवेचना निष्पक्ष प्रतीत होती है. जिसका कारण भी आप खुद ही हैं. आप लिखते हैं कि-” मै एक कांग्रेस विरोधी नागरिक हूँ|”

    इस सच को कि “कांग्रेस की कभी जीत नहीं होती अपितु विपक्ष की हार हो जाती है|” चौधरी चरण सिंह, चन्द्र शेखर, अटल बिहारी, आडवाणी आदि सभी बड़े-बड़े नेता भी जानते रहें हैं. लेकिन फिर भी कांग्रेस से लगातार हारते रहे हैं.

    क्योंकि इस क्योंकि को ही हम लोगों को ठीक से समझना है, जिसके लिए चुनाव क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में विसंगति का आपका विचार भी निरस्त नहीं किया जा सकता है.

    वैसे आपने मुद्दा सार्थक उठाया है, यदि आपने ये नहीं लिखा होता कि आप कांग्रेस विरोधी हैं तो आपके विचारों पर सार्थक चर्चा हो सकती थी. वैसे एक लेखक को निष्पक्ष दिखने का ही नहीं, बल्कि निष्पक्ष रहने का भी प्रयास करना चाहिए.

  9. चारों ओर थू थू होने के बाद भी आखिर यह कांग्रेस सत्ता में आती कहाँ से है?

    मान्य गौड़ जी!

    इसकी जिम्मेदार भाजपा है! क्यूंकि भाजपा की नीति इतनी निकम्मी और घटिया है की जनता ने उसे पूरी तरह से नकार दिया
    जिसका लाभ कांग्रेस उठा रही है

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