वामपंथ और नकारात्मक राजनीति

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वामपंथ स्वतंत्रता आन्दोलन से ही दुष्प्रचार और नकारात्मक राजनीति में विश्वास करता है

विकास आनन्द

आजकल कम्यूनिष्ट विचार को मानने वाले छात्र संगठन,पत्रकार समूह ,बुद्धिजीवियों में अजीबो गरीब विशेषता देखने को मिल रही है.हालांकि इस तरह के लक्षण और इनकी ओछी हरकते कोई नई नही है. देश मे छोटी से बड़ी सारी घटनाओं के लिए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेवार ठहरा रहे है. चाहें वो गौरी लंकेश का मामला हो या बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के छेड़खानी की घटना और विद्यार्थियों द्वरा विश्विद्लाय प्रशासन के खिलाफ विरोधप्रदर्शन. गौरिलांकेश की बेटी गला फाड़ फाड़ कह रही है कि हत्या का संदेह नक्सलियों पर है.लेकिन रविश सरिखे वामपंथी पत्रकार सीधे प्रधानमंत्री को दोसी करार देने में लगे है. ये भी भूल जाते हैं कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेवारी है.और कर्नाटक में तो कांग्रेस की सरकार है.उसके लिए सीधे प्रधानमंत्री को उत्तरदायी बताना कतई उचित नही है.बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में अभी वहां का विश्वविद्यालय प्रशासन घटना पर करवाई कर रहा है.लेकिन वामपंथी संग़ठन इसको इसतरह से प्रचार प्रसार कर रहे हो मानो देश में इंदिरा गांधी वाला इमरजेंसी लग गयी हो.रवीश एनडी टीवी का उपयोग तो पत्रकारिता के जगह दुष्प्रचार के लिए तो कर ही रहे है साथ में जंतर मंतर पर धरने के लिए भी बैठ जाते है.पता नहीं ये उनकी पत्रकारिता है या वैकल्पिक विचार को नहीं सहन करने कि वामपंथी आदत. इसके पहले सिवान में एक पत्रकार की हत्या होती है रवीश के मुहँ से या की वामपंथी संगठन के मुहँ से एक शब्द भी नही निकलते है.आखिर पत्रकार तो पत्रकार है ,फिर यह भेद कैसा. ये सारी घटनाएं इनके मंसे पर प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं. जैसा कि पहले मैंने कहा कि ये कोई नई बात नही है शुरू से ही दुष्प्रचार में विश्वास करते हैं ये.के.एम मुन्सी ने अपनी पुस्तक ‘पिल्ग्रिमेज टू  फ्रीडम स्ट्रगल’ में लिखते हैं 1931 में स्वतंत्रता आंदोलन गांधी जी के नेतृत्वअपने चरम पर था.कम्युनिस्ट लीडर के. एम मुंसी से कहें कि देखो गांधी का प्रभाव आंदोलन पर खत्म हो गया है और  देश की जनता गांधी को बाहर फेक देगी. इसलिए आप हमारे संग़ठन में जॉइन कर लो हमारे साथ काम करो.इन्होने गाँधी और उनके विचारों के खिलाफ भी आन्दोलन के  यावत खूब दुष्प्रचार कि राजनीति कि है.इन्हें स्वत्रंत्रता आंदोलन से ही दुष्प्रचार में महारथ हासिल है.के.एम मुंसी ने लिखा है कि मैंने देखा इनके हड़ताल करवाने के कारण सारी बॉम्बे की टेक्सटाइल मिल बर्बाद हो गयी. टेक्सटाइल उद्योगों को बंद होने के कारण मजदूरों की स्थिति दयनीय हो गयी. ये तो है स्वन्त्रता आंदोलन की घटना. स्वतंत्रता के बाद बंगाल जैसे धनी राज्य के उधोग-धंधे लंबे कम्युनिष्ट शासन के कारण बर्बाद  हो गया.

केरल को भी इन्होंने बर्बाद कर दिया है.केरल की अर्थव्यस्था पर भी इनके लक्षण दिख रहे है. आज केरल जैसे प्राकृतिक रूप से धनी और सुंदर प्रदेश के अर्थव्यवस्था का केवल आधार सऊदी देशो से भेजे जाने वाले केरल के लोगो के मनीऑर्डर पर निर्भर हो गया है. वहां के लोग अपना प्रदेश परिवार छोड़ कर दूसरे देशो में अप्रशिक्षित श्रम में लगना पड़ता है. ये कम्युनिस्टो के नकारात्मक राजीनीति के संस्कृति केपरिणाम हैं. दूसरी सबसे बड़ी इनकी कमी है राजीनीतिक  असहिष्णुता. जहां है ये दूसरे विचार वाले लोगो को सहन ही नही कर सकते. हत्या-हिंसा से विरोधी विचार को चुप करा देते है. इसका केरल जीता-जाता उदारहण है. वहाँ आये दिन भाजपा-संघ कार्यकर्ताओं के हत्या की खबर इनके असहिष्णुता को दर्शाती है. इनका राजीनीतिक संस्कृति किसी भी दृष्टि से लोकतांत्रिक नही है.

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