वर्तमान समय में विश्व स्तर की राजनीति को समझना अत्यंत कठिन है क्योंकि आज के समय में विश्व की राजनीति एक ऐसी दिशा में गतिमान है जिसे साधारण रूप से समझ पाना मुश्किल ही नहीं अत्यंत कठिन है। यदि इतिहास के पन्नो को पलट दिया जाए और विश्व युद्ध के अतीत पर नजर डाली जाए की अमेरिका, सोवियत संघ रूस और चीन जैसे देशो की क्या भुमिकाएं थीं। उस दौरान कौन सा देश कहां पर खड़ा था और किसके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा था। क्योंकि आज के समय में तेजी से बदलती हुई दुनिया की राजनीति ने सब कुछ बदल दिया है| यदि शब्दों को बदल कर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि दुनिया में वर्तमान समय की राजनीति ने सब कुछ उलट-पलट कर एक नया रंग रूप एवं ढंग प्रस्तुत कर दिया है। क्योंकि आज अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश विश्व युद्ध के दौरान चीन का धुरविरोधी देश था, इतिहास के पन्ने जिसके बीच हुए संर्घष एवं युद्ध को अपने पन्ने में समेटे हुए हैं| तथा रूस और भारत की दोस्ती भी दुनिया के सामने एक मिशाल बन के उभरी थी पूरा विश्व रूस एवं भारत की मित्रता का साक्षी था।
लेकिन वर्तमान समय की राजनीति ने बड़ी तीव्रता के साथ करवटें ली और जगत की राजनीति को उलट पलट कर पूरी तरह से बदल कर रख दिया। उत्तर कोरिया के तानाशाह किंमजोंग की मानसिक किसी से भी छुपी नहीं है। किंमजोंग और सर्वशक्तिशाली देश अमेरिका के मध्य खींचतान की स्थति भी दुनिया के सामने एक नया रंग रूप एवं ढ़ग लेकर उभर रही है| उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच खिंची हुई तलवारें विश्व स्तर की राजनीति में बहुत कुछ कह रही हैं| यदि इस राजनीति पर गंभीरता से दृष्टि डाली जाए तो सब कुछ स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ जाता है| क्योंकि यह खिंची हुई तलवारें अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच हैं, जिसमें चीन की बहुत बड़ी भुमिका है जोकि समय के अनुसार उभरकर सामने आती रहती है, जिससे की वास्तविक राजनीतिक मुखौटे से भी परर्दा उठ जाता है, और स्पष्ट चेहरा खुलकर सामने आ जाता है।
राजनीति के जानकार इसे अपनी तीव्र दृष्टि वाली नजरों से देखकर पहचान लेते हैं| क्योंकि यह राजनीति अत्यंत जटिल है, इसको समझना साधारण रूप से बहुत ही मुस्किल है| क्योंकि उत्तर कोरिया के सहयोगी की भूमिका में चीन अंदर खाने उसके साथ खड़ा हुआ है, जबकि अमेरिका उसके विरोध में उसके सामने खड़ा है। जिसमें अधिकतर देश दर्शकों की भूमिका में अपना-अपना दायित्व निभा रहे हैं| इस स्थिति को देखने के बाद निष्कर्ष यह निकलता है कि क्या अमेरिका और चीन एक दूसरे के ध्रुर विरोधी हैं। अथवा नहीं?…क्योंकि इस राजनीति को यदि हम ऐशिया की धरती पर लेकर जाते हैं और पाकिस्तान के सामने राजनीति के मापक यंत्र पर रख देते हैं, तो स्थिति सम्पूर्ण रूप से उलट-पलट हो जाती है, और एक नया निष्कर्ष निकल कर सामने सूर्य के प्रकाश के समान चमकता हुआ प्रकट हो जाता है, जिससे कि राजनीति का घोर अंधेरा पूरी तरह से दूर भाग जाता है| उसके बाद सच्चाई सम्पूर्ण रूप से उभरकर सामने आ जाती है| क्योंकि पाकिस्तान के ऊपर आतंकी गतिविधियां चलाने का बड़ा आरोप लगातार लग रहा है| जिसका भूक्त-भोगी भारत, अफगानिस्तान, इराक, ईरान, बंग्लादेश जैसे अनेकों देश पीड़ित हैं| जिसे भारत अंर्तराष्ट्रीय मंचों इस मुद्दे को लगातार उठाता रहा है| लेकिन परिणाम मात्र आश्वासनों तक ही सीमित रह जाते थे, जिसका निष्कर्ष शून्य ही दिखाई देता रहा है| सबसे जटिल प्रश्न यह भी है कि, जब अमेरिका और चीन दोनों देश एक दूसरे के धुर विरोधी हैं तो पाकिस्तान जैसे देश को अमेरिका और चीन दोनों देश एक साथ मिलकर सहयोग एवं समर्थन कैसे प्रदान करते हैं। यह एक बड़ा प्रश्न है, क्योंकि एक ऐसा देश जो दो देशों के साथ अपने सम्बंध बनाए हुए है। जबकि दोनों सम्बंधित देश आपस में एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। तो क्या यह सम्भव है कि एक शत्रु देश की मित्रता दूसरे शत्रु देश से हो और उस देश को दोनों देश अपना मित्र स्वीकार कर लें। क्योंकि पाकिस्तान और चीन की दोस्ती जगजाहिर है| जोकि किसी से भी छिपी हुई नहीं है। चीन लगातार अपनी पूरी ताकत के साथ पाकिस्तान का अंर्तराष्ट्रीय मंचों पर खुलकर समर्थन करता आया है| जोकि सत्य है| उसके बाद अमेरिका चीन के दवाब में आकर पाकिस्तान के सामने विवशता से अपने हाथों को बांधकर खड़ा हो जाता है| जिसे गंभीरता से समझना पडेगा| क्योंकि चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा मित्र देश है| क्योंकि जब भी पाकिस्तान के सामने किसी भी प्रकार की संकट की घड़ी आती है तो चीन एक विशाल पर्वत के समान दुनिया के सामने मजबूती के साथ पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा हो जाता है। इसलिए कि चीन का रवैया पाकिस्तान के प्रति मित्रा पुर्ण रूप से स्पष्ट एवं जगजाहिर है|
जबकि राजनीति यह कहती है कि दुश्मन का दोस्त हमारा दुश्मन ही होता है| और दुश्मन का दुश्मन हमारा मित्र| तो फिर चीन और अमेरिका पाकिस्तान के प्रति दोनों देश एक साथ कैसे खड़े हो सकते हैं। यह एक जटिल एवं बड़ा प्रश्न है?…ध्यान दीजिए क्योंकि अमेरिका पाकिस्तान को धन मुहैया करवाता है। जिसका नाम अमेरिका के द्वारा अनुदान रख दिया जाता है। साथ ही अमेरिका के द्वारा यह दलील दी जाती है कि हम जो धन पाकिस्तान को प्रदान कर रहे हैं, वह धन आतंकवाद के विरूद्ध कार्यवाही करने में प्रयोग किया जाता है, जिससे की पूरे विश्व में शांति का महौल तैयार करने में सफलता मिलती है। जबकि स्थिति जग-जाहिर है| की वास्तविकता क्या है?…
यदि इन सभी बिन्दुओं का गहनता पूर्वक अध्ययन किया जाए तो विश्व की जटिल राजनीति बहुत कुछ उभरकर सामने आ जाती है| कहीं ऐसा तो नहीं कि पूरी दुनियां को दो भागों में बाटंने के लिए दोनों देशों ने अन्दर खाने में समझौता कर रखा हो, और दिखावे के रूप में एक दूसरे के धुरविरोधी के रूप में उभरकर अंतर्रष्ट्रीय मंचों पर आमने-सामने आ जाते हैं| उत्तर कोरिया के तानाशाह किंमजोंग इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं| अमेरिका उसका विरोधी और चीन उसका समर्थक|…
यही स्थिति पाकिस्तान के प्रति भी है| कि एशिया के अधिकतर देश पाकिस्तान के हरकतों से पीड़ित हैं तथा अमेरिका और चीन का रवैया पाकिस्तान के प्रति जग जाहिर है| एक देश उसको धन प्रदान कर रहा है और दूसरा देश उसकी सेना को मजबूती प्रदान कर रहा है। तो क्या यह संभव है कि दो धुरविरोधी देश चीन और अमेरिका एक दूसरे के प्रतिद्वन्दी और धुर विरोधी हैं| दोनों देश पाकिस्तान के प्रति अपना-अपना रूप अंदर खाने कुछ और बाहर कुछ, ऐसा समय-समय पर प्रस्तुत करते रहते हैं| इस दोधारी तलवार को समझना बहुत ही जटिल है|… कि वास्तविकता क्या है|… क्या चीन और अमेरिका वास्तव में एक दूसरे के धुरविरोधी हैं अथवा विश्व की राजनीति में दोनों देशों ने अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए ऐसा कर रखा है।
क्योंकि राजनीति की दुनिया में अंदर खाने आपस में समझौता और बाहर का दिखावटी रूप किसी से भी छिपा हुआ नहीं है, ऐसा सदैव देखा गया है कि दो विरोधी दल आपस में अंदर खाने एक होते हैं और जनता के सामने धुरविरोधी के रूप में अपना व्यवहार प्रस्तुत करते हैं। आरोप प्रत्यरोप और विवदित मुद्दों को जन्म देना तथा जब आग जल जाए तो उस आग में घी डालने का काम भी दोनों दल सधे हुए रूप में करते रहते हैं| जिससे की राजनीतिक हवाएं गर्म रहती हैं। सत्य है की राजनीति का ककहरा अत्यंत कठिन है| राजनीतिक का मार्ग इतना जटिल और टेढ़ा मेढ़ा है कि इसे शब्दों में स्पष्ट कर पाना अत्यंत कठिन है| अत: तमाम बिन्दुओं और परिणामों को देखने के बाद जगत की राजनीति बहुत कुछ कहती है। ऐसा प्रतीक होता है कि दोनों देशों ने विश्व को दो भागों में बांटने के लिए अंदर खाने समझौता कर रखा है। क्योंकि राजनीति में पक्ष के सामने विपक्ष का होना अत्यंत आवश्यक है| इस मुद्दे को और सरल करके इस तरीके से समझा जा सकता है कि जब कोई भी व्यक्ति राजनीतिक की दुनिया में अपना कदम बढ़ता है तो उसके मित्र निश्चित तेजी के साथ बढ़ते हैं| लेकिन इसका दूसरा रूप भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि सभी लोग हमारे मित्र नहीं हो सकते| क्योंकि सत्यता कुछ अलग ही है| क्योकि मित्रता के साथ-साथ शत्रुता भी बड़ी तेजी के साथ बढ़ती है। लेकिन अंतर यह है कि मित्र तो हमें दिखाई देते हैं, परंतु शत्रु दिखाई नहीं देते| क्योंकि शत्रु हमारे पास नहीं आते, यदि आते भी हैं तो अपना वेषभूषा बदल लेते हैं। क्योकि शत्रु सदैव मुद्दों की प्रतिक्षा करते हैं, तथा षड्यंत्रों की दिशा में बड़ी तेजी से कार्य करते हैं, सबसे बड़ी बात यह है की विरोधी खेमा अंदरखाने विरोधियों को एक जुट करने का कार्य करता रहता है| जिसका सत्तापक्ष को सम्पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं हो पाता| इस बात का सम्पूर्ण ज्ञान तबतक नहीं हो पाता जबतक कि विरोधी खेमें में सत्ता पक्ष कोई भी मित्र जाकर गुप्तचर की भूमिका में ना जुड़ जाए, जब कोई भी मित्र विरोधी खेमें में गुप्तचर की भूमिका में जुड़ जाता है तब जाकर सत्ता पक्ष को विरोधयों के बारे में ज्ञान हो पाता है।
इस स्थिति में जब पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी-अपनी जानकारी हेतु, अपना वास्तविक मित्र गुप्तचर की भूमिका में रखने की अवश्यकता समझते हैं, तो क्या दोनों प्रमुख विपक्षी दल एक कदम और नहीं बढ़ा सकते, तथा अपनी बुद्धिजीवता का प्रयोग नहीं कर सकते की स्वयं दोनों राजनीतिक प्रमुख आपस में समझौता कर किसी दूसरे व्यक्ति पर आधारित रहने से इतर, स्वंय ही दोनों प्रमुख आपस में एक दूसरे के सम्पर्क में रहें। क्योकि इसमें लाभ दोनों का ही है|
अत: वर्तमान समय में जगत की राजनीति में सभी देशों को सावधान रहना चाहिए| क्योंकि दोनों शक्तिशाली देश चीन और अमेरिका आपस में एक हो सकते हैं, इसलिए पिछलग्गु की भूमिका में रहना ठीक नहीं होगा| क्योकि इस भूमिका में रहने से हानि हो सकती है| अर्थात उचित यह होगा कि विरोध न करते हुए उचित दूरी बनायें रखने में ही भलाई है| अति आवश्यक यह है कि वर्तमान समय की राजनीतिक जटिलताओं को समझा जाए|