वायु प्रदूषण पर चिंता जाहिर तो होती हैं, पर कानून का पालन नहीं हो पाता सुनिश्चित!

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लिमटी खरे

विकास तो हो रहा है पर विकास के साथ मानकों की अनदेखी के चलते होने वाले दुष्परिणामों पर कोई भी देश संजीदा नजर नहीं आता है। इस समय सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण का ही मुद्दा सोशल मीडिया पर चल रहा है। इसके बाद भी किसी भी देश की सरकार के द्वारा इस मामले में चिंता न किया जाना सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात ही माना जा सकता है।

स्विटजरलैण्ड को दुनिया का सबसे खूबसूरत देश माना जाता है। स्विटजरलैण्ड की आईक्यू एयर नामक संस्था के द्वारा हाल ही में विश्व के देशों की वायु गणवत्ता की रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बंगलादेश को दुनिया का सबसे प्रदूषित देश माना गया है, वहीं भारत का स्थान पांचवी पायदान पर है। भारत की राजनैतिक राजधानी दिल्ली को लगातार चौथे साल दुनिया भर में सबसे प्रदूषित राजधानी का तगमा दिया गया है।

2021 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा हवा की गुणवत्ता के मानकों में कुछ बदलाव भी किया गया था। इसके अनुसार पार्टिकुलेट मैटर अर्थात पीएम 2.5 एवं पीएम 10 के अलावा वायु को प्रदूषित करने वाले अन्य चार तत्वों जिनमें ओजोन, सल्फर डॉय आक्साईड, कार्बन मोनो आक्साईड और नाईट्रोजन आक्साईड के वार्षिक उत्सर्जन की औसत सीमा के मसले को भी बहुत ही बारीकी से देखा गया है। इसमें हवा के पीएम 2.5 के वार्षिक औसत की सीमा को 10 माईक्रोग्राम प्रतिघन मीटर से घटाकर अब इसे आधा किया जाकर पांच माईक्रोग्राम प्रतिघन मीटर किया जाना प्रस्तावित किया गया था। इसके बाद भी विश्व में महज दो से तीन फीसदी शहरों ही इस निर्देश का पालन करते नजर आ रहे हैं।

लगभग दो तीन दशकों से वातावरण में घुल रहीं हानिकारक गैसेज के कारण वातावरण प्रदूषित हो रहा है। दिल्ली में रहने वालों को अगर देश के हृदय प्रदेश के पचमढ़ी में ले जाया जाए तो वे कैसा महसूस करेंगे! कांक्रीट के जंगलों में रहने वाले देश की राजनैतिक राजधानी मुंबई के निवासियों को अगर सतपुड़ा के घने जंगलों में ले जाया जाए तो उन्हें मुंबई पूना मार्ग पर स्थित खण्डाला की आबोहवा भी जहरीली नजर आ सकती है। जहां हरियाली ज्यादा है, प्रदूषण कम है वहां जाकर लोग यही कह सकते हैं कि वन केन ब्रीद हियर, अर्थात यहां एक व्यक्ति खुलकर सांस ले सकता है।

अभी हाल ही में कोविड के कहर के दौरान आक्सीजन की मारामारी किसी से छिपी नहीं है। हवा में प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को तो प्रभावित करता ही है साथ ही आने वाली पीढ़ियों को इसका भोगमान भुगतने पर मजबूर होना पड़ता है। हवा की गुणवत्ता को लेकर वैश्विक नजारे में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जा सकती है। लगभग एक दशक से विश्व के प्रदूषित शहरों में भारत के दो दर्जन से ज्यादा शहरों का शुमार किस ओर इशारा कर रहा है यह समझा जा सकता है।

देश की राजधानी दिल्ली में सर्दियों के आगाज के साथ ही स्माग का कहर देखते ही बनता है। देश की शीर्ष अदालत के द्वारा भी दिल्ली को गैस चैंबर में तब्दील होने की संज्ञा दी जा चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर अगर यकीन किया जाए तो देश के लगभग 85 फीसदी लोग डब्लूएचओ के मानकों से इतर प्रदूषित जगहों पर जीवन यापन कर रहे हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है और साथ ही शरीर में तरह तरह के रोग अपना घर भी बनाते नजर आते हैं।

कार्डियोवैस्कुलर रिसर्च जनरल के एक शोध के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण विश्व में औसत आयु तीन साल तक कम दर्ज की जा रही है। वहीं अन्य शोधों के अनुसार वायु प्रदूषण की जद में रहने वालों की औसत आयु भी सामान्य औसत आयु से काफी कम ही रहती है। वायु जीवन सूचकांक 2000 की रिपोर्ट पर अगर आप नजर डालें तो वायु प्रदूषण की जद में रहने वाले लोगों की औसत आयु पांच साल तक कम हुई है। दिल्ली में यह नौ साल, दिल्ली से लगे हरियाणा व उत्तर प्रदेश में आठ तो पश्चिम बंगाल और बिहार में यह सात साल तक कम दर्ज की गई है।

एक अन्य सूचकांक पर अगर नजर डाली जाए तो तंबाखू सेवन के कारण 2 साल, एड्स जिसे जानलेवा माना जाता था के चलते सात माह, मलेरिया के कारण 6 माह की कमी आयु में दर्ज की गई है। इसका सीधा तातपर्य यही है कि इन सबसे ज्यादा खतरा वायु प्रदूषण के कारण ही है। वायु प्रदूषण को एक तरह का धीमा जहर भी माना जा सकता है, जो मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर फेंफडों व दिल पर पड़ता है। हाल ही में कोविड ने भी अपना सीधा निशाना फैफड़ों को ही बनाया था, अब जिनके फेफड़े कमजोर हो गए हों और वे वायु प्रदूषित शहर में रह रहे हों तो उनका क्या होगा!

ऐसा नहीं है कि देश में सरकार के द्वारा इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। सरकार के द्वारा तीन साल पहले 2019 में वायु प्रदूषण से निपटने राष्ट्रीय वायु स्वच्छ कार्यक्रम का आगाज किया था। इसके तहत 2024 का लक्ष्य निर्धारित किया गया था और 2017 की तुलना में वायु प्रदूषण में 30 फीसदी तक की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया था।

देखा जाए तो वायु प्रदूषण का मामला हर किसी नागरिक से जुड़ा हुआ ही माना जा सकता है। एक समय था जब ग्रामीण परिवेश में स्वच्छ आबोहवा की कल्पना की जा सकती थी, किन्तु बढ़ती आबादी, उद्योग धंधों की स्थापना, लोन पर वाहन मिलना आदि के चलते अब गांव में भी आबोहवा बहुत ज्यादा साफ नहीं मानी जा सकती है। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि चुनाव चाहे लोकसभा के हों या विधानसभा के, किसी भी चुनावों में पर्यावरण संरक्षण, नदियों का संरक्षण, वायु प्रदूषण, हरित क्रांति आदि को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जाता है। कहने को तो प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के कार्यालय हर सूबे में हैं, पर ये कार्यालय सिर्फ कागजों पर ही कार्यवाही कर रहे हैं यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। आने वाले समय में वायु प्रदूषण की भयावहता को देखते हुए अभी समय है कि इसके लिए इसके लिए जनजागरण चलाया जाए, अन्यथा हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए धन दौलत तो कमा रहे हैं और सहेज रहे हैं, पर उन्हें प्रदूषण मुक्त जीवन नहीं दे पाएंगे, विचार आपको करना है, फैसला आपको ही लेना है . . .

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