डॉ. वेदप्रताप वैदिक
आज हरिद्वार में कवि-सम्मेलन नहीं, कवियों का सम्मेलन हुआ। कवि सम्मेलन में हजारों-लाखों श्रोता होते हैं। यहां सिर्फ कवि थे। सारे भारत से आए लगभग सौ कवि ! क्या आपने कभी सुना कि 100 कवि दुनिया में कहीं एक साथ इकट्ठे हुए हों ? हरिद्वार के जयराम आश्रम में यह कवियों का तीसरा अखिल भारतीय अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन की अध्यक्षता और मेजबानी ब्रह्मचारी ब्रह्मस्वरुपजी ने की। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि इसके उद्घाटन के लिए कवि-बंधुओं ने मुझे निमंत्रित किया। कवियों के इस संगठन के संरक्षकों में स्व. बालकवि बैरागी, श्री उदयप्रताप सिंह, डाॅ. कुंवर बेचैन, श्री सुरेंद्र शर्मा, प्रो. अशोक चक्रधर, डाॅ. हरिओम पंवार जैसे प्रख्यात कवि हैं। इन कवियों ने अपने जीवन में लाखों-करोड़ों लोगों को अपने काव्यपाठ से प्रमुदित, प्रेरित और रोमांचित किया है। मैंने अपने संबोधन में कहा कि आप सब कविगण भारतीय लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हो। आप अपने आप में स्वायत्त और संप्रभु हो। आप किसी के नौकर नहीं हो। आप पत्रकारों से भी ज्यादा स्वतंत्र हो। जब आपको सुनने के लिए लाखों लोग इकट्ठे होते हैं और पूरी रात आपको सुनते हैं तो उनका दिलो-दिमाग कोरे कागज की तरह होता है। उन्हें पता रहता है कि आप ईमान की बात कहेंगे। आप निष्पक्ष हैं, सच्चे हैं, प्रामाणिक हैं। किसी दल या नेता के बंधक नहीं हैं। इसीलिए आपकी जिम्मेदारी नेताओं से भी ज्यादा हो जाती है। नेताओं को लोग सिर्फ चुनाव के मौसम में सुनना पसंद करते हैं लेकिन आपके तो बारह मास बसंत होते हैं। मैं आपको लोक-कवि कहता हूं क्योंकि आप काव्य-पाठ करते हैं। आप बोले हुए शब्द के स्वामी हैं। जो लिखी हुई कविता रचनेवाले कवि हैं, वे उत्कृष्ट होते हैं लेकिन वे सिर्फ भद्रलोक के कवि होते हैं लेकिन आप लोग सर्वलोक के कवि हैं। आपकी कविता का आनंद नकद होता है। उससे भद्रलोक ही नहीं, अभद्रलोक और अतिभद्रलोक भी आनंदित होता है। मैंने इन समस्त कवि-बंधुओं से निवेदन किया कि वे अपने श्रोताओं से संकल्प करवाया करें कि वे अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी से बदलवाकर हिंदी में करें।
कवियों के इस सम्मेलन के पहले स्वामी सत्यमित्रानंदजी और गायत्री परिवार के डाॅ. प्रणव पंडया से भेंट हुई। यह भेंट बहुत ही आत्मीय और अनौपचारिक थी। श्री ब्रह्मस्वरुपजी साथ-साथ थे। गंगा को लेकर 18 दिन से अनशन पर बैठे 86 वर्षीय स्वामी सानंदजी के बारे में भी चर्चा हुई।