देश और पार्टी पैसों से ही चलते हैं

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अनुपम सक्सेना

देश चलाना है पार्टी चलानी है दोनों ही पैसों से चलते हैं तब काहे चिलाते हो उद्योगपतियों से इतना लिया उतना लिया हम सरकार बाबू हैं उदयोग धंधे चलाना हमारा काम नहीं बैंक चलाना हमारा काम नहीं सबके लिये शिक्षा व्यवस्था भी हमारा काम नहीं अस्पताल में मुफ्त दवाईयां देना भी हमारा काम नहीं हम सिर्फ ऐश करेंगे अपने लिये जियेंगे कहते हो रोज्गार दो तुम्हें दो और आने वाली पीढियो को भी दो क्या हम इसी लिये सरकार बने हैं पांच साल के लिये चानस मिला है इन पांच साल में पांच सौ साल जितना जी लेना है , कमा लेना है अरे आदमी को जानवरों से सीखना चाहिये उन्हें कुछ सिखाना नहीं पढता स्वत: सब सीख जाते हैं लेकिन आदमी है कि हर चीज़ के लिये / सरकार का मुंह देखता है परिंदे बगैर सरकारी सहायता के मीलों ऊंची उडान भरते हैं / लेकिन आदमी क बच्चा बगैर सकारी मदद के दो कदम भी नहीं चल पाता जानवरों को प्रसव पीडा के समय अस्पताल का मुंह देखना नहीं पडता लेकिन आदमी की जनानियां बच्चा जनने अस्पताल भागती हैं जानवरों की सरकार से कोई अपेक्षा नहीं है लेकिन आदमी की अपेक्षाओं का अंत नही है कब तक चिंता करें ? किसकी –किसकी चिंता करें ? कभी कोई पुल गिर जाता है कभी ट्रेन रावण देखते लोगों पर चढ जाती है कभी अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो जाती है अब कोई चिंता –विंता नहीं करेंगे अपनी जेबें भरेंगे, मस्त रहेंगे / सरकार का काम नहीं कि सब्सिडी बांटती फिरे / हर हाथ को काम दे /गरीब की थाली में रोटी सुनिश्चित करे/ सरकार को बडे-बडे काम करने हैं/ देश चलाना है, पार्टी चलान है / दोनों ही पैसों से चलते हैं / और पैसे हैं पूंजीपतियों के पास / तो पूंजी पतियों का विशेष ध्यान रखना ही पडेगा / थोडी-सी रियायतें , सौगातें उन्हें दे देंगे / तो कोई पहाड नहीं गिर पडेगा / देश और पार्टी दोनों ही पैसों से चलते हैं .

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