कुदरत ने जीव-जन्तुओं को जीने के लिए अनेकों आहार बरकत में दिए है। इंसान हो या पशु-पछी सभी को अपने नसीब का खाना मुनासिब है। कोई कमा के खाता है, तो कोई चुभ-चुन-चुस कर खाता है पर खाते सब है लिहाजा कहा गया है, कि खाने वाले का नाम दाने-दाने पर लिखा है। जिसमें मानव ऐसा प्राणी है जो कमाता है लेकिन उसका पेट नहीं भरता और बाकि कमाते नहीं फिर भी खाली पेट रहते नहीं। इसे आत्म संतुष्टि का सवाल कहें या मौज मस्ती का ख्याल इंसानियत खाने के बावजूद भूखी ही रहती हैं। तभी तो उसकी हवस से गौमाता भी अछूती नहीं रही। बदहवासी, देश में राष्ट्रीय पशु गाय दिन-ब-दिन मौज के नाम पर धडल्ले से मौत के घाट उतारी जा रही है। यह कहां कि मानवता है कि खाने की आजादी का लिबास ओढे तथाकथित मौज के गरूर में बेबस, लाचार और बे-जुबान गाय को हैवानियत से अपने कोपभाजन का शिकार बनाएं। क्यां दुनिया में खाने की चीज खत्म हो रही है जो गौमांस को पेट भरने का जरिया बनाया जा रहा है? हालात तो ऐसे ही दिखाई पडते है तभी तो फैशन व व्यसन की तडप गौमांस से मिटाई जा रही है जैसे कि इसके बिना वह भूखे ही मर जाएंगे!
नहीं जनाब! कोई नहीं मर रहे है खाने के लिए बहुत कुछ है पर पेट की आह! मिटाने कौन खा रहा है? खा रहे है तो सिर्फ और सिर्फ वाह! वाह! करने की नियत से। इस बदनियति की आड में गौकशी का गोरखधंधा आस्था पर चोट पहुंचाकर फल-फूल रहा है। इसे लगाम लगाने की कवायद हुई तो गौभक्षियों के हाथ पांव फूल गए। प्रतिभूत इन्होंने सरेआम गौवध कर कोहराम मचाया, खाने की अभिव्यक्ति का दुखडा रोया और बेरोजगारी का बेसुरा राग अलापा। यह सिलसिला यही नहीं थमा. केरल जैसे उच्च शिक्षित संभ्रात राज्य में कांगे्रस, तृणमूल कांग्रेस तथा वामपंथी दलों के पहरेदारों ने बेरहमी से गाय व बछडों और भैसों की कत्लेआम नुमाईस कर उनके मांस को पका कर खाते हुए बेचा। तमाशबिनो का मकसद साफ था कुछ भी हो जाए लेकिन केन्द्र सरकार का हाल में जारी किया गया पशु व्यापार व वध आदेश धरातलीय ना बने। ना जाने इन्हें इस आदेश से क्या तकलीफ है जो इतना हाय-तौबा मचा रहे है।
मालूम हो कि केरल हाई कोर्ट ने युवक कांगे्रस के एक कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार के आदेश पर रोक लगाने पर हैरानी जताई। दूसरी ओर ंिहंगौनिया गोशाला मामले मे सुनवाई के दौरान राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कराने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि गोवंश की हत्या पर उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया जाए। अभी तीन साल कैद की सजा का प्रावधान है। देश भर में कथित गोरक्षकों की हिंसा और हाल ही में पशु मंडियों में वध के लिए जानवरों की खरीद-परोख्त पर केन्द्र सरकार के प्रतिबंध के मद्देनजर हाई कोर्ट की यह तल्ख टिप्पणी बेहद अहम है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस तरह से उतराखंड में गंगा को सजीव मानव का दर्जा दिया गया है उसी तरह गाय तो एक जीवित पशु जिसके दूध, मूत्र, गोबर से लेकर हर तरह के उत्पाद लोगों के लिए जीवनदायी हैं। इसे बचाने की जवाबदेही हर हाल में निभानी होगी।
बदस्तुर, संकुचित उन्मादियों के साथ होशियारी बघारने वाले कुत्सित बुद्धिजीवी बीफ के लुत्फ में कुरूरता से गोवंश को लहुलुहान करने में जी-जान से जुटे हुए है। चाहे आस्था में हिन्दु धर्मालंबी को गाय में अपनी मां और अपने देवी-देवताओं का वास नजर आता हो, पर मदोंमत गौमांसियों को गाय मारने में मजा आता है। इसीलिए बर्बरता से गाय को मौज की मौत मिल रही है। कम से कम राष्ट्रीय पशु घोषित करने और सहिष्णुता के वास्ते गाय को लत और दौलत का निवाला ना बनाते तो बेहतर होता।