कविता साहित्‍य

बिजली के तार पर, बेल चढ जाती है.

डॉ. मधुसूदन

 

(१)
फूलों को फैलाकर
सौरभ* को  बाँटकर
बिजली के तार पर
बेल चढ जाती है.
{सौरभ*=सुगंध, सुवास)
(२)
मानव की सत्ता को
चुनौती देती है
गिलहरी तारपर
कर्तब दिखाती है.
(३)
रास्ते की भीड़ है,
पीपल का पेड़ है.
डाली पर बसता एक,
चिडिया का नीड़* है.
{नीड़*= घोंसला}
(४)
तिनके की झोंपड़ी
बिसराम  धाम है,
बच्चों की चींचीं में,
चिडिया संसार है.
(५)
नीचे जो भीड़ है,
सरपर ले बोझ है,
समस्याओं में उलझी
खुशी की खोज है.
(६)
ऊपर ना देखती,
व्यस्त हो दौडती,

दो छोर* जोडने में,
जिन्दगी खोती है.
{ दो छोर= अंग्रेज़ी -In making two ends (income and expense, meet)
आय-व्यय का जोड }

कविता:
सुने या ना सुने; देखे या ना देखे; प्रकृति संदेश दे ही रही है.
बेल बिजली के खंभे पर चढकर,  तार पर फैल जाती है; कभी
गिलहरी तारपर पहुँच कर्तब दिखाती है.
दो पल, कविता पढ लीजिए.