डॉ. मधुसूदन
(१)
फूलों को फैलाकर
सौरभ* को बाँटकर
बिजली के तार पर
बेल चढ जाती है.
{सौरभ*=सुगंध, सुवास)
(२)
मानव की सत्ता को
चुनौती देती है
गिलहरी तारपर
कर्तब दिखाती है.
(३)
रास्ते की भीड़ है,
पीपल का पेड़ है.
डाली पर बसता एक,
चिडिया का नीड़* है.
{नीड़*= घोंसला}
(४)
तिनके की झोंपड़ी
बिसराम धाम है,
बच्चों की चींचीं में,
चिडिया संसार है.
(५)
नीचे जो भीड़ है,
सरपर ले बोझ है,
समस्याओं में उलझी
खुशी की खोज है.
(६)
ऊपर ना देखती,
व्यस्त हो दौडती,
दो छोर* जोडने में,
जिन्दगी खोती है.
{ दो छोर= अंग्रेज़ी -In making two ends (income and expense, meet)
आय-व्यय का जोड }
कविता:
सुने या ना सुने; देखे या ना देखे; प्रकृति संदेश दे ही रही है.
बेल बिजली के खंभे पर चढकर, तार पर फैल जाती है; कभी
गिलहरी तारपर पहुँच कर्तब दिखाती है.
दो पल, कविता पढ लीजिए.
बहुत अच्छी है.
Hari B. Bindal, PhD, P.E.
Recipient, Pravasi Bharatiya Samman Award 2017, from President of India.
Retired, Vessel Environmental Program Manager, US Cost Guard. 2012
Founder, American Society of Engineers of Indian Origin (ASEI),1983
Commissioner, PG County, Solid Waste Advisory Committee, 2016 –
Member, Governing Council Vishwa Hindu Parishad, 2005 –
Writer, Reformer, and Community Activist
ऐसे मकड़ जाल में फंसे है हम लोग की जीना ही भूल गए है | अति सुंदर कविता |
कर्णावती से मित्र श्री. हरीश नायक, और अमरिका के विभिन्न राज्यों से, डॉ. हरि बिन्दल, डॉ. कृष्ण मिश्र, डॉ. सुभाष काक इत्यादि मित्रों की ओर से, इस कविता के लिए, प्रेरणादायक संदेश प्राप्त हुए. सभी मित्रों का मैं हृदयतल से आभार ज्ञापन करता हूं. साथ लेखक भी आप की शुभेच्छाओं का सम्मान करता है. धन्यवाद.
इस कविता बिजली के तार पर, बेल चढ जाती है में डॉ मधुसूदन जी ने कई बिभिन्न उदाहरणो द्वारा बताया हैं कि बिजली के तारो का कैसे उपयोग होता हैं। कविता की विशेषता हैं के कठिन हिंदी शब्दों का सरल भाषा में अनुवाद भी दिया हैं जिससे कम हिंदी जानने बाला व्यक्ति भी आसानी से समझ सके।
Madhusudan ji,
Superb, and thoughtful, and inspiring.
Keep them coming.
Love and Regards