हार का जिम्मेदार कौन..?

लोकसभा चुनाव में मिली तगड़ी हार के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को निराशा हाथ लगी है..इस हार के बाद सबसे बडा सवाल कांग्रेस के नेतृत्व पर खडा हो रहा है…कांग्रेस बार बार राहुल गांधी को आगे कर चुनाव में कूद रही है लेकिन हर बार उसे करारी हार मिल रही है ..तो क्या सचमुच राहुल गांधी मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को आकार दे रहे हैं…क्या देश में राहुल फैक्टर नाम की कोई चीज अब बची भी है?
रैलियों से दूरी
चुनावी समर जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी चाकत झोंक दी तो कांग्रेस के युवराज रैलियों से खासा दूर रहे…मोदी ने महाराष्ट्र में 27 रैलियां की तो राहुल सिर्फ 6 जगह ही रैली कर पाए…हरियाणा में मोदी ने 11 जगहों पर सभाएं की लेकिन राहुल सिर्फ 4 चुनावी सभाएं कर पाए…
रैलियों में भी कंट्रोवर्सी
एक तो कम रैलियां ऊपर से इसमे भी कंट्रोवर्सी…राहुल का यह अंदाज कांग्रेस के लिए मुश्किल बनता गया… महाराष्ट्र के महाड़ में 8 अक्टूबर को अपनी पहली रैली में राहुल मोदी को विपक्ष का नेता कह बैठे…राहुल ने कहा.. एक विपक्षी नेता कहते हैं कि पिछले 60 साल में कुछ नहीं हुआ. उनकी सोच है कि सिर्फ एक आदमी देश को आगे ले जा सकता है.’ ‘यह सोच अंबेडकर पर, महात्मा गांधी पर, सरदार पटेल पर, नेहरू पर सवालिया निशान खड़ा करती है. यह न सिर्फ उनपर सवालिया निशान खड़ा करती है, बल्कि आप पर (आमजन पर) और आपके पुरखों पर भी सवालिया निशान खड़ा करती है.’..इस बयान के बाद राहुल की काफी किरकिरी हुई
ताकि राहुल पर न उठे उंगली
हरियाणा महाराष्ट्र में पहले ही हार मान बैठी कांग्रेस ने राहुल के बचाव का प्लान तैयार कर लिया था…सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस प्रवक्ताओं को बताया गया कि मीडिया में कैसे पार्टी का बचाव करना है…साथ ही, पार्टी में यह भी रणनीति बनी कि हार के लिए किसी भी तरह से कांग्रेस की लीडरशिप खासकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर उंगली न उठने दी जाए…गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों के बाद राहुल गांधी और उनकी टीम पर तमाम उंगलियां उठी थीं…
जिम्मेदारी से तौबा
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के लिए मजबूत नेतृत्व न होने को मुख्य वजह माना जा सकता है…इस बात के इशारे राहुल गाधी की तरफ भी जाते हैं…पार्टी कैडर को विश्वास था कि राहुल कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे…वे पार्टी के लिए नए मसीहा साबित होंगे…लेकिन ऐसा नही हुआ…सोनिया की अध्यक्षता और राहुल के नेतृत्व वाली जो कांग्रेस 2014 के चुनाव में उतरी थी…वह कांग्रेस मुद्दा विहीन हो गई थी..विपक्ष के तूफान को रोकने के लिए उस कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था…उसके कई नेता भ्रष्टाचार में फंस कर किरकिरी करा चुके थे…कभी 404 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट कर रह गई… हार पर मंथन के लिए एक कमेटी भी बनाई गई…लेकिन पार्टी अब भी गांधी नेहरू परिवार की छाया से नहीं निकल पाई…कई नेताओं ने बयानबाजी कर हार के लिए राहुल-सोनिया को जिम्मेदार ठहराया लेकिन पार्टी की जांच में हार की जिम्मेदारी सामूहिक कर दी गई…यानि एक बार फिर राहुल को बख्श दिया गया.
19 अक्टूबर को महाराष्ट्र और हरियाण के नतीजों ने साफ कर दिया कि कांग्रेस को अब उपचार की नहीं बल्कि सर्जरी की जरूरत है…यूपी में कुछ समर्थक तो प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ के पोस्टर तक लहराने लगे..इस हार से न सिर्फ कांग्रेस का अस्तित्व संकट में है बल्कि उसे गहन चिंतन की जरूरत है कि आखिर राहुल को आगे कर पार्टी ने हासिल क्या किया है

2 COMMENTS

  1. हम क्यों बार बार नेहरु गाँधी परिवार की बात कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विषय और देश को लगे इस भयंकर कर्कट रोग को तथाकथित स्वतंत्रता से ही सत्ता में बनाए रखने में सहायक प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा परिवर्जित भारतीय मुख्य धारा मीडिया को अब तक सर्व विद्यमान बनाये हुए हैं? आज सत्यापन के अनुशासन के अंतर्गत नागरिकों को विश्वसनीय जानकारी प्रदान करती पत्रकारिता से अपेक्षा में भारतीय मुख्य धारा मीडिया का भविष्य में सामाजिक और विधिक स्वरूप क्या होगा इसे कहना असंभव है लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कभी महात्मा गाँधी द्वारा कहे जाने के अनुसार सदा के लिए भंग कर उसके नेताओं और समर्थकों को देश में व्यापक भ्रष्टाचार और अनैतिकता के कारण फैली अराजकता की जवाबदेही देनी होगी|

  2. कांग्रेस के जनाजे को कन्धा देने के लिए राहुल को बचाये रखना जरुरी है, बेटा चाहे कैसा भी हो , लायक, नालायक, निकम्मा, अंत में क्रियाकर्म तो वही करता है , अब समझदार कांग्रेसी यदि बदलने बात कह रहे हैं तो क्या , परिवार के चापलूस गुणीजन ऐसा नहीं चाहते, असल मायने में कांग्रेस के असली शत्रु तो ये ही हैं, पर जो भी, यह उनके घर का मामला है,

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