दादाजी अब चिता छोड़ें

बार -बार दादाजी मेरा ,
बस्ता यूँ न छुआ करें।
धूल लगी है करूँ सफाई,
यह कहकर बस्ता छूते।
साफ सफाई बड़ी उमर में,
नहीं आपके है बूते।
काम कर सकूँ मैं खुद अपने,
यही आप बस दुआ करें।
मैं शाळा जाती हूँ बस से,
उससे ही वापस आती।
टीचर देख रेख करते हैं,
पूर्ण सुरक्षित रह पाती।
मेरे बारे में बिलकुल भी,
चिंतित अब मत हुआ करें।
पापाजी और चाचाजी ने,
निर्भय मुझे बनाया है।
जूडो और कराटे वाला,
शिक्षण मुझे दिलाया है।
व्यर्थ कुशंकाओं की बातें,
दादाजी न सुना करे।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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