दलाई लामा की अरूणाचल यात्रा

dalai_lama1पिछले दिनों 8 नवम्बर से लेकर 15 नवम्बर तक दलाई लामा अरूणाचल प्रदेश की यात्रा पर थे। जाहिर है इससे रूष्ट होती चीन सरकार ने भारत सरकार पर अनेक प्रकार से दबाव बनाया कि वह दलाई लामा को अरूणाचल प्रदेश जाने की अनुमति न दे। वैसे तो चीन सरकार भारत के प्रधानमंत्री के अरूणाचल प्रदेश जाने का भी विरोध करती रहती है उसका कहना है कि अरूणाचल प्रदेश विवाद का विषय है इसलिए जब तक यह विवाद सुलझ नहीं जाता तब तक भारत का प्रधानमंत्री अरूणाचल प्रदेश न जाए। तवांग को लेकर चीन वैसे भी ज्यादा उत्तेजित रहता है। पिछली बार तो उसने भारत सरकार के आगे यह सुझाव भी रखा था कि तवांग तो तुरन्त चीन के हवाले कर ही दिया जाना चाहिए। अरूणाचल प्रदेश पर बातचीत जारी रह सकती है। दरअसल तवांग ऐसा क्षेत्र है जहाँ के लोग दलाई लामा को अपना गुरू स्वीकार करते हैं। दलाई लामा के प्रभाव का क्षेत्र तिब्बत, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, लद्दाख इत्यादि के अतिरिक्त मंगोलिया और रूस के कुछ क्षेत्रों तक फैला हुआ है। चीन सरकार तिब्बत को समूल नष्ट करने पर तुली हुई है इसलिए वह दलाई लामा की तवांग यात्रा को किसी भी तरह रोकना चाहती थी। इसलिए चीन सरकार ने भारत पर अनेक तरह से दवाब डाला कि दलाई लामा के इस प्रवास को हर हालत में रोका जाना चाहिए। परन्तु अब तक यह यात्रा इतनी चर्चित हो चुकी थी कि भारत सरकार यदि इस यात्रा पर प्रतिबन्ध लगाती तो पुरे देश में इसकी तीव्र प्रक्रिया हो सकती थी।

अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री तो इस यात्रा के लिए कई महीनों से तैयारियॉ कर रहे थे। दुनियॉ के अनेक देशों की भी इस यात्रा पर आंखे लगी हुई थी। इसलिए भारत सरकार के लिए दलाई लामा की अरूणाचल यात्रा को रोकना शायद संभव नही रहा था। लेकिन साउथ ब्लाक में जो लॉबी चीन के तुष्टीकरण को ही भारतीय हितों की रक्षा मानती है उसमें चीन को प्रसन्न करने के लिए इसका रास्ता भी खोज निकाला। भारत सरकान ने अप्रत्यक्ष रूप से मानों चीन को सफाई देते हुए ही यह कहना शुरू कर दिया कि दलाई लामा एक सम्प्रदाय के धर्म गुरू हैं उसके प्रचार-प्रसार के लिए उन्हें कहीं भी जाने का अधिकार है। लेकिन चीन शायद इतने पर ही संतुष्ट नहीं था। एक कदम और आगे बढ़ते हुए भारत सरकार ने दलाई लामा द्वारा तवांग में पत्रकारों से बातचीत को भी प्रतिबन्धित कर दिया। मुख्य प्रश्न यह है कि यदि दलाई लामा दिल्ली या धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत कर सकते हैं और भारत सरकार को उस पर कोई एतराज नहीं है तो त्वांग में पत्रकारों से बातचीत पर आपति का क्या अर्थ है? यह संकेत सपष्ट करता है कि भारत सरकार दिल्ली और त्वांग को एक समान नहीं मानती। त्वांग को लेकर चीन सरकार का जो स्टैंड है, भारत सरकार के इस कदम से क्या कहीं अप्रत्यक्ष रूप से उसकी पुष्टि नहीं होती ? साउथ ब्लाक की चीन समर्थित लॉबी इस निहितार्थ को अच्छी तरह समझती है। भारत सरकार का कहना है कि यह सब कुछ चीन के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने में सहायक होगा।

परन्तु चीन दलाई लामा की त्वांग यात्रा से शायद इतना घायल था कि यात्रा के अन्तिम दिन तक भारत सरकार क्षमा याचना की मुद्रा में ही आ गई। दलाई लामा का त्वांग में सार्वजनिक कार्यक्रम था जिसको लेकर अरूणाचल प्रदेश के लागों में बहुत उत्साह था। दुनिया भर की आंखे भी दलाई लामा के इसी भाषण पर लगी हुई थी। भारत के हर हिस्से में इस भाषण की उत्सुकता से प्रतिक्षा की जा रही थी। लेकिन चीन शायद इस भाषण को सुनना नहीं चाहता था। उसकी इस इच्छा का ध्यान रखते हुए। भारत सरकार ने व्यवहारिक रूप से इस सार्वजनिक कार्यक्रम को प्रतिबन्धित ही कर दिया। लेकिन सरकार यह भी जानती थी कि यदि उसने प्रत्यक्ष रूप से ऐसा किया तो अरूणाचल प्रदेश में उसकी भयंकर प्रतिक्रिया होगी। जो अरूणाचल प्रदेश इतने दिनों से जय हिन्द के घोष से गूंज रहा है उसकी प्रतिक्रिया के दूरगामी परिणामों को भारत सरकार भी सूंघ ही सकती थी। इसलिए साउथ ब्लाक ने उसका भी रास्ता निकाला। दलाई लामा का सार्वजनिक कार्यक्रम तो हुआ लेकिन उसमें दलाईलामा केवल धर्म के गूढ रहस्यों का विवेचन करते रहे। लोगों को यह समझते देर नहीं लगी कि दलाई लामा के जुबान पर यह तालाबंदी किसने की है? लगता है एजेण्डा चीन सरकार करती है और उसे लागू करने का काम भारत सरकार करती है। दलाई लामा की इस अरूणाचल प्रदेश यात्रा से भारत सरकार की ओर से चीन को जो सख्त संदेश जाना चाहिए था साउथ ब्लॉक के इस भितरघात से वह नष्ट ही नहीं हुआ बल्कि चीन के मुकाबले भारत की एक कमजोर छवि भी उभरी।

यह ठीक है कि चीन अभी निकट भविष्य में अरूणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के लिए आक्रमण नहीं करेगा। हो सकता है अभी उसकी व्यापक रणनीति में ऐसा करना शामिल न हो। लेकिन इससे पहले ही वह अरूणाचल प्रदेश में भारत से एक मनोवैज्ञानिक युद्व लड़ रहा है। वह आज 2009 में भी अरूणाचल प्रदेश के लोगों में यह दुविधा पैदा करना चाहता है कि वह भारतीय हैं या चीनी? दलाई लामा की इस यात्रा से यह दुविधा सदा के लिए समाप्त हो जाती। अभी हाल के विधानसभा चुनावों में अरूणाचल प्रदेश के लोगों ने अपने भारतीय होने की पुष्टि की है। लेकिन भारत सरकार ने दलाई लामा की अरूणाचल प्रदेश यात्रा को जिस ढंग से हैंडल किया है उससे कोहरा ज्यादा बनता है धूप कम निकलती है। ऐसी स्थिति में यदि अमेरिका के राष्ट्र्पति चीन को दक्षिण ऐशिया की ठेकेदारी देने को दंभ पालना शुरू कर दें तो आश्चर्य कैसा? जरूरी है कि उन लोगों की शिनाख्त की जाये जो चीन की विदेश नीति को भारतीय हितों की पोषक मान कर दोगली चाले चल रहे हैं। असल में चीन और भारत में विवाद का मुद्दा अरूणाचल प्रदेश नहीं बल्कि तिब्बत है। चीन यह मानता है कि तिब्बत पर उसकी प्रभुसत्ता है। जबकि असलीयत में तिब्बत एक स्वतंत्र देश है जिस पर चीन ने कब्जा किया हुआ है। भारत सरकार ने तिब्बत पर चीन की प्रभुसत्ता को स्वीकार नहीं किया था बल्कि उस पर चीन के अधिराज्यत्व को मानयता दी थी। 1954 की संधि में भी तिब्बत को चीन का हिस्सा होते हुए भी स्वयत्त प्रदेश माना है। चीन ने इन सभी को दरकिनार करते हुए तिब्बत पर पूरा कब्जा ही कर लिया है। इसलिए भारत और चीन के बीच विवाद तिब्बत की स्थिति को लेकर है। भारत सरकार को चाहिए कि वह चीन पर यह दवाब डाले कि जब तक तिब्बत विवाद सुलझ नहीं जाता जब तक चीन का कोई भी प्रधानमंत्री यह राष्ट्र्पति या कोई अन्य मंत्री तिब्बत में न आये। भारत सरकार इस विषय को तो उठा नहीं रही बल्कि अरूणाचल प्रदेश के विषय पर भी रक्षात्मक रवैया अपना रही है। दलाई लामा की अरूणाचल यात्रा से भारत चीन विषयक नीति के क्षेत्र में एक लम्बी छलांग लगा सकता था लेकिन सरकार के नपुंसक व्यवहार ने शर्मिंदगी का एक और अध्याय जोड़ दिया है।

– डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

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