नृत्य है सृष्टि को संतुलित एवं ऊर्जावान बनाने का माध्यम

0
335

विश्व नृत्य दिवस- 29 अप्रैल 2023
-ललित गर्ग –

अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पूरे विश्व में 29 अप्रैल मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई।  ‘बैले के शेक्सपियर’ की उपाधि से सम्मानित एक महान् रिफॉर्मर एवं लेखक जीन जार्ज नावेरे के जन्म दिवस की स्मृति में यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय थिएटर इंस्टीट्यूट की डांस कमेटी ने नृत्य दिवस मनाना प्रारंभ किया है। नृत्य दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता की अलख जगाना एवं नृत्य संस्कृति को जीवंतता प्रदान करना था। गौरतलब है कि जिस तरह नृत्य की तमाम विधाएं हैं, उसी तरह नृत्य के तमाम लाभ हैं, यह मानसिक तनाव दूर करता है, शरीर को चुस्त एवं फुर्तीला बनाता है। साथ ही एक कला विशेष का प्रचार प्रसार भी होता है। भारत में नृत्य की एक समृद्ध परम्परा रही है। आदिकाल में देवी-देवताओं की पूजा करने, कहानी सुनाने आदि के लिए नृत्य को आधार बनाया जाता था। भगवान शिव का नृत्य सृष्टि को संतुलित करने एवं ऊर्जा देने के लिये जाना जाता है।
नृत्य एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक प्रकार की गति है। एक सत्य से दूसरे सत्य की ओर अनवरत, अनिरुद्धगति ही नृत्य की जीवंतता है। नृत्य मूलतः आत्म-अभिव्यक्ति, मनोरंजन, शिक्षा को आधुनिक नृत्य के रूपों में प्रदर्शन किया जाता है। इसमें भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के विभिन्न रूपों से लेकर बैले, टैंगो, जैज, टैप एवं हिप तक शामिल है। नृत्य एक अति प्राचीन कला है, जो सार्वभौमिक एवं सभी के लिए सुलभ है। आज की विविध एवं वैश्विक दुनिया में, अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस संबंधों को मजबूत बनाने और संवादों का आदान-प्रदान करने का सशक्त एवं उत्कृष्ट माध्यम है। नृत्य केवल आत्म-अभिव्यक्ति का रचनात्मक रूप ही नहीं है, बल्कि इसमें विविधताएं भी हैं।
जीन जार्ज नावेरे ने 1760 में ‘लेर्टा ऑन द डांस’ नाम से एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें नृत्य कला की बारीकियों को प्रस्तुत किया गया। जबकि नृत्य की उत्पत्ति भारत में ही हुई है, यहां की नृत्य कला अति प्राचीन है, कहा जाता है कि यहां नृत्य की उत्पत्ति 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने की और उन्होंने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया और जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया। नृत्य के कई प्रकार हैं जिनमें भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी, छाउ, कथकली, मोहिनीअट्टम, ओडिसी आदि है। मनुष्य की प्रवृत्ति है, सुख और शांति की तलाश, जिसमें नृत्य-कला की महत्वपूर्ण भूमिका है। नृत्य खुशी, शांति, संस्कृति और सभ्यता को जाहिर करने की एक प्रदर्शन-कला है। खुद नाचकर या नृत्य देखकर हमारा मिजाज भी थिरक उठता है और हमारी आत्मा तक उस पर ताल देती है। नृत्य जीवन की मुस्कान और खुशियों की बौछार है।
हमारे देश में प्राचीन समय से नृत्य की समृद्ध परम्परा चली आ रही है। नृत्य के अनेक प्रकारों में कथकली प्रमुख है, यह नृत्य 17वीं शताब्दी में केरल राज्य से आया। इस नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, इशारों व शारीरिक थिरकन से पूरी एक कहानी को दर्शाया जाता है। इस नृत्य में कलाकार का गहरे रंग का श्रृंगार किया जाता है, जिससे उसके चेहरे की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे सके। मोहिनीअट्टम नृत्य भी केरल राज्य का है। मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है। इसमें नृत्यांगना सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद सा़ड़ी पहनकर नृत्य करती है, साथ ही गहने भी काफी भारी-भरकम पहने जाते हैं। इसमें सादा श्रृंगार किया जाता है। ओडिसी ओडिशा राज्य का प्रमुख नृत्य है। यह नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है। इस नृत्य में सिर, छाती व श्रोणि का स्वतंत्र आंदोलन होता है। भुवनेश्वर स्थित उदयगिरि एवं खंडगिरी की पहा़ड़ियों में इसकी छवि दिखती है। इस नृत्य की कलाकृतियाँ उड़ीसा में बने भगवान जगन्नाथ के मंदिर पुरी व सूर्य मंदिर कोणार्क पर बनी हुई हैं। कथक लोक नृत्य की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश में हुई है, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है। कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व कथार्थ से प्राप्त होता है। मुगलराज आने के बाद जब यह नृत्य मुस्लिम दरबार में किया जाने लगा तो इस नृत्य पर मनोरंजन हावी हो गया। भरतनाट्यम नृत्य एक शास्त्रीय नृत्य है जो तमिलनाडु राज्य का है। पुराने समय में मुख्यतः मंदिरों में नृत्यांगनाओं द्वारा इस नृत्य को किया जाता था, जिन्हें देवदासी कहा जाता था। इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है। यह पारंपरिक नृत्य पूरे विश्व में लोकप्रिय है।
लोक नृत्यों में एक प्रमुख लोक नृत्य है करमा, जो विविध परिवेश में प्रचलित है। इसे छत्तीसगढ़ के लोक नृत्यों का राजा भी कहा गया है। आदिवासियों और गैर आदिवासियों का यह लोक मांगलिक नृत्य है। करमा एक ऐसा गीत नृत्य है जिसमें जीवन के सभी मनोभाव मुखरित होते हैं। करमा में मस्ती है, जो हृदय के उल्लास को प्रकट करता है वहीं उसमें आराधना का संगीत है जो मन प्राण को एकाकार कर देता है। कर्मा एक जन उत्सव है, जो नृत्य में मुखरित होता है। ईश्वर के प्रति अपनी आत्मीयता को उजागर करने हेतु नृत्य करते हुए रम जाते हैं। ठीक वैसा ही भाव जो श्रीकृष्ण के महारास में मिलता है, जिस रास में शामिल गोपिकाओ को स्वक्रिया में परक्रिया का एहसास होता है। मन की उस गहराई में जहां ‘मैं’ का अस्तित्व नहीं रहता, ठीक ऐसा ही है करमा नृत्य।
एक और प्रमुख नृत्य कुचिपुड़ी नृत्य है, जिसकी उत्पत्ति आंध्रप्रदेश में हुई, इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में गीत, चरित्र की मनोदशा एक नाटक से शुरू होती है। इसमें खासतौर से कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है। साथ में ही वायलिन, मृदंगम, बांसुरी की संगत होती है। कलाकारों द्वारा पहने गए गहने ‘बेरुगू’ बहुत हल्के लक़ड़ी के बने होते हैं। मणिपुरी नृत्य शास्त्रीय नृत्यरूपों में से एक है। इस नृत्य की शैली को जोगाई कहा जाता है। प्राचीन समय में इस नृत्य को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की संज्ञा दी गई है। एक समय जब भगवान श्रीकृष्ण, राधा व गोपियाँ रासलीला कर रहे थे तो भगवान शिव ने वहाँ किसी के भी जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन माँ पार्वती द्वारा इच्छा जाहिर करने पर भगवान शिव ने मणिपुर में यह नृत्य करवाया।
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस भारत के इन नृत्यों से पूरे विश्व को परिचित कराने का माध्यम है। वैसे इस दिवस को मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता को उजागर करना था। जिससे लोगों में नृत्य के प्रति रूचि जागे, जागरूकता फैले। साथ ही सरकारें पूरे विश्व में नृत्य को शिक्षा प्रणाली से जोड़े। भारत के विभिन्न नृत्यकलाओं में निपुण अनेक नर्तकों एवं नृत्यांगनाओं ने पूरी दुनिया में भारतीय नृत्य कलाओं का नाम रोशन कर रहे हैं। जिनमें सोनल मानसिंह, यामिनी कृष्णामूर्ति, केलुचरण महापात्रा आदि चर्चित नाम है, इनदिनों परामिता भट्टाचार्य एक उभरता हुआ नाम है, जो अमेरिका में भारतीय नृत्य की धुम मचाते हुए उसे पहचान दिलाने के लिये तत्पर है। एक कथक नृत्यांगना होने के अलावा परामिता एक प्रसिद्ध कोरियोग्राफर, नृत्य शिक्षक, वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता भी है। ‘शास्त्रीय नृत्य’ के क्षेत्र में उनके अनूठे योगदान के लिये उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय  संगठनों से प्रशंसा मिली है। लॉस एंजिल्स में रहते हुए उन्होंने न केवल वहां के भारतीय लोगों बल्कि अमेरिकी लोगों के बीच अपनी विशेष पहचान बनाकर भारतीय नृत्य कला को प्रसिद्धि के नये मुकाम प्रदान किये है। नृत्य एक प्रकार का योग है, जिससे जुड़कर हम नृत्य द्वारा अपनी कुंठाओं, निराशाओं एवं तनाव को कम कर सकते हैं तथा संतुलित जीवन जी सकते हैं। नृत्य द्वारा स्वयं के साथ-साथ दूसरों को भी प्रफुल्लित किया जा सकता है। इसलिये अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को केवल आयोजनात्मक ही नहीं प्रयोजनात्मक बनाने की अपेक्षा है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here