हर देश की अपनी विशिष्टता होती है. भारत की विशिष्टता धर्म है. इसी कारण से हमारे प्राचीन ग्रंथों में प्रत्येक विषय धर्म के आवरण में ही लिखा गया है. हमारा प्राचीन इतिहास भी धार्मिक आख्यानों के रूप में ही उपलब्ध है.सामान्यतया हम अपने प्राचीन ग्रंथो को केवल धार्मिक ग्रन्थ मानकर उनमें छुपे महत्वपूर्ण विषय को नहीं देख पाते हैं. उदाहरण के रूप में हिरण्य कश्यप और प्रह्लाद की कहानी को ही लें. हम जानते हैं कि हिरण्यकश्यप स्वयं के अतिरिक्त किसी और के प्रति किसी प्रकार की निष्ठां और आस्था के विरुद्ध था. और उसकी इच्छा के विरुद्ध जाने पर कठोर दंड देता था. सारी प्रजा उससे थर थर कांपती थी. अतः हम कह सकते हैं की हिरण्यकश्यप अपने समय का एक तानाशाह था. किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति की, आस्था की स्वतंत्रता नहीं थी.लोग उसके विरुद्ध बोल नहीं सकते थे. और सभी लोग खम्बे की तरह जड़ हो चुके थे. ऐसे में जब हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद ने पिता की इच्छा के विपरीत स्वतंत्र अभिव्यक्ति और आस्था प्रगट की तो पिता हिरण्यकश्यप ने प्रारम्भ में समझा बुझाकर और फिर दंड का भय दिखा कर प्रह्लाद को चुप करने का प्रयास किया लेकिन प्रह्लाद ने अभिव्यक्ति और आस्था की स्वतंत्रता का परित्याग नहीं किया.अंत में हिरण्यकश्यप ने महल के भीतर ही प्रह्लाद को समाप्त करने का प्रयास किया. इस बीच प्रह्लाद के विरोध के कारण लोगों में भी जाग्रति आने लगी थी और जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया तो वो जड़ बन चुके सभी लोग विद्रोह कर बैठे और खम्बे की तरह जड़ बने लोग ‘सिंह’ अर्थात नरसिंह बन गए और तानाशाह हिरण्यकश्यप का अंत कर दिया. इसी प्रकार हमारे यहाँ दशावतार कथा है.इसके अनुसार भगवान विष्णु ने अब तक नौ अवतार लिए हैं जो इस प्रकार हैं: १. मत्स्यावतार, २.कश्यपवतर, ३.वराह अवतार, ४.वामनावतार, ५.नरसिंहावतार,६.परशुराम अवतार, ७. राम अवतार, ८.कृष्णावतार, 9. तथागत बुद्धावतार, तथा दशम अवतार कल्कि अवतार जो अभी होना शेष है.
अब इसके वैज्ञानिक अर्थ को समझें.विज्ञानं कहता है की लगभग छ अरब वर्षों पूर्व पृथ्वी की उत्पत्ति एक आग के गोले के रूप में हुई. तथा लगभग दो अरब वर्षो के बाद ये ठंडी होना शुरू हुई. और धीरे धीरे द्रव के रूप में परिवर्तित होने लगी.” मा सलिलम् सर्व इदं” के द्वारा प्राचीन ऋषियों ने ये बताया की पृथ्वी के ठन्डे होने पर वो द्रव के रूप में थी.आधुनिक विज्ञानं में डार्विन की थ्योरी के अनुसार जीवन की उत्पत्ति सर्वप्रथम जलचर के रूप में हुई थी.हमारे दशावतार कथा के अनुसार भी प्रथम अवतार मत्स्यावतार था. जिस प्रकार विकासवादी जीवों की उत्पत्ति के क्रमिक विकास की बात करते हैं उसी प्रकार दशावतार कथा भी जलचर अर्थात मत्स्यावतार के पश्चात पृथ्वी के थोड़ा ठंडा एवं ठोस होने पर कूर्मावतार या कश्यपावतार की कथा कहते हैं. थोड़ा और अधिक ठंडा होने पर अधिक क्षेत्र ठोस धरती के रूप में विकसित होने पर ऐसा जीव जो धरती पर भी रहे और दलदल में रह सके वराहावतार के रूप में माना गया.फिर आधा नर आधा पशु अर्थात नरसिंह के रूप में अवतार की कथा कही गयी. तत्पश्चात मानव के रूप में वामनावतार की कथा आई. और पूर्ण विकसित होने पर परशुराम अवतार और फिर रामावतार, कृष्णावतार एवं तथागत बुध के अवतार की कथाएं जुड़ गयी. हमारे प्राचीन ग्रंथों को पढ़ते समय यदि तर्क के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या की जाएगी तो अनेकों नए नए अर्थ सामने आ सकेंगे जिन्हे तर्क एवं बुद्धि की कसौटी पर भी समझाया जा सकेगा.