बेटियां अल्लाह की रहमत हैं।

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aliaनिकहत प्रवीन

संयुक्त राष्ट्र के विश्व जन्संख्या कोष( world population fund) की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश मे पिछले बीस सालों मे लगभग 10 करोड़ लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया गया। रिपोर्ट जितनी स्पष्ट है कारण भी उतना ही स्पष्ट है, गर्भ मे लड़की का होना।

वो लड़की जिसके प्रति हर युग मे समाज के एक बड़े हिस्सें की मानसिकता नाकारात्मक रही है। इस मानसिकता के पीछे कई कारण हैं। जिनमें से एक बड़ा कारण है समय के साथ जनसंखया से भी तेज गति से बढ़ने वाली मंहगाई। और इस मंहगाई मे लड़की के लालन पालन, शिक्षा से लेकर उसकी शादी तक होने वाला खर्चा।

लेकिन इन सारी मानसिकताओं से दूर बिहार राज्य के जिला सीतामढ़ी के पुपरी प्रखंड मे 20 साल की एक महिला ऐसी भी है जो मां के रुप मे अपनी बेटी को खुद के लिए बोझ नही बल्कि अल्लाह का दिया हुआ सबसे खूबसूरत तोहफा मानती है। इस महिला का नाम है “नजराना”।

आप अपनी बेटी से खुश हैं या नही। जैसे ही ये सवाल नजराना से किया गया जवाब भी लाजवाब आया। बड़े ही गर्व से नजराना ने कहा “जब अल्लाह बेटी देते हुए नही घबराया तो मैं पालते हुए क्यों घबराउँ। नजराना के इस वाक्य से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि लड़कियों के प्रति नजराना का नजरिया किस तरह का है। लेकिन इस बेहतर सोंच के पीछे क्या कारण है? इस बारे मे और अधिक जानने के लिए जब नजराना के जीवन के बारे पूछा गया तो नजराना ने बताया “मेरे परिवार मे कुल 10 स्दस्य हैं अम्मी, अब्बू के साथ दो भाई और छ बहन। मैं सभी भाई बहन में सबसे छोटी थी। दोनो भाई मैट्रिक करने के बाद अब्बू के साथ फल के कारोबार में लग गए। बहनों में से सिर्फ मैंनें और बड़ी बहन ने पांचवी तक पढ़ाई की  उसके बाद पढ़ने को दिल नही करता था इसलिए बीच मे ही पढ़ाई छोड़ दी। फिर धीरे धीरे सबकी शादी हो गई। लेकिन सभी बच्चों की परवरिश से लेकर खाने-पीने और पहनने- ओढ़ने मे कभी अम्मी- अब्बू ने किसी तरह का कोई फर्क हममें और भाईयों के बीच नही रखा। बेटी के हिसाब से न कभी हमें कोई चीज कम दी, न बेटा सोंच कर कोई चीज मेरे भाईयों को ज्यादा। शायद इसलिए शुरु से हम बहनों की सोंच ऐसी बन गई कि बेटा या बेटी अल्लाह जो भी दे दे हमे खुशी खुशी कबूल कर लेना चाहिए और बस उनकी अच्छी परवरिश पर ध्यान देना चाहिए। हां अच्छी परवरिश के लिए जरुरी है अच्छी शिक्षा और अच्छी शिक्षा के लिए जरुरी है कि बच्चें कम हो।“

बच्चें कम हो से क्या मतलब ? ये पूछने पर नजराना कहती हैं” अब बेटा हो या बेटी पढ़ाना तो दोनो को ही है। बेटे को इंजिनियर बनाना है तो बेटी को भी तो डॉक्टर बनाना होता है न। खर्चा तो दोनो के उपर है। इसलिए बच्चे कम होंगे तो बेटा और बेटी दोनो को अच्छी शिक्षा और अच्छी परवरिश दे सकतें हैं। ज्यादा बच्चें होने से न तो कोई ठिक ढंग से पढ़ पाता है और न ही सबको सही से खाना पिना मिल पाता है, जिसकी वजह से बच्चें सेहतमंद नही रह पाते ।

तो आप कुल कितने बच्चे चाहती हैं? जब ये सवाल नजराना से किया गया तो उन्होनें कहा “सिर्फ दो”। अच्छा तो अब आपको एक बेटा चाहिए,क्योंकि बेटी तो पहले से ही है। ये वाक्य सुनते ही नजराना ने कहा “ नही अगली संतान सिर्फ जिंदा बच्चा चाहिए बेटा हो या बेटी मुझे फर्क नही पड़ता। और कमरे के अंदर फर्श पर खेलती हुए अपनी बेटी को देखते हुए नजराना कहती हैं “खैर फिलहात तो यही एक बेटी है “आलिया” मेरी लाडली, मेरी गुड़िया। माशाअल्लाह तेज बहुत है और नीडर भी। इसलिए मेरा इरादा इसे पुलीस बनाने का है। लेकिन सुना है इसमे खर्चा बहुत आता है। पति किराए की दुकान में बक्सा बनाने का काम करते हैं। ठिक-ठाक कमा लेते हैं, लेकिन फिर भी बेटी को पुलीस बनाने मे जितना खर्चा आएगा सोंचती हुँ कि मैं सिलाई सीख लूँ ताकि आस-पास के कपड़े सिल कर कुछ पैसे इक्टठा हो जाएगें तो आलिया की पढ़ाई मे काम आंएंगे और इनके पैसो से घर तो चल ही रहा है।

आपके पति भी चाहते हैं कि आलिया पुलीस बने? पूछने पर नजराना कहती है “हां मेरे पति अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं। वो तो यहां तक कहते हैं कि अब कोई बच्चा न हो तो भी कोई दिक्कत नही। हम आलिया को ही पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाएंगे और अगर पुलीस बन जाए तब तो और अच्छा है। वो कहते हैं कि आजकल लड़कियों को अपनी रक्षा करना आना चाहिए। हर जगह कोई साथ तो होता नही और अगर आलिया पुलीस बन गई तो बाद मे गांव की लड़कियों को भी अपनी सुरक्षा करने के लिए बता सकती है। आने वाले समय मे जमाना और बुरा होने वाला है इसलिए जरुरी है कि लड़कियां मर्दो से लड़ने की हिम्मत रख सकें”।

आपको बतातें चलें की कन्या भूर्ण हत्या पर लगाम कसने के इरादे से सरकार ने 1994 में ही भूर्ण परीक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद चोरी छुप्पे ये सिलसिला आज भी जारी है। सबूत है 2001 की जनगणना रिपोर्ट जिसके अनुसार 1000 पुरुषों पर 927 महिलाएं जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 पुरुषों पर 919 महिलाएं ही बची हैं।

 

ऐसी स्थिति में लड़कियों के प्रति नजराना और उनके पति की सोंच समाज के उन तमाम लोगों के लिए किसी शिक्षा से कम नही जो शिक्षित होने के बाद भी लड़के- लड़कियों मे भेदभाव की मानसिकता के साथ अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं।

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