गांधी के गुजरात में जहरीली शराब से मौतें

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संदर्भः गुजरात में जहरीली शराब से मौतें

प्रमोद भार्गव

गांधी के गुजरात के बोटाद जिले में पिछले तीन दिन में 33 लोगों की मौत जहरीली शराब हुई है। शराबबंदी के बावजूद इस शराब का बनना और बिकना इस बात का प्रमाण है कि जहरीली शराब का धंधा पूरे गुजरात में चल रहा है। वैसे भी सात ग्रामों के 85 से ज्यादा लोग इस शराब की चपेट में आए हैं। साफ है, अवैध शराब का कारोबार पुलिस और कानून को ठेंगा दिखाते हुए धड़ल्ले से चल रहा है। हालांकि पुलिस ने 14 लोगों को हिरासत में लिया है, लेकिन पुलिस और आबकारी विभाग की सतर्कता तब मानी जाती, जब वह घटना के पूर्व इस कारोबार पर अंकुश लगा पाती ? बोटाद जिले के रोजिद गांव में अवैध शराब बनाने का काम अर्से स ेचल रहा था। इसके लिए मिथाइल एल्कोहल अहमदाबाद से लाया जाता था, लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी। जबकि गांव के सरपंच ने इस अवैध कारोबार की पुलिस को शिकायत भी की थी। जाहिर है, पुलिस और माफिया की साठगांठ से यह शराब बनाई और बेची जा रही थी। शराबबंदी रहते हुए जुलाई 2009 में जहरीली शराब से अहमदाबाद में 130 और 1989 में बड़ोदरा में 132 लोग मारे जा चुके हैं। गोया, गांधी के गुजरात और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में अवैध शराब का धंधा बड़े पैमाने पर चल रहा है। जिस ‘गुजरात माॅडल‘ को देश  का आदर्श   प्रतिदर्ष माना जाता है, वहां का शासन-प्रशासन इस अवैध धंधे पर रोक लगाने में नाकाम रहा है। 

गांधी के आदर्श   वाक्य ‘शराब शरीर को नहीं आत्मा को मारती है‘ इसे लोककल्याणकारी मानते हुए गुजरात में अर्से से शराबबंदी है। इसी से कदमताल मिलाते हुए 5 अप्रैल 2016 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कानून बनाकर शराबबंदी की थी। इस बंदी के समय दावा किया गया था कि इससे गरीबों की सेहत सुधरेगी और समृद्धि भी बढ़ेगी। घरेलू हिंसा कम होगी और स्त्रियां व बच्चे कमोबेश सुरक्षित हो जाएंगे। क्योंकि शराब का सबसे ज्यादा अभिशाप इन्हें ही झेलना होता है। नीतीश की इस साहसी कानूनी पहल कि पूरे देश  में मुक्त कंठ से प्रशंषा हुई और अन्य प्रदेशों में भी शराबबंदी की मांगें उठीं। लेकिन शराब का उत्पादन और बिक्री राजस्व इकट्ठा करने का बड़ा जरिया है, इसलिए नीतीश का अनुकरण अन्य राज्य सरकारों ने नहीं किया। ये राज्य राजस्व के लालच से छुटकारे को तैयार नहीं थे, इसलिए इन्होंने बहाना बनाया कि नागरिकों को धन के अपव्यय और इसके सेवन से उपजने वाली सामाजिक बुराईयों से बचने के लिए सचेत करने की जरूरत है, अतएव नशाबंदी के लिए लोगों को जागरूक करने के अभियान चलाए जाएंगे। यानी पहले बुराई पैदा करने के उपाय होंगे और फिर उनसे बचने के नुस्खे सुझाएंगे। गोया, शराब के पहलुओं पर नए सिरे से चिंता की जरूरत है।

बिहार में जब पूर्ण शराबबंदी लागू की गई थी, तब इस कानून को गलत व ज्यादितिपूर्ण ठहराने से संबंधित पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका पटना विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर राय मुरारी ने लगाई थी। तब पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी संबंधी बिहार सरकार के इस कानून को अवैध ठहरा दिया था। इस बाबत सरकार का कहना था कि हाईकोर्ट ने शराबबंदी अधिसूचना को गैर-कानूनी ठहराते समय संविधान के अनुच्छेद 47 पर ध्यान नहीं दिया। जिसमें किसी भी राज्य सरकार को शराब पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को विसंगतिपूर्ण बताते हुए यह भी कहा था कि पटना उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ का जो फैसला आया है, उसमें एक न्यायाधीश का कहना था कि ‘शराब का सेवन व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है।’ वहीं दूसरे न्याधीश का मानना है कि ‘शराब का सेवन मौलिक अधिकार है।’ ऐसे विडंबना पूर्ण निर्णय भी शराबबंदी के ठोस फैसले पर कुठाराघात करते हैं। संविधान निर्माताओं ने देश की व्यवस्था को गतिशील बनाए रखने की दृष्टि से संविधान में धारा 47 के अंतर्गत कुछ नीति-निर्देशक नियम सुनिश्चित किए हैं। जिनमें कहा गया है कि राज्य सरकारें चिकित्सा और स्वास्थ्य के नजरिए से शरीर के लिए हानिकारक नशीले पेय पदार्थों और ड्रग्स पर रोक लगा सकती हैं।

हालांकि आजाद भारत में शराबबंदी का पहला प्रयास तत्कालीन मद्रास राज्य (अब तमिलनाडू) में 1952 में हुआ था, जिसे कुछ दिनों बाद ही हटाना पड़ा। आंध्रप्रदेश  में 1994 में शराबबंदी की गई थी, जिसे 1997 में बंद कर दिया गया। हरियाणा में 1996 में शराबबंदी हुई किंतु अवैध शराब का उत्पादन और बिक्री बढ़ते चले गए। नतीजतन इसे बंद करना पड़ा। गांधी जी की कर्मभूमि वर्धा जिले में पूर्ण शराबबंदी अर्से से लागू है, लेकिन यहां धड़ल्ले से शराब मिली है। केरल में 2014 में शराबबंदी की गई थी। जिस पर स्थाई रोग ठहर नहीं पाई। मध्यप्रदेश  में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराबबंदी के लिए बार-बार हुंकार भर रही हैं। लेकिन सरकार ने अनसुनी की हुई है। दरअसल राज्य सरकारों ने संस्थागत फिजूलखर्ची इतनी बढ़ा ली है कि शराब आमदनी का बड़ा और आसान स्रोत बना हुआ है। 

                 शराब के कारण घर के घर बर्बाद हो रहे हैं और इसका दंश महिला और बच्चों को झेलना पड़ रहा है। साफ है, शराब के सेवन का खामियाजा पूरे परिवार और समाज को भुगतना पड़ता है। शराब के अलावा युवा पीढ़ी कई तरह के नशीले ड्रग्स का भी शिकार हो रही है। पंजाब और हरियाणा के सीमांत क्षेत्रों में युवाओं की नस-नस में नशा बह रहा है। इस सिलसिले में किए गए नए अध्ययनों से पता चला है कि अब पंजाब और हरियाणा के युवाओं की संख्या सेना में निरंतर घट रही है। वरना एक समय ऐसा था कि सेना के तीनों अंगों में पंजाब के जवानों की तूती बोलती थी। नशे का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू अब यह भी देखने में आ रहा है कि आज आधुनिकता की चकाचैंध में मध्य व उच्च वर्ग की महिलाएं भी शराब बड़ी संख्या में पीने लगी हैं, जबकि शराब के चलते सबसे ज्यादा संकट का सामना महिला और बच्चों को ही करना होता है।

शराबबंदी को लेकर अकसर यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि इससे होने वाले राजस्व की भरपाई कैसे होगी और शराब तस्करी को कैसे रोकेंगे ? ये चुनौतियां अपनी जगह बाजिव हो सकती हैं, लेकिन शराब के दुष्प्रभावों पर जो अध्ययन किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि उससे कहीं ज्यादा खर्च, इससे उपजने वाली बीमारियों और नशा-मुक्ति अभियानों पर हो जाता है। इसके अलावा पारिवारिक आर सामाजिक समस्याएं भी नए-नए रूपों में सुरसामुख बनी रहती हैं। घरेलू हिंसा से लेकर कई अपराधों और जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं की वजह भी शराब बनती है। यही कारण है कि शराब के विरुद्ध खासकर ग्रामीण परिवेश की महिलाएं मुखर आंदोलन चलातीं, समाचार माध्यमों में दिखाई देती हैं। इसीलिए माहात्मा गांधी ने शराब के सेवन को एक बड़ी सामाजिक बुराई माना था। उन्होंने स्वतंत्र भारत में संपूर्ण शराबबंदी लागू करने की पैरवी की थी। ‘यंग इंडिया’ में गांधी ने लिखा था, ‘अगर मैं केवल एक घंटे के लिए भारत का सर्वशक्तिमान शासक बन जाऊं तो पहला काम यह करूंगा कि शराब की सभी दुकानें, बिना कोई मुआबजा दिए तुरंत बंद करा दूंगा।’ बावजूद गांधी के इस देश में सभी राजनीतिक दल चुनाव में शराब बांटकर मतदाता को लुभाने का काम करते हैं। ऐसा दिशाहीन नेतृत्व देश का भविष्य बनाने वाली पीढ़ियों का ही भविष्य चैपट करने का काम कर रहा है। पंजाब इसका जीता-जागता उदाहरण है। शराब से राजस्व बटोरने की नीतियां जब तक लागू रहेंगी, मासूम लोगों को शराब का लती बनाया जाता रहेगा। निरंतर शराब महंगी होती जाने के कारण गरीब को भट्टियों में बनाई जा रही देशी शराब पीने को मजबूर होना पड़ता है।

प्रमोद भार्गव

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