कविता

मौत एक गरीब की

-मीना गोयल ‘प्रकाश’-

poetry-sm

कुछ वर्ष पहले हुई थी एक मौत…

नसीब में थी धरती माँ की गोद …

माँ का आँचल हुआ था रक्त-रंजित…

मिली थी आत्मा को मुक्ति…

 

सुना है आज अदालत में भी…

हुई हैं कुछ मौतें…

है हैरत की बात…

नहीं हुई कोई भी आत्मा मुक्त…

होती है मुक्त आत्मा…

मर जाने के बाद …

बिन त्यागे शरीर …

कैसे हुई हैं ये मौतें …

मरा था तब एक इंसान…

आज मरी है इंसानियत…

कर्म भुगत अपने वो चला गया…

हो गया मुक्त सब बंधनों से…

कर्मों से अपने ही ये डर गये…

बंधनों में और अधिक जकड़ गये…

जब पाये अपने हिस्से के ढेरों फूल…

तो कुछ काँटो से क्यूँ किया परहेज़ ?

जब हिस्से की अपने ओढ़ी छाँव…

तो थोड़ी धूप से क्यूँ किया परहेज़ ?

ऊपर वाले के सामने ‘सच’ सच है…

और ‘झूठ’ झूठ है…

रखे हिसाब वो पल पल का…

नहीं चलता वहाँ कोई छल है !

नहीं चलता वहाँ कोई छल है !