कविवर रहीम के दोहे के इस अंश “बिनु पानी सब सून” से यदि हम दूसरा अर्थ समझने का प्रयास करें तो यही कि पानी के बगैर जीवन की कल्पना बस कल्पना मात्र ही है। ज़मीन के नीचे भागता पानी का स्तर पर्यावरणविदों के साथ समाज के सभी लोगों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। वर्तमान में यदि इस समस्या का समाधान नही हुआ तो वह दिन दूर नही कि जब आने वाली पीढ़ी को “चुल्लू भर पानी” वाली कहावत को भूलना पड़ेगा। समूची धरा पर पानी सभी जीवों के जीवन का मुख्य आधार है। बहते पानी के स्रोतों का उपयोग सभी या सभी स्थान के लोग नही कर सकते ऐसे में भू-जल की महत्ता और भी बढ़ जाती है। मौसम और भू-जल का सम्बन्ध लगभग प्रतिकूल होता है क्योंकि गर्मी के दिनों में वातावरण गर्म होने के बावजूद भी जमीन के अंदर कंपनी ठण्डा और ठण्ड के मौसम में गर्म होता है। भू-जल सस्ता व सुविधाजनक भी है। सतही पानी की तरह इसके प्रदूषित होने का डर भी नही होता है। भू-जल, प्राकृतिक बरसात व नदियों के जल का जमीन के नीचे रिसाव होने से एकत्र होता है।
भू-जल की अपनी एक पारिस्थितिकी होती है। समुद्री क्षेत्रों में जलस्तर गिरने से खारे जल का रिसाव जमीन में शुरू हो जाता है जिससे वहां का पानी मिथ होने के बजाय नमकीन हो सकता है। जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण खेती में प्रयुक्त हो रहे कीटनाशक भी हैं जोकि पानी के साथ भूगर्भ जल में मिलकर प्रदूषण करते हैं।ऐसे में लगातार गिरते जल स्तर तथा पानी की बढ़ती हुई मांगों से यह आवाज़ उठ रही है कि नदियों को आपस में जोड़ा जाए परंतु पर्यावरणविदों के अनुसार ‘नदी जोड़ो परियोजना’ हितकारी नही है। इसका दूसरा पहलू यह है कि इससे मानव विस्थापन की प्रचंड समस्या भी सामने आएगी। भारत में वैसे भी पुनर्वास की स्थिति बहुत ही बदतर है। हम अपनी जीवनशैली और थोड़ी आवश्यकताओं को संतुलित करके जल का संरक्षण कर सकते हैं। गाँव का गरीब आदमी जहाँ पसीने से सनी हुई शर्ट दो-तीन दिन पहनता है वहीं शहरों और महानगरों में लोग अपने ग्राउंड में लगी विदेशी घांस को सींचने और लग्जरी गाड़ियों को धुलने में सैकड़ों लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। वाशिंग मशीनों में हज़ारों लीटर पानी रोज बर्बाद हो जाता है। यदि छोटे-छोटे रोजमर्रा के कामों में हम थोड़ी सी सावधानी बरत लें तो जल संरक्षण हो सकता है। हमे यह नही भूलना चाहिए की यदि जल नही होगा तो हमारा कल भी नही होगा।