कस्तूरी दिनेश
कल शाम दिल्ली-देवी से मुलाक़ात हो गई |तुम हंस रहे हो …? अरे मजाक नहीं कर रहा हूँ भाई…!हमारे यहाँ वन-देवी,ग्राम देवी,कुल-देवी होती हैं कि नहीं…?गावों में चले जाओ,अक्सर वे घोड़े पर चढ़कर,बैल या शेर पर सवारी करके रात-बेरात लोगों को दिखाई पड़ती हैं कि नहीं ? तो दिल्ली-देवी से मुलाक़ात हो गई,कहने पर तुम हंस क्यों रहे हो…?जब वो मुझे मिलीं तो वे एक ठूंठी-घिसी झाड़ू पर सवार,हिचकोले खाती उड़ी चली जा रही थीं |लगता था अब गिरी,तब गिरी…! अरे तुम फिर हंस रहे हो…? अंग्रेजी की ’हेरी पाटर’ फिल्म देखी कि नहीं…? उसमें बच्चे झाड़ू में बैठकर कैसे उड़ते थे,तो दिल्ली देवी कैसे नहीं उड़ सकतीं ? तो अब मान रहे हो न..? जब वो मिलीं तो खुश नहीं दिखीं पर लोक-व्यवहार में आज भी वे वैसे ही पटु लगीं,जैसे पुरातन काल में उनके बारे में सुनाई पड़ता था ! उन्होंने मुझे देखकर झाड़ू का मूठ दबाकर ब्रेक मारा और मेरे सामने आकर उतर गईं | मैंने दंडवत करते हुए कहा—‘प्रणाम माते..!अहोभाग्य मेरे जो मेरे देश की महान राजधानी के अनायास दर्शन हुए !’ वे नाराज होती हुई बोलीं—‘यह शिष्टाचार-विष्टाचार छोड़ और ये बता कि तू गणतन्त्र दिवस के अवसर पर मेरे पास आकर परेड देखना और घूमना चाहता था न…फिर आया क्यों नहीं…?’
मैंने हिचकिचाते हुए नीची आँखें करते हुए कहा—‘देवी बुरा तो नहीं मानेगीं…? मैं अब आपके नाम से डरने लगा हूँ…!’ वे चिढ़कर त्योरी चढ़ाते बमकीं—‘क्यों क्या हुआ रे…?’मैंने मिनमिनाते हुए कहा—‘मैं आना चाहता था,ट्रेन में मेरा और श्रीमती जी का रिजर्वेशन भी करा लिया था पर माते वो आपका…!’ वे मुझे घूरती हुई बोलीं—‘मेरा क्या…?’ मैं अपने को थोड़ा सम्हालते हुए बोला—वो आपके यहाँ इलेक्शन का जो भयानक माहौल हैं न,उसने मुझे एकदम डरा दिया |’ दिल्ली देवी भौंह चढ़ाती हुई पूछीं—‘क्या बोल रहा है तू …कैसा माहौल…?’
मैं फिर मिनमिनाया—‘सत्ताधारी झाड़ूवाले खुद कह रहे हैं, यहाँ क्राइम का ये हाल है कि रोज खुलेआम रेप,मर्डर,लूट,डकैती आम बात है | क़ानून व्यवस्था का कोई माई-बाप नहीं..! रात को कोई महिला घर से बाहर नहीं निकल सकती…! विपक्षी कमल और पंजे वाले कह रहे हैं कि यमुना मैया का पानी इतना दूषित हो गया है कि पीना तो पीना उसमे एक डुबकी भी नहीं लगा सकते ! पूरी दिल्ली में पानी सप्लाई के पाइप इतने जर्जर हो चुके हैं कि उसमें सीवर का गंदा पानी लिंक होकर आ रहा है…! अब आप बताइए माते,ऐसे में मैं आपके पास आने की कैसे हिम्मत करता ! मेरे मन में गणतंत्र दिवस का परेड देखने और आपके दर्शन की बड़ी मनोकामना थी | इसी मनोकामना को लेकर मेरे पूजनीय दादा मर गये,पूज्य पिता भी देवलोकवासी हो गये |कितने दुःख की बात है,अब मैं भी वंचित ही रह गया | सोचता था श्रीमती जी के साथ जाऊँगा तो,लालकिला,इण्डियागेट,जन्तर-मन्तर,राजघाट,क़ुतुब मीनार,राष्ट्रपति भवन घूमूंगा | क्या करूं,रोज टीवी में यह तमाशा देख-सुनकर बीवी एक दिन आँखें तरेरती हुई गुस्से से बोलीं—‘मर्डर,रेप,लूट डकैती करवाने और यमुना का सीवर वाला गंदा पानी पीकर हैजा भुगतने के लिए नहीं जाना हमको दिल्ली…!’ तो आप ही बोलिए,टिकट केंसिल करवाने के सिवाय मेरे पास और क्या चारा था…? मेरी बात सुनकर,किसी जमाने की वह महान हस्तिनापुर नगरी यानी दिल्ली देवी के चेहरे का रंग,झाग भरे यमुना के मटमैले पानी जैसा हो आया | वे गहरी सांस लेती हुई एक बार मेरी तरफ रो देनेवाली नजरों से देखीं. फिर बिना कुछ बोले अपनी ठूंठी झाड़ू के मूठ का बटन दबाकर वहां से धीरे से उड़ गईं !
कस्तूरी दिनेश