दिल्ली के रंगमंच पर आज बुश पर पड़ेगा जूता

1
463

संजय कुमार

‘द लास्ट सैल्यूट’ नाटक के नयी दिल्ली में मंचन के जरिये भारतीय रंगमंच कल, 14 मई को इतिहास रचने जा रहा है। बुश पर जूते की दास्तान पर आधारित ‘द लास्ट सैल्यूट’ नाटक के निर्माता हैं चर्चित फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट। निर्देशन अरविंद गौड़ का है और पटकथा लिखी है लेखक-रंगकर्मी राजेश कुमार ने। ‘द लास्ट सैल्यूट’ नाटक को देखने के लिए फिल्म जगत की कई जानी-मानी हस्तियां कल दिल्‍ली के श्रीराम सेंटर पहुंचने वाली हैं।

14 दिसंबर, 2008 को अमेरिकी नीति के खिलाफ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर बगदादिया टीवी के पत्रकार मुंतजिर अल जैदी ने जब जूता फेंका था, तो विश्व भर में हलचल मच गयी थी। जैदी ने जूता फेंक कर अमेरिकी तानाशाही के खिलाफ विरोध प्रकट किया था। सद्दाम हुसैन की तानाशाही और उसके बाद वहां अमेरिकी नीतियों को लेकर नाराज पत्रकार जैदी ने अपनी वैचारिक नाराजगी जूता फेंक कर व्यक्त की थी। सजा के तौर पर एक साल तक जेल में जैदी को डाल दिया गया, लेकिन अच्छे बर्ताव को लेकर 15 सितंबर, 2009 को जैदी रिहा कर दिये गये। वे आजकल लेबनान टीवी से जुड़े हैं।

लगभग ढाई साल पूर्व जूता फेंक कर, जैदी मीडिया की सुर्खियों में आये थे। आज एक बार फिर, वे मीडिया की सुर्खियों में आये हैं। इस बार चर्चा हिंदुस्तान की धरती पर है। बुश पर जूते की दास्तान को भारतीय मंच पर पेश करने जा रहा है। ‘द लास्ट सैल्यूट’ नाटक का मंचन 14 मई को दिल्ली के श्रीराम सेंटर में होना है। पत्रकार मुंतजिर अल जैदी द्वारा बुश पर जूता फेंकने के प्रकरण को लेकर संभवतः पहली बार मंच पर नाटक होने जा रहा है।

महेश भट्ट ने जैदी के गुस्से को जायजा ठहराया है। वे कहते है, जैदी जैसे आम आदमी ने दुनिया के महाशक्ति से जो सीधा टक्कर लिया, वह कोई मामूली बात नहीं है। महेश भट्ट मानते हैं कि इस प्रक्ररण को लेकर फिल्म बनाना ममुकिन नहीं था। ऐसे में बात को जनता तक पहुंचाने के लिए रंगमंच को जरिया बनाया है।

नाटक की पटकथा लिखने वाले रंगकर्मी और लेखक राजेश कुमार कहते हैं कि इसमें एक पत्रकार द्वारा जूता मारने की घटना के साथ-साथ इसमें अमेरिका की तानाशाही-साम्राज्यवादी नीति को दिखाया गया है, जो प्रजातंत्र के बहाने मध्य पूर्व देशों में घुसपैठ कर अपनी तानाशाही को साजिश के तहत फैलाता रहता है। यह नाटक अमेरिका की दोहन नीति को सामने लाता है। राजेश कुमार कहते हें कि नाटक का मूल स्वर प्रतिरोध का है। जहां इराक में सत्ता के विरोध में कोई नहीं बोल रहा था, वहां जैदी का विरोध काफी महत्वपूर्ण है। सबसे बड़ी बात है अमेरिका की मनमानी, जो आज भी बरकरार है। इसका किसी न किसी रूप में विरोध होना ही चाहिए। विरोध का स्वर इस बार रंगमंच लेकर आया है।

 

पटकथा में जैदी की लिखी किताब ‘द लास्ट सैल्यूट टू प्रेसीडेंट बुश’ के साथ-साथ दुनिया भर से सामग्री जुटायी गयी है। नाटक के निर्देशक रंगकर्मी अरविंद गौड़ का मानना है कि नाटक वैचारिक द्वंद्व को लेकर सामने आया है, जो अमेरिका की पूंजीवादी व्यवस्था और तानाशाही रवैये का पर्दाफाश करती है। नाटक में जैबी की भूमिका रंगकर्मी अभिनेता इमरान जाहिद कर रहे हैं।

1 COMMENT

  1. महेश भट्ट अपने बेबाक तरीको और विचारो के लिए कई बार सुर्खियों में आते रहे है जिस विषय पर नाटक का मंचन होने जा रहा है वह भी उसी तरह का है प्रतिरोध तलवार या गोलिया चला कर ही नहीं किया जाता वैचारिक प्रतिरोध भी उतना ही कारगर साबित होता है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,687 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress