
—विनय कुमार विनायक
गयासुद्दीन तुगलक था तुगलक वंश स्थापक
(1320-1325 ई.)
हिन्दू कोख से जन्मा धर्म से मुसलमान बना था
सन् तेरह सौ पच्चीस में हुआ एक हादसा
गयासुद्दीन मरा और जौना खाँ ( उलुग खाँ )
मुहम्मद बिन तुगलक नाम से
बना सल्तनत का बादशाह (1325-1351 ई.)
वह छीट खोपड़ा था या जमाने से कुछ आगे बढ़ा था
दिल्ली से देवगिरी/दौलताबाद,
दौलताबाद/देवगिरी से दिल्ली
राजधानी बदलने के नाहक फेर में पड़ा था,
किन्तु इसका असर बड़ा था
दक्षिण में इस्लामीकरण
और बहमनी राज्य उत्पन्न हुआ था
दोआब क्षेत्र में अति कर वृद्धि,कृषि प्रयोग
दीवान-ए-कोही,सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
एक नया कदम था।
मोरक्को से इब्नबतूता इसके शासन में आया था
दिल्ली का कोतवाल बनकर किताबुल रेहला
(सफर नामा) उसने लिख पाया था
गयासुद्दीन तुगलक का बेटा
उगलू या जौना विचित्र दीवाना था
पिता काल में ही तेलंगाना, वारंगल, जाजनगर का
अभियानी ‘दुनिया का खान’ बना था
रामसुंदरी अभिलेख देख लें मुहम्मद बिन तुगलक ने
इब्नबतूता को तेरह सौ बयालीस ई.में
राजदूत बनाकर भेजा चीन/वह कहलाता
‘रक्त का प्यासा अथवा परोपकारी’ अंतर्विरोधों का मिश्रण
कराचिल का अभियान और खुरासान पर आक्रमण
दिल्ली सल्तनत ने देखा एक साथ पराकाष्ठा और पतन।
फिरोज तुगलक (1351-1388ई.)
सन् तेरह सौ इक्यावन में आया फिरोज तुगलक शासन में
दिल्ली सल्तनत जब विघटन के कगार पर थी
तुष्ट किया सेना, अमीर उलेमा को देकर
वंशगत बहाली और उच्च पद पर पदस्थापन
वर्जित किया महिला हेतु मजार पूजन
गैर शरीयत कर, गैर इस्लामी सजा
पर त्रस्त थी हिन्दू जाति और शिया मुस्लिम प्रजा
टोपरा और मेरठ से मंगवाया
अशोक स्तंभ दिल्ली शहर/सतलज और यमुना पर
बनवाया दो सिंचाई नहर, लगाकर शुर्ब नया कर
जजिया,जकात,खुम्स,खिराज के अलावा,
सैनिक को वेतन के बदले दिया ‘वजह’ जागीर
और किसान को ऋण तकावी
हिन्दू धर्म ग्रंथों का अनुवाद कराया किरमानी से
दलायल-ए-फिरोजशाही’ और उड़िसा का
जगन्नाथ मंदिर कर दिया था धराशायी,
बंगाल पर भेजा उसने दो सैनिक अभियान
फिर भी हाजी इलियास वहां गाता रहा आजादी गान।
भू राजस्व से जजिया कर की फिरोज से अलग पहचान बनी
ब्राह्मण तक से जजिया लेने की एक नयी प्रथा चली
खैराती अस्पतालों का निर्माण, दहेज हेतु मुस्लिमों को दान
अमानवीय सजा पर रोकथाम,दीवान-ए-बंदगान
उसकी अपनी व्यवस्था थी
किन्तु संस्कृत ग्रंथों में भी उसकी आस्था थी
संस्कृत ग्रंथों का प्रथम बार फारसी अनुवाद
तथा भवन निर्माण कला को भारी प्रोत्साहन के लिए
इतिहास करता रहेगा उसको याद
कोटला का किला, जौनपुर, फिरोजाबाद,
हिसार-फिरोजा, फतेहाबाद शहर इसने किया आबाद
किन्तु खुद यह नहीं रहा सन् तेरह सौ अठासी के बाद।
फिरोज तुगलक के बाद शाहजादा सुल्तान मुहम्मद
फिर नसीरुद्दीन महमूद आया किन्तु तुगलकी गद्दी नहीं बच पाया!
तैमूर ने तेरह सौ अठानवे में तुगलकों को मार भगाया
तैमूर के प्रतिनिधि खिज्र खान ने सैय्यद वंश चलाया।
फिरोजशाह की आत्मकथा फुतूहा-ए-फिरोजशाही थी,
फतवा-ए-जहांदारी और तारीख-ए-फिरोजशाही
दरबारी जियाउद्दीन बरनी की रचना थी।
—विनय कुमार विनायक