लोकतंत्र मूर्खों का शासन होता है पर, यहाँ तो मूर्खों ने लोकतंत्र को हीं राजशाही की ओर ठेल दिया है। राजतन्त्र नहीं तो और क्या है? गाँधी, सिंधिया, पायलट, ओबेदुल्लाह जैसे खानदान ही शासन में बचे हैं। ये तो चंद बड़े नाम हैं छोटे–छोटे स्तरपर भी कई मंत्री – सन्तरी भी बाप दादा की कुर्सी जोग रहें है। आज भी तो वही हो रहा है, पहले ताजपोशी होती थी अब प्रक्रिया थोडी बदल गई है। सेवानिवृत होते–होते राजनेता अपने उतराधिकारी(भाई–बंधुओं) को मूर्खों की सभा में भेजते हैं, जहाँ उनको तथाकथित छद्म लोकतान्त्रिक तरीकों से चुना जाता है।लोकतंत्र के मंदिरों में बाप, बाप के बाद बेटा, फ़िर पोता! राजनीति का खून तो जैसे इनकी धमनियों में दौड़ता है। एक साथ दो –तीन पीढियां सत्ता का रसास्वादन कर रहीं हैं। सरकार से भी बुरे हालात हैं राजनीतिक दलों के, वहां तो बगैर चुनावी ढोंग अपनाए ही वंशवादी नेतृत्व का बोझ कार्यकर्ताओं के कन्धों पर सौंप दिया जाता है।
५० सालों से देश कि एक बड़ी पार्टी कांग्रेस नेहरू खानदान के चंगुल में फंसी हुई है । अब तक तो यही हुआ कि हर मुद्दे पर जनता की भावना को उभारकर कांग्रेस ने सालो तक राज किया। राजनीतिक रूप से थोड़े बहुत अधिकार देकर जनता को अहसान मंद बनाया गया । कभी आरक्षण , कभी ऋण माफ़ी का लोलीपोप थमाया गया। चारों तरफ़ विकास का हंगामा! हम भारतवासी विकास कर रहे है ! आज हमारे यहाँ कांग्रेस के राज मे ५२–५३ खरबपति है! कितनी गर्व की बात है भाई !गर्व करो ख़ुद के भारतीय होने पर ! गर्व करो कि हम पाश्चात्य सभ्यता –संस्कृति के अनुरूप ख़ुद को ढाल रहे है! वाकई गर्व की बात है ! हम पीवीआर मे सिनेमा देखते है , हम मैकडी मे पिज्जा–बर्गेर खाते है , हम बड़ी बड़ी कारों मे घुमते है, हम चाँद पर जा पहुचे है, हमारे पास परमाणु शास्त्रों से लैस विश्व की दूसरी बड़ी सेना है(हाँ ये बात और है की हम बांग्लादेश जैसे पिद्दी राष्ट्रों से भी डरते है), हमारा विकास दर कुछ वर्षों मे बढ़ता रहा है (ये बात अलग है किअमेरिका मे मंदी की ख़बर मात्र से हमारा शेयर बाजार धराशायी हो जाता है) और न जाने कितनी बातें गर्व करने लायक हो सकती हैं ।लकिन,महानगरों मे बसने वाले चंद अमेरिकापरस्त अथवा बाजारबाद के प्रचारक लोगों को हिंदुस्तान की तरक्की मानलेना न्याय पूर्ण होगा ? किसी ने सच ही कहा था – “सौ सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है, दिल पे रखके हाथ कहिये देश क्या आजाद है ? कोठियों से मुल्क की तक़दीर को मत आंकिये, असली हिंदुस्तान तो गाँव मे आवाद है। “क्या वर्षो के बाद भी हमारी तकदीर बदली है ? नही, कल भी कुछ अमीर थे और आज भी हैं। हमने सामाजिक समानता जैसे शब्दों को तो केवल संसद एवं भाषण तक सीमितकर दिया है।
भ्रष्टाचार को राजकीय धर्म बना दिया गय,( जिसमे पुरे समाज की भूमिका है) लोकतंत्र में वंशवाद के बीज रोपे गए जिसे जनता ने भी एक –एक वोट से सींच कर उसे विशाल जंगल बना दिया है। परिवारवाद के अलावा अपराधीकरण की समस्या ने सियासत के तालाव को और भी गन्दा कर दिया है। एक समय था जब नेताजी अपने कुर्सी बचाए रखने के लिए गुंडे पालने लगे। धीरे –धीरे भूमंडलीकरण के बढ़ते प्रभाव ने गुंडों की समझ भी बढाईऔर वे भी सोचने लगे – भाई ,,जब इनकी जीत हम सुनिश्चित करते हैं तो क्यूँ न नेतागिरी का शुभ कर्म भी ख़ुद से किया जाए ?सामाजिक दायरा भी बढेगा और पुलिस का भय भी ख़त्म। इस तरह” राजनीती का अपराधीकरण, अपराध के राजनीतिकरण ” में बदल चुका है। वो कहते हैं न, आटे में नमक मिलाना पर यहाँ तो नमक में आटा मिलाने का रिवाज है। भ्रष्टाचार रूपी विषाणु लोकतंत्र के राग–राग में फैलता जा रहा है । बेरोक–टोक । न तो उसके पास प्रतिरोध की ताकत बची है और न ही उसे बचाने का कोई प्रयत्न ही हो रहा है। बस बार –बार इलाज के नाम पर आश्वासन की गोलियां दी जाती है ।
आख़िर कब तक एक बीमार, दयनीय और जर्जर व्यवस्था यूँ चलती रहेगी ? हम गर्व करते हैं अपने लोकतंत्र पर। कहते हैं –हमारा गणतंत्र अभी शैशवावस्था में है, अरे इस विषाणु जनित महामारी के चपेट में कब बुढापा आ जाए पता भी न चलता है। अब, जबकि बुढापा आ ही गया है तो आत्मा कब इस बहरी ढांचे को छोड़ जायेगी कहना मुश्किल है? इसबीमारी ने देश की लोकतान्त्रिक प्रणाली को कहा पंहुचा दिया है इसका बयां शब्दों में कर पाना असंभव है । क्या –क्या बताये , किस किस कमी का बखान करें? सारी खामियों में एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात है-‘कमियों को दूर करने की इच्छाशक्ति का अभाव , भ्रष्टाचार की इस बीमारी से लड़ने की दृढ़ता का अभाव‘। आज ६० –६१ वर्षों बाद भी हम रोटी , कपड़ा और मकान के झंझट में पड़े है , ऊपर से ये वंशवाद की बीमारी । ये सारी बुराइयाँ हमें खाए जा रही है । पर इस चिंता को त्याग कर हमें इसका विकल्प लोगो के समक्ष रखना होगा । भविष्य की राजनीति कैसी हो , इस पर केवल सोचने से नही बल्कि युवाओं को सक्रीय राजनीति में आना ही सबसे बड़ा विकल्प है ।
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जयराम चौधरी
(Jayram Chaudhary)
BA(HONS) MASS MEDIA
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