यात्री बाढ़ में फंसे,
प्रलय सा मच गया,
देखो, हाहाकार।
भागीरथी और अलखनन्दा में,
भीषण जल प्रवाह,
बस और कारें ऐसे बहीं,
जैसे कग़ज़ की नाव,
बाढ़ प्रकोप से उजड़ गये,
उत्तरकाशी व देवप्रयाग,
बद्री नाथ तो बच गये,
उजड़े केदार नाथ,
सारी बस्ती बह गई,
रह गये भोलेनाथ।
गंगा तट पर ऋषिकेश में,
शिव की मूर्ति विशाल,
जटाओ मे न रोक सके,
गंगा को इस बार,
मूर्ति जलमग्न हुई,
गंगा मे इस बार।
प्रलय सा मच गया,
देखो, हाहाकार।
भूखे प्यासे लोग बिताये,
पहाड़ पर ऐसे में दिन रात,
कब कोई हैलीकौप्टर,
आके बचाये जान।
अपनों से बिछड़े कई,
ढूँढे चारों ओर ,
प्रलय सा मच गया,
देखो, हाहाकार।
गये साठ थे गाँव से,
लौटे केवल आठ,
कैसा हुआ विनाश,
रोती आंखे अपनों की,
टिकीं द्वार पर आज।
राजनीति ने त्रासदी में ,
अपने पसारे पाँव,
कोई हवाई दौरा करें,
कोई सूरत दिखायकर,
वापिस लौट जायें,
कोई थोडा सा करें,
कई गुना जतलायें।
ऐसी अंधेरी रात मे,
चोर लूट मचाये,
पैसे बनाने के लिये,
मुनाफा़खोर आँख लगायें,
खाने की चीज़ों के दाम,
पाँच गुना बढ़ाये।
सभी नही ऐसे मगर,
कई आधी रोटी,
बाँट के खांये।
प्रकृति की इस त्रासदी में,
सेना के जवान,
बचाव कार्य में ऐसे लगे,
कुछ ने गंवाई जान।
उनको शत् शत् प्रणाम।