परिचर्चा : अयोध्‍या मामले पर इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय की लखनऊ पीठ का निर्णय

अयोध्‍या मामले में इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय की लखनऊ पीठ के निर्णय के अनुसार, अयोध्या में विवादास्पद स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है। पीठ ने सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा लखनऊ बेंच ने 2:1 से खारिज कर दिया है। विवादित जमीन के 3 हिस्से किये गए हैं। जिसे तीनों पक्षकारों में अलग-अलग बांट दिया गया है। विवादित जमीन का केंद्रीय हिस्सा जहां मू्र्तियां रखीं थीं, उसे रामलला का जन्मस्थान मानते हुए पूजा के लिए दिया गया है।

इस निर्णय से पिछले 60 साल के विवाद के खत्म होने की उम्मीद लगाई जा रही है। फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विशेष लखनऊ पीठ ने सुनाया है। न्यायिक पीठ के तीन अनुभवी न्यायाधीश, न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा, न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल और न्यायाधीश सिबघट उल्लाह खान हैं। इस मामले में विवादित भूमि के तीन दावेदार थे। सुन्नी वक्फ बोर्ड, हिंदू महासभा और निर्मोही अखाड़ा।

फैसले के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-

1. विवादित जमीन 3 हिस्सों में बांटी गयी।

2. सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया है। वक्फ बोर्ड का दावा 2:1 से खरिज हुआ है।

3. तीनों जजों ने माना है कि विवादित स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है।

4. विवादित जमीन के मुख्य केंद्रीय हिस्से को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हुए रामलला की पूजा के लिए दिया गया है।

5.विवादास्पद इमारत बाबर द्वारा बनाई गई थी। इसके निर्माण का साल निश्चित नहीं है लेकिन इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ इसे बनाया गया था। इसलिए इसका चरित्र मस्जिद का नहीं हो सकता है।

6. विवादास्पद ढांचे का निर्माण पुराने ढांचे के स्थान पर उसे ही तोड़कर किया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने प्रमाणित किया है कि वहां एक विशाल हिन्दू धार्मिक ढांचा था।

7. विवादित जमीन का बाहरी हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया है जबकि तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया है।

8. न्यायिक फैसले पर अगले 3 महीनों के अंदर कार्यवाही पूरी की जाएगी।

अयोध्या विवाद पर हाई कोर्ट के फैसले पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि वह इस मामले को खत्म नहीं कर रहे हैं और अदालत के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगें. वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने पत्रकारों को बताया कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटे जाने के फैसले के खिलाफ अपील की जाएगी क्योंकि यह फार्मूला वक्फ बोर्ड को मंजूर नहीं है. मुस्लिम नेता असादुद्दीन उवैशी का कहना है कि उन्हें इस बात का अफसोस है कि अदालत ने ठोस सबूतों को भी नहीं माना है. अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया है. उसका कहना है कि रामजन्मभूमि को तीन हिस्सों में बांटे जाने के फैसले को उन्होंने चुनौती देने का फैसला लिया है.

149 COMMENTS

  1. J P Sharma Says:
    October 29th, 2010 at 11:09 pm

    “हम लोगों ने यही सोच कर ‘प्रवक्‍ता’ शुरू किया था कि मुख्यधारा के मीडिया से ओझल हो रहे जनसरोकारों से जुड़ी खबरों व मुद्दों को प्रमुखता से प्रकाशित करें और उस पर गंभीर विमर्श हो।”प्रवक्ता परिवार का यह निर्णय प्रशंसनीय है. विशेषतया इस लिए की राष्ट्रीय मीडिया पर दो चार अपवाद स्वरुप पत्र पत्रिकाओं को छोड़ कर लगभग सभी पर राष्ट्रीयता विरोधी लोगों का अधिकार है तथा वे अपना दुष्प्रचार निरंतर बेखटके करते रहते हैं. बहुत हर्ष का विषय है की प्रवक्ता ने इतने थोडे समय में इतनी लोकप्रियता अर्जित कर ली .आप सब को हार्दिक शुभ कामनाएं.
    प्रवक्ता.कॉम से मेरा परिचय हुए एक साल भी नहीं हुआ.इसी बीच में मैं प्रवक्ता का नियमित पाठक बन गया हूँ और यदा कदा विवश होने पर टिपण्णी भी कर देता हूँ.
    यदि इसे आप मेरी अनाधिकार चेष्टा न समझें तो मैं निवेदन करना चाहूँगा की प्रवक्ता को अपने घोषित उद्देश्यों से हट कर राष्ट्रीयता विरोधी प्रचार का माध्यम बनाये जाने से सतर्क रहना होगा. सेकुलरिस्टों,मिशनरिओन जिहादिओं वाम्पन्थिओन और माकाले-मानसपुत्रों के अनेक प्रचार माध्यम हमारे देश में पहले से ही अपना अपना काम कर रहे हैं.कम से कम प्रवक्ता को राष्ट्रीय विचारों की अभिव्यक्ति तथा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रश्नों पर गंभीर चर्चा का मंच बना रहना चाहिए.
    मैं देखता हूँ की प्रवक्ता पर सब से अधिक लेख जगदीश्वर चतुर्वेदीजी के छपते हैं केवल अक्तूबर के महीने में ही चतुर्वेदीजी के ४२ लेख छप चुके हैं जिनका लक्ष्य केवल वामपंथी विचारधारा को जनता के सामने रखना है. मैं यह नहीं चाहता की ऐसे लेखकों का सर्वथा बहिष्कार किया जाये पर ऐसे लेखकों को अनुचित प्रोत्साहन तो कदाचित नहीं मिलना चाहिए. सप्ताह में एक दो लेख छापें तो ठीक है पर हर अंक में दो तीन लेख छापना मेरे विचार से उचित नहीं है. वे अपना प्रचार पार्टी की पत्रिकाओं के माध्यम से करते रहें जिसकी उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता है.
    yeh tippani maine pravakta dot com ke do varsh poore hone par vishesh sheershak vale lekh par dee thee. Main chahata tha the pathak mere vichr par apni raae den. lagta hai vah vishaya thoda purana hone se logon ka dhyan udhar nahin gaya. Yeh pravakta ke mahatva ka prashna hai kripaya apna vjchar avashya prakat karen.

  2. अब यह करना है…………
    [“अयोध्या पर फ़ैसला आने बाद…३०.०९.२०१०]

    पढ़ चुके इतिहास अब भूगोल* भी जाचेंगे,
    ‘इक’ को कैसे ‘तीन’ करे, ‘इन्साफ’ से नापेंगे.

    साठ साल तक लड़े है, अब दम थोड़ा ले-ले,
    “रहनुमा” से अब तो अपने दूर ही भागेंगे.

    धर्म, माल, कुर्सी या शौहरत किसकी चाहत है?
    किस-किस की क्या निय्यत थी यह ख़ुद ही आकेंगे.

    चाक गरीबां है अपना और हाल भी है बेहाल,
    फटे में अब दूजो के यारो हम न झाकेंगे.

    तौड़-फौड़, तकरार किया, अब चैन से रहने दो,
    निकट हुए मंजिल के अब तो ख़ाक न छानेगे.

    *भूगोल= geoagraphy
    mansoorali hashmi
    https://aatm-manthan.com

  3. In title case actually judgment has come against wakf Board hence it is expected that supreme court may remove wakf board from awarding even for remaining area currently given by High Court on gracious basis. In title case judgment is possible only in the form of Yes or no.

  4. Sampaadak mahoday ab hindi mein typing kaise kee jaaye ?copy paste hogaa naheen, hindee tankan kaa wikalp nazar naheen aa rahaa. Kripayaa suuchit kare ki ab kyaa vyawasthaa hai ?

  5. वह भाई कट्टरपंथियों के भी दिमाग होता है. कितनी जल्दी आपने प्रश्न धर दिया सामने अब बताओ. अरे हट बुद्धियो यही तो कह रहा हूँ की स्वाभिमान की लड़ायी लड़नी ही थी तो उसी समय लड़ते. तब तो आसानी से हिन्दू ध्वजा के रक्षक और पता नहीं क्या क्या कहे जाने वाले राजपूत, ब्रह्मण सब उस शक्ति के सामने नतमस्तक हो गए. १७०७ तक औरंगजेब तक तो मुग़लों का हो राज था स्वाभिमान तब क्यूँ नहीं जागा. क्यूँ की बावजूद इसके की गुलामी में पड़े थे हम लड़ने में लगे रहे. खुद शिवा जी भी इसी आपसी लडाई के कारन असफल हुए और ये शिव जी के ही वंशज थे सिंधिया जिन्होंने desh को angrejon के hathon bech दिया. आज़ादी की लड़ाए हमने angrezon से उसी समय लड़ी 400 varshon baan नहीं isii liye मुझे उस लडाई par garv हैं. apke nathuram godse ने तो उसी आज़ादी की लडाई के farishte को maar dala. और हिन्दू स्वाभिमान की रक्षक hindu maha sabha ने तो भारत chodo andolan का bahishkaar तक kiya था. angrezon का साथ दिया था. Beshak yeh प्रश्न आपको खुद से poochana chahiye की आज़ादी से आप khush हैं ya नहीं. आप स्वाभिमान की लड़ाए उस समय लड़ रहे हैं jab desh को shanti, vikas और sadbhavna की zaroorat है. desh में gareebi से लड़िये, ashiksha, swasthya, chua chhoot, bimari jaise babaron से लड़ने की avashyakta है एक itihaas के gart में sam chuke raja के khilaf लड़ने की नहीं.

  6. आदरनिये
    संपादक, प्रवक्‍ता डॉट कॉम
    नमस्कार , कुछ विलम्ब से लिख रहा हूँ, जहाँ तक विवाद निप्टाने कि बात हें तो ठीक ही हें , समस्या यह हें कि इस देश में सदा से कोशिश विवादों को बनाय रखने कि रही हें , साथ ही में ये बात कभी नहीं समझ पाया कि जिस देश का एक बार सिर्फ धर्म के आधार पर बंटवारा हो चूका हो और हिन्दू बहुसंखाक समुदाय द्वारा मुसलामानों को फिर भी बराबर का सम्मान देते हुए इस देश में रखा जा रहा हो , वहाँ के मुसलामानों को क्या ये नहीं सोचना चाहिए कि चलो अपने हिन्दू भाईओं कि भावनाओं को देखते हुए हम ये स्थान उनेहं तोहफे के तौर पर ही दें दें और हमेशा के लिए भाईचारे कि बात करें, कुछ लोग वहां stadium आदि बनवाने का सुझाव देते हें भला कोई उनसे पूछे कि ये सुजाव हमें ही क्यों दिए जाते हें तथा श्री राम का मंदिर यदि अयोध्या में नहीं बनेगा तो क्या सउदी अरब में बनेगा. अभी भी वक़्त हें कि मुस्लमान दिल से सोचें कि क्या ये बातें सच नहीं हें ? यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी दखल दें तो ये समस्या कभी भी सुलझ सकती हें.

  7. us jagah per na to mandir hone ke saboot mile hain aur na mandir todkar masjid banane ke saboot mile , Raja Ram chandra ji ki 13 peerhi ka sejra mai likh raha hoon
    Raja Harish Chandra
    Raja Bhriguraj
    Raja Kukakshi
    Raja Rohitashva
    Raja Bhagirath
    Raja Sagar
    Raja Dilip
    Raja Raghu
    Raja Ajjh
    Raja Dashrath
    Raja Ram
    Lave & Kush
    Agni Varun
    jahan itne logon ne raj kiya ho aur sar chhupane ke liye mahal na banaya ho apne raj ko chalane ke liye qanoon na banaya ho ho hi nahi sakta jis ayodhya ka jikra hindu granthon me aata ha sayad wo koie aur ayodya hai vrna koie na koie pramad zaroor milta.

    mughal kal me bahut aisee jagah hai jahan per dharmik suhard ke liye is tarah ek saath mandir aur masjid banaye gaye hain,
    ye to sirf netaon ne apni roti senkne ke liye fasad paida kiya,
    ye saare fasaad congress ke time me hi huye 1985 me tala khulwana,1992 me masjid saheed karna aur ab faisla aya to bhi kendra me congress hai BJP jab kendra me sattaseen thee to usne is mudde ko hi kinare kar kar diya tha,
    jab wakeel aapka , court aapka aur jaj aapka to aur kya ummed ki ja sakti hai, Is faisle se laga ki bharat kitna dharmnirpechha desh hai ,

  8. मित्रों इस जजमेंट के आते ही सारे के सारे वामपंथी व समाजवादी नेता व मीडिया ने ये माहौल बनाने की कोशिश की, ये जजमेंट धार्मिक भावना पर आधारित है,
    मित्रों, ये पूरा जजमेंट 8,००० पेज में है, जिसको पढ़ने के लिए समझने के लिए कम से कम २ वीक चाहिए, पर मीडिया में बैठे वामपंथियों ने जजमेंट आते ही इसके विरोध में बोलना शुरू कर दिया, जिसका कारण है वामपंथी इतिहास कारों का बेनकाब होना,

    ये लिंक है फुल जजमेंट का https://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/DisplayAyodhyaBenchLandingPage.do
    इस जजमेंट में सारे framed issues और सारे issues पर तीनों माननीय जजों का निष्कर्ष है,
    पुरे जजमेंट में ये कंही नहीं लिखा है की चूँकि हिन्दूओं की आस्था है इसलिए ये जगह उनहें दे दी जाए,

    आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की तीनों जजों ने ये माना की यहाँ पहले हिन्दुओं का धार्मिक स्थल था,

    तीनों जजों ने ये भी माना की वो टोम्ब मंदिर के ऊपर बनाया गया था,

    और सबसे बड़ा आश्चर्य तो ये की ये टोम्ब एक सिया शासक के द्वारा बनाया गया था,
    जबकि कोर्ट में दावा ठोंका एक शुन्नी वक्फ बोर्ड ने, और तो और उस प्रोपर्टी का कभी वक्फ ही क्रियेट नहीं हुआ था बोर्ड द्वारा, शुन्नी वक्फ बोर्ड कोई भी सबूत नहीं दे सकी वक्फ क्रियेसन का ?

    जजों ने यह भी माना की कोई भी मुस्लिम उस मोस्क़ में नमाज़ पढ़ने नहीं जाता था क्योंकि वह मोस्क किसी दुसरे धर्म के धर्म-स्थल के ऊपर बना था, जहां नमाज़ पढ़ना इस्लाम में नापाक है,

    मुसलमानों का मोस्क़ होने के बावजूद वहाँ हिन्दू पूजा करते थे, ये तीनों जजों ने माना.

    इस जजमेंट में अगर कुछ भावना के आधार पर हुआ तो वह है बिना किसी सबूत के वक्फ बोर्ड को १/३ जमीन मिल गया.

    और सबसे मजेदार बात इस देश में एक law है adverse possession का जो सारे प्रोपर्टी Law पर supercede करता है, उस जगह पर हिन्दू १२ साल से भी ज्यादा सालों तक पूजा करते रहे उस प्रोपर्टी को manage करते रहे, पर वो सुन्नी वक्फ बोर्ड या कोई भी मुश्लिम आगे नहें आया उसका विरोध करने, वो जागे भी तो अपने कारण से नहीं कुछ तथाकथित समाजवादियों व वामपंथियों के politicization से,

  9. मित्रों इस जजमेंट के आते ही सारे के सारे वामपंथी व समाजवादी नेता व मीडिया ने ये माहौल बनाने की कोशिश की, ये जजमेंट धार्मिक भावना पर आधारित है,
    मित्रों, ये पूरा जजमेंट 8,००० पेज में है, जिसको पढ़ने के लिए समझने के लिए कम से कम २ वीक चाहिए, पर मीडिया में बैठे वामपंथियों ने जजमेंट आते ही इसके विरोध में बोलना शुरू कर दिया, जिसका कारण है वामपंथी इतिहास कारों का बेनकाब होना,

    ये लिंक है फुल जजमेंट का https://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/DisplayAyodhyaBenchLandingPage.do
    इस जजमेंट में सारे framed issues और सारे issues पर तीनों माननीय जजों का निष्कर्ष है,
    पुरे जजमेंट में ये कंही नहीं लिखा है की चूँकि हिन्दूओं की आस्था है इसलिए ये जगह उनहें दे दी जाए,

    आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की तीनों जजों ने ये माना की यहाँ पहले हिन्दुओं का धार्मिक स्थल था,

    तीनों जजों ने ये भी माना की वो टोम्ब मंदिर के ऊपर बनाया गया था,

    और सबसे बड़ा आश्चर्य तो ये की ये टोम्ब एक सिया शासक के द्वारा बनाया गया था,
    जबकि कोर्ट में दावा ठोंका एक शुन्नी वक्फ बोर्ड ने, और तो और उस प्रोपर्टी का कभी वक्फ ही क्रियेट नहीं हुआ था बोर्ड द्वारा, शुन्नी वक्फ बोर्ड कोई भी सबूत नहीं दे सकी वक्फ क्रियेसन का ?

    जजों ने यह भी माना की कोई भी मुस्लिम उस मोस्क़ में नमाज़ पढ़ने नहीं जाता था क्योंकि वह मोस्क किसी दुसरे धर्म के धर्म-स्थल के ऊपर बना था, जहां नमाज़ पढ़ना इस्लाम में नापाक है,

    मुसलमानों का मोस्क़ होने के बावजूद वहाँ हिन्दू पूजा करते थे, ये तीनों जजों ने माना.

    इस जजमेंट में अगर कुछ भावना के आधार पर हुआ तो वह है बिना किसी सबूत के वक्फ बोर्ड को १/३ जमीन मिल गया.

    और सबसे मजेदार बात इस देश में एक law है adverse possession का जो सारे प्रोपर्टी Law पर supercede करता है, उस जगह पर हिन्दू १२ साल से भी ज्यादा सालों तक पूजा करते रहे उस प्रोपर्टी को manage करते रहे, पर वो सुन्नी वक्फ बोर्ड या कोई भी मुश्लिम आगे नहें आया उसका विरोध करने, वो जागे भी तो अपने कारण से नहीं कुछ तथाकथित समाजवादियों व वामपंथियों के politicization से,

  10. अरे मैं तो भूल ही गया था कि दिमाग रखने का ठेका अनुपम जी ने ले रखा है (यह बात दूसरी है कि उस दिमाग को इस्तेमाल का तरीका उन्हे नही मालूम) अगर अंग्रेजों से लगातार लडाई चली है तो महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, महाराजा कृष्णदेव राय वगैरह क्या कर रहे थे इस बारे मे कभी सोचा है

    रही बात आपस की लडाई की तो वो क्या अंग्रेजों के जमाने मे नही थी? चन्द्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अश्फाक उल्ला इत्यादि कैसे पकडे गये? अगर आपस मे लडाई के कारण मुगलों का राज जायज़ है तो अंग्रेजों पर अपना पक्ष रखें।

  11. मित्रों इस जजमेंट के आते ही सारे के सारे वामपंथी व समाजवादी नेता व मीडिया ने ये माहौल बनाने की कोशिश की, ये जजमेंट धार्मिक भावना पर आधारित है,
    मित्रों, ये पूरा जजमेंट 8,००० पेज में है, जिसको पढ़ने के लिए समझने के लिए कम से कम २ वीक चाहिए, ये लिंक है फुल जजमेंट का https://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/DisplayAyodhyaBenchLandingPage.do
    इस जजमेंट में सारे framed issues और सारे issues पर तीनों माननीय जजों का निष्कर्ष है,
    पुरे जजमेंट में ये कंही नहीं लिखा है की चूँकि हिन्दूओं की आस्था है इसलिए ये जगह उनहें दे दी जाए,

    आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की तीनों जजों ने ये माना की यंहा पहले हिन्दुओं का धार्मिक स्थल था,

    तीनों जजों ने ये भी माना की वो टोम्ब मंदिर के ऊपर बनाया गया था,

    और सबसे बड़ा आश्चर्य तो ये की ये टोम्ब एक सिया शासक के द्वारा बनाया गया था,
    जबकि कोर्ट में दावा ठोंका एक शुन्नी वक्फ बोर्ड ने, और तो और उस प्रोपर्टी का कभी वक्फ ही क्रियेट नहीं हुआ था बोर्ड द्वारा, शुन्नी वक्फ बोर्ड कोई भी सबूत नहीं दे सकी वक्फ क्रियेसन का ?

    जजों ने यह भी माना की कोई भी मुश्लिम उस मोस्क़ में नमाज़ पढ़ने नहीं जाता था क्योंकि वह मोस्क किसी दुसरे धर्म के धर्म-स्थल के ऊपर बना था, वंहा नमाज़ पड़ना इस्लाम में नापाक है,

    मुसलमानों का मोस्क़ होने के बावजूद वंहा हिन्दू पूजा करते थे, ये तीनों जजों ने माना.

    इस जजमेंट में अगर कुछ भावना के आधार पर हुआ तो वह है बिना किसी सबूत के वक्फ बोर्ड को १/३ जमीन मिल गया.

    और सबसे मजेदार बात इस देश में एक law है adverse possession का जो सारे प्रोपर्टी Law पर supercede करता है, उस जगह पर हिन्दू १२ साल से भी ज्यादा सालों तक पूजा करते रहे उस प्रोपर्टी को manage करते रहे, पर वो सुन्नी वक्फ बोर्ड या कोई भी मुश्लिम आगे नहें आया उसका विरोध करने, वो जागे भी तो अपने कारण से नहीं कुछ तथाकथित समाजवादियों व वामपंथियों के politicization से,

  12. aadriya vandana ji….
    Majorty of people are welcoming this historic decesion . There is only few Neta like Mulayam Singh,Ajam…and some fundamentalist of BJP… who are trying to instigate the people for their self benifit. These two wing of politics always tried to create the sensation among the peple. Now time has now come we make solidirty to strenghen the nation . We should think to avoid all the politicians who make their statement in a very negative way .
    Now conutry became very devoloped and these leaders always remain dedicated to make their devolopment.
    we must try to teach them lesson of goodness.

  13. फ़ैसला पूरे विस्तार सहित उपलब्ध होने के बाद दुनियां भर में इस पर समीक्षायें आनी है। फ़ैसले से उपजी नई उलझनें अभी से सामने आने लगी हैं। विवादित भूमि को तीन समान भागों में बांटने वाला मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चित/विवादित होरहा है।न्यायिक प्रक्रिया और तीनों न्याय-मूर्तियों के व्यक्तिगत/ साम्प्रदायिक पहचानें भी जन-गण में चटकारों का कारण बन रही हैं। जितने मुँह – उतनी बातें!
    इस मुद्दे पर एक और दिशा से भी विचार किया जा सकता है।
    ‘न्याय’ क्या है? न्याय किसे कहते हैं?
    इस फ़ैसले ने इतना तो तय कर दिया कि ‘फ़ैसला’ न्याय नहीं है। न्याय होता तो सारे सम्बन्धित लोग और समुदाय प्रसन्न होते, सबका समाधान होता। न्याय होता, तो सुन्नी वक्फ़ बोर्ड उच्चतम न्यायालय में जाने की बात क्यों कहता? हिन्दू-मन इसे मुसलमान की हठ-धर्मी कह सकता है, तो कोई मुस्लिम-मन यह चुनौति हिन्दू समुदाय के सामने इस प्रस्ताव के रूप में रख सकता है कि, “ चलो फ़ैसला आपके पक्ष में आ गया, अब तो खुश! अब जरा उदारता दिखाओ, और ठीक गर्भ-गृह पर फ़िर से मस्जिद बनवा दो! क्या फ़र्क है ईश्वर-अल्लाह में? तुम्हारे गाँधीजी भी तो कहते रहे हैं, सबको सन्मति दे भगवान्…… तो लो ना सन्मति! हमको कट्ठमुल्ला ही रहने दो। महान बनने का स्वर्णिम अवसर है। पूरी दुनियाँ के सामने भारत और हिन्दुत्व का डंका बज जायेगा। देख लो ओबामा यही कर रहा है। ज़ीरो-पोईंट पर मस्जिद बनाने का प्रस्ताव उसीका है। न्यायालय ने एक-तिहाई तो दे ही दिया, अब बचा कितना है? और ऐसी टूटी-फ़ूटी बिखरी जमीन पर तुम्हारे रामजी का भव्य मन्दिर तो बनने से रहा यार! महान बनने का अवसर मत खोना, मस्जिद बनवाकर मिसाल खङी कर दो।”
    है कोई तर्क इस प्रस्ताव के उत्तर में?
    और है तब भी कई ‘सहाबुद्दीन’ बैठे हैं, आपके तर्कसे अधिक शक्तिशाली प्रतितर्क लेकर्। तर्क का आधार है अपना और अपने सम्प्रदाय का प्रिय-हित-लाभ्। न्याय-धर्म-सत्य आधार नहीं बनता। और न्यायालय तर्कों-प्रतितर्कों पर चलता है, वहाँ न्याय मिलेगा कैसे? सर्वोच्च न्यायालय में भी न्याय नहीं मिलता/ नहीं मिल सकता। जब तक मामला प्रिय-हित-लाभ पर है, तब तक न्याय की कोई बात आ ही नहीं सकती।

    अब दूसरी बात- प्रिय-हित-लाभ से ऊपर उठकर न्याय-धर्म-सत्य आधार बन जाये, तो न्यायालयों की जरूरत ही नहीं रहती। न्याय-धर्म-सत्य आचरण में उतरे तो विवाद बनता ही नहीं। झगङा सारा प्रिय-हित-लाभ तक ही होता है। एक को जो प्रिय है, एक के हितकर/ लाभकारी है, मगर दूसरे को वही अप्रिय/अहितकर और नुक्सानकारी हो जाता है/ लग जाता है। इस प्रकार एक दूसरे के प्रिय-हित-लाभ टकराते हैं। संघर्ष की पृष्ठभूमि प्रिय-हित-लाभ हैं, न कि मन्दिर-मस्जिद।
    इस समस्या का समाधान न उच्चतम न्यायालय में है, न संसद द्वारा विशेष कानून बनाना। शाहबानो केस में राजीव गाँधी ने मुसलमानों के दबाव में विशेष कानून बना दिया, तो क्या समाधान हुआ? समाधान तो तब होता जब परित्यक्ता पत्नी के भरण-पोषण की सम्मानजनक स्थाई व्यवस्था बनती! सरकारी अनुदान तो खुद एक बङी समस्या है। सरकारी अनुदान से ध्यान आया कि ‘सरकार’ खुद एक बङी समस्या है।

    अयोध्या मसले का अन्तिम निदान सभी समुदायों की आपसी रजामन्दी को बताया जाता है, इस पर अगले लेख में चर्चा करेंगे। मेरी इन बातों से किसी का सहमत होना न आवश्यक न अपेक्षित्। इसे पढकर स्वयं का अपना कोई समाधान समझ में आता हो तो बतावें।

  14. रामजन्म भूमि विवाद को लेकर इलाहबाद हाईकोर्ट का फैसला आ गया। देश की लगभग ६० प्रतिशत जनता चाहती है कि हिंदू मुस्लिम दोनों को अदालत का फैसला मानना चाहिए। ६० प्रतिशत इसलिए क्योंकि हम भारत में रहते है जहां की लगभग २० प्रतिशत जनता देश, समाज, धर्म, राजनीति किसी से कोई मतलब नहीं रखती। वह सिर्फ अपने से मतलब रखती है। अगर मैं यह कहूं कि वह अपने मां- बाप से भी मतलब नहीं रखती तो गलत नहीं होगा। सिर्फ अपने लिए जीती है। फिर वह ऐसे संवेदन शील मुद्दे पर कैस बोल सकती है। शेष २० प्रतिशत में दो गुले राजनेता, वर्णशंकर औलातें जिन्हें अपने बाप को बाप कहने में शर्म आती है फिर भला दूसरे के पिता का कैसे सम्मान कर सकते है और तथा कथित कट्टपंथी है, जबकि हकीकत यह है कि सवाल इस बात का है ही नहीं कि अदालत का फैसला माना जाए। हमारे देश में अदालत के तो क्या सुप्रीम कोर्ट के बहुत से फैसले नहीं माने गए है। केंद्र सरकार भी समय- समय पर फैसलों को लेकर अदालत को आइना दिखा चुकी है, जबकि सवाल इस बात का है कि सामप्रदायिक सौदार्ह कायम करने एवं मंदिर व मस्जिद बनाने का एक रास्ता निकला है। वर्षों से जो राजनेता हिंदू मुस्लिम भाईयों को लड़ाते आ रहे है और अपनी रोटी सेक रहे है उनके चूल्हें की आग ठंडी करने का मौका है। देश को महाशक्ति बनने की बात चल रही है हो सकता है एकता ही कोई ऐसी मिशाल ही नीव का पत्थर साबित हो। मेरा विश्वास है अगर मुस्लिम भाई मंदिर के लिए जमीन छोडऩे को तैयार हो जाए। कहीं कोई साम्प्रदायिक उन्माद न हो। हिंदू स्वयं अपने हाथ से मस्जिद बनाए। काशी- मथुरा का मुद्दा न उछाला जाए। तो देश चौथ तरफ आतंक की जो आग लगी है वह कुछ हद तक शांत हो जाएगी। दुश्मन भी समझ जाएंगे कि भारत के लोगों में आज भी वह मादा है जो देश की स्वतंत्रता की लड़ाई मेंं था और एकता का सूत्रपाद किया था। अगर ऐसा होगा तो आने वाल ेसमय में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्याओं से एक साथ मिलकर लड़ा जा सकेगा जिनके कारण देश आज पंगु बना है। लोगों के दिन का चैन और रात की नींद गायब है।

  15. सम्पादक महोदय एक टिप्पणी अभी-अभी प्रेषित की पर वह बिना प्रकाशित हुए अदृश्य हो गयी. कुछ बतला सकते हैं की क्यों और क्या हुआ?

  16. मेरे दृष्टी में यदि निम्न टिप्पणीकारों की टिप्पणियाँ ध्यान से पढ़ ली जाएँ तो इस फैसले की महत्वपूर्ण विसंगतियां व पक्ष स्पष्ट हो जाते हैं . वे हैं——
    सुरेश चिपलूनकर जी, अनुज दीक्षित जी, शिरीष चन्द्र जी, जीत भार्गव जी, शैलेन्द्र कुमार जी.
    – अन्य अनेक टिप्पणियाँ उत्तम होने पर भी विचारों की स्पष्टता में कमी वाली मुझे लग रही हैं, और या फिर समाज विज्ञान की समझ उनमें कम है. केवल भावुकता और सद्भावों की अभिव्यक्ती है. इतिहास और मानव स्वभाव के ज्ञान का उनमें अभाव है. पर देश केवल आपकी भावनाओं से नहीं, पूर्व इतिहास में घटित घटनाओं के परिणाम, उनसे प्राप्त सदेश और भविष्य को ध्यान में रख कर लिए दूरदर्शी निर्णयों से चलते हैं.
    कुछ टिप्पणियाँ भारतीय संस्कृति के प्रती द्वेष और दुराग्रह से प्रेरित भी हैं. पर यह एक कमाल की बात है की हिन्दू विरोधी स्वर लगातार घट रहे हैं, बचाव की भाषा बोल रहे हैं.
    # यह कमाल असाधारण है. सैंकड़ों साल में यह पहली बार हुआ है कि भारतीय संस्कृति के विरोधी दुर्बल लग रहे हैं, जब कि सत्ता की ताकत उनके साथ खड़ी है. पर इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं कि वे हार मान चुके हैं. इसका केवल इतना ही मतलब है कि हिन्दू समाज अब षड्यंत्रों को कुछ-कुछ समझाने लगा है, अपने शत्रुओं को पहचानने लगा है. #
    – एक जिहादी जो हिन्दू महिला के नाम पर लिखा करता है, वह अपनी बिगड़ी छवि सुधारने के लिए हिन्दू हित में समर्थन की भाषा बोल रहा हैं यानी वे दबाव में तो हैं पर सुधरे नहीं, मौक़ा मिलते ही भीतर घात करेंगे. इसी पृष्ठ पर है उसकी टिप्पणी भी.
    – विद्वानों की टिप्पणियों के विश्लेषण के आधार पर मैंने अपनी सम्मति प्रकट की है, शायद पाठकों को कुछ पसंद आये.

  17. 01-
    गीत

    भाड़ में जाए मंदिर-मस्‍िजद
    हम तो हिन्‍द के रखवाले हैं
    रोटी दे दो, पानी दे दो
    छत दे दो, कपड़े दे दो
    हम कहां इबादत करने वाले हैं।

    भांड़ में जाए मंदिर-मस्‍िजद
    हम बच्‍चन को पढ़ने वाले हैं
    रुपये दे दो, पैसे दे दो
    दवा दे दो, दारू दे दो
    हम कहां अयोध्‍या जाने वाले हैं।

    भांड़ में जाए मंदिर-मस्‍िजद
    हम मजदूर कहलाने वाले हैं
    जंगल दे दो, जमीन दे दो
    बीज दे दो, खाद दे दो
    हम कहां धाम धांगने वाले हैं।

    भांड़ में जाए मंदिर-मस्‍िजद
    हम इंकलाब कहने वाले हैं
    गद्दी छोड़ों गद्दार कहीं के
    हम सत्‍ता में आने वाले हैं।
    हम सत्‍ता में आने वाले हैं।

    (देश के 60 साल पुराने कचरे के निष्‍पादन पर एक प्रतिक्रिया)

    – एम. अखलाक

    -02-
    भाड में जायें मंदिर मस्जिद
    हम लिखने पढने वाले हैं
    कागज दे दो, कलम भी दे दो
    एक छोटी सी कुटिया दे दो
    हम कहां बहकने वाले हैं

    भाड में जायें मंदिर मस्जिद
    हम तो फकीरा गाने वाले हैं
    इक हीर हमारी गाती है
    इक कबीर हमारा गाता है
    हम कहां सिमटने वाले हैं
    -सचिन श्रीवास्तव

  18. इलाहाबाद कोर्ट का फैसला काफी हद तक बिलकुल ठीक था। अब समय आ गया है कि आस्था पर राम व्यवस्था लागू किया जाए। जैसाकि सभी को मालूम था कि वहां पर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। तो फिर यह मामला कोर्ट में इतने सालों तक क्यों रहा। शायद इस प्रश्न का उत्तर कोई भी नहीं दे सकता है।
    कोर्ट के फैसले के बाद अब सभी मुसलमान भाईयों को भी एक मत बना लेना चाहिए। कि उस जमीन पर हक केवल हिन्दू भाईयों का ही है। किसी ने ठीक ही कहा है कि अगर राम पर विश्वास करोगे तो बाकी काम खुद हो जाएंगे। फैसले के बाद सत्ता में बैठी सरकार भी सोच रही थी कि कैसे राष्ट्रमंडल खेल पूरा होगा। लेकिन फैसले आने के बाद राष्ट् मंडल खेल भी ठीक ढंग से शुरू हो गया है।
    मैं तमाम उन भाईयों से भी अनुरोध करता हूं कि गरीबी से आज हम सभी लड़ रहे है चाहे वह छोटा हो या बड़ा, चाहे कोई कंपनी हो चाहिए कोई छोटा बिजनेस। सवाल यह है कि भारत में 22 करोड़ लोग एक वक्त की रोटी खाएंगे। तो इसका उत्तर है कि राम पर भरोसा करो सब ठीक हो जाएगा। राम राज्य में किसी को कोई तकलीफ नहीं थी। यह बात महात्मा गांधी जी न भी खुद कही है। देश आजाद होने पर गांधी जी राम राज्य की स्थापना चाहते थे जबकि जवाहरलाल नेहरू रूस जैसा चाहते थे। अब भगवान राम ने आपको एक बार मौका दिया है इसे स्वीकार करो।
    जय श्रीराम जय भारत

  19. I would like to share my views on this very important issue. Before delivery of the judgement every hindu and muslim person was very much suspicious about the expected judgement of non hindu judge but his judgement has also proved the justice can not be bounded with the boundries of community. Judge is only judge …it has been proved by the Non hindu judge. I would like to congratulate him . Justice Agrawal and sharma has also remain on and above the communal feelings. All of the judges are deserving salute from indians. In other hand Indian public has also proved that we are very much matchure ..strong and neutral. All of the indian public is only wanting to respect justice.
    अभिनव nyay panth ka nirnay अन्तस्मन से अभिनंदित हो
    nirvivad हो yeh vivad ab सब के मन से yeh vandit हो
    समाधान सब बातों ka है yadi मन निर्मल सरजू सा हो .
    पाकर दें kuch leyn कुछ देकर bhav yahi yadi अस्थापित हो..

  20. AB HONA YAH CHAHIYE KI MUSLIM SWAYAM US EK TIHAI JAMIN SE APNA DAWA CHODE DEN. AUR MANDIR KI KAR SEWA ME SHAMIL HO JAYEN. YADI AISA HO GAYA TO EK HAZAR SAAL SE BHARAT MEN HINDUON AUR MUSALMANON KE BICH CHAL RAHA VAIMANASYA SAMAPTA HO JAEGA.. KEVAL MUSALMAN HI WOH KOUM KYON HAI JISASE HINDU DOOR RAHNA CHAHTA HAI? JABKI DUNIYA KE ANYA DHARMON KE MANANE WALON KO SHARAN DETA HAI.?

  21. अयोध्या पर फैसला इस अर्थ में अच्छा है की इससे एक माहौल बना है. दूसरे जिस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने न्याय देने से मन कर दिया था उसी मामले पर हाई कोर्ट ने फैसला देने की हिम्मत की हाई. रही बात इस फैसले के पंचायती होने की तो मैं इतना ही कहूँगा इस तरह के पंचायती मालों में जहाँ दोनों पक्ष दिमाग से काम न ले कर बस पंचायातो, फतवों में लगे रहेते हैं तो वहां फैसल तो पंचायती ही होगा. इस फैसले में एक और बात खुल कर झलक रही हाई की जस्टिस शर्मा रितिरेमेंट के बाद या तो बीजेपी ज्वाइन करने की सोच रहे हैं या फिर अयोध्या के महंत बन ने की क्यूंकि उनके तर्क गले नहीं उतरते. जिस प्रकार हिन्दू यह आस्था रखते हैं और सदियों से पूजते आ रहे हैं और उस स्थान को जन्म भूमि मानते हैं उसी प्रकार ४०० वर्षों से मुस्लिम भी उस स्थान को पवित्र मानते हैं फिर यह एक तरफा तर्क क्यूँ.

  22. बरसों के इन्तज़ार के बाद आखिर अदालत ने अपना फैसला सुनाया।पूरा देश इस ऎतिहासिक फैसले का बडी बेसब्री से,सालों से प्रतीक्षा कर रहा था।सबसे बडी बात सभी को डर था -पता नहीं यह मन्दिर-मस्ज़िद मामला कहीं फैसला आने के बाद देश के अमन-चैन को तबाह ना कर दें।परन्तु सारी आशंकायें निर्मूल साबित हुई।ज़नता ने ज़ज़ों के इस फैसले को तहेदिल से स्वीकारा।मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि पक्के सबूत के अभाव में हिन्दुओं का थोडा नुकसान हुआ है।पर दरियादिल राम-भक्त अमन के हिमायतीं है।देश के अमन और भाईचारे को बनाये रखकर हिन्दुओं ने फैसले को मन से मान लिया है।अब सियासत के आग में आम आदमी को पकाने -दुखाने के लिये मुल्ला मौलवियो और नेताओ को कोई और मुद्दा इज़ाद करना पडेगा।खास तौर पर अयोद्ध्या की ज़नता बुरी तरह से इस मामाले से आज़िज़ आ चुकी थी।वरसों से उन्हें अपने ही शहर में अज़नबियों जैसे सुलूक का सामना करना पड रहा था।जब भी कोई अदालती कार्यवाही होती या कोई और विशेष तारीख आती उन्हें कैदियों जैसा जीवन जीने पर मज़बूर कर दिया जाता।पूरा कस्बा छाबनी में तबदील हो जाता।खैर जो हुआ सो हुआ अब दुआ कीजिये कि जल्द ही अयोद्ध्या में रामजन्मभूमि पर एक बिशाल-भव्य मन्दिर का निर्माण हो।

  23. Mananiiya Nyayaadhiishon kaa yah nirNay sarvathaa sammaanya hai.Is se acchhaa nirNay ho hii nahiin saktaa thaa.
    Ram Karan Sharma

  24. यह दुखद है कि इस प्रकार का विवाद लम्बे समय से चला आ रहा था .
    पूरे देश को आवेग से भर देने की घड़ी जब आई तो सद्भावना और भाईचारे का सन्देश लेकर – यह मेरी सुखद प्रतिक्रिया है.
    विजया सती

  25. दुनिया की हर इबादतगाह की बुनियाद ज़मीन में होती है. उसी ज़मीन प़र बैठकर या खड़े होकर आम इंसान सिजदा करता है, पूजा-प्रार्थना करता है. ये प्रार्थनाएं, आराधनायें, इबादतें, आम इन्सान अपनी और इंसानियत की भलाई और सुरक्षा के लिये करता है. कुछ लोग उसी ज़मीन प़र खड़े होकर अहंकार की तलवार और हिंसा का भाला उठा लेते हैं. ज़मीन का बटवारा कर उसपर खड़े होकर गर्व करने लगते हैं. वह भूल जाते हैं कि जिस ज़मीन प़ र वे खड़े हैं, उस ज़मीन के नीचे कोई ज़मीन नहीं है. जो ज़मीन बिना ज़मीन के हवा में घूम रही है और आधारहीन है, उसे इबादत के लिये न मंदिर की ज़रूरत है, न मस्जिद की. न गिरजे जी. न कलीसाओं की. न पंडित की, न मौलवी और पादरी की. वह जानती है कि जिस संसार को उसपर बसाया गया है, उसे जिंदा रखना है. इसी लिये वह सारी दुनिया की माँ है.लेकिन अपने स्वार्थवश इंसान अपनी माँ को भी बाटने लग जाता है जबकि इंसान जानता है कि �¤ �ह खुद आधारहीन है. ज़मीन के टुकड़ों की जंगें शताब्दियों से लड़ी जा रही हैं. अयोध्या ने भी सैकड़ों आधारहीन जंगें देखी हैं. उसने देखा कि भगवान् कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया तो चमत्कार कहलाया, बाहुबली हनुमान एक बूटी के लिये पूरा पर्वत उठा लाये तो वह भक्ति कहलाई. चमत्कार में देवत्व था, सेवा-भक्ति में दासत्व. देव और दास का अंतर दुनिया के सभी धर्मों और आस्थाओं में हम बराबर देख सकते हैं. एक के à ��ास संपत्ति और शक्ति है तो दूसरे के पास मात्र स्वामी भक्ति. यही से राजनीति कि शुरुआत होती है. अयोध्या में वहां के हजारों गरीबों, बेकारों, बेरोजगारों और पिछड़ों की भांति सैकड़ों गरीब मंदिर हैं, जिनपर किसी की निगाह नहीं जाती है, मगर वहां ज़मीन के टुकड़ों की जंग जारी है. क्योंकि अब उनके असली स्वामी इस असार संसार में जीवित नहीं हैं. वारिसों के पास पैसा और शक्ति दोनों ही नहीं है. जंगल सिकुड ़े तो बाहर के बहुत से जंगली जानवर उस बूढ़े शेर के जंगल में आ गए जिसने एक खंडहर में पनाह ले रखी थी. आगंतुक जंगली जानवरों के बदसूरत सरदार ने बूढ़े शेर को देखा, निगाहों से टटोला और हड्काने के लिये एक कदम आगे बढ़ा तो शेर गुर्राने लगा. शेर की दहशत से सरदार पीछे हट गया. शेर बूढा था, दहशत जवान थी. उसने सोचा कि इस सुरक्षित जगह प़र कब्ज़ा करने कि लिये हमें शेर को मारना ही पड़ेगा. ऐसा ख्याल आते ही उसनà �‡ अपने साथी जानवरों से कहा कि अगर सब एक साथ हमला करदें तो हमें इसका ग़ोश्त तो मिलेगा ही, ये जंगल और यह ठिकाना भी हमारा हो जायेगा. नहीं मारेंगे तो यह हमें एक-एक कर खा जायेगा. जवान सिरफिरे जानवरों ने जोश में आकर उसपर हमला कर दिया. बूढा शेर मर गया.अब जंगल प़र सरदार की हुकूमत हो गयी अगले दिन से उसी सरदार ने फरमान जारी किया कि अब हर दिन किसी एक जानवर को मेरे पास आकर मेरा भोजन बनना पड़ेगा. जो उलà ��घन करेगा, उसे दण्डित किया जायेगा. तो यह है अस्तित्व के स्थायित्व की जंग. क्या आप को कुछ समझ में आया?

  26. SIR,, THIS IS GOOD DECISION TAKEN BY ALLHABAD HIGH COURT . NOW EVERY POLITICAL PARTY SHOULD RESPECT THE VERDICT BUT POLITICAL PARTIES SPECIALLY WHO ARE KNOWN TO SYMPATHATIC TO MUSLIMS ARE FEELING SORRY STATE OF MIND AS THEY DO NOT WANT TO LOOSE ITS VOTE BANK SO THEY WILL TRY TO POLITISE THIS ISSUE WHEREAS BJP IS SO CALLED NON-SECULAR , COMMUNAL WILL NOT DO ANY THING SIMPLY IT SHOULD HAVE PATIENECE . PEOPLE OF INDIA ARE NOT FOOL THEY WIL JUDGE THE MOVEMENTS OF EVERY POLITICAL PARTY AND ITS MOVE IN THIS MATTER . MUSLIM BHAI ARE NOT ENEMY OF HINDUS BUT OUR POLITICAL LEADERS ARE CULPRIT WHO ARE SEEDING THE POISON OF DIFFERENCES IN THE NAME OF RELIGION, CASTE AND CREED AND NOW REGION BUT WE ARE OPTIMISTIC AND POSSITIVELY LATER OR SOONER INDIA WILL GO A HEAD AND COMMUNAL HARMONY WILL NOT BE DISTURBED . EVERY SENSIBLE CITIZEN OF THIS COUNTRY LOVE THIS COUNTRY , MAJORITY WANTS PEACE , COMMUNAL HARMONY AND BROTHERHOOD AMONG ALL PEOPLE OF RELIGION , REGION . THANKS . REGARDS-SUNITA REJA, AHMEDABAD, GUJRAT

  27. मैं बहुत पहले से मंदिर बनाने के पक्ष में हूँ क्योंकि मंदिर बन्ने के बाद बी जे पी की राजनीती में परिवर्तन आएगा और कांग्रेस जो की मस्जिद का ताला खोलने की ज़िम्मेदार थी वोह भी बहुसंख्यकों के वोट में सेंध लगा लेगी. मैं चाहता हूँ की मुसलमान कोर्ट द्वारा आबंटित एक तिहाई ज़मीन भी अब खुद न लेकर उस पर हक जताना छोड़ दें. वैसे भी दुनिया की तमाम ताक़तें मुसलमानों को तमाम झगड़ो का जड़ मानती हैं. दुनिया को पता चले की मुसलमान अब उन ताक़तों से डर गया है और जैसा वो चाहते हैं waisa hi रूप धरने को विवश है
    प्रवक्ता के दबंग हिन्दू मित्रों का आभारी हु जिन्होंने बड़ी आसानी से मुसलमानों के खिलाफ अपनी नफरत का इज़हार किया है . भाई मुसलमान सिर्फ और सिर्फ तिरस्कृत होने के लिए है उसे झूट मुठ की सेकुलर और अन्य लिजलिजी ताकतें भरोसा दिलाती है. सच बोलने वाले दबंग हिन्दू भाईओं से मैं डरता हूँ और चुप रहने का आश्वाशन देता हूँ

  28. मैं अयोध्या फैसले से खुश हूँ क्यूंकि माननीय न्यायधीशों ने एक ऐसा कार्य कर दिखाया जो की असंभव सा प्रतीत होता था – इस मुद्दे पर फैसला देना. इस फैसले ने देश में एक माहौल बनाया और लोगों को सोचने पर मजबूर किया है. लेकिंग अगर फैसले को ज़रा भी बारीकी से देखेंगे तो यह फैसल कुछ एकतरफा प्रतीत होता है. जिस प्रकार जस्टिस शर्मा ने बाबरी मस्जिद के वजूद को खारिज कर दिया उसी प्रकार रामजन्म स्थान को भी कह्रिज़ किया जा सकता था. दोनों के तर्क एक ही हैं. हिन्दू पक्ष यह साबित नहीं कर सकता की मुख्या गुम्बद के ठीक नीचे ही गर्भगृह था और वहीँ जन्मस्थान भी था. न तो ए एस आई की रिपोर्ट मैं यह लिखा है और ना ही जनश्रुतियां यह कहेती थीं. उसी प्रकार कोई यह साबित नहीं कर सकता की मस्जिद बाबर ने ही बनवाई थी. ए एस आई की रिपोर्ट भी यह तो बताती है की वहां मंदिर था परन्तु यह सिद्ध नहीं किया जा सकता की यह मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई थी. वस्तुतः जस्टिस शर्मा की दलीलें एक न्यायधीश की कम एक महंत की अधिक लगती हैं (आज तक पर उनका तर्क सुना था) तकनीकी दृष्टि से भी यह फैसला जानकारों ने गलत बताया है. निर्मोही अखाड़े का वाद निरस्त कर दिया, सुन्नी वक्फ बोर्ड का वाद निरस्त कर दिया और फिर उन्हें एक एक तिहाई हिस्सा देदेना कुछ गले नहीं उतरता. राम लल्ला विराजमान में भी बुद्धिमान न्यायधीशों ने इस तत्थ्यपर सहमति व्यक्त की है की मूर्तियाँ वहां २३ दिसंबर १९४९ की अधि रत को रक्खी गयीं. उससे पहेले वहां मूर्तियाँ नहीं थी. उससे पहेले वहां जन्मभूमि होने की बात भी नहीं थी. अगर अगर ६१ वर्षों से मूर्तियाँ होने के कारण उन्मेओइन प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है और उन्हें हटाया नहीं जा सक्कता तो ४०० वर्षों से मस्जिद होने और इबादत करने से वह भी इस्लामिक कानून के अनुसार पवित्र हो सकती है. जस्टिस शर्मा की daleel गले नहीं utarti. खैर फैसला aa chuka है और isne sabhi को इस मुद्दे से aage bad कर dekhne का एक mauka दिया है. Raam तो har jagah हैं मंदिर banyein और bhavya mandhi banayein lekin zaroori है की वहीँ ghus कर khoon baha कर देश तोड़ कर banayein. मस्जिद banayein lekin kahin और bana lein. us jahgah की इस मुद्दे की tarah ही banjar chhod dein और अयोध्या मैं हिन्दू bhavya मस्जिद का nirman karen और muslim bhavya मंदिर का तो ram और rahim done खुश honge , देश unnati karega और अयोध्या के din भी bahureinge.

  29. बहुत से बहु प्रतीक्षित निर्णय सुने और देखे है. अयोध्या निर्णय कही से भी निर्णय नहीं लगता है, यह तो समझोता है. इससे पहले किसी निर्णय में आस्था, समझोता नहीं सुना था. निर्णय तो तब होता जब किसी एक को हक़ मिलता. तीन टुकड़े तो समझोता है. सरकार में इक्षा शक्ति हो तो देश में कही भी दंगा नहीं हो सकता है बशर्ते सरकार की नियत साफ़ हो. शान्ति व्यवस्था बिगेड़ने, दंगे होने के डर से देश के सारे धार्मिक त्यौहार बंद करवा दीजिये.

    जब साफ़ हो चूका है की मस्जित मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी तो एक वर्ग को खुश करने के लिए एक हिस्सा क्यों दिया गया. अगर न्यायालय मानता है की कानून और शान्ति व्यवस्था ज्याद जरुरी है तो निर्णय ही नहीं देती. इन्साफ का मतलब इन्साफ होता है न की समझोता. यह तुस्टीकरण है न की न्याय. सच तो सच होता है, सायद इसीलिए कानून को देवी माना जाता है जिसके एक हाथ में तराजू होता है और आँख पर पट्टी होती है. .

  30. बहुत से बहु प्रतीक्षित निर्णय सुने और देखे है. अयोध्या निर्णय कही से भी निर्णय नहीं लगता है, यह तो समझोता है. इससे पहले किसी निर्णय में आस्था, समझोता नहीं सुना था. निर्णय तो तब होता जब किसी एक को हक़ मिलता. तीन टुकड़े तो समझोता है. सरकार में इक्षा शक्ति हो तो देश में कही भी दंगा नहीं हो सकता है बशर्ते सरकार की नियत साफ़ हो. शान्ति व्यवस्था बिगेड़ने, दंगे होने के डर से देश के सारे धार्मिक त्यौहार बंद करवा दीजिये.

    जब साफ़ हो चूका है की मस्जित मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी तो एक वर्ग को खुश करने के लिए एक हिस्सा क्यों दिया गया. अगर न्यायालय मानता है की कानून और शान्ति व्यवस्था ज्याद जरुरी है तो निर्णय ही नहीं देती. इन्साफ का मतलब इन्साफ होता है न की समझोता. यह तुस्टीकरण है न की न्याय. सच तो सच होता है, सायद इसीलिए कानून को देवी माना जाता है जिसके एक हाथ में तराजू होता है और आँख पर पट्टी होती है.

  31. इस फैसले को भारत की धर्मनिरपेक्षता की आंशिक पराजय के रूप में देखा जा सकता है. क्योंकि लखनऊ बेंच ने न केवल रामलला के अस्तित्व को स्वीकार किया अपितु दो तिहाई जमीन भी दे दिया.
    क्या यह जीत सांप्रदायिक ताकतों की जीत नहीं है? सांप्रदायिक ताकतों को पूरी जमीन पाने के लिए प्रयास करना चाहिए. क्योंकि धर्मनिरपेक्ष ताकतों को भी एक तिहाई जमीन मिल गई है. जिससे इनकी खाल बच गई. तभी भारत सच्चे मायने में सांप्रदायिक देश बन पायेगा. हमने लगातार ६० सालों तक धर्मनिरपेक्ष सरकार देखा है और मई आशा करता हूँ की भविष्य में सांप्रदायिक सरकार बन पायेगी.

  32. UNSE BACHO SADAA KI JO BHADKAATE HAIN TUMHEN
    JO ULTEE – SEEDHEE CHAAL SE FUSLAATE HAIN TUMEN
    NAAGIN KEE TARAH CHUPKE SE DAS JAATE HAIN TUMEN
    MERE WATAN KE LOGO , MUKHAADIB MAIN TUMSE HOON

  33. भारत के बार बार हारने वाले हिन्दुओ एक बार फिर हार ने के बाद माननीय न्यालय के फैसले में सहमती जताने के अलवा कर भी क्या सकते हो किसी भी मुसल्मा के लिए अजमेर सरीफ एवं मक्का मदीना से ज्यादा बाबर का मस्जिद मायने नहीं रखता किन्तु २० % अल्पसंख्यक लोगो ने ८० % हिंदुवो को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो गए और वे अब भी हार नहीं माने है अभी २० वर्ष और सुप्रीम कोर्ट में मंदीर बनाने के रास्ते में रुकावट बने रहेंगे आप की १ पीढ़ी गुजर जाने के बाद सायद हिन्दुओ को राम मंदीर में पूजा का अवसर मिलेगा ……

  34. यह सुबह अद्भुत है. फिजा में घुला नव-निर्माण का संकल्प भावुक कर रहा है. कुछ टुच्चों के बावजूद जीत केवल भारत की होनी है. क्या ही बेहतर हो कि वक्फ को दी गयी ज़मीन के बदले सरयू से उत्तर कही बड़े भूखंड पर हिंदू लोग मिल कर एक भव्य मस्जिद बना कर अपने भाइयों को भेट करते. मन हो रहा है झोली लेकर ‘अपनी मस्जिद’ के लिए समर्थन और संसाधन मांगने निकल पडूं….!

  35. जय श्री राम,भगवन श्रीराम जनम भूमि के सन्दर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायलय का फैसला आ गया बहुत हो हल्ला और मिडिया द्वारा बढ़ चढ़ कर उछाला गया किन्तु अत्यंत गर्व से कहा जाएगा की इस देश का आम नागरिक अब ना केवल समझदार बल्कि पूर्ण परिपक्व भी हो गया है ,राम मंदिर की चौसर पर राजनीति के पासे अब नहीं फेंके जा सकते ,हिन्दू मुसलमान सभी देशवासी अब अमन चैन से देश का विकास तरक्की चाहते हैं ,कहा जाए तो “और भी ग़म है ज़माने में मोहब्बत के सिवाए ” भगवन श्री राम का मंदिर अयोध्या में जन्मस्थल पर भव्य रूप में शीघ्र बने अदालत ने निष्पक्छ सर्वमान्य फैसला दिया है जिस पर टीका टिपण्णी करना ओछी मानसिकता का परिचायक है ,किसी भी प्रकार की नई चिंगारी ना सुलगाएं ,इस फैसले का एक एक शब्द सच्चाई है जिसे हर देशवासी को शब्दशः शिरोधार्य होना चाहिए ,कोई अपील ना करे कोई विवाद ना पैदा हो ऐसी बुद्द्धि सबको दे इसी प्रार्थना के साथ देश आगे और आगे बढे …..विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

  36. यह कहना अनुचित होगा की इस सदी का सबसे बड़ा फैसला जो अब सबके सामने आ चूका हे उसमे बहुत सी कमिया हे. जब तक फैसला नहीं आया था तब तक कोई नहीं बोल रहा था. आज के माहोल मे इतना कठिन फैसला सुनाना इतना आसान काम नहीं था. जब करोडो की आबादी वाला देश अपितु पूरा विश्व इस फैसले पर नज़र रखे हुए था और पूरे भारत मे एक अनिश्चित सा वातावरण बना हुआ था ऐसे मे जों फैसला आया हे उस पर ऊँगली उठाना उचित नहीं हे. इस फैसले के बात जिस तरह की शांति का माहोल बना हुआ हे वह काबिले तारीफ हे और उसके लिए देशवासियों को कोटि कोटि धन्यवाद. लेकिन शायद कुछ खादी धारि नेताओ को जों अपने को देश भक्त कहते हे उन्हे यह फैसला सही नहीं लगा और वह आरोप लगा रहे हे की एक समुदाय के लोग ठगा सा महसूस कर रहे हे जों गले नहीं उतरती. शायद ऐसा कहकर वह अपने आपको एक समुदाय का मसीहा बनाना चाहते हे. लेकिन अब परिस्तिथि पहले जैसी नहीं हे की कोई अपने स्वार्थ के लिए किसी भी समुदाय को बरगला सकता हे. उत्तर प्रदेश सरकार की मुखिया अपना यह कहेके पल्लू झाड रहा हे की यह केंद्रीय सरकार की जिम्मेदारी हे हम इसमे कुछ नहीं कर सकते. इतनी उचे पद पर बैटकर अगर कोई सिर्फ राजनीती करता हे तो यह भी ठीक नहीं हे. आज बगैर एक दुसरे के सहयोग के इस फैसले को अमलीजमा पहनना इतना आसान नहीं हे. अब अगर कोई इस फैसले से सहमत नहीं हे तो वोह उच्त्तम न्यायलय जा सकता हे जों की एक बहुत ही साधारण सी बात हे इसमे किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये.
    अंत मे माननीय न्याय्दिशो को कोटि कोटि धन्यवाद् देता हूँ की उन्होने बहुत की कठिन परिस्थिथि मे इतना सुन्दर और सराहिनिया फैसला सुनाया तो देश की जनता ने तहेदिल से स्वीकार किया और फैसले का मन से सम्मान किया.

  37. सौरभ मालवीय जी यह अब सत्य नहीं है की सत्य कभी पराजित नहीं हो सकता इस युग में सत्य अक्सर पराजय को प्राप्त हो रहा है, इस फेसले में भी सत्य आधा पराजित ही हुआ है, लेकिन इसके बावजूद अधिकतर हिन्दू लोग अदालत के इस फैसले का सम्मान करेंगे, सत्य तो यही था की पूरी अयोध्या पहले श्रीराम की थी
    जिसमे से एक इंच जमीन का टुकडा भी किसी को नहीं दिया जाना चाहिए था पर देश में शान्ति की खातिर हम-लोग इसे स्वीकार कर लेंगे, क्या यह संभव है की बामियान (अफगानिस्तान) में में बुद्ध की टूटी मूर्तियों का दुबारा स्थापित होना तो दूर उनके जीर्णोद्धार की बात भी की जा सके. जबकि यह शाश्वत सत्य है और संसार ने उन्हें कुछ वर्षों पूर्व में ही बेहद सुन्दर स्वरुप में देखा है.

    • बुद्ध की मूर्ति कभी नहीं बन सकती और न ही पाकिस्तान में ध्वस्त किए मंदिर वापिस बन सकते। वापिस बनना तो दूर एक इंच भूमि भी नहीं मिल सकती है, लेकिन हमारे कथित सेक्यूलर बुद्धिजीवी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते और न ही इस पर चर्चा कर सकते हैं। उन्हें सिर्फ एक ही धर्म कट्टर दिखता है बाकि सब दूध के धुले। वे चाहे धर्मांतरण का घिनौना खेल खेल रहे हों या फिर अलगाववाद और आतंकवाद फैला रहे हों। कई सेक्यूलर महाशय तो ऐसे हैं जिन्हें पहले तो आतंकवाद का रंग नहीं दिखता था, लेकिन एक तो प्रतिकार क्या किए कुछ लोगों ने इनकी अचानक से आंखें खुल गईं और इन्हें आतंकवाद का एक ही और सबसे खतरनाक रंग दिखाई देने लगा। न्यायालय से सत्य जीत कर आया है। यह बरगलाने की बात है कि फैसले से न कोई जीता है न कोई हारा है। जीता तो सत्य ही है, लेकिन में पूरी तरह से सिर्फ न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा जी के फैसले से ही सहमत हूं बाकी दोनों न्यायमूर्तियों से आंशिक रूप से सहमत हूं।

      • Hey buddy,
        Whats about our fellow indians getting humiliated or killed worldwide for one pretext or another… Preaching & speaking loud from a closed room is very simple… Why dont your raise your voice for them….. Enough is enough for Babri Masjid & Ram mandir…. I dont understand why you guys dont graduate yourself above religion…. Religion is personal & country is above all…. Lets stop crying over this nonsense issue and start thinking on other burning issues…..
        चिंतन और मनन की आवश्यकता है भाइयों… राष्ट्र निर्माण की सोचें, न की मंदिर और मस्जिद निर्माण की… मुझे आप सबके सहयोग की पूर्णतया अपेक्षा है…

    • आप यह तर्क दे कर खुद को तालिबान घोषित कर रहे हैं जैसे तालिबानों ने बामियान बुद्ध को खंडित किया वैसे ही हमने बाबरी मस्जिद dvast ki . na buddh dubara bane na मस्जिद. voh bhi तालिबान ham bhi तालिबान. afghani – hindustani kattapanthi bhai bhai.

      • Anupam, by defying the court’s ruling & trying to create agitation against it, and your comment above, can we make out of it that you guys are also new age TALIBAN.

        afgani taliban & Indian left taliban bhai bhai.

  38. उच्च न्यायालय भी वोट की राजनीती में लग गया है अन्यथा एक तिहाई जमीन बाबरी मस्जिद को देने का क्या तुक है I सबूतों के मद्दे नजर यह फैसला नहीं माना जा सकता I

  39. अदालत का फैसला आ गया | जन्मभूमि तिन भागों में बाँट देना बहुमत को अच्छा लग रहा है | मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि बिवाद के सुलझने और झगडा ख़त्म होने के आसार नजर आने लगे , परन्तु एक बात सोचने की है कि जब गुम्बद का स्थान किसी भवन के अवशेष पर बना और वह अवशेष रामजन्मभूमि हो सकती है तो फिर उसका एक तिहाई मुसलामानों को क्यों ? जिसकी मिलकियत उसे वापस करो | क्या राम स्वयं आकर बोलेंगे कि मेरी जन्मभूमि मुझे मिलनी चाहिए तब हीं उन्हें मिलेगी ? चलिए इस बात का फैसला फिर से अदालत हीं करे तो अच्छा | अब जरा निर्मोही अखाड़े कि बात करें | क्या निर्मोही अखाड़ा के महंत या निवासी राम के वंसज हैं या राम ने उनके नाम कोई वसीयत कि थी कि एक तिहाई जमीं उनको भी मिलनी चाहिए ? उत्तर है नहीं | ऐसे में अब जब प्रमाणित हो गया है कि विवादित स्थल राम जन्म भूमि हो सकती है तो पूरा का पूरा हिस्सा राम के नाम कर भविष्य के झगडे से मुक्ति पाई जा सकती है अन्यथा आने वाले समय में मथुरा कि भांतिमंदिर मस्जिद पास पास होंगे और तनाव बना रहेगा |

  40. भाई,हम सबको अदालत का फैसला मानना चाहिए। अभी मामला सर्वोच्च न्यायालय मे जाएगा।उसके बाद भी राष्ट्रपति के पास पुनर्विचार के लिए भेजा जा सकता है। तब भी आम सहमति से ही काम बनेगा।हमे अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों पर विश्वास रखना चाहिए। यह अच्छा है कि साठ साल बाद ऐतिहासिक फैसला ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर आया है। यह कानूनी राय है। इस मुद्दे को लेकर 6/12 जैसा कोई हंगामा नही हुआ। धार्मिक नेताओ के बयान भी लगभग संतुलित है।राजनेताओ से धर्म को बचाने का समय है।राजनीति जब धर्म मे घुस जाती है तो मनुष्यता का चेहरा लहूलुहान होता है।हमारा देश विकास की जिस डगर पर चल रहा है चन्द कट्टरपंथी सोचवाले लोग उसे सदियों पीछे ढकेल देंगे। अत: अयोध्या विवाद पर आये फैसले को जादा तूल देने की जरूरत नही है। राम तो घट-घट वासी है।अत: कानून को अपना काम करने देना चाहिए।और भी तमाम मुद्दे हैं जिन पर जनमत एकत्र किया जाना चाहिए।

  41. जय श्री राम
    श्री राम धर्म कि आत्मा है, धर्म ने ही राम के रूप में अवतार लिया था, जो पवित्र है वे राम हैं, राम भारत के करोडो लोगो कि आस्था हैं, वास्तव में हिन्दुओ ने बहुत सहा, सैकड़ो वर्षो कि गुलामी, उसमे तरह तरह पीडाएं, वह सहता गया, कुछ अपनों ने दुःख दिया, कुछ बाहरी लोगो ने! परन्तु जब धर्म कि बात आती है तो सभी हिन्दू एक हैं, हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, जैसे सभी नदिया समुद्र में मिलती हैं उसी प्रकार सभी धर्म सनातन धर्म के अंग हैं, श्री राम उस सनातन धर्म कि प्रतिमूर्ति हैं!
    न्यायालय द्वारा सुनाया गया फैसला पूर्ण रूप से उचित हैं, वास्तव में ये फैसला भारत को एकता की और ले जाता है, एक ऐसी एकता हिन्दू मुस्लिम सभी मिल के रह सकें, हमे इस फैसले को स्वीकार करना चाहिए

  42. I am still waiting for answer of my question… I am repeating that in other way…

    यदि कोई लुटेरा अपनी गुण्डों की फ़ौज के साथ आपके घर में घुस जाता है, आपकी बाउण्ड्री वाल तोड़कर आपके आंगन में मस्जिद बना लेता है… मजबूरीवश और कमजोरीवश आप 300 साल तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते और आपके आंगन की उस मस्जिद में नमाज़ पढ़ी जाती रही… तो क्या 400 साल के बाद आप अपने आँगन की उस मस्जिद को हटाने का कोई प्रयास नहीं करेंगे? या उस लुटेरे की मस्जिद का एक तिहाई हिस्सा उसे दे देंगे, सिर्फ़ इसलिये कि उसका कब्जा 300 साल तक था? 🙂

    • यदि कोई लुटेरा अपनी गुण्डों की फ़ौज के साथ हमारे घर में घुस जाता है,
      तो न्यायालय कहेगा की गुंडों की आस्था है आपके घर में इसलिए आपके घर का एक तिहाई हिस्सा गुंडों, को एक तिहाई जो गुंडों के साथ आये हैं उन्हें और एक तिहाई बाहरी हिस्सा हमें मिले जायेगा क्योंकि घर हमारा जो है

      • सही प्रश्न पहले ये बताइए की गुंडा कौन है

      • अहतशाम जरा न्यायालय के फैसले को पढो, स्पष्ट रूप से तीनों न्यायाधीशों ने माना है कि वहां पहले मंदिर था, अब बोलो कौन गुण्डा किसके घर मे घुसा?

  43. मंदिर बने या न बने इससे मुझे या देश के गरीबों को क्या फरक पड़ने वाला है? सब राजनीती और पैसा कमाने का एक और जरिया है. अगर मंदिर बनेगा तो उसके लिए चंदा इक्कठा होगा फिर उससे मंदिर का निर्माण होगा, कुछ पैसा निर्माण में लगेगा, कुछ ठेकेदारों की जेब में, कुछ अधिकारीयों की जेब में, कुछ कार्यकर्ताओं की जेब में जायेगा. ब्रह्मों की ठेक्दारी ऐसे ही चलती रहेगी, समाज में उंच नींच जैसी है वैसी ही बनी रहेगी. जितने लोग भी मंदिर बनाने की बात करते है उनको WHY I AM AN ATHEIST BY SHAHEED BHAGAT SINGH को पढना चाहिए.

    अंत में बस इतना ही की अधरम का राज हो और धरम का विनाश हो क्यूंकि जो धर्मी है वही सबसे बड़े अधर्मी है !

    • धर्म तो अफीम है जो जनता को मुख्या मुद्दों से भटकने के लिए समय समय पर चटाई जाती है. में ईश्वर में विश्वास रखता हूँ पर मेरे और ईश्वर के बीच सीधा सम्बन्ध है और मुझे किसी पण्डे, गुरु की सहायता नहीं चाहिए. अगर इश्वर है तो वह मुझे सही रास्ता दिख्येगा. मेरा हिन्दू धर्म कहता है इश्वर तुम्हारे भीतर है, दूसरों की सेवा करना सच्चा धर्म है, मेरे आराध्य कृष्ण और राम कहते हैं की जो धर्म दूसरे धर्मों का आदर नहीं करता वह धर्म धर्म नहीं अधर्म है, मेरी प्रिय पुस्तक रामायण में लिखा है की दूसरों के हित में काम करने से बढ़ कर कोई धर्म नहीं, यदि मन चंगा तो कठौती में गंगा जैसे कहावत भी मेरे ही धर्म में है. तो में kyun किसी mandir के pher में padh कर apna chain और धर्म gavaon.

      • प्रिय श्री संतोष जी आपकी संक्षिप्त पर सारगर्भित टिपण्णी के लिए धन्यवाद. लेकिंग मैंने जो लिखा है वह हमारे धर्म ग्रंथों में ही है और आप उनके कहने वालों या लिखने वालों को ही पागल बता रहे हैं. बहुत खूब हिन्दू हैं आप जो गीता, रामायण और वेदों में लिखी बातों को नहीं मानते. नास्तिक भी इन बातों को मानते हैं की मानवता सबसे बड़ा धर्म है. हमारे धर्म ग्रंथों का ही वक्तव्य है “क्षमा बड़ों को चाहिए, छोटन को सम्मान.” हिन्दू बहुसंख्यक हैं और बड़े दिल वाले हैं. आखिर क्या किसी के दादा की सजा उसके पोते को मिलनी चाहिए?

        • आप काफी सहनशील और बेकस इंसान जान पड़ते हैं अनुपम जी. आप के इन खुबसूरत उद्धरण के लिए धन्यवाद. कहीं भी उलटे सीधे उद्धरण घुसा देने से कुछ हासिल नहीं होता.लेकिन क्षमा भी बराबरी में होता है. किसी से गिड़ गिडाकर नहीं. क्या आपको नहीं लगता की आपको इस्लाम धर्म अपना लेना चाहिए? क्योंकि मुसलमान सारे विश्व को दारुल इस्लाम बनाना चाहते हैं. आखिर यदि धर्मों के टकराव को रोकना है तो ऐसी छोटी मोटी कुर्बानी तो देनी ही होगी?
          आप यदि नास्तिकता को बढ़ावा देते हैं तो क्यों वहां मस्जिद बनाने को बढ़ावा देते हैं? ethiest कभी भी धर्म स्थलों के निर्माण का समर्थन नहीं करते या फिर न्याय का समर्थन करते हैं. आप दोनों जगह खरे उतारते नहीं दिख रहे हैं. शायद इसलिए संतोष झा जी ने ऐसा कहा.

          • jis din hindoo dharm mein kattarpanthiyon ki bharmar ho jayegi us din hindoo dharm chod doonga lekin shishir ji insaan to phir bhi rahoonga? ya aap keval hinduon ko hi insan mante hain. rahi baat uddharnon ki to yah to tai hi hai ki kuch nahin hota uddharnon ka kyunki agar kuch hua hota to aisi naubat hi naa aati ki desh mein dangon mein lakhon bekasoor mare jate.
            Kshama barabri mein nahin hoti. barabri mein to muqabla hota hai. yadi ba;lvan hain, bade hain to kshama aapka abhushan hai. chote hain to badon ka samman aapko shobha deta hai. bada koi bal, shakti aur nirdayta se nahi hota balki apne aacharan se hota hai. Phalon se lade vriksh neeche jhuke hote hain, paani se bhari nadi dheere chalti hai. jitna, bal, buddhi aur vidya hogi utne hi vinamra honge. Hindu sanskriti bahut manthar aur gehri nadi ke saman hai.ismein pichle 10,000 varshon ka gyan ghula hai. na jane kitni sanskritiyon ko isne khud mein atmsaat kar liya hai aur itni lacheeli ho gayee hai ki tab se aaj tak anvarat roop se apni poori khubsoorati ke saath zinda hai. ismein asahishnuta ka zeher mila kar iski jeevani shakti nasht na karein. Ganga jo hinduon dwara poojya hai yahi sandesh deti hai ki behta paani nahin sadta aur ruka pani (talab) sad jaata hai. Parivartan to prakriti ka shashwat niyam hai. hindoo dharm parivartan nsheel hai isiliye zinda hai. jo dharm parivartansheel nahin hai voh samapt ho jayega. islam ke saamne yahi sabse bada khatra hai ki voh din ba din khud mein simat raha hai. Dar ul islaam ki yeh zid unhein kahin ka nahin chodne vaali. sawal hai ham hindoo kyun musalmanon ki bhanti ho jayen. Kattarpanthiyon ki daleel hoti hai “agar aisa hota to mulle yeh karte hum hindoo hi dabe rehte hain, ab hum bhi dikha denge” main poochta hoon kya dikha doge ki tum bhi musalman ban gaye ho? Aap mujhe keh rahe hain islam kabool karne ko par aapne to pehle hi kabool kar liya hai—hinduon ke sahishnuta bhav ko tyag kar aur unke zihadi aacharan ko apna kar. aur is chakkar mein mein insani dharm se bhi vanchit ho gaye.

            Maine kab kaha ki vahan masjid banva do. mera is vishay mein spasht mat hai ki us zameen ko yun hi banjar chod diya jaye. yah prateek hoga ki yeh mudda bhi is bajar zameen ki bhanti hi bajar hai.

          • Rahi baat santosh jha ki to unhon ne bilkul sahi kaha hai. Voh mutmayein hain ki patthar pighal nahin sakta, main bekarar hoon avaz mein asar ke liye. aisa aadmi pagal hi to kehlayega. lekin yeh pagalpan hi asal mein mera dharm hai.

  44. ayodhyaa विवाद पर जो निर्णय उच्च नयायालय ने दिया है उसे सर्व सम्मति से मानना ही सच्ची नागरिकता है | हाँ, कुछ लोगों को कोइ भी निर्णय पसंद नहीं आयेगा , चाहे मर्यादा पुरुषोतम राम ही स्वयं अवतार लेकर कहें | हाँ, एक बात अवश्य है कि मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों को अपने पुर्वजों की भूलों को सुधार करने का यह सुंदर अवसर है | हिन्दुतान हिन्दुओं का देश था और वे सदा शांति प्रेमी थे उन्होंने कभी भी किसी के राज्य को हडपने की कोशिश नही की, न ही वे किसी के धार्मिक स्थान पर मन्दिर बनाने गये | यह शहंशाह बाबर की सरासर क्रूरता और तानाशाही का ही परिणाम था | १९४७ में ये सारे प्रश्न हल हो सकते थे | लेकिन हमारे नेताओं ने उस समय कोइ ध्यान ही नहीं दिया | बस इतना ही मेरा विचार है |

  45. सॉरी लेट से कमेंट्स कर रहा हूँ. इस फैसले में कई विसंगतियां देखने को मिलीं. मंदिर किसने तोडा जैसे फैसले में जजों का एकमत न हो पाना उनके विद्वत्ता पर सवाल खड़ा करता है. ये जज तो हम जैसे साधारण लोग थे बल्कि मैं कहूँ कि इन्होने खास चश्मा पहन लिया था. यहाँ जजमेंट नहीं सबको खुश करने कि चाल नजर आती है.
    1 तीन अलग 2 पार्टियों को जमीन देने से क्या भव्य राममंदिर का निर्माण हो सकेगा?
    २ क्या फिर से मंदिर और मस्जिद का विवाद शुरू नहीं हो जायेगा?
    ३ सुन्नी वक्फ बोर्ड को किस ख़ुशी में एक तिहाई जमीन दिया गया? जबकि उसके वाद को पूरा ख़ारिज कर दिया गया.
    ४ जजों ने ज्यादातर वैकल्पिक प्रश्नों के जवाब दिया है. इसका मतलब कि वे सामान्य अध्धयन से घबराते हैं?
    इस जजमेंट को मर सुधीर अग्रवाल ने सबसे ज्यादा छुआ है. और वही floating साबित हुआ. वो लास्ट तक फैसला नहीं कर पाए कि उन्हें क्या निर्णय चाहिए.
    ५ यदि १९५० में रामलला अवैध तरीके से राखी गई थी तो उनको एक्तिहाई जमीन क्यों दिया गया?
    ६ इस तरह विवादित परिसर को तीन हिस्सों में बाँटना उचित है?
    ७ क्या यह बाबर कि आंशिक जीत नहीं है?
    ८ श्री खान ने बाबरी मस्जिद मानने से मना किया इसका मतलब है खान को मस्जिद के बारे में कुछ भी नहीं पता या फिर पहले से mindset है. उनकी जज बन्ने कि योग्यता पर शक होता है.
    ९ अदालत को किस बात का डर था क्या उनको भी चुनाव लड़ना है? क्या फैसला एकतरफा नहीं दिया जा सकता था चाहे किसी के पक्ष में क्यों न हो?
    १० क्या हिन्दू धर्म्निर्पक्ष्ता में यकीन करने लगे हैं? मेरा मतलब यदि उसको हिन्दू धर्म और धर्मनिरपेक्षता को चुनने को कहा जाये तो क्या चुनेगा?
    और साधारण shabdon में यदि use मंदिर और मस्जिद में से chunane को कहा जाये तो क्या wah मस्जिद या फिर donon vikalp चुनेगा? क्या धर्मनिरपेक्षता भी एक धर्म का darja rakhta है?
    ११ इस janganna में धर्म निरपेक्षता का भी एक kalam hona चाहिए
    12 धर्मnirpeksh vyakti kiski pooja करता hoga? shaayad bhagwan का? न baba न shaayad मस्जिद का या फिर church का . उसको khud को पता नहीं? shaayad naastik hoga? bilkul नहीं. धर्म nirpekshta कि jay हो.
    13 bharat को in musalmaanon से khatara नहीं है बल्कि इस gadhi hui धर्म ‘ धर्म nirpekshta’ से है. sabhi hinduon को in धर्म nirpeksh takaton से savdhan हो jaana चाहिए. धर्म nirpekshta पर thukta हूँ.
    14 mere hisaab से desh कि lagbhag एक तिहाई janta धर्म nirpeksh है. ये jeev किसी majhab से ज्यादा khatarnaak हो gaye हैं/ मैं pravakta के manch से chunauti deta हूँ कि dharmnirpeksh log taakat है तो हिन्दू jaisa एक धर्म खड़ा karke dikhao. kaayaron jaisa chhup कर न bhaago.
    aajkal mandiron में fashion हो गया है कि sabhi dharmon के aadarshon कि pratimayen या smriti chinh rakh diye jaate हैं. ये मंदिर in धर्म nirpeksh khoron कि है और मैं hinduon से appeal करता हूँ कि वे aise mandiron में न jaayen wahan sirf और sirf धर्म निरपेक्षता कि pooja hoti है. धर्म nirpeksh apna siddhant और aadarsh ghosit karen. apni pavitra pustak batayen. anyatha वे meri najaron में pashutulya हैं.

    • mere prashnon ka javab dijiye
      1. Babur zyada bura tha ya angrez? (babar yahan aaya yahin bas gaya aur jo bhi paisa liya yahin invenst kiya lekin angrez yahan aye, bharat ko loota, daulat engelnd bheji, bharat ko banta aur chale gaye)
      2. Kya dharmnirpekshta ka arth muslim dharm se aap lagate hain?
      3. DHarmnirpeksh vyakti apne aaradhya ki pooja karta hai lekin aur dharmon ko talvar le kar kaat nahin daalta.
      4. aapne kaun sa chashma pehena hua hai?
      5. DHarmnirpeksh vyakti ko kisi dharm ke khada karne ki zaroorat nahin hai kyunki vah aisa vyakti hota hai jo apne dharm mein reh kar baki dharmon ka aada karta hai. Hindoo dharm to 5000 saal purana hai leking yah abhi tak zinda hai kyunki yah lacheela hai, isne smay ke padav mein na jane kitne dharmon ko apne aagosh mein le liya. aur aap chahte hain ki hum apni yeh taakat kho dein. Budh ne ek alag dharm suru kiya tha lekin akhir kaar hamare nau avataron mein voh shamil ho gaye. kaise.

      • अनुपम जी मेरी टिपण्णी पर कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद. मै आपके प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश करता हूँ
        १. बाबर और अंग्रेज दोनों लुटेरे थे. दोनों के हाथ खून से सने हैं. इन दोनों में से किसी के भी अच्छे होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. बाबर अपने मूल भूमि से कट चूका था उसके भाई ने कब्ज़ा कर लिया था. बाबर के लिए वतन लौटना नामुमकिन हो गया था. तत्कालीन समय में यातायात के द्रुत साधन न होना भी उसके वतन वापस न लौटने के लिए जिम्मेदार है. और बाबर ज्यादा दिन जीवित भी तो नहीं रहा. वह भारत में सिर्फ ४ साल रहा फिर मर गया. उसने लाखों हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा. इसके अलावा बाबर भारत में इस्लाम का फैलाव और धनलोलुपता के कारन भी रह गया. वह अपनी कुटिल chaalon में saphal रहा.

  46. एक तरफ कोर्ट मानती है कि मन्दिर तोड़कर मस्जिदनुमा ढांचा बनाया गया है. और शरिया के मुताबिक़ उसे मस्जिद नहीं माना जा सकता. साथ ही वह भूमि श्रीराम से सम्बंधित है. वैसे हिन्दुओं की आबादी ८०% होने के बावजूद सेकुलरो को हिन्दू आस्था पर एतराज रहा है. चलो आस्था को एक तरफ रख देते है. क्योंकि मुल्ला मुलायम भी कह रहे हैं कि देश क़ानून के से चलता है, विशवास से नहीं (यह लफ्फाजी सिर्फ हिन्दुओ को नसीहत देने के लिए ही है). अब आस्था से परे हटाकर जब सबूतों की बात करे तो पुरातात्विक सर्वेक्षण से भी यह राममंदिर सिद्ध हुआ है. उस लिहाज से भी यहाँ हिन्दुओ का हक़ बनाता है. ऐसे १/३ हिस्सा वक्फ बोर्ड को देने का क्या तुक है…?
    पूरा फैसला भ्रमित करने वाला और सेकुलर रेवड़ी बाँट लगता है.
    कुल मिलाकर इतने सबूतों के बावजूद, इस फैसले से हिन्दुओं के हाथ ना तो कोई ढंग की सफलता हासिल हुई, ना ही मुस्लिम तुष्ट हुए (हालांकि उनका कुछ था भी नहीं). हाँ कोंग्रेस ने सारा मसला न्यायालय के सर मढ़कर अपना हुलिया बचा लिया. सर्वोच्च न्यायालय वह पिछले दरवाजे से मुस्लिमो को साथ देती रहेगी. ऐसे में मुल्ला मुलायम जैसे लोग फिर से बांग देने लगे हैं. हिन्दू जन को प्रताड़ित करने के लिए राजदीप सरदेसाई, प्रणव जेम्स राय, अमूल्य गांगुली जैसे गल्फ-पोषित बुद्दीजीवी भी अपनी दूकान चलाते रहेंगे.
    अगर सुप्रीम कोर्ट में भी फैसला हिन्दू हक़ में आया तो कोंग्रेस संसद में विशेष प्रस्ताव लाकर श्रीराम मंदिर निर्माण में रोड़े अटकाने से नहीं चुकेगी.
    हालांकि तथाकथित बुद्धीजीवी, मीडिया और सेकुलर बिरादरी ने कभी से न्याय पालिका पर भी दबाव बनाने का गोरखधंधा शुरू कर दिया है.
    राजनीति, मीडिया, मानवाधिकार, साहित्य और पुलिस के बाद हमारी न्यायव्यवस्था भी सेकुलरवाद के नाम पर मुस्लिम /ईसाई तुष्टिकरण की राह पकड़ ले तो आश्चर्य की बात नहीं है. कम से कम अयोध्या फैसले से इसी की बू आती है.
    हिन्दू अब भी जात-पात और प्रांतवाद के चक्कर में पड़कर और नेहारुनुमा सेकुलरवाद की अफीम खाकर सोये रहे तो सर छिपाने के लिए सिर्फ हिंदमहासागर ही मिलेगा. क्योंकि एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल भी कम्यूनिस्टो-मिशनरियो और जेहादियों के हाथ चला गया है.

  47. कैसी विडंबना है कि अयोध्या के ऐतिहासिक सत्य और आस्थाओं को देश में पनपी स्वार्थपूर्ण राजनीति के कारण अदालत के द्वार तक धकेला गया. अनेक वर्षों तक उसके निर्णय की प्रतीक्षा के काल खंड में सामाजिक एकता खंड खंड होती रही. अब तथ्यों के गहन अध्ययन और प्रमाणों की परीक्षा के बाद अदालत ने जो फैसला दिया है वह स्वागत योग्य है, भारत के मूलभूत सहिष्णु सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के अनुरूप है. भारत के सभी वर्गों ने जिस शांति और संतोष भाव का प्रदर्शन करते हुए इसे सराहा है वह भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को और भी परिवर्धित करता है. हम सब भारतीयों के लिए गर्व की बात है.

    न्याय हुआ है. सही हुआ है. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि शरारती तत्व फिर से इसे विवाद का विषय बनाने से बाज़ आयेंगे. घिनौनी राजनीती नहीं खेली जायेगी. यही सिद्ध हुआ है जो एक सत्य रहा है. जो बरसों तक कहा जाता रहा विवादित स्थल या कथित बाबरी मस्जिद, वह अदालत के अनुसार, मस्जिद नहीं थी और नहीं है. वह राम जन्म भमि ही है और इसलिए राम को ही समर्पित हो. सामाजिक सद्भावना उपजे और सभी मिलजुल कर जो यथेष्ठ है एक दूसरे के लिए करें.

    भारत की आत्मा का यही मधुर स्वर है और हम भारतीय होते हुए अपनी इसी भारतीयता की मन प्राण से रक्षा करें.

    नरेश भारतीय, लेखक एवं पत्रकार

  48. मैं नहीं जानता की राम अगर आज जिन्दा होते तो क्या कहते,पर जैसा त्यागी पुरुष वे थे,मेरे विचार से वे कहते की ये मेरे भक्तों,मेरे नाम पर तुम लोगों ने बहुत खून खराबा कर ली.अब तो मान जाओ,और अन्य रूप में मेरी पूजा अर्चना करने वाले मेरी जन्म भूमिके कुछ अंश पर अपने ढंग से पूजा करते हैं तो आप अगर मेरे सच्चे भक्त हैं तो आप को इसमें कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए.अतः राम भक्तों से मेरी यही इल्तजा है की सब बातें भूल कर अब आपलोग राम की पूजा में लग जाइये,उनका मंदिर बनाइये,पर एक बात और कीजिए उनके आदर्शों पर चलना तो सीखिए.दूसरे लोगों से मेरी यही दरख्वास्त है की वे इस फैसले को सद्भावना की एक ऐतिहासिक कड़ी के रूप में ले और अल्लाह के सच्चे बन्दे बन कर इंसानियत का मार्ग सब लोगों को दिखाएँ.आमीन.

    • r.singh जी आपके अनुसार तो राम को रावण से समझौता कर लेना चाहिए था एक सीता के लिए इतने लोगो की बलि की क्या जरूरत रावण को समझाना चाहिए था की चलो दोनों लोग मिल जुलकर काम चला लेते है हिंसा कोई अच्छी चीज़ थोड़े ही होती है और अगर रावण तब भी नहीं मनाता तो कहते कि चलो वैसे भी १३ सालों से उसपर आपका ही कब्ज़ा है तो उसके मालिक तो आप ही हुए हम किसी और से विवाह कर लेंगे

      • Shailendra kumarji,aapne mere vichaar par tipadi to kar di,par aap apne purbaagarah ke kaaran yah to nahi soche ki Ram ne jo kiya tha,wah galat tha,aisa to maine kabhi nahi kahaa,kyonki maryadaa purushotam ki shaan mein main aisi gushtaakhi kar hi nahi saktaa tha,par aap jaise Ram bhakton ko main yah yad dilaanaa chahta hoonki aapne mere kathan ka jo aarth nikaalaa usase aapne yah siddh kar diya ki aap aur kuchh bhale hi hon par aap Ram bhakt to kadaapi nahi.Agar koi Ishwar ko maantaa hai to wah uske swarup par nahi jaataa ,wah kewal ishwatr ko maanega.Ishwar Ram ke roop mein ho sakte hain,ve krishna bhi ho sakte hain,yahan tak ki aapke sanaatan dharmiyon ke anusaar ve Budh bhi ho sakte hain,to Allaah ko unkaa roop maan lene mein kya haani hai? Mere kathan ka kewal yahi arth tha.Rah gayee aap ke tark ki baat to vaisa to main soch bhi nahi saktaa aur jo Ram ne kiyaa uspar main tipadi bhi nahi kar saktaa,kyonki Ram ko ishwar se jyaadaa main maryaadaa purush maanta hoon ,jinki pooja ke badale unke path ka anusharan karnaa main insaaniyat ke path par kadam badhaanaa maanataa hoon aur aap jaise Ram bhkton se bhi yahi iltajaa hai ki pahle aap Ram ko samajhe tab unke naam par khun kharaabe ki or agrashar hon.

        • श्रीमान हम लोग यहाँ भगवान श्री बुद्ध के बारे नहीं बल्कि श्रीराम के बारे में बात कर रहें है बुद्ध को शांति के उपदेशो के लिए जाना गया जबकि श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने आदर्शो के लिए सत्ता त्याग दी सामाजिक दबावों में माता सीता का भी त्याग कर दिया जैसे सत्ता त्याग देने का उन्हें श्रेय मिला वैसे ही माता सीता के त्याग की आलोचना
          वैसे ही यहाँ पर मंदिर का त्याग कर देना हिन्दुओ को महान बनाने का नहीं बल्कि अपमानित करने जैसा होगा
          जहाँ तक ईश्वर के एक स्वरुप और अल्लाह को मानने की बात है तो कोई हिन्दु इसका विरोधी नहीं लेकिन बाबरी मस्जिद अल्लाह ने तो बनाई नहीं थी ये तो बाबर ने बनाई थी जो की हिन्दुओ को अपमानित करने के उद्देश्य से बनाई गयी थी अब तो केवल इस भूल को सुधारा जा रहा है
          पता नहीं मंदिर समर्थको को मुस्लिम विरोधी क्यों चित्रित किया जाता है

          • Shailendraji, aap jaise pakhandi bhakt mandir to kya banaayenge,aaplog to ram ka naam lekar Ram ko hi badanaam kaarne par tule huye hain.Aap bataa sakte hain ki Ram kaun the? Ve ishwar ke baarah (12) autaaron me se ek the.Ram ko hamaare granthon mein ek maryaadaa purush ke roop mein chitrit kiyaa gayaa hai aur unhone vaisaa hi bayohaar apne janm kaal mein kiyaa.Rawan ka jo charitra hamaare granthon mein darshaayaa gayaa hai uske anusaar vah ek dushcharitra aur attatayee vyakti tha aur usko aur ussee jaise anya attaataaion ka sanhaar karne ke liye hi ishwar ne Ram ke roop mein awataar liyaa thaa.Yah awataar vaisaa hi thaa,jaisaa Varaah(Hog),Matsya(Fish)etc. thaa.Islaam ke anusaar Allah hi sarvasakti maan hai uske alaavaa aur kuchh bhi nahi.Ham bhi agar gahrai se soche to hindu dharma bhi antatah yahi maanataa hai.Isiliye maine likhaa thaa ki Ram ko jo khud Ishwar ke ek awataar the,Ishwar ke doosari bhaashaa mein archanaa karane par kadaapi inkaar nahi ho sakta.Yah to hamaari sankuchut dhaaranaahai jiske chalate hamane apni subhidhaanusaar Ishwar ke vibhin roop gadh liye hai.Aap ko ab to samajh aa jaani chaahiye ki jis Ram ne Sita ko chhudaane ke liye poore Raawan vansh ka sanhaar kar daalaa,unhone hi apne rajya ek naagrik ki shikaayat par Sita ko aise tyag diya,saise sita se unkaa koi sambandh hi nahi thaa.Aap ko main yahi salaah dungaa ki dharm aur majhab ke baare mein tark karne ke pahle yah to samajh lijiye ki dharm aur majhab vastav mein hai kya?ul jalul mat bak diya kijiye.Agar sachch poochhiye to Ram ko main Ishwar se jyadaa ek aadarsh insaan maantaa hoon aur mere vichaar se yahi sandesh RamCharitra Manas bhi detaa hai,atah,aap jaise mahaanubhaav se mera yahi anurodh hai ki agar Ram ko mandiron se baahar laakar unke banaaye huye aadarshon par chale to samaaj aur raashtra ka adhik kalyaan hotaa.

          • इधर उधर की बातें न करके उन बातों का जवाब दे जिनका जिक्र मैंने यहाँ किया है और मंदिर के बारे में आपके क्या विचार है इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं है बात यहाँ मंदिर-मस्जिद के आवश्यकता की नहीं हो रहीं पूजा पाठ और नमाज करने के लिए देश में असंख्य मंदिर-मस्जिद मौजूद है बात अपमान की है
            जैसे थोड़े से तीखे कमेन्ट से आपका स्वाभिमान और धर्म ज्ञान जाग गया है उसी तरह यह एक भावनात्मक मुद्दा है इसका मंदिर से उतना लेना देना नहीं जितना स्वाभिमान से है
            कृपया इसे समझे
            हालाँकि मैं ये जानता हूँ कि आप मेरे ही पाले में है ऊपर किये गए कमेन्ट आपको केवल चिड़ाने के मकसद से ही किये गए थे

          • raam ne ravan ko maara kyun ki voh galat tha. lekin raam ne ravan ki lanka ke sabhi nivasiyon ko to galat man kar nasht nahin kiya? unhon ne lanka mein bhi sushashan sthapiyt kiya. usi tarah hamein bhi agar saza deni hi thi to babar ko dete. ab 400 saal bad swabhiman ki ladayee lad kar musalmano ko galiyan dena to murkhta hi hai. ye vahi baat huye ki ek aadmi kisi ko maar raha tha pucha to bola isne mujhe gaali di thi pichle saal gadha kaha tha. poocha gaya ki bhai gaali pichle saal di thi ab kyun maar rahe ho to bola abhi gadha dekha hai. apne swabhimaan ki raksha karni hai to desh ki unnati mein lagiye ki koi china phir se aake 64 ki tarah thok de. pakistan se teen yudh jeetana aapko vishwavijayee nahin bana dete. china abhi hamla karde to sara swabhimaan mitti mein mil jayega. aur chupne balon mein sabse pehele honge aap jaise loog jo ghar mein to seena taan kar ek doosare se ladte hain aur jab baat aati hai asli ladayee ki to dum daba lete hein

          • सही कहा अनुपम भाई, हमे आजादी भी लार्ड क्लाइव से ही लेनी थी, हमने तो उसके वंशजों से निवाला छीन कर जघन्य अपराध कर दिया।

          • सटीक जवाब अब अनुपम जी को बताना चाहिए कि देश कि आजादी से वो खुश है या दुखी क्योंकि जिसने गुलाम बनाया वो तो पहले ही चला गया आजादी और स्वाभिमान के लिए उसके औलादों से लड़ाई क्यों लड़ी गयी

          • वह भाई कट्टरपंथियों के भी दिमाग होता है. कितनी जल्दी आपने प्रश्न धर दिया सामने अब बताओ. अरे हट बुद्धियो यही तो कह रहा हूँ की स्वाभिमान की लड़ायी लड़नी ही थी तो उसी समय लड़ते. तब तो आसानी से हिन्दू ध्वजा के रक्षक और पता नहीं क्या क्या कहे जाने वाले राजपूत, ब्रह्मण सब उस शक्ति के सामने नतमस्तक हो गए. १७०७ तक औरंगजेब तक तो मुग़लों का हो राज था स्वाभिमान तब क्यूँ नहीं जागा. क्यूँ की बावजूद इसके की गुलामी में पड़े थे हम लड़ने में लगे रहे. खुद शिवा जी भी इसी आपसी लडाई के कारन असफल हुए और ये शिव जी के ही वंशज थे सिंधिया जिन्होंने desh को angrejon के hathon bech दिया. आज़ादी की लड़ाए हमने angrezon से उसी समय लड़ी 400 varshon baan नहीं isii liye मुझे उस लडाई par garv हैं. apke nathuram godse ने तो उसी आज़ादी की लडाई के farishte को maar dala. और हिन्दू स्वाभिमान की रक्षक hindu maha sabha ने तो भारत chodo andolan का bahishkaar तक kiya था. angrezon का साथ दिया था. Beshak yeh प्रश्न आपको खुद से poochana chahiye की आज़ादी से आप khush हैं ya नहीं. आप स्वाभिमान की लड़ाए उस समय लड़ रहे हैं jab desh को shanti, vikas और sadbhavna की zaroorat है. desh में gareebi से लड़िये, ashiksha, swasthya, chua chhoot, bimari jaise babaron से लड़ने की avashyakta है एक itihaas के gart में sam chuke raja के khilaf लड़ने की नहीं.

          • अनुपम जी आपके कमेन्ट पर जवाब की जगह नहीं है तो अपने कमेन्ट पर ही जवाब दे रहा हूँ जैसे अपने कहा कि आजादी कि लड़ाई लगातार चलती रहीं वैसे ही राममंदिर के लिए कि गयी लड़ाई कोई नयी नहीं है जो आपके अनुसार १९४९ से शुरु हुई जो कि कानूनी है हिन्दू कभी हारे नहीं ये अलग बात है कि विभीषण हर युग में पैदा हुए
            और जहाँ तक हिंसा कि बात है तो कोई भी धर्म ग्रन्थ बता दीजिये जिसमे हिंसा किसी न किसी रूप में न हो उद्देश्य को समझिये
            और गाँधी तो कितने महान थे ये सभी जानते है इसके लिए एक पुस्तक “रंगीला गाँधी” पढ़िए जो किसी संघी ने तो नहीं लिखी है लिंक मैं आपको दे दे रहा हूँ
            https://www.scribd.com/doc/24393812/Rangila-Gandhi
            जहाँ तक देश के विकास कि बात है आप जैसे कांग्रेसियों के बस कि बात नहीं विकास का मॉडल देखना चाहते हो तो गुजरात जाये अरे मिर्ची लग गयी कोई बात नहीं मैं जवाब का इन्तेजार करूंगा
            धन्यवाद

          • अरे मैं तो भूल ही गया था कि दिमाग रखने का ठेका अनुपम जी ने ले रखा है (यह बात दूसरी है कि उस दिमाग को इस्तेमाल का तरीका उन्हे नही मालूम) अगर अंग्रेजों से लगातार लडाई चली है तो महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, महाराजा कृष्णदेव राय वगैरह क्या कर रहे थे इस बारे मे कभी सोचा है

            आपस की लडाई क्या अंग्रेजों के जमाने मे नही थी? चन्द्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अश्फाक उल्ला इत्यादि कैसे पकडे गये? अगर आपस मे लडाई के कारण मुगलों का राज जायज़ है तो अंग्रेजों पर अपना पक्ष रखें।

          • यही तो समस्या है आप संघियों की. एक चश्मा है जो बुरी तरह काला है. मुझे गर्व है आज़ादी की लडाई पर. मुझे गाँधी जी पर गर्व है. यदि वे ना होते तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वोह ना होती जो वह बन गयी थी. गाँधी के पहले कांग्रेस छुट्टियों का मनोरंजन थी, संभ्रांत मध्य वर्ग की एक ऐसी पार्टी जो साल में एक बार अपनी राजनीती चमकाने के लिए बैठती थी. कार्यक्रम भी वही था. जनता की कोई बात नहीं थी. गाँधी ने इसे जनता की पार्टी बनाया (में वर्तमान कांग्रेस को असली कांग्रेस नहीं मानता यह तो नकली हड़पी हुयी कांग्रेस है – एक परिवार की जागीर बस) जिस लडाई पर आपको गर्व होना चाहिए, जिस नेता के प्रति सम्मान होना चाहिए उसे गलियां देना संघियों की पुराणी आदत है. बेशक राणा प्रताप ने लडाई लड़ी पर हार तो गए? क्यूँ. राजपूतों का सहयोग नहीं मिला.आखिर यह बताना मुग़ल राज्य को सही सिध्ध करना कैसे हो गया राजनाथ जी? यह तो इतिहास का सबक है जिसे हम सीखने से इंकार करते हैं. शिव जी, सिख गुरु, अस्फकुल्लाह खान, बिस्मिल वगेरेह की यही तो कहानी रही. गाँधी ने इसी सबक को धारण किया और भारतीय समाज की उन दरारों की भरने का प्रयास किया जो हमें कमज़ोर करती हैं.चाहे वे हरिजन हों, सफाई का मामला हो( कॉमन वेल्थ में इस गन्दगी की आदत का नतीजा देख ही चुके हैं.), स्वस्थ होया राजनीती. कांग्रेस का १९०७ में विभाजन हो गया था. बाल गंगा धर तिलक को जेल हो गयी और आन्दोलन थम गया. यह किस्सा बार बार दोहराया जाता रहा लेकिन गाँधी जी के आने के बाद विभाजन कभी नहीं हुआ चाहे वह स्वराज पार्टी वाला मसला हो या फॉरवर्ड ब्लाक का.) यहाँ तक की आंबेडकर भी अंततः गाँधी से सुलह करने के लिए तैयार हो गए थे. जिस नेता ने samrajyavadi taakat को भारतीय जनता की ekjut takat के zariye pareshan kar diya (dandi march को yaad karein – abhootpoorva है aise yatra – andvani जी की yaatra से भी mahan है यह) usi नेता की hatya और us पर kichad uchalne का kaam करने vale deshpremi तो katai नहीं हो sakte. में aise logon को deshdrohi kehta hoon. aapne जो link diya है uski bakhiya तो phirkabhi udhedonga पर abhi aapse एक vinti karta hoon की bahrat को ab ekta की zaroorat है. kripaya bharat को uske haal पर chod dijiye. bharat के log itne paripakwa हैं जो आप jaise rashtravadiyon के bina भी apna kaam chala lenge. Aur ant में एक बात. में congressi नहीं hoon. kya आपको lagta है की कोई congressi sivaya rahul, soniya और indira के kisi और की बात kar sakta है. यह chamchon की पार्टी है. में तो बस एक adna sa deshvasi hoon जो ayudhya masle पर इस charcha में आप logon से takra गया hoon. न ही में communist hoon halanki itihas की arthik vyakhya मुझे सही lagti है. में एक भारतीय hoon और मुझे usi तरह lijiye. Rangeela गाँधी की chindiyan में kisi din fursat udaonga. dhanyavadd

          • meine mughalon ke dauran aapsi phoot ka zzikra kiya tha na ki mughalon ke shashan ko jayaz siddh kiya tha. Shasan nvahi jayaz hota hai jo praja ke bhale ke liye soche. aur is kasuti par angrezon ka shashan mughalon se kahin adhik najayaz tha. jis swabhiman ki aaplog bast karte hain voh to sabse zyada angrezon ke kaal mein hi dabaya gaya. 1857 ke bhishan daman ko kyun bhoolte hain. bharat ki janta jab bhookhon mar rahin thi tab Harding king ke liye darbaar ka aayojan kar raha tha aur paisa paani ki tarha bahaya ja raha tha. is aayojan mein sabhi swabhimani raje rajvade shamil the. inhin angrezon ke rajya mein bhartiyon ko angrezon ke saamne chalne ki chot nahin thi. masoori, nainitaal ki sadken us vidroop ki aaj bhi yaad dilati hain. mughalon aur turkon ne bhi shashan kiya aur adhikansh bura hi tha par kaun se mughal rular neyahan ka paisa bahar bhrja. 1707 mein bharat ka vishwa vyapar mein hissa 19% tha. angrez ise 1947 mein .9% par chod gaye the aur aaj 60 salon ke swashashan mein hum ise matra 1.8% kar paaye hain. bataiye donon buron mein kaun adhik bura tha? kisne swabhiman ko thes pahunchaye. Ladayiyan to hamare hindoo rulars bhi lada karte the par ve us samay kuyein ke meindak bane rahe. itihaas ka yahi sabak hai shailendra aur ravindra ji ki kuyein ki paridhi se bahar jhankiye aur bhi rangeeniyan hain duniyan mein bantware ke siwa.bhavishya bharat ka hai. aap aur hum apni oorja hindoo samaj ki burayiyon ko door karne mein lagayenge to sabka bhala hoga. Mera ek sujhao hai aadvani ji ke kiye. Ab ve bharat swabhiman yatra shuru karein aur usmein mudde hon – Hindoo samaj ke babaron ka dwans – balika bhron hatya, chua choot, gandagi, gareebi, dahej, andhvishwas, bhrashtachaar, ashiksha, swasthya aadi. Is yaatra ko bahut sachchaye ke saath chalaya jaye mein garantee deta hoon yah yaatra unhein PM bana degi. Haio himmat gandhi ki tarah ye karne ki (aap kaheinge ki gandhi natak karte the – chaliye natak hi sahi advani ji yah naatak hi kar ke dikha dein.) dhyan rahiye gandhi ka kad itna ooncha hai ki aap us par thookeinge to thook aap par hi girega. apne us rangeele lekhak ko bhi yeh baat bata dijiyega.

          • “Aho roopam !! Aho Gaan” Bachpan ki ek kahani yaad aagaye ravindra aur shailendra ki jugalbandi dekh kar. aapko shayd sandarbh yaad aajaye

          • Jain aur baudh bharm ko kyun bhoolte hai. jain dharm ki pustakon mein ahinsa ka hi paath hai. swayam Raam bhi ahinsa ka paath padate hai jab raavan se sulah ki unki koshish par unke sahyogi aapatti uthate hain to ve kehte hain ki ahinsa aur kshama veeron ka abhushan hain kayaron ka nahin. gandhi ji ne bhi kaha tha ahinsa ka paaln naitik roop se balvan vyakti hi kar sakta hai. Bible mein bhi ahinsa ko galat bataya hai (matti susamachar) ye to bas aap jaise log hi hain jo hinsa ko uchit batate hain. yaad rakhiye uddeshya yadi pavitra hai par marg nahi to uddeshya bhi apavitra ho jata hai. jabki marg yadi pavitra hai to uddeshya apavitra ho ho nahin sakta( gandhi ka kathan) hitlar iska ulta kehta tha – end justifies the means. vah galat sidh hua lekjin aap usi fail fasivadi darshan ko yahan pada rahe hain dharm granth ki aad mein.

          • jis prakar R singh apne chadm gair sampradyik roop meoin shuro huye the aur Shailendra joi ne unki kamor nabz(Ram ) par ashlil prahar kar unke soye swabhimaan ko jaga diya. aapne swabhimaan jagane ke liye singh sahab ko Ram par bhaddi tippani ki. Babar ko kyun koste ho. usne bhi to theek yahi kya tha. Ram mandir toda aur swabhimaan jagaya.

          • aurangzeb ne bahut kattrapanthi shashan kiya. hindoo trahi trahi kar uthe lekin ashcharya ki uske kaal mein hi hindoo jageerdaaron ki sankhya sabse jyada thi. vaampanthi kehte hain ki aurangzeb achchashashak tha par mera apna interpritation hai – aisa isliye tha ki jab auragzeb zageerein baant raha tha hindoo raje rajwade swabhimaan bhulla kar katora liye khade the. jageerein lene ke liye aur badle mein sahyata dene ke liye. yahi haal angrezon ke zamane mein tha. aur ab yahi haal aaj hai. hindoo samaj kabhi ek nahin tha. firm ditermination ki hamesha kami rahi.

          • धन्यवाद संघियों के चश्मे का रंग बताने के लिए, पर उससे भी कुछ कुछ दिखता है, दुर्भाग्य से तुमने जो चश्मा पहना है वो टीन का है और उसमे से कछ भी नही दिखता है, बस अपने मन मे जो चित्र बना लो वही समझ आता है।

            तुमने कहा कि गांधी के पहले कांग्रेस ने कोई कार्य नही किया, यह सिद्ध करता है कि तुम आजादी की लडाई के बारे मे भी कुछ नही जानते हो अन्यथा तिलक, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, विपिन चन्द्र पाल इत्यादि का नाम भी जानते होते, अतः इस विषय मे तुम्हे कुछ बताना पूर्णतः व्यर्थ है।

            अनुपम, निश्चित तौर पर गांधी की हत्या करने वाले कभी भी देश प्रेमी नही हो सकते और संघ भी यही कहता है, वस्तुतः संघ कि निर्लिप्तता तो अदालत मे भी सिद्ध हो चुकी है अगर किसी ने विचार नही किया है तो इस बिन्दु पर कि पुराना कांग्रेसी नाथूराम ने कहीं नेहरु के इशारे पर तो गांधी की हत्या नही की क्योंकि गांधी कांग्रेस भंग कर देना चाहते थे, कांग्रेस भंग करने पर नेहरु की दुकान भी बंद हो जाती।

            रंगीला गांधी निश्चित तौर पर निंदनीय है, जहाँ भी आप इसकी चिंदियां उधेडे, मुज्हे भी लिंक दे, साथ खडा पाएगें, मैं सिर्फ सत्य के साथ हूं, फालतु के शर्मनिरपेक्षता के साथ नही, देश का उसी ने बेडा गर्क किया है।

            अनुपम, तुम्हे अंग्रेजो के विषय मे ज्यादा इस लिए ज्ञात है क्योंकि वो तात्कालिक आघात है, अन्यथा मुगलों ने भी कम अत्याचार नही किए, रानी पद्मावती तक के सतीत्व हरण का प्रयत्न हुआ। और वैसे भी अगर एक गुण्डा दूसरे से कम खराब है तो वो वर्णेय नही हो जाता।

            अहिंसा और क्षमा का पाठ हम सबने पढा है, अगर अनुपम तुम्हारे लिए संभव हो तो मुस्लिमों को पढाओ, भाजपा ने सदैव ही सर्वमान्य हल की बात कही है, अपने शासन काल मे भी, पर वोटों के चलते शेष लोगो ने उसे सफल नही होने दिया। अब फासीवादी वो लोग हैं जो अदालत के फैसले के सम्मान की बात कर रहे हैं या वो लोग जो एक समुदाय को भडकाने की कोशिस कर रहे हैं, अगर यह भी समझाना पडे तो व्यर्थ है।

          • तिलक, गोखले, फ़िरोज़ शाह मेहता, नौरोजी, व्योमेश चन्द्र बनर्जी, बिपिन चन्द्र पाल, सभी के बारे में पढ़ा है. कांग्रेस का गठन १८८५ में हुआ था और उसके प्रथम ७५ नेताओं में तिलक जी नहीं थे. उनहोंने कांग्रेस १८९० में ज्वाइनउस घटना के ठीक १ वर्ष बाद जब की चेट्टिया के तमिल प्रश्नोत्तर नमक पर्चे से अँगरेज़ खफा हो गए थे और कांग्रेस को समाप्त करना चाहते थे. इन ७५ नेताओं को हम उदारवादी कहते है और ये नेता साल में एक बार मिलते थे और महज काफी टेबुल वार्ताएं करते थे. इनकी मांगें भी टैक्स, एक्स्चंज रेट, सिविल सर्विसेस में प्रवेश की आयु जैसी हुआ करती थी, जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं था. फ़िरोज़ शाह मेहता जैसे लोग पूरा रेल का डिब्बा बुक करा के आते थे और कांग्रेस के आयोजकों को उनका शामियाना शानदार लगाना होता था वहीँ तिलक जी जनता के आदमी थेतिलक ने ही कांग्रेस को छुट्टियों का मनोरंजन कहा था और गोखले की निंदा भी की थी. असल में गाँधी से पहले एक तिलक ही थे जो यह समझ पाए थे की भारत की जनता को क्या चाहिए. उन्होंने ही सबसे पहले स्वराज, कांग्रेस वर्किंग कमेटी, और समाज कार्य की अवधारणा प्रस्तुत की थी. एनी बेसेंट से पूर्व ही उन्होंने होम रुल लीग स्थापित की.गाँधी से पहले वाही जनता के नेता थे. लेकिन भारत जैसे बहुलतावादी समाज में वे इसलिए असफल रहे (१९२० में मृतु) की वे क्षेत्रीय राजनीति की और अधिक झुके. महाराष्ट्र में वे बड़े नेता थे पर राष्ट्रीय स्तर पर नहीं. गाँधी से पहले आज़ादी की दिशा में जो भी ठोस पहल हुए वह गोखले या बिपिन चन्द्र पाल केद्वारा नहीं तिलक के द्वारा हुए जिन्हें अंततः १९०७ में लात मार कर बहार कर दिया गया और अंग्रेजों ने उन्हें जेल में दाल दिया. Aurobindo ghosh जो भारत के kranti kari थे जेल hone पर वह rasta chod दिया और pondincheri में (which was under the french rule ) sharan li. १९०७ से 1915 tak असल में कांग्रेस mrit rahi ise nav jeevan dene का shreya भी तिलक और एनी बेसेंट को है jinhine firozshah मेहता की mrityu के बाद तिलक को phir प्रवेश dilaya. पर isi samay ghandhi के andolanonon की saphalta ने तिलक और anya logon को वह vokalp दे दिया jiski उन्हें talash थी. ahinsa का rasta गाँधी नेrajnaitik roop से bahut soch samajh कर chuna था. iska zikra उन्होंने dakshin afrika के dinon के bare में likhte हुए kiya है. is raste से desh का vishal madhyam varg और aam जनता andolan से jud गयी. और isne अंग्रेजों का जो bhaya dilon में baitha था वह nikal दिया. आज़ादी to hamein dandi march के varshon में ही mil गयी थी kyunki जनता ने darna band kardiya था और nirbheek जनता को कोई satta ghulam नहीं bana sakti. To singh sahab mujhe poori tarah pata है कि kagres क्या थी और ise poojniya kisne banaya. rahi baat madhya kaal कि to atyachar beshak kiye गए और वह gulami भी कोई achchi नहीं थी (में vampanthi lekhakon कि isi point bar khinchayee karat hoon कि वे zabardasti ये siddh करना चाहते hain कि madhya kaal swarn youg था – mere vivhar में to swarn youg ateet में नहीं vartman में होता है.) लेकिन 1000 वर्ष purane murdon को ukhad कर vaimanasya badha कर कोई fayda नहीं है. और agar yahi करना है to सबसे पहले उस sansad bhavan को tod daliye jise centra assembly कहा jaata था और जो सबसे abhootpoorva gulami कि prateek है, India gate, gateway of india, और untamam smarakon को nasht कर dijiye जिन्हें babar से भी बड़े gundon ने banvaya था bhartiyata के har sishan को mitane के liye. Jala dijiye वे kitabein जो upniveshi itihaskaaron ने likhin thin और jinmein hamein

        • ar singh ji mai aap aur shalendra ki tippani padhi. aap ne raam ki tulna allah se ki. aisi dhrishtta kyon? islaam murti pooja ka ghor virodhi hai phir bhi aap ko masjid me raam ki pooja hoti najar aati hai? r singh ji aap agyani hain. aur aap kayar bhi hain. aap jaise log sirf aur sirf pakhand karna jante hain ya phir aankh band kar lete hain. aapne besharmi se masjid ki vakalat kar di.

  49. मैं यह तो नहीं जानता की आज राम ज़िंदा होते तो क्या कहते,पर मुझे लगता है की जैसे त्याग पुरुष वे थे,आज यही कहते की मेरे भक्तों अब तो मान जाओ और मेरे आदर्शों पर चलना सीखो.इस तरह आपस में झगड़ने से क्या लाभ?माना यह मेरी जन्म भूमि है,पर अगर इस भूमि के कुछ हिस्से पर इश्वर के दूसरे रूप में आष्टा रखने वाले अपने ढंग से मेरी पूजा और अर्चना करना चाहते हैं तो हमारे भक्तों को इसमें ऐतराज क्यों?इसलिए रामभक्तों से मेरी यही इल्तजा है की कमसे कम वे लोग तो इस फैसले को सादर स्वीकार कर लें.दूसरे पक्ष से भी मेरी यही दरख्वास्त है की वे अगर अल्लाह के सच्चे बन्दे है हैं तो इंसानों के हित में इस फैसले की अहमियत को समझे और इसको आपसी सद्भाव की एक कड़ी के रूप में स्वीकार करें.

  50. अदालत ने तो फैसला दे दिया है, अब बारी है हमारे मुस्लिम भाइयो की , यदि वे सामने आकर मंदिर निर्माण में सहयोग करें तो सहअस्तित्व के नये युग का सूत्रपात हो सकता है और मुलायम जैसे ओछे नेताओ को करारा जबाब मिल सकता है . vivek ranjan shrivastava

  51. अदालत ने तो फैसला दे दिया अब बरी है उदार मुस्लिम संगठनो की वे स्वयं मंदिर बनाने के लिए पहल करे तो सद्भावना के नए युग का सूत्रपात हो सकता है

  52. ye jo aitehasik faisla suprime court ne diya wah kabile tarf hai. lekin iske badjud utter Pradesh do bade neta apni rajini ki roti sekane ke liye musalmano ko uksa rahe hai. in rajniti ke dalalo ko saru nadi me duba dena chahiye. jis se desh men aman wa santi ka vatavaran bana rahe.

  53. अरुण जी द्वारा प्रमाणों व तथ्यों के आधार पर की गयी सटीक टिप्पणी सबसे सशक्त पोस्ट है. उनकी हर बात में दम है. उनके समर्थन में केवल इतना कहना है कि——–
    – न्यायालय ने देश में शांती बनाए रखने के सद्भाव से यह निर्णय लिया है. अन्यथा जब साबित हो गया कि बाबर के आने से बहुत पहले से वहाँ पर राम लला का मंदिर था तो फिर उसके तीन भाग करने का तो कोई अर्थ नहीं रह जाता. वह सारा राम के नाम पर ही होना नहीं चाहिए था क्या? यानी न्यायालय ने सच के आधार पर फैसला लेने के स्थान पर देश में अमन – चैन बनाए रखने की मजबूरी और दबाव में फैसला लिया है. इसके इलावा अदालत के पास शायद और कोई चारा भी नहीं था.
    – इस फैसले का एक स्पष्ट सन्देश यह है कि अगर आप के जनबल और एकता की ताकत नहीं है तो आपको न्याय नहीं मिल सकता. अपने इष्ट के मंदिर की रक्षा आप केवल अपनी वोटों की और सत्ता के ताकत से कर सकते हैं. इस रूप में संगठित न होने की कीमत राम भक्तों को चुकानी पडी है.
    – फैसले का दूसरा सन्देश यह है कि किसी के धर्म स्थल पर कब्जा करने की ताकत हो तो बाद में उस में आप को हिस्सा कानूनी रूप से मिल सकेगा. यह न्याय है क्या? यह सन्देश सही है क्या ? इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे ? दुर्जनों को धांधली करने का सन्देश नहीं जा रहा क्या इस से ? सज्जनों को सज्जनता त्यागने का सन्देश नहीं छुपा है इस फैसले में ?
    * अंत में इतना और कहना होगा कि देश के दुर्बल शासनतंत्र के चलते न्यायधीशों के पास इसके इलावा फिलहाल कोई चारा और शायद नहीं था. वे किसके दम पर यह फैसला देते कि सारी भूमी राम मंदिर को दी जाने चाहिए? अतः गलत सन्देश देने वाला यह फैसला ही आज के सन्दर्भ में सही लगता है जिसके दूरगामी परिणाम बाद में सामने आयेंगे. जैसे कि शाहबानो केस के परिणाम आज के बिगड़े हालात हैं.

    • राजेश जी आप तो संस्कृत के ज्ञानी हैं अगर मैने श्लोक गलत लिखा हो तो सही कर दीजीएगाः-

      अश्व नैवं, गज नैवं, व्याघ्र नैव च नैव च।

      अजा पुत्रं बलि दद्यातं, देवो दुर्बल घातकम।

      अतः अगर हिन्दु समाज अपने मान बिन्दु पर समझौता के लिए मज़्बूर है तो उसके लिए वही जिम्मेदार है, और उसका फल वही भुगतेगा। आज से कुछ वर्ष उपरांत जब बगल बगल स्थित दोनो धर्मस्थल परेशानी पैदा करेंगे, तब शायद इन्हे समझ आए।

  54. पूरी तरह से टूटा-फ़ूटा, सेकुलर और कूटनैतिक फ़ैसला है यह, बल्कि फ़ैसला ही नहीं है, यह तो समझौता है… ताकि अमन-चैन कायम रखने की एक और नाकाम कोशिश की जा सके…

    मेरे एक सवाल का जवाब अभी तक किसी ने नहीं दिया है कि – 1528 से पहले उस जगह पर क्या था? कोर्ट ने माना कि कोई मन्दिर तो था… तो क्या बाबर को हमने आमंत्रण दिया था कि आप आईये और मस्जिद बनाईये और हमें उपकृत कीजिये?
    यह तो था असली सवाल…

    अब एक काल्पनिक सवाल भी – यदि कसाब ने ताज होटल पर 300 साल कब्जा कायम रखा और वहाँ लगातार नमाज़ पढ़ता रहा तो क्या ताज होटल का एक तिहाई हिस्सा मस्जिद के रुप में मान लिया जायेगा?

    कोई इन दोनों सवालों का सीधा जवाब दे… बाकी सेकुलर तो लफ़्फ़ाजियाँ हाँकते ही रहेगे…

    • aapke pratham prashna ka uttar : ji han hamne use bulaaya tha. vah ek tez dimag yoddha tha. usne dekh liya tha ki hum bhartiya aapa main bante huye hain. hindu samaj ne apne hi ang ko achoot bana rakha hai. rajpoot raja aapa main ladte hi rehte hain. bauddha, jain, mulim, nichli jatiyan, btahman, kshatriya sab aapas main ladte hain. ham ek nahin the isliye voh yahan ghus aaya aur suresh ji abhi bhi agar hum ek nahin rahenge to phir koi babar hamein kabza lega.

      Aapke doosare prashna ka uttar: taj hotal agar 300 saal tak namaz pardne ke baad bhi masjid maan liya jayega theek usi tarah jaise bharat ke har gali chaurahe par kuch log char pattha jod kar pooja shuru kardette hain aur jab hatane ko kaha jata hai to kehte hain ki madir hai, aasthaon se juda hai. aur majid to 400 saalon se thi tab bhi agar masjid nahin maante to ram lala ki murtiyan to vahan sirf 60 saalon se hain kyun nahin unhein isi daleel par hata liya jaye? ab javab aap dijiye

    • तो आप क्या चाहते है की देश में अमन चैन लाने की कोशिश न की जाये.? कोशिश नाकाम हो या सकाम हो,कोशिश तो की ही जाएगी न. आप जैसे लोग ही उन दंगो को भड़काने की जुगत में लगे रहते है जो हमने पिछले कई वर्षों में देखे है.विहिप,निर्मोही अखाडा या स्पष्ट रूप में कहे तो हिन्दुओं के पक्ष में फैसला अधिक है,काफी है जनाब.
      लोकतान्त्रिक देश में रहते है आप इस बात को मत भूले..आप ही के देश में गाँधी जी जैसे लोगों का जन्म भी हुआ था.
      कठोर वचनों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

  55. YAH AETIHAASIK NIRNAY KARNE KE LIYE JUSTICE S. AGRAWAAL , JUSTICE
    S.U.KHAN AUR JUSTICE DHARMVEER SHARMA PRASHANSHA KE YOGYA
    HAIN . ITIHAAS KE PANNON PAR IN TEENON KE NAAM SWARNIM AKSHRON
    MEIN LIKHE JAANE CHAAHIYE .ISKE ATIRIKT INHEN DESH KEE SABSE BADEE UPAADHI SE ALANKRIT KIYAA JAANAA CHAAHIYE .

  56. बाकी सारी बाते बहुत अच्छी है , पर मुझे यही लगता है “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” या “गरीब की जोरू सब की भाभी” शायद सुनने मे बुरा जरूर लगे पर भारत मे हिंदुओ की यही हालत है या इस से कमतर . आज सब न्यायालय की दुहाई दे रहे है पर शाहबानो केस मे भी न्यायालय ने फ़ैसला किया था पर किसने रखा उसका मान ? १९७५ मे श्रीमती इंदिरा गांधी ने मान रखा था कोर्ट के फ़ैस्ले का ? 1983 में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने आदेश दिया कि वाराणसी में शिया-कब्रगाह में सुन्नियों की दो कब्रें हटा दी जायें। क्या हुआ उस मान का न्यायालय के सम्मान का ? 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल विवाद पर अपना फैसला सुनाया-
    “न्यायाधिकरण के आदेश मानने जरूरी हैं” कह सभी रहे है पर किसने माना ? अफ़ज़ल गुरु को सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ाँसी की सजा कब की सुना दी है, उसके बाद दिल्ली की सरकार (ज़ाहिर है कांग्रेसी) चार साल तक अफ़ज़ल गुरु की फ़ाइल दबाये बैठी रही, अब प्रतिभा पाटिल दबाये बैठी हैं अब कौन कर रहा है न्यायालय के आदेश का सम्मान ? लाखों टन अनाज सरकारी गोदामों में सड़ रहा है, शरद पवार बयानों से महंगाई बढ़ाये जा रहे हैं, कृषि की बजाय क्रिकेट पर अधिक ध्यान है। सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि अनाज गरीबों में बाँट दो, लेकिन IMF और विश्व बैंक के “प्रवक्ता” मनमोहन सिंह ने कहा कि “…नहीं बाँट सकते, शायद यही सम्मान है मनमोहन सरकार की नजर मे न्यायालय का ? जयपुर के ऐतिहासिक बाजारों में अवैध निर्माण को हटाने के न्यायालय के आदेशों से लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा एक “अवैध मस्जिद” को नष्ट करने के आदेशों तक की लम्बी श्रृंखला है, जिनकी अनुपालना “शांति भंग होने की आशंका”(?) से नहीं की गई, इसके उलट बंगाल की अवैध मस्जिद को तो नियमित ही कर दिया गया। यही है ना न्याय और न्यायालय का सम्मान ?जब सरकार आतंकवादियों की चुनौती का सामना करने में कमजोर साबित होती है तो दूसरे भी यह नतीजा निकालते हैं, कि सरकार को झुकाया जा सकता है- झुकाया जाना चाहिये, कि न्याय और कानून भी ताकतवर के कहे अनुसार चलते हैं, परन्तु राम मन्दिर के मामले में हिन्दुओं को लगातार नसीहतें, भाषण, सबक, सहिष्णुता के पाठ, नैतिकता की गोलियाँ, गंगा-जमनी संस्कृति के वास्ते-हवाले सभी कुछ दिया जा रहा है। कारण साफ़ है कि यह उस समुदाय से जुड़ा हुआ मामला है जो कभी वोट बैंक नहीं रहा, हजारों जातियों में टुकड़े-टुकड़े बँटा हुआ है, जिसका न तो कोई सांस्कृतिक स्वाभिमान है, और न ही जिसे इस्लामिक वहाबी जेहाद के खतरे तथा चर्च और क्रॉस की “मीठी गोलीनुमा” छुरी का अंदाज़ा है कांग्रेस का छद्म सेकुलरिज़्म, वामपंथ का मुस्लिम प्रेम और हिन्दू विरोध, हुसैन और तसलीमा टाइप का सेकुलरिज़्म और कछुआ न्यायालय ये चारों ही हिन्दू कट्टरपंथ को जन्म देने वाले मुख्य कारक हैं…

    रही पिछले दस दिनो से भौ भौ करते मिडिया की बात, तो उसे विज्ञापन की हड्डी डालकर, ज़मीन के टुकड़े देकर, आसानी से खरीदा जा सकता है, खरीदा जा चुका है…। जहाँ मुस्लिम और सिख साम्प्रदायिकता ने लगातार सरकार से मनमानी करवाई है, हमारे समाचार-पत्रों और चैनलों ने दोहरे-मापदण्ड, और कुछ मामलों में तो “दोगलेपन” का सहारा लिया है। जम्मू के डेढ़ लाख शरणार्थियों की अनदेखी इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। क्योंकि यदि वे मुसलमान होते, तो क्या समाचार-पत्र और मानवाधिकार संगठन उनको इस तरह कभी नजर अन्दाज नहीं करते। मीडिया ने पिछले कुछ दिनों से जानबूझकर भय और आशंका का माहौल बना दिया है, ताकि आमतौर पर सहिष्णु और शान्त रहने वाला हिन्दू इस मामले से या तो घबरा जाये या फ़िर उकता जाये। कभी सोचिये ये सारे के सारे दोगले कुत्तो की तरह कशंमीर मे आतंकवादियो के तलवे चाटने पहुच गये पर कभी कोई हरामजादा उन कशमीरी पंडितो के बारे मे बोला ? नही ना तो अब
    “न्यायालय के सम्मान” के नाम पर हिन्दुओं को अब और बेवकूफ़ मत बनाईये… प्लीज़।

      • माहौल ख़राब करने का ठीकरा सीधे राजनीति पर फोड़ देना ठीक नहीं। दरअस्ल जब भी कोई व्यवस्था बिगड़ती है तो उसके सभी अंग उसमें उत्तरदायी होते हैं। ये और बात है कि किसी अंग की भूमिका कितनी अधिक है?
        -चिराग़ जैन
        http://www.kavyanchal.com

  57. hindus and muslims shd now bury the hatchet,and close this chapter.there are many important issues before the country which require urgent attention.may Ram and Rahim give us good sense .

  58. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का किसी भी धर्म से कोई लेना देना ना हो। चूँकि न्यायपालिका भी एक तरह से राज्य का हिस्सा है इसलिए एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति द्वारा उससे भी यह उम्मीद की जा सकती है कि वह देश हित मैं एक ऐसा फैसला सुनाती कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्वांत की रक्षा हो पाती। सौहार्द सुरक्षित रहेगा या नहीं यह तो आना वाला समय ही बताएगा मगर देश में धार्मिक पाखंड, कट्टरता, और अंधविश्वासों का अंत होता दिखाई नहीं देता।
    दृष्टिकोण

  59. अयोय्ध्या विवाद पर इलाहाबाद की लख़नऊ कोर्ट का फ़ैसला भारतीय न्यायपालिका की वैचारिक गहराई का परिचायक है. विवाद मनुष्य या उसके द्वारा गठित संस्थाओं के बीच होते हैं जिनकी पैरवी करने वाला मनुष्य होता है और जिस न्यायपीठ के सम्मुख यह विवाद रखे जाते हैं वे भी मनुष्य ही होते हैं. इस लिहाज़ से विवाद का ताना-बाना कहीं न कहीं मनुष्यता से इर्द-गिर्द होता है. इसी बात के मद्देनज़र लख़नऊ पीठ पर विराजित माननीय न्यायाधीशों ने क़ानून,साक्ष्य और ऐतिहासिक/पुरातात्विक संदर्भों के अतिरिक्त इस मसले के मानवीय पहलू और सामाजिक सरोकार का जिस तरह से ध्यान में रखा है वह अत्यंत प्रशंसनीय है. वह यह भी साबित करता है कि विश्व भर में न्याय-संगत निर्णय देने के मामले में भारत अब बहुत परिपक्व है.

    यह भी स्वागतयोग्य है कि जिस तरह की मृदुता,सहजता और मानसिक ठंडक का परिचय दोनो पक्षों और उनके वक़ीलों की तरफ़ से आया है वह देश में अमन का रास्ता बनाने में मददगार साबित हुआ है. क़ानून की हद में रह कर यदि कोई पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय भी जाता है तो इसमें कुछ ग़लत नहीं है. इस बीच यदि किसी समझदार मध्यस्तता से समन्वय का कोई रास्ता निकलता है तो ये निश्चितरूप से यह क़दम पूरी दुनिया में भारत की साख में इज़ाफ़ा करेगा.

    बस एक ही बात का अफ़सोस है….एक तो निर्णय आने के समय कोर्ट प्रांगण में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रतिनिधियों द्वारा मचाई गई अफ़रा-तफ़री दु:खद थी.मुझे लगता है स्थानीय प्रशासन के स्तर पर मीडिया के साथ व्यापक चर्चा कर एक गरिमामय वातावरण बनाया जाना था क्योंकि पूरी दुनिया इस दौरान हुई हड़बड़ी देख कर सोच रही होगी कि न्यायपालिका चाहे परिपक्व हो गई हो…भारत के लोग अभी भी कुछ मामलों में हड़बड़ी और अव्यवस्थित ही हैं.साथ ही इस पूरे एपिसोड को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरह की हाइप बनाई उसकी आवश्यकता नहीं थी. देश के अमन चैन के लिये इसे भी एक सहज मुक़दमें रूप में पेश किया जाना था.निर्णय आने के आधे घंटे बाद टीआरपी के सारे चोचले निरर्थक साबित हुए. साथ ही किसी किसी चैनल पर मीडियाकर्मियों और प्रस्तोताओं पर एक संवेदनशील क़ानून विषय पर की की गई टिप्पणियों की भी आवश्यकता नहीं थी. क़ानून की अपनी व्याख्याएं हैं और उस पर गहरी सोच और समझ के बाद ही कुछ कहा जाना बेहतर होता है.

    संक्षेप में यही कहूँगा कि यह फ़ैसला भारत की अगली नस्लों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है. वह राम या अल्लाह के प्रति श्रध्दा तो रखती है लेकिन इन्हें लेकर उनके करियर,प्रगति,कारोबार और व्यवसाय को दाँव पर नहीं लगाना चाहती है. देश में मौजूद रहे अमन-चैन के लिये किसी सरकार,मीडिया या दीगर किसी और व्यक्ति या संगठन को सेहरा बांधने की ज़रूरत नहीं है. यह भारत की आम जनता का अपना आत्मबल और सुनिश्चय था कि हम कैसा भी निर्णय आए…विचलित नहीं होंगे..धैर्य से काम लेंगे और देश में रिहायशी और कारोबारी इलाक़ों में फ़िज़ूल की अफ़रातफ़री नहीं मचने देंगे.

    मुझे पूरा यक़ीन है कि कि भारत के लोग इस पूरे मसले को सकारात्मक सोच के साथ लेकर न्यायपालिक में अपना विश्वास क़ायम रखेंगे.

    • सँजय जी के ख्यालात से इत्तेफाक रखते हुए सम्राट अशोक और बादशाह अकबर के शासन काल की न्यायप्रियता की झलक इस फैसले मेँ कहीँ न कहीँ स्पष्ट होती है.

    • सँजय जी के ख्यालात से इत्तेफाक रखते हुए सम्राट अशोक और बादशाह अकबर के शासन काल की न्यायप्रियता की झलक इस फैसले मेँ कहीँ न कहीँ दृ्ष्टिगोचर होती है.

    • इस देश के ज़्यादातर लोगों के विचाए संजय के समान हैं । विवाद खड़ा करना आसान है उसे निपटाना नही। लेकिन कुछ लोगों को अब भी चैन नहीं है । कोई आसान काम नहीं था इस विषय में फैसला करना । कहने को तो मुकदमा जमीन के विवाद का था लेकिन इसके साथ बहुत सारी बातें जुड़ गयी थी । और जब जमीन के कागजात ठीक से उपलब्ध न हो तो निर्णय करना और मुसकिल काम था ।
      इस आलेख के इस बिन्दु को ठीक करना होगा : 8. न्यायिक फैसले पर अगले 3 महीनों के अंदर कार्यवाही पूरी की जाएगी। अदालत ने यह कहा है की 3 महीने तक यथास्थिति रखी जाएगी ।
      कानूनी दाव पेंच अभी बाकी हो सकते हैं आखिर कानून भी तो इंसान का ही बनाया हुआ है ।

  60. Han ye fesla des ki santi or aaj ke india ki stiti or mahol ke liye bilkul hi santulit faisla h. Is fesle me kanun/ nyay se jyada astha or fesle k bad k smbhavit arajak mahol ko jyada tavjo di gai h. Jis se ye fesla kuch logo ki drsti me adhura ya nispax ho gaya h. Lekin nischit tor pe is se ye sabit ho gaya ki des ke vikas ke liye ye bilkul sahi faisla aya h. Janta sabse phle santi ko hi chunti h.

  61. विगत एक महीने के दरम्यान भारत की सभी राजनेतिक पार्टियों ,धार्मिक संघठनों ,सामाजिक जन-सरोकार की कतारों तथा बुद्धिजीवी वर्ग ने ऐसा वातावरण बनाया था की लखनऊ खंडपीठ में आलोच्य बहुप्रतीक्षित फैसले को विना किन्तु -परन्तु के सभी पक्ष मानने को तैयार थे ..कल ३० सितम्बर के रात १२ बजे तक भी देश का सारा मीडिया गवाह है की सभी पक्षों ने जिम्मेदारी और संयम का प्रदर्शन किया .देश की आम जनता के सभी धड़े खुश थे .सिर्फ सुन्नी वक्फ बोर्ड के सम्मानीय वकील साब ने जरुर फ़रमाया था की हम देश की बड़ी अदालत में जायेंगे .उनका यह कथन अप्रत्याशित नहीं था ,सभी पक्षों ने फैसले से पूर्व यह भी कहा था की हम कोर्ट का फैसला तो मानेंगे किन्तु नियत अवधि अर्थात तीन माह के अन्दर यदि जरुरी हुआ तो बड़ी अदालत में जाने का रास्ता खुला है .अतेव यदि कोई सुप्रीम कोर्ट जा रहा है तो यह उसका वैधानिक अधिकार है किन्तु इस अवधि में यदि सम्बन्धित पक्ष कोई सर्वमान्य समझोता कर लेते हैं और जैसा की लखनऊ खंडपीठ ने भी कहा है की चिन्हित भूमि के बटवारे में आपसी सुलह सफाई और फेर बदल सम्भाव्य है तो शुभस्य शीघ्रम .लखनऊ खंडपीठ ने देश को वर्तमान वैश्विक और देशज परिदृश्य के अनुरूप सामाजिक धार्मिक जटिलताओं के मद्देनज़र जो फैसला दिया है उससे अच्छा विकल्प वर्तमान पतनशील भृष्ट पूंजीवादी व्यवस्था में और कोई नज़र नहीं आ रहा है .सभी पक्षों से अनुरोध है की सुप्रीम कोर्ट जाने से कोई खास हासिल नहीं होने वाला अतेव आपस में सहमती से ९० दिन बाद मंदिर -मस्जिद का निर्माण अपने अपने हक की जमीन पर प्रारंभ करें .परदे के पीछे से कठपुतली की नाईं नचाने वाले स्वार्थी तत्वों से मुक्त हो जाएँ .

  62. जब कोई वाद न्यायलयीन परिसर में जाता है और उसका फैसला होता है तो उसे मान्य करना अतिआवश्यक बन जाता है। रामजन्म भूमि विवाद के रास्ते अभी सुप्रीम कोर्ट जैसा अंतिम मार्ग है, और जैसा कि कहा जा चुका है, सुन्नी वक्फ बोर्ड और हिन्दू महासभा वहां चुनौती देंगे तो इसे मामला शांत हो जाने जैसा तो कत्तई नही माना जा सकता। अगर हम अपनी आस्था के लिहाज़ से सोचे तो यह तो निर्विवाद सच हो चुका है कि बाबरी ढांचा मस्जिद तो नहीं ही थी। तब? रामजन्म बाबर से पूर्व सालों पूर्व की घटना है। यह भी सत्य है कि हमारे देश में मुगलों, अंग्रेजो आदि ने स्थापत्य कला के नमूनों को स्थापित करने के लिये कई सारे मन्दिर या इस तरह के भवनों का इस्तमाल किया। हमें अपनी जड देखनी है..और जब जड में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में श्रीराम स्थापित हैं तो किसी तरह की बहस-मुबाहस नहीं होनी चाहिये। किंतु यह कोई आसान कार्य भी नहीं। हाईकोर्ट के तीनो सम्माननीय न्यायाधीशों ने अपने निर्णय दिये। करीब 10 हजार पृष्ठों वाले इस फैसले से यह बेहतर हुआ कि हमने महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार कर लिये हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के लिये फैसला देने या फैसले पर विचार करने के लिये अमूल्य होगा। यानी अभी कुछ सालों का इंतजार और करना ही होगा। भारत के लिये यह अपने आप में अनोखा, ऐतिहासिक और अतिसंवेदनशील केस है। किंतु मैं यह मानता हूं कि जब भी अंतिम फैसला होगा, यह तो तय हो ही जायेगा कि..भारत आखिर महान है तो क्यों है?

  63. जब कोई भी पीछे हटने को तैयार न हो तो न्‍यायालय ही ऐसा रास्‍ता बच र‍ह गया था जो सर्वाधिक निर्विवाद हो सकता था। निर्णय पर सवाल उठाए जा सकते हैं किन्‍तु और कोई रास्‍ता भी नहीं बच गया था।

    यह हमारे राजनीति नेतृत्‍व, हमारी विधायिका की असफलता और सामाजिक सामंजस्‍य की अनुपस्थिति का प्रमाण है।

    हमें याद रखना पडेगा कि यह अन्तिम निर्णय नहीं है। सन्‍तोष की बात है कि न्‍यायालय के निर्णय से असहमत होने के बाद भी उसके प्रति सम्‍मान और विश्‍वास की भावना बनी हुई है।

    हमारे राजनेताओं को अपनी गरेबान में झॉंकना चाहिए और हम नागरिकों को अपने नेताओं की मनमानी पर अंकुश लगाने की शुरूआत कर देनी चाहिए।

  64. आ गया, ऐतिहासिक फैसला आ गया |तमाम तरह कि बाते कि जा रही थी अफवाहे उड़ाई जा रही थी |मै लगातार कह रहा था कि फैसला होगा और देश भी शांत रहेगा |जो देश में दंगा करने वाले लोग है वो पहले ही पिटे हुए है ,कुछ साल सरकार चलने के बाद उनका असली चेहरा ,असली चरित्र और असली चाल देश समझ चुका है |बड़े घृणित रूप देखने को मिले उनके जो कहते थे कि वे अलग है |फिर भी इस फैसले के आने के बाद दंगा हो सकता है या नही इस पर दंगा कि राजनीति करने वाले और पूरे देश में कुछ ही मिनटों में गणेश को दूध पिला देने वाले और एक राष्ट्रपति को मरा घोषित कर देने वालो ने पता लगाने कि कोशिश कि |एक माह तक हनुमान पूजा के नाम पर इन्होने पूरे देश के मंदिरों में कार्यक्रम चलाया |पे उन्होंने देखा कि आज का नया भारत उनको जान चुका है इसलिए कही भी वो इनके कार्यक्रम में शामिल नही हुआ और जगह चर्चाये करने पर भी उसने कोई रूचि नही दिखाया बल्कि पूरा देश शांति और विकास कि बात करता रहा ,तब इन लोगो ने मजबूरी में अपनी रणनीति बदला और तय किया कि वो कहा जाये जो पूरा देश कह रहा है ,उस दिशा में चला जाये जिधर पूरा देश चल रहा है क्योकि इनके पीछे चलने को कोई तैयार नही है |इन्होने यह भी चर्चा किया कि अपने लौह पुरुष को सामने रख कर भी जब वो इस प्रधान मंत्री का मुकाबला नही कर पाये जिन्हें कमजोर कहा जाता है तों जब मजबूत माने जाने वालो से सीधा मुकाबला होगा तब क्या होगा |इसी रणनीति के तहत ही इनके एक वकील कि ड्रेस पहने हुए आदमी ने आज लखनऊ के हाई कोर्ट में जब फैसला आया तों वहा विजय का निशान बना कर उंगली उठाया और जय श्री राम का नारा भी लगाया ,लेकिन वहा वह अकेला ही नही पड़ गया बल्कि सभी लोगो द्वारा डांट दिया गया और इनके संगठन को समझ में आ गया कि देश कैसे चलना चाह रहा है | वैसे ही चलना इनकी मजबूरी है |ये खुद देख रहे है कि इनके कर्मो को और असलियत को देख कर खुद इनके ऐसे समर्थक जिन्होंने अपने दिमाग को कही इनके ताले में नही बंद करवाया है बल्कि अपने पास रखा है उन्होंने इनका साथ छोड़ दिया ,जो इनकी शाखाओ में नफरत के लिए नही बल्कि सुबह टहलने और कसरत के लिए जाते थे उन्होंने जाना बंद कर दिया और आज इनकी संख्या १/१० रह गयी है |

    खैर फैसला आ गया है और इस देश कि साझा संस्कृति वाला ही फैसला आया है |ना कोई जीता है ना कोई हारा है सबको स्थान दिया गया है और ये संकेत दिया गया है कि यह देश नफ़रत और झगड़े से नही चलेगा | अब समय आ गया है इस फैसले कि भावना को सम्हालने का | जिस तरह इस देश ने ये हालत बनाया है और लोकतंत्रक परिपक्वता का परिचय दिया है एक विकसित और साझा संस्कृत वाला देश होने का परिचय दिया है उसी तरह अब ये बड़ी जिम्मेदारी निभाने कि जरूरत है ,इस फैसले को सम्हाल कर आगे बढ़ाने या साथ बैठ कर कोई नया सन्देश देने कि जिम्मेदारी |देश बखूबी ऐसा करेगा और कामयाबी से करेगा |केवल एक सन्देश देश बड़ा है बाकी सब धर्म या जातिया देश में रहते है और देश इंसानों से बनता है |वह चाहे रामायण हो ,गीता हो ,कुरान हो ,गुरुग्रंथ साहब हो ,या बाइबिल हो इन्हें पढ़ेगा कौन ,सभी धर्मो के चाहे मंदिर हो ,मस्जिद हो ,गुरद्वारा हो या चर्च हो यहाँ जायेगा कौन ,अगर इन्सां जिन्दा रहेंगे तभी ये पवित्र किताबे पढ़ी जाएँगी ,तभी ये पवित्र स्थान आबाद रहेंगे |लेकिन इससे बड़ी बात ये है कि यह सब भी तभी होगा जब अमन होगा ,शांति होगी और देश कानून से चलेगा संविधान चलेगा |यह सबसे बड़ा मुद्दा है |माहौल बन गया है ,भाई चारा बन गया है ,देश साथ चलना सीख गया है ,देश अपनी दिशा और उद्देश्य को जान चुका है तय कर चुका है |समाज के दुश्मनों को, देश के दुश्मनों को और शांति तथा सौहार्द के दुश्मनों को सीधा सन्देश दे चुका है और अब इसी दिश में आगे बढ़ते जाना है ,यही भारत कि विजय है यही यहाँ रहने वाले करोडो इंसानों कि विजय है |

    • मान्यवर सीपी राय जी, यह कहना गलत है कि कोई जीता नहीं। जीत तो हुई है सत्य की। वे पाखंड़ी इतिहासकार हारे हैं जो राम के अस्तित्व को नकार रहे थे। वे हारे हैं जो जिन्होंने बाबर को भगवान माना और कहा महान बाबर ने कोई मंदिर नहीं तोड़ा। पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने साबित कर दिया कि कथित मजिस्द की नींव ही नहीं है, बल्कि यह किसी हिन्दु महल या मंदिर को ध्वस्त कर बनाया गया है। जीत हुई हैं उनकी जिनको राम में आस्था थी न कि बाबर में। जीत हुई है देश अभिमान की जिन्हें अपने महापुरुषों पर गर्व था और अत्याचारी बाबर से घृणा। इस देश में सज्जनता की पूजा होती है न कि रावणपन की। मैं न्यायालय के फैसले का सम्मान करता हूं, लेकिन आपत्ति तो मुझे है उस तथ्य से जिसमें कहा गया कि चूंकि मुसलमान इस देश को ३०० वर्षों से मजिस्द मानते चले आ रहे हैं इसलिए जमीन का एक तिहायी हिस्सा उन्हें मिले। पहली बात तो यही है कि इस देश में एक इंच भूमि भी बाबर की मस्जिद के लिए नहीं। हां पैगम्बर की इबादद के लिए कई वर्ग मीटर जमीन है। यह क्या बात हुई की ३०० वर्ष मुसलिमों ने वहां इबादत की है तो उनको वह जमीन दे दी जाए। यूं तो प्रतिदिन ट्रेनों में भी मुस्लिम नमाज अदा करता है तो क्या उन ट्रेन का भी एक तिहायी हिस्सा इस तथ्य के आधार पर रेलवे मंत्रालय से छीनकर उन्हें दे दिया जाए। जीत हुई है डॉ. सीपी राय सत्य की जीत हुई है। किसी कौम और संप्रदाय की नहीं। जिस तथ्य को धूर्त इतिहासकार झुठला रहे थे वह सामने आया है, लेकिन आप जैसे लोग जिन्होंने अपने दिमाग के सारे रास्ते बंद कर लिए हैं वे अभी भी इस सच को स्वीकार नहीं करेंगे।

    • और जिनके समर्थकों को जबरन दिमाग ताले मे बंद कराना पडता था वो भी रूस से इनको खदेड चुके हैं, पश्चिम बंगाल से भी खदेडे जाने वाले हैं अब यह।

      और झूठ तो इतना बोलते हैं कि गोयबल्स भी शर्मा जाए। किसी भी समाचार वाले ने नारा लगाते वकील को नही कवर किया सिवाय इनके, अब इसका सबूत मत मांगना वो पाप होगा, अगर मांगना ही है सबूत तो सिर्फ राम के पैदा होने का मांगना यह पुण्य का काम है।

      गणेश को दूढ पिलाने का श्रेय तो आज तक संघ ने लिया नही, पर अगर उसका काम है यह तो इस network को मेरा सलाम, अगर विदेशी विचारधारा के वाहकों मे भी इतनी ही शक्ति है तो प्रयत्न करें, अन्यथा मान लें कि संघ की स्वीकार्यता उनके मुकाबले १०० गुनी है।

      और यह पंथनिरपेक्ष (झूठ मूठ के) लोग कोलकाता हवाई अड्डे पर एक मजार, जो कि अवैध कब्जे की जमीन पर बनी है, को सुरक्षा खतरा होते हुए भी नही हटा पा रहे हैं, जब कि एक तथाकथित हिन्दुवादी नेता नरेन्द्र मोदी ऐसे १५० मंदिरों को हटवा चुके हैं।

      भारत मे धर्मनिरपेक्षता का एक ही अर्थ रह गया है – हिन्दुओं को गाली देना। और यह महोदय इस काम को बखूबी निभा रहे हैं।

  65. पुर्बजों के छोटा सा भूल हमें भुगतना ही पड़ेगा,
    ६३ साल पहले देश धर्म के नाम बंट चूका है, अब उसे दोबारा भाग भाग न करें, जिन्हें न्यालय की फैसला मंजूर नहीं वे अपने पुरखों के बनाये देश में चले जाएँ और अपना आस्था, बिस्वास में सुकून के साथ जिये हमे कोई तकलीफ नहीं. हमारा देश धर्म निस्प्ख्य है, यहाँ किसीका कोई धर्म, मजहब नहीं, जो हिंदुस्थानी वह यहाँ हिंदुस्थानी बनकर जिये और मरे बस इतना बिनती है

  66. बाकी सब तो ठीक है….फैसला सही है या गलत…ये तो अभी सुप्रीम कोर्ट बताएगा….पर मेरी एक जिज्ञासा कोई शांत कर दे….कि उच्च न्यायालय के तीनो जज ये कैसे जान पाए कि वहां राम जन्मभूमि है…..सिर्फ़ इस जिज्ञासा का समाधान चाहता हूं कि कैसे किस सुबूत के आधार पर अदालत में ये साबित हो पाया कि राम वहीं जन्मे थे….मैं इससे सहमत हूं कि वहां राम मंदिर रहा होगा….पर जन्म एक जैविक घटना है….न कि ऐतेहासिक….तो इसे साबित कैसे किया जा सकता है….

  67. हिन्दू हो या मुसलमान, इस देश में शान्ति और प्रगति की बात सोचना कोई चाहता नहीं है। जो भी पक्ष इस फैसले को सुनकर जनता से संयम बरतने की अपील कर रहे हैं वो इसलिए नहीं कि वे शान्ति चाहते हैं बल्कि इसलिए कि उन्हें फैसला अपने पक्ष में आया लगता है। खुदा न ख्वास्ता सुप्रीम कोर्ट ने अगर इस फैसले पर विपरीत कलम चला दी तो जनता से शान्ति और संयम बरतने की उनकी वर्तमान अपीलों का सच सामने आ जाएगा। जो लोग कह रहे हैं कि कोर्ट ने तथ्यों की अनदेखी की, वे फैसले में निहित भावना को समझने में असमर्थ हैं। दशकों से जो मामला लम्बित था और दो कौमों के बीच तनाव का कारण बना हुआ था, जिस पर निर्णय सुनाने का साहस कोई जुटा नहीं पा रहा था, उसे माननीय कोर्ट ने सामाजिक समरसता बनाए रखते सुना दिया है। मुझे लगता है कि माननीय कोर्ट ने संवेदनशीलता को पहचानते हुए व्यापक जनहित को ध्यान में रखा है। मात्र कागज़ की भाषा में नहीं बल्कि मानव की भाषा में फैसला सुनाया है। फैसले के निहित अर्थ को समझकर देश में सुख-शान्ति की खातिर इसे स्वीकार करना चाहिए, ऐसा मेरा सोचना।

  68. भारत के प्रधानमंत्री का यह बयान कि यह अंन्तिम फैसला नही है, बहुत ही आश्चर्य जनक और निराशा पूर्ण है जैसे इस फैसले से सबसे ज्‍यादा निराश प्रधानमंत्री है।

  69. संवैधानिक न्‍यायलयों द्वारा दिए गये निर्णय सम्‍माननीय हैं.. किन्‍तु अब बेहतर है अयोध्‍या पर लोग आपस में समझौता कर लें.. जिससे कोई मनमुटाव न रह जाये और आगे फिर कोई विवाद न रह जाये। अयोध्‍या विवाद पर मेरी विस्‍तृत दृष्टि का यहाँ भी अवलोकन करें।

    https://suvarnveethika.blogspot.com/2010/09/blog-post.html

  70. yeh bhi kehna zaroori hai, ki, jaise faisla vivaad ke haquiqat ko dekh ke, samaj aur desh ke hit ko saamne rakh ke nikaalne ki koshish ki gayi hai, usi tarah, 1992 ke kaand ke baare mein khamosh nahi hona chahiye tha. Us khamoshi ke wajah se, log soch sakte hain ki 92 ke kaand ko kanooni sweekriti di gayi hai. 6 December ke sab apraadhiyon ko, unke kiye ke liye sahi sazaa jab tak nahi di jayegi, maamla poora nahi ho sakta hai.

  71. आखिर वर्षों इंतजार के बाद अयोध्या प्रकरण में अदालत को निर्णय आ गया। यह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह इसलिए कि इसमें हर पक्ष को खुश करने की कोशिश है। देश में उत्पन्न माहौल में सधा हुआ निणर्य है। कुल मिलाकर स्थिति न तुम हारे, न हम जीते जैसी है। रामचंद्र भले भले ही रामायण और रामचरित मानस के पात्र हो। लेकिन कोर्ट ने इस आस्था को प्रमाणित कर दिया कि रामचंद्र की पावन जन्मभूमि अयोध्या ही थी।
    खैर, यदि कोई पक्ष इस निर्णय के खिलाफ अदालत में नहीं जाए तो फैसले को लगाू कराना अब बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। बेहतर होता कि सुन्न वक्फ बोर्ड या कोई अन्य संगठन अथवा कोई व्यक्ति विशेष इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय की की शरण में जाने के बजाय, इस ऐतिहासिक अध्याय को यहीं विराम देकर नई पीढ़ी को शांति और अमन एक एक नया सौगात दे दे।

  72. The decision is good for three reasons.
    1) It takes into account the fact that Ayodhya is the birthplace of Rama and also there existed a temple in the same area.
    2) It enables for an amicable solution by offering some part of it to the Muslims, who by means either right or wrong that I do not know have been in possession of the land for some long time.
    3) It gives an opportunity for both communities to show that they can co-exist together. Both communities should kick their leaders making issues out of molehills out and tell them we want to live peacefully.

  73. अयोध्या विवाद को जारी रखना और आस्था के मामले को अदालतों के माध्यम से हल कराना ऐतिहासिक ग़लतियों के दोहन जैसा है । इसे पुराने ज़ख़्मों को सदा हरे रखने की ज़िद भी कहा जा सकता है । मेरे विचार में विवादास्पद भूखंड पर एक बहुत सुन्दर उद्यान बनना चाहिये, जिसमें तरह-तरह के पेड़-पौधे और फूल हों, झरने बहते हों और जहाँ पक्षी उन्मुक्त एवं प्रसन्न भाव से कलरव कर सकते हों । वहाँ यह सुविधा होनी चाहिये कि उन्मुक्त आकाश के नीचे प्रकृति के प्रांगण में बैठकर सभी धर्मों और आस्थाओं के अनुयायी चिन्तन, मनन और ध्यान कर सकें और यह सीख सकें कि हम सब मनुष्य है, भारत के नागरिक हैं और हमे उदार तथा मैत्री के भाव से मिलकर रहना है ।

    डॉ. गौतम सचदेव

    साहित्यकार

    • गौतम जी मंदिर में ये सारी चीज़े होंगी

  74. Bahut Accha hai,.
    Sabhi Chadam sekular ke mih pe ek chata hai.

    Apka Bahut dhanyabad sir. apne bahut accha munch diya abhivyakti ka,

    lekin Jagdishwar Khan jaise log ab bhi mahol kharab karne lage hai aur Apne Jahadi vichar pragat karte rahte hai

  75. मुझे तो लगता है की ये तीन पक्षकार चाहते ही नहीं हैं की मंदिर और मस्जिद बने. क्योंकि अगर वे चाहते तो मामला ६० सालों तक अदालत के फैसले का मोहताज न होता.
    और अब भी ये सुप्रीम कोर्ट जान एकी बात कर रहे हैं जो साबित करत है की ये बस इस मुद्दे पर अपनी राजनीती चमकान चाहते हैं ताकि लोग इनकी बेवकूफी भरी बातो में आ कर आपस में लादे और इनकी जय जय कार होती रहे…

    अब लोगो को आगे आकर अपने ओंत्जार का मुआवजा मांगना चाहिए जिसके लिए मंदिर और मस्जिद का जल्द निर्माण कार लोगो को अपनी आश्था कर्ण एक हक मिलना चाहिए….

    • एक ही पक्ष अदालत की बात कर रहा है और वो पक्ष ही नही चाहता है देश मे शांति।

  76. Is faisla ke peeche yeh anumaan hai, ki agar voh Muslim ke paksh me hua to doosra paksh danga aur ahinsa utarenge desh mein. Samjahuta ke zariye samasya ka hal nikaalne ki koshish ki gayi hai. Par yeh ek-tarfa samjahuta hai, jis ke liye Muslim ko hi zyada jhukna par raha hai. Faisle ke baad, Hindu paksh ke taraf se jo response dekha gaya, siyasati khilari se, aur aam, shikshit logon se bhi, us se ek baar phir saabit hua, ki Muslim ke prati kitna nafrat aur kadvaahat hai. In haalaat mein, maina samjha ki ab mujhe apna naam badal dena chahiye. Ab mera naam Mustafa Ali Hussain hai.

  77. जब मंदिर के मलबे पर बनी बाबरी मसजिद अवैध है तो मसजिद के मलबे पर बना राम मंदिर वैध कैसे हो सकता है ? यह कैसे हो सकता है मंदिर के मलबे पर इमारत बनाना अवैध है लेकिन मसजिद के मलबे पर इमारत बनाना वैध है ।
    आश्चर्य की बात है कि जजों ने माना कि 22 दिसम्बर 1949 की रात को बाबरी मसजिद में राम की मूर्ति कोई रख गया। कौन रख गया ,कैसे रख गया ,इसका ब्यौरा एफआईआर में उपलब्ध है और जज भी मानते हैं बाबरी मसजिद में उपरोक्त तारीख को ये मूर्तियां रखी गयीं । सवाल यह है कि ये मूर्तियां वैध रूप में जब नहीं रखी गयीं तो फिर इन्हें हटाने का निर्णय माननीय जजों ने क्यों नहीं लिया ? जजों ने सैंकड़ों साल पुरानी बाबरी मसजिद को गैर-इस्लामिक मान लिया, लेकिन चोरी से मसजिद में जाकर राम की मूर्ति को रखे जाने को गैर हिन्दू धार्मिक हरकत नहीं माना।
    ……………
    मामला तो साफ़ है बस देखने वाली आँखे चाहिए
    धन्यवाद संजीव जी

    • मैं अहतशाम से कहना चाहूंगा कि बाबर कौन था
      क्‍या वो मु‍स्लिमों का पैगंबर था
      मुस्लिमों को उसके बनाये जबरन मस्जिद से इतना प्‍यार क्‍यों हैं
      ये साबित हो चुका है कि करीब ये ढांचा सैकड़ों साल का है यानी इतने साल से हिन्‍दू ने सहन किया रामजन्‍म भूमि पर मस्जिद.
      क्‍या हिन्‍दू यदि मक्‍का काबा में मंदिर बना ले उसे मुसलमान स्‍वीकार करेंगे
      आप मत यह भूले कि आततायी मुगलों ने हजारों मंदिर तोड़े थे.
      लेकिन राम जन्‍मभूमि के लिये हिन्‍दू इसलिये लड़ा कि क्‍योंकि उसके आराध्‍यदेव का जन्‍मस्‍थल है.
      अफसोस कि देश के मुस्लिम भाइयों को चाहिए था कि इसे बिना किसी समझौता के इसे हिन्‍दुओं को सौंप देते एक भाईचारा की मिसाल कायम होती मगर वो देशद्रोहियों व नेताओं के हांथ का खिलौना बने रहे और राजनीतिक पार्टियां और मजबूत होती रही और लाभ लेती रही.
      मस्जिद ही बनाना था तो कहीं और बना लेते.
      वैसे आततायी के मस्जिद के लिये मार करने वालों को मैं नही समझता कि वे इस देश में रहने के काबिल है.

        • rajeev and deep only one question as when was the last time you visited a temple? and how much of hindu you are? do you even know the solah sanskars or the meaning of gyatri mantra? do u know which religious book hindus are suppose to follow? do you know what is hindu? if you can answer all those questions then go ahead and make a mandir and probably destroy all the masjids. Muslims are part of India and if the Masjid was there then there was not any need to destroy it. If babar supposedly demolished a temple then it does not give any right to hindu fanatics to destroy a masjid. remember AN EYE FOR AN EYE WILL LEAVE YOU BLIND.
          dont think that I am a muslim and that’s why writing all this. I was born hindu but it is so much full of crap that i dont like myself to be called hindu. casteism, outdated riti riwaj, pramparein jo aadmi ke marne ke baad bhi uska peecha nahi chorti hai. aap hi logo ko mubarak ho aisa dharam.
          adharm ka raaz ho aur dharam ka vinaash tabhi yeh desh sudhar payega.

          • Gaura ji ….
            You may be right … I have no option to say u that u remain in Hinduism but at least i can dare to say that any person if he is member of society then he have to adopt any religion. No religion is out of criticism. But those whe beare the CHASMA of burayi khojo they will not be able to see good things of any religion like you . Hind Dharm is very modrate. There is no boundaries. If u would have been Muslim then u can not dare to say even a single word of criticism for islam . It is true that Islam is also very good religion . If u would have been Communist then first of all u have to see towards China … then u can dare to go bathroom .
            Dont behave like political leader .. You please try to search the positive things in every religion … always u need not to remain busy to search holes in hindu Dharm. I have very much respect towards u .
            I know personally to u also. thanks.

          • गौरव बिलकुल सही कहा। अंग्रेज भी अगर हमारे देश को जबरन हडपे बैठे थे तो हमे उन्हे यहाँ से नहीं भगाना था, यह गलत बात थी (ध्यान रहे तीनो न्यायाधीश ने माना है कि वहाँ मंदिर था पहले, हिन्दुओं ने सिर्फ अपनई जमीन मांगी है)

    • jab mein chota tha to meri mummy ke mandir mein kuch mitti ki murtiyan hua karti thin. ek din murti ka sihasan mujhse toot gaya. bada sundar su=inhasan tha. mummy ne turant use hata ka uske sthan par ek naya, dula kapda bicha diya. maine poocha kyun to voh bolin ki bhagvan ko sadiav pavitra sthan par baithate hain. Agar sthan khandit ho jaye to apavitra ho jata hai aur hamein koi doosra sthan doond lena chahiye. Jo log 1949 december main ram lalla ki murtiyan vahan rakh aaye the unhonne na keval raam ko apavitra kiya hai balki desh aur janat ke prati shadyantra bhi racha hai, samvidhan ka aadar nahin kiya. ve log bhi baabar se kam barbar nahin hain. unke hi karan aaj desh kam se kam 20 varsh peeche chala gya hai aur ham 21st century mein ek madhyakaleen vivad ko hava de rahe hain.

    • १. हिन्दु धर्म शास्त्रों मे इस पर कहीं नही लिखा कि किसके मलबे पर मंदिर बन सकता है और किसके मलबे पर नहीं।

      २. जब मंदिर के मलबे पर मस्जिद अवैध है तो मस्जिद कभी थी ही नही, फिर मस्जिद के मलबे पर मंदिर का राग अलापने वाले किसको मूर्ख बना रहे हैं? जनता तो बनने से रही, शायद स्वयं को।

      सच कहा मामला तो साफ है बस अंधो को नही दिखता। जो लगातार मार खा रहा है उस पक्ष ने एक बार प्रतिरोध क्या कर दिया, पीडित को ही दोषी ठहराने का प्रयत्न होने लगा। यह चाल अब सफल नही होगी।

  78. यह एक ऐतिहासिक निर्णय है। आधुनिक भारत के इतिहास में यह निर्णय एक प्रस्‍थान बिंदु है, जहां से चल कर हम राष्‍ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र का एक अप्रतिम उदाहरण कायम कर सकते हैं। इस निर्णय ने यह बात कानूनी रूप से सिद्ध कर दी है कि राम पूरे राष्‍ट्र के प्रतीक हैं, न कि सिर्फ हिंदुओं के।

  79. सत्‍य कभी पराजित नहीं होता। तीनों न्‍यायधीशों ने सही माना है कि वि‍वादित स्‍थल श्रीराम की जन्‍मभूमि है। मैं एक बात यहां कहना चाहूंगा कि पांच सौ साल के बाद माननीय उच्‍च न्‍यायालय ने अयोध्‍या मामले पर निर्णय दिया है। बहुत खून-खराबा हो चुका। अब देश को आगे बढ़ना चाहिए। भारत में तमाम ऐसे मुद्दे है, जिन पर बहस होनी चाहिए और उनका निराकरण होना चाहिए। अब विकास की ओर आगे बढ़ना चाहिए। इसलिए हिंदू महासभा और वक्‍फ़ बोर्ड को सर्वोच्‍च न्‍यायालय में नहीं जाना चाहिए।

  80. इस अयोध्या विवाद में ३ की बड़ी माया चली है…:-

    (१)- ३ वादकारी अर्थात पक्षकार
    (२)- ३ न्यायमूर्ति अर्थात जज
    (३)- ३ हिस्से विवादित जमीन के
    (४)- ३ महीनो के अन्दर कार्यवाही

    • I would like to add some thing more about these 3,
      G – Genratro. O — Oprator- D– Destroyer. = GOD
      A- astitva U – utoatti M- Mrtuu= aum
      A Alif La Lomm Hey vinash Allah

      It shows all the name of almighty are same.

  81. जब एक फ़ैसला दे दिया गया है तो उसे मानने से इंकार क्यों?
    क्या जब तक देश मे अशांति ना फ़ैले तब तक चैन नही आयेगा?
    देश हित मे, समाज हित मे जब एक फ़ैसला आ गया है तो उसे सर्वसम्मति से मान लेना चाहिये क्योकि गीता मे भगवान ने खुद कहा है कि शांति किसी भी कीमत मिले सस्ती है फिर ये तो इतना बडा मसला था और उसका इतना शांतिपूर्ण हल जब सबके सामने है तो उस पर भी ऐतराज़ क्यों? ऐसा लगता है जैसे सियासी लोग नही चाहते देश मे अमन शांति रहे और देश प्रगति के पथ पर अग्रसित हो……………आज यदि भगवान खुद भी आ जाये और कहें तो भी सिर्फ़ अपनी राजनिति के लिये सियासतदार उनकी भी परवाह ना करें…………अब जो हो रहा है वो सिर्फ़ कोरी राजनीति है । उसमे धर्म से किसी को कोई मतलब नही है…………अगर धार्मिक आस्था वाली बात होती तो जो फ़ैसला आया है वो सर्वमान्य होता।

    • मैं वंदना जी से सहमत हूँ। कल तक जो लोग चीख रहे थे कि अदालत के फैसले का सम्मान करेंगे, वो आज इसका विरोध करनेवालों में सबसे आगे हैं। ऐसा लगता है कि इनकी नीति ये थी कि अगर फैसला हमारे पक्ष में आएगा, तो सम्मान करेंगे, नहीं तो विरोध शुरु कर देंगे। इतने बड़े और संवेदनशील मसले पर इतना सधा हुआ फैसला आया है और फिर भी कुछ लोग इसका सम्मान करने की बजाय नये विवाद उत्पन्न करने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह की बहस की अब कोई आवश्यकता नहीं है।

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