समाजवाद का विकृत चेहरा – सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र”

akileshसमाजवाद क्या है ? क्या, राममनोहर लोहिया का समाजवादी चिंतन सपा के आचरण जैसा ही रहा होगा ? ऐसे अनेकों प्रश्नो है जो उत्तरप्रदेश में सपा के शासन को देखकर उठते रहते हैं । जहां तक प्रश्न है समाजवाद का तो मेरे विचारों में उसका सर्वप्रथम लक्ष्य‍ है समग्र समाज का सर्वांगिण चिंतन, समाज में सभी के लिए समान विकास के अवसर प्रदान करना । किंतु ये मेरे निजी विचार हैं, जो शायद समाजवादी पार्टी के तौर तरीकों से मेल नहीं खाते । बहरहाल जो भी हो यदि आप भी अपने स्तमर पर समाजवाद की परिभाषा समझने का प्रयास करेंगे तो शायद आपको सपा की समाजवादी विकृती स्पष्ट रूप से समझ आ जाएगी । इस आधार पर कहें तो माननीय मुलायम समेत अनेक बड़े सपा नेता मुद्दतों पहले ही समाजवादी कहलाने का अधिकार खो चुके हैं । इस सबके बीच जो थोड़ी बहुत आशाएं सपा के युवराज अखिलेश के साथ जुड़ी वो भी आज दम तोड़ती जा रही हैं । जहां तक प्रश्न है इसके कारणों का तो वो आप अखिलेश सरकार के निर्णयों एवं विकास कार्यों से समझ सकते हैं ।

सपा के युवा चेहरे के तौर पर पेश किये गये अखिलेश की प्रारंभिक पहचान निश्चित तौर मुलायम सिंह का पुत्र होना है न कि एक जमीनी नेता । अपनी इस मुकम्ममल पहचान के बलबूते पर ही आज वो लोकसभा सीटों के अनुसार देश के सबसे बड़े प्रदेश का नेतृत्वा कर रहे हैं । अब आप ही बताइये इस बेगैरत परिवारवाद में समाजवाद कहां है ?ये तो युवराज की ताजपोशी वाली बात ही हुई । खैर कहानी यही खत्म? नहीं हुई,डिंपल यादव,धर्मेंद्र यादव,शिवपाल सिंह यादव के बाद अभी भी अनेकों भावी समाजवादी नेता सपा की पाईप लाईन में हैं । अब यदि परिवार से सारे नेता अस्तित्वई में आएंगे तो इसे समाजवाद तो कत्ताई नहीं कहा जा सकता । हां सपा सुप्रीमो का समाज यदि उनके परिवार में ही सिमट जाता है तो शायद ये एक नयी प्रकृति का समाजवादी चिंतन होगा जिसके प्रणेता निश्चित तौर मुलायम जी ही कहे जाएंगे । जहां तक प्रश्न है लोहिया जी के समाजवाद का वो निश्चित तौर इस तथाकथित परिवारवादी समाजवाद से विपरीत रहा होगा ,क्योंकि उन्होने कांग्रेस की वंशवादी परंपरा से आजिज आकर ही समाजवादी चिंतन प्रस्तुति किया था ।

उपरोक्त सारे तथ्यों से एक बात तो स्प‍ष्ट हो जाती है अस्तित्‍व में आने के साथ ही सपा सुप्रीमो समेत अन्य पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने लोहिया के समाजवाद का मखौल ही उड़ाया है । कहीं न कहीं सपा की युवा पीढ़ी भी आज उसी पथ का अनुसरण करती दिख रही है । इस बात को विनम्रता की मिसाल रहे अखिलेश यादव के वाणी व्या याम से साफ समझा जा सकता है । अपने बेंगलूर में दिये संबोधन में उन्हो ने कहा कि, मोदी का जादू केवल टीवी और गुजरात में ही चलता है । शिष्टाहचार की दृष्टि से देखीये तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी उम्र के बीच एक बड़ा फासला है,क्या‍ वो इस तरह की टिप्पणी करने के योग्यफ हैं ? दूसरी बात प्रदेश के विकास के नजरीये से भी देखीये तो गुजरात का विकास आज पूरे देश के समक्ष विकास की नजीर बन चुका है । बात चाहे रोजगार की हो या बुनियादी सुविधाओं की सुशासन की हो अथवा प्रशासन की अखिलेश का उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान गति से आगामी दो दशक के बाद गुजरता के स्तेर को नहीं छू सकता । तीसरी और सबसे महत्वबपूर्ण बात नरेंद्र मोदी का कद उनकी योग्य ता से बढ़ा से न कि परिवार विशेष में जन्म लेने से । इन सारी बातों को ध्यान में रखकर यदि देखा जाए तो क्या वास्तंव में अखिलेश नरेंद्र मोदी पर टिप्पखणी करने के योग्य हैं ? विचार करीये प्रश्नो विचारणीय है । हां एक नजर अखिलेश की उपलब्धियों पर भी डाल लीजीए । अपने बजट को उन्होनें नौजवानों,किसानों और मुसलमानों का बजट बताया था । इस प्रक्रिया में नौजवानों को लॉलीपॉप और भीख का कटोरा मिला तो दूसरी ओर किसानों को मिले वादों के सब्जमबाग । हां बात यदि मुसलमानों की हो तो निश्चित तौर पर मदरसों से लगायत कब्रिस्तानों पर भी बजट की नजरे इनायत बनी रही । हो भी क्योंकि आखिर वे सपा के परंपरागत वोटबैंक जो हैं । इसके अलावा भी विधायक निधि से गाड़ी लेने का निर्णय,शाम को बाजारों की बिजली कटौती का निर्णय या हाल ही मुस्लिम कन्याओं के लिए विशेष छात्रवृत्ति अथवा आतंकियों के विरूद्ध लंबित मुकदमे वापस लेने की घोषणा जैसे निर्णय निश्चित तौर अखिलेश का वास्ताविक स्त र बताने के लिए पर्याप्तन हैं । हद तो तब हुई जब अखिलेश ने शहादत को भी श्रेणियों में विभक्त कर डाला । ये तो रही हमारे मुख्यमंत्री का कृतित्वो और विशेष योग्य‍ताएं, लेकिन उनके दरबार में उनसे भी विल्क्षण मंत्री हैं । अभी हाल ही में अखिलेश सरकार के एक मंत्री ने मायावती को बदसूरत बताया तो कुछ दिनों पूर्व ही एक अन्यर मंत्री महिला जिलाधिकरी के सौंदर्य को बखान रहे थे । उन्ही के दरबार के एक मंत्री जो विदेशों में अपमानित भलें हो जाएं पर प्रदेश के अधिकारियों को तमाचा मारने से नहीं चूकते और कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जो थोड़ी थोड़ी चोरी करने की सलाह भी दे जाते हैं जिस प्रदेश चलने के लिए सड़कें नहीं, पर्याप्तल बिजली नहीं और बुनियादी स्वानस्य सेवाओं का अभाव हो वहां लैपटाप बांटने का प्रयोजन । रही बात बेरोजगारी भत्ते् की युवाओं को आवश्यहकता है रोजगार की जिससे वो ससम्माभन अपने व अपने कुटुंब का पेट भर सकें । हैरत की बात है सरकार के पास बरबाद करने के लिए तो पर्याप्त धन है लेकिन प्रदेश बिजली बोर्ड का कर्ज पाटने के लिए धनराशि नहीं है । रही बात अखिलेश के लैपटॉप की तो उसे बांटने के भले ही प्रदेश के पैसे लगे हों लेकिन वो समाजवादी प्रचार उपकरण बन कर रह गया है । अब ये बातें जमीन से जुड़ी हैं जो अखिलेश यादव की समझ से परें हैं क्योंसकि जमीनी हकीकत से उनका कोई वास्तार नहीं । या और स्पोष्टि शब्दों में कहें तो सपा के युवराज के लिए प्रदेश के बेबस युवा का दर्द समझना एक टेढ़ी खीर है । ऐसे में अब आवश्यककता है कि सूबे की जनता समाजवाद के नाम चल रहे पाखंड को समझे और इन अवसरवादी एवं तुष्किरण की राजनीति करने वाले तथाकथित जननायकों को उनके सही स्थाान तक पहुंचाये । इसके लिए आगामी लोकसभा चुनावों से बेहतर मंच दोबारा नहीं मिलेगा । अंत में—

नहीं पराग नहीं मधुर मधु,नहीं विकास इहीं काल ।

अली कली हीं ते बंध्यौध, आगे कौन हवाल ।।

 

4 COMMENTS

  1. समाजवाद का अंत जातिवाद में होता है और साम्यवाद का पून्जीवाद् में .
    वंशवाद इन दोनों के लक्षण वैसे भी नहीं है
    इसी की आलोचना कोई कर सकता है पर वह सार्थक होनी चाहिए
    मैं भी आलोचक हूँ पर इस तर्क पर की किसी मुझय मंत्री को सीधे परधानमंत्री का दावेदार नहीं बनाना चाहिए – यह उस दल की हताशा को ही दर्शाता है

  2. Modi mungeri लाल के हसीन सपने देख रहे हैं मीनी च यही है अहिलेश उनको प्रदेश में कोइ चमत्क नही करने देंगे.

  3. There is no Samajvad in U.P. Gundavad which is clearly seen in everyday news regarding U.P.Mulayam is corrupt and can fall to any level to have power and wealth. Now his son is following the same path of appeasing Muslims ,it is all for vote bank politics and common man is confused and lost faith in using his ballot paper carefully .
    Before them Maya was there who was equally corrupt.

  4. सिद्धार्थ मिश्र जी,आप अपने ही आलेख में उलझ पूलझ गये से लगते हैं. पहली बात आपने समाजवाद की की है.समझ में नहीं आया कि इस परिवारवाद में समाजवाद कहाँ से आया? जपी होगी मुलायम सिंह ने कभी माला समाजवाद की. होती होगी कभी उनकी गिनती डाक्टर लोहिया क शिष्यों में,पर वह सब तो बीते युग की बातें हैं. अखिलेश यादव को तो शायद यह पता भी नहीं होगा. पर बाद में लग रहा है कि आप की यह भूमिका केवल अखिलेश यादव पर भडास निकालने के लिए थी,क्योंकि उसने महान मोदी के शान में कुछ गुस्ताख़ी कर दी थी. मिश्र जी, आपके कहने का अर्थ मैं यही समझूँ कि मोदी की आलोचना करने का किसी भी ऐसे व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है,जिसकी उम्र मोदी से कम हो. अंत में तो आप और उलझ गये लगते हैं,जब आपने कविवर बिहारी के उस दोहे को उद्धृत कर दिया,जिसके बारे में कहा जाता है कि जब महाराज ने अपनी कमसिन नई दुलहन केरूप जाल में उलझ कर अंतर महल से बाहर आना ही छोड़ दिया था और सब राज काज भूल गये थे,तब यह दोहा कविवर ने किसी के हाथों उन तक भेजवाया था. उसको यहाँ उद्धृत करने का क्या तात्पर्य है,यह समझना मेरे लिए ज़रा कठिन हो रहा है.

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