तारों को सुलझानें नहीं उलझानें आयें थे रहमान मलिक

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पाकिस्तानी गृह मंत्री क्यों और क्या बोले बाबरी विध्वंस पर?

भारत पाकिस्तान के साथ अपनें सम्बन्धों को जिस प्रकार अपनी छलनी पीठ पर ढो रहा है वह यहाँ के नागरिकों, विभिन्न समाजों, राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और पत्रकार बंधुओं आदि सभी के लिए एक सतत पीड़ादायक अध्याय रहा है. यह सतत पीड़ा और व्यथा का दौर और अधिक टीस और दर्द उत्पन्न करनें लगता है जब इस पर कोई नमक छिड़कनें जैसे बयान दे दे. ऐसा ही घटनाक्रम एक बार फिर हम भारतीयों को भुगतना पड़ रहा है जब पाकिस्तानी गृह मंत्री पिछले सप्ताह अपनी भारत यात्रा पर विवादों को सुलझानें आयें किन्तु तारों को और उलझा कर चल दिए और विवादित किन्तु अत्यधिक पीड़ा और टीस उपजानें वालें व्यक्तव्यों की एक श्रंखला जारी कर गएँ.

पिछले सप्ताह भारत आते ही सबसे पहले रहमान मलिक ने विवाद उत्पन्न करनें की शैतानी मानसिकता से कहा कि “26/11 हमलों में शामिल होने का आरोप झेल रहे हाफ़िज़ सईद के खिलाफ, चरमपंथी अजमल कसाब के बयान के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती.” पाकिस्तान से जल्द ही एक न्यायिक आयोग भारत आने वाला है ताकि कसाब के दिए गए बयानों की जांच कर सके. पाकिस्तान और विशेषतः भारत दोनों देशों के विदेश सचिवों को इस बात पर विचार करना होगा की यदि अब अगर कसाब के बयान का कोई अर्थ न माननें की ही कसम यदि पाकिस्तानी प्रशासन ने ठान ली है तो फिर न्यायिक आयोग के भारत आनें का अर्थ और उद्देश्य ही क्या रह जाता है??

उलझानें वाले बयानों को जारी करनें के मिशन पर ही आये रहमान मालिक ने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया को जेनेवा नियमों के विरूद्ध यातना पूर्ण और पाशविक ढंग से मार दिए जानें पर कहा, “मैं नहीं कह सकता कि सौरभ कालिया की मौत पाकिस्तानी सेना की गोलियों से हुई थी या वो खराब मौसम का शिकार हुए थे.” हालांकि मलिक ने बाद में अपने बयान में सुधार करते हुए कहा था कि पाकिस्तान इस मामले में जांच के लिए तैयार है. जांच के लिए तैयार पाकिस्तानी मंत्री को और विश्व समुदाय को भारतीय गृह मंत्री सुशिल शिंदें द्वारा यह बात दृढ़तापूर्वक बताई जानी चाहिए कि ख़राब मौसम से सौरभ कालिया की आँखें बाहर नहीं निकल सकती थी और न ही सौरभ कालिया के शारीर पर सिगरेट से से दागे जानें के निशान खराब मौसम के कारण आ सकतें थे!!

आगे चलें तो पाकिस्तानी गृह मंत्री फरमातें हैं कि ” २६.११ का मुंबई हमलों का अपराधी अबू जुंदाल भारतीय था और भारतीय एजेंसियों के लिए काम करता था जो बाद में पलट गया.” रहमान मलिक जी, पूरा भारत ही नहीं बल्कि समूचा विश्व आपसे पूछना चाहता है कि “अबू जुंदाल अगर भारतीय एजेंट था तो क्यों पाकिस्तान की सरकार उसके सऊदी अरब से भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ थी? और क्यों उसे पाकिस्तानी नागरिक बताया जा रहा था?? क्यों पूरा पाकिस्तानी प्रशासन अबू जिंदाल की चिंता में अधीर हो रहा था??? यह वही रहमान मलिक हैं जिन्होंने अजमल आमिर कसाब की गिरफ्तारी के बाद उसे पाकिस्तानी मानने से यह कह कर इनकार कर दिया था उसका पाकिस्तानी जनसंख्या पंजीकरण प्राधिकरण में कोई रिकॉर्ड नहीं है.”

रहमान मलिक ने अपनें बारूदी मूंह से शब्द दागना यहाँ बंद नहीं किया और दिल्ली में आगे कहा कि “हम और बंबई धमाके नहीं चाहते, हम और समझौता एक्सप्रेस नहीं चाहते हम और बाबरी मस्जिद नहीं चाहते हम भारत पाकिस्तान और पूरे क्षेत्र में शांति के लिए साथ काम करना चाहते हैं.” हमारी यु पी ए सरकार, हमारें प्रधानमन्त्री मौन सिंह और सुशिल शिंदे समझें न समझें पर कुटिल रहमान मालिक समझतें हैं कि २६.११ की आतंकवादी घटना से भारत की आंतरिक और सामाजिक घटना बाबरी विध्वंस में तुलना करके उन्होंने क्या हासिल कर लिया है!! यद्दपि पाकिस्तानी मंत्री बाद में इस बयान से भी पलट गए और उन्होंने कहा कि उनके बयान के गलत अर्थ निकाले गए तथापि यह एक शैतानी भरी शरारत तो थी ही.

स्पष्टतः ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी मंत्री यह कहना चाहते थे कि यदि बाबरी का कलंक भारत से हटानें का उपक्रम भारत में नहीं होता तो मुंबई में २६.११ भी नहीं होता!! भारत पाकिस्तानी संबंधों के बेहद संवेदनशील स्थितियों में होनें के उपरान्त भी रहमान मालिक का २६.११ और बाबरी विध्वंस की तुलना का यह दुस्साहस भरा बयान यु पी ए सरकार के कानों पर कोई हरकत कर गया हो या नहीं यह तो पता नहीं चल पा रहा किन्तु पुरे राष्ट्र इस बात को लेकर बेहद गुस्सा और गुबार जरूर है जिसका प्रकटीकरण विदेश प्रशासन स्तर पर अपेक्षित तो है किन्तु यह हो पायेगा या नहीं यह संदेहास्पद है. भारत द्वारा पाकिस्तान से यह पूछा जाना चाहिये कि किस हैसियत से उसनें भारत के इस संवेदनशील अंदरूनी सामाजिक विषय को छुनें की हिमाकत की है? यु पी ए सरकार द्वारा पाकिस्तान सहित समूचे विश्व को यह भी चुनौती पूर्वक बताया जाना चाहिए की बाबरी विध्वंस कोई सैनिक कार्यवाही या प्रशासनिक गतिविधि नहीं बल्कि एक सामजिक आक्रोश का परिणाम था जी शुद्ध और शुद्द्तः रूप से भारत का अंदरूनी मामला है और इसकी इस प्रकार चर्चा करके पाकिस्तान ने भारतीय संप्रभुता की सीमा को अतिक्रमित करनें का प्रयास किया है. भारतीय धरती पर बाबरी ढांचें का अस्तित्व और विध्वंस एक प्रतीकात्मक घटना है जिसे भारतीय इतिहास की पूंजी समझा जा सकता है! “यह अन्तराष्ट्रीय अखाड़े की चर्चा का नहीं बल्कि हमारी अस्मिता और हमारी अंतस वेदना का एक अमिट अध्याय है जिस सम्बन्ध में पाकिस्तान सहित समूचे विश्व को चुप्पी बनाएं रखनी होगी” – यह भी बताया जाना चाहिए. पाकिस्तान से यह भी नाराजगी पूर्वक कहा जाना चाहिए की बाबरी ढांचें को ढहा दिये की घटना का किसी आतंकवादी घटना या किसी अतिवादी घटना के साथ जोड़ा जाना भी भारतीय समाज की सामाजिक समरसता को छेड़ने के समान ही है और इस बात की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए.

 

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