पता नहीं क्यों

animals हाथी घोड़े बंदर भालू,

की कवितायें मुझे सुहातीं।

पता नहीं क्यों अम्मा मुझको ,

परियों वाली कथा सुनाती।

 

मुझको य‌ह मालूम पड़ा है,

परियां कहीं नहीं होतीं हैं।

जब‌ सपने आते हैं तो वे,

पलकों की महमां होती हैं।

 

पर हाथी भालू बंदर तो,

सच में ही कविता पड़ते हैं।

कविता में मिल जुलकर रहते,

कविता में लड़ते भिड़ते हैं।

 

बंदर खीं खीं कर पढ़ता है,

हाथी की चिंघाड़ निराली।

भालू हाथी शेर बजाते,

इनकी कविता सुनकर ताली।

 

सियार मटककर दोहे पढ़ता,

और लोमड़ी गज़ल सुनाती।

कभी शेरनी गज़लें सुनने ,

भूले भटके से आ आती।

 

रोज़‌ नीम के पेड़ बैठकर,

कोयल मीठे गाने पाती।

पता नहीं क्यों अम्मा मुझको ,

परियों वाली कथा सुनाती।

 

हिरण चौकड़ी भरकर गाता,

होता है जब वह मस्ती में।

रोज सुबह ही गीत सुनाता,

मुर्गा जब होता बस्ती में।

शुतुर्मुर्ग की ऊंची गर्दन,

नहीं किसी मुक्तक से कम है।

कविता पढ़कर करे सामना,

गधा कह रहा किसमें द‌म है।

 

बड़ा सलोना सुंदर लगता,

बकरी का मैं मैं का गाना।

मन को झंकृत कर देता है,

सुबह सुबह से गाय रंभाना।

 

बतख‌ नदी और तालाबों में,

तैर तैर कर छंद सुनाती।

मछली की रंगीन लोरियाँ,

मन को पुल‌कित करकर जातीं।

 

देख देख मैंना को तोता,

हर दिन पढ़ता सुबह प्रभाती।

पता नहीं क्यों अम्मा मुझको ,

परियों वाली कथा सुनाती।

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

4 COMMENTS

    • कृपया सुधार करें|
      ‘बच्चों की कविता आप बहुत अच्छी लिखते हैं’ ।मै- कवि हू कवित्री नही

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