(मधुगीति १८११२८ अ)
आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए,
अपने मन की बात औरों को बिना पूछे यों ही न बताइए;
अपनी अधिक सलाह देकर और आत्माओं को कम मत आँकिए,
स्वयं के ईशत्व में समा संसार को अपना स्वरूप समझ देखिए!
अपनी सामाजिक संतति को बेबकूफ़ी करते हुए भी पकने दीजिए,
आदर्श समाज व राजनीति की पनपने की प्रतीक्षा कीजिए;
‘मधु’ के प्रभु को विश्व समाज बनाने में सहयोग कीजिए,
जो भी अपेक्षाकृत उत्तम हैं उनसे तब तक काम लीजिए !
रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’