दूरदर्शन – समाचार, संस्कार व संतुलन की पाठशाला 

0
684

-डॉ. पवन सिंह

दूरदर्शन, इस एक शब्द के साथ न जाने कितने दिलों की धड़कन आज भी धड़कती है। आज भी दूरदर्शन के नाम से न जाने कितनी पुरानी खट्टी-मिट्ठी यादों का पिटारा हमारी आँखों के सामने आ जाता है। दूरदर्शन के आने के बाद न जाने कितनी पीढ़ियों ने इसके क्रमिक विकास को जहाँ देखा है वही अपने व्यक्तिगत जीवन में इसके द्वारा प्रसारित अनेकों कार्यक्रमों व उसके संदेशों का अनुभव भी किया है। दूरदर्शन के पिछले छह दशकों की यात्रा गौरवपूर्ण रही है। सूचना, संदेश व मनोरंजन के साथ – साथ पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य भी दूरदर्शन ने बखूबी निभाया है। आज भी दूरदर्शन चौबीस घंटे के प्राइवेट चैनलों की भीड़ व बिना सिर पैर की ख़बरों के बीच अपनी प्रासंगिकता व कार्यशैली के कारण अडिग रूप से खड़ा है।

 आज दूरदर्शन का जन्मदिन है। यानी 15 सितंबर 1959 में प्रारंभ हुआ दूरदर्शन, आज 63 साल का हो गया है। किसी भी मीडिया के लिए इतना लंबा कालखंड बहुत मायने रखता है। ऐसे में देश की 130 करोड़ जनसंख्या दूरदर्शन के सफल भविष्य की कामना करती है। यह अपनी पहचान को इसी प्रकार कायम रखते हुए, अपने लक्ष्यों से बिना डगमगाए नए कीर्तिमान स्थापित करता रहे। आज ही के दिन सन 1959 में दूरदर्शन का पहला प्रसारण प्रयोगात्मक आधार पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक व विकास कार्यक्रमों के आधार पर किया गया था। उस दौर में दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधे –आधे घंटे के लिए होता था। उस समय इसको ‘टेलीविजन इंडिया’ नाम दिया गया था। बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया।

 प्रारंभ के दिनों में पूरे दिल्ली में 18 टेलीविजन सेट और एक बड़ा ट्रांसमीटर लगा था। तब लोगों के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। तत्पश्चात दूरदर्शन ने अपने क्रमिक विकास की यात्रा शुरू की और दिल्‍ली (1965), मुम्‍बई (1972), कोलकाता (1975), चेन्‍नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई। शुरुआत में तो दूरदर्शन यानी टीवी दिल्ली और आसपास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था। लेकिन अस्सी के दशक को दूरदर्शन की यात्रा में एक ऐतिहासिक पड़ाव के रुप में देखा जा सकता है। इस समय में दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुँचाने की शुरुआत हुई और इसकी वजह थी 1982 में दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एशियाई खेल। एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि ब्लैक एंड वाइट दिखने वाला दूरदर्शन अब रंगीन हो गया था।

 आज की नई पीढ़ी जो प्राइवेट चैनलों के दौर में ही बड़ी हुई है या हो रही है। उसे दूरदर्शन के इस जादू या प्रभाव पर यकीन न हो, पर वास्तविकता यही है कि दूरदर्शन के शुरुआती कार्यक्रमों की लोकप्रियता का मुकाबला आज के तथाकथित चैनल के कार्यक्रम शायद ही कर पाएं। फिर चाहे वो ‘रामायण’ हो, ‘महाभारत’, ‘चित्रहार’ हो या कोई फिल्म, ‘हम लोग’ हो या ‘बुनियाद’, इनके प्रसारण के वक्त जिस तरह लोग टीवी से चिपके रहते थे, वह सचमुच अनोखा था। उस दौर में दूरदर्शन ने पारिवारिक संबंधों को वास्तविक रूप में चरितार्थ करके दिखाया। दूरदर्शन पर शुरू हुआ पारिवारिक कार्यक्रम  ‘हम लोग’  जिसने लोकप्रियता के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। इसके बाद शुरु हुआ भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना ‘बुनियाद’ जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परिचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार फिर चाहे वो आलोक नाथ (मास्टर जी) हो, अनीता कंवर (लाजो जी) हो, विनोद नागपाल हो या फिर दिव्या सेठ, ये सभी घर – घर में लोकप्रिय हो चुके थे। इसके इलावा 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगुडी डेज़, ये जो है जिंदगी, रजनी, ही मैन, वाह जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, रविवार को दिखाई जाने वाली फिल्म, भारत एक खोज, ब्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख आदि सूचना-संदेश व मनोरंजन से परिपूर्ण दूरदर्शन के इन सभी कार्यक्रमों ने देश भर में अपने प्रभाव व जादू से लोगों के मनों में एक अमिट छाप छोड़ी। वास्तव में उस समय लोगों के दिलों पर दूरदर्शन का राज चलता था।

 मनोरंजन के साथ – साथ दूरदर्शन ने सदैव लोगों को शिक्षित व नैतिक बातों के आग्रह के लिए भी प्रेरित किया है और इसके लिए अपनी अहम भूमिका निभाई है। मीडिया में एजुटेंमेंट को स्थापित करने का श्रेय भी दूरदर्शन को ही जाता है। अगर विज्ञापनों की बात करें तो ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ ने जहाँ समाज को एकता के संदेश के साथ जोड़ा, वहीं ‘बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर’ के द्वारा अपनी व्यावसायिक क्षमता का परिचय भी करवाया। कृषि प्रधान देश भारत में किसानों तक अपनी सीधी पहुँच बनाने में भी दूरदर्शन सफल रहा। सन 1966 में ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम के द्वारा देश में हरित क्रांति के सूत्रपात का केंद्र बिंदु भी दूरदर्शन ही बना। सूचना देने के उद्देश्य से 15 अगस्त 1965 को प्रथम समाचार बुलेटिन का प्रसारण दूरदर्शन से किया गया था और यह सफ़र आज भी निरंतर जारी है।

 कोरोना के इस दौर में भी हम सबने दूरदर्शन की सफलता व कीर्तिमान को एक बार फिर महसूस किया है। कोरोना की पहली लहर के दौरान अस्सी के दशक में दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों का पुनः प्रसारण रामायण, महाभारत, कृष्णा आदि को हमने परिवार के साथ बैठ कर पूरे मनोयोग से देखा है। पिछले त्रेसठ वर्षों से अब तक दूरदर्शन ने जो विकास यात्रा तय की है वह काफी प्रेरणादायक है। तकनीक व संचार क्रांति के इस समय में भी 93 प्रतिशत से अधिक घरों में दूरदर्शन की पहुँच बनी हुई है। आज भी हर एक भारतीय को इस पर गर्व है कि उसके पास दूरदर्शन के रूप में टेलीविजन का गौरवशाली इतिहास मौजूद है। आज भी प्राइवेट चैनलों व निजी मीडिया घरानों के बीच में दूरदर्शन सबसे बड़ा, सबसे सक्षम और सबसे अधिक उत्तरदायी चैनल समूह के रूप में अपनी भूमिका को निभा रहा है। वास्तव में अर्थपूर्ण व समसामयिक कार्यक्रमों और भारतीय संस्कृति को बचाए रखते हुए देश की भावनाओं को स्वर देने का काम दूरदर्शन ने ही किया है। प्रारंभ से लेकर आज तक दूरदर्शन ने अपने स्थापित मूल्यों व लक्ष्यों को न केवल प्राप्त किया है बल्कि उनकी सार्थकता को कायम भी रखा है। आज दूरदर्शन के स्थापना दिवस पर इसकी सार्थकता, सामयिकता, पहुँच व नवाचार आधारित प्रयोगधर्मिता इसी प्रकार अक्षुण्ण बनी रहे, यही कामना व संदेश।  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here