राजनीति

भ्रष्‍टाचार पर दोमुंहापन- अरविंद जयतिलक

भ्रष्‍टाचार को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों का रवैया अशोभनीय है। सैद्धांतिक तौर पर दोनों ही भ्रष्‍टाचार के खिलाफ हैं लेकिन व्यवहार में दोनों का आचरण दोषपूर्ण है। दोनों की प्रतिबद्धता खोखली और भ्रम पैदा करने वाली है। यह किसी प्रकार से उचित नहीं है कि दोनों दल भ्रष्‍टाचार पर उपदेश दें और जब उनपर आरोप लगे तो कुतर्कों से बचाव करे। किंतु दोनों का व्यवहार ऐसा ही है। आकंठ भ्रष्‍टाचार में गोता लगा रही कांग्रेस और उसके नेतृत्ववाली सरकार से नैतिकता और शुचिता की उम्मीद तो बेमानी है लेकिन नैतिकता की दुहाई देने वाली भारतीय जनता पार्टी का रवैया भी कम विचलित करने वाला नहीं है। कांग्रेस की तरह वह भी अपने सिपहसालारों के भ्रष्‍टाचार के खिलाफ तभी कदम उठाती है जब उसकी साख का पलीता लग चुका होता है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा का मामला देश समाज के सामने है।

एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी कसौटी पर है। उसके राष्‍ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर संगीन आरोप है कि उन्होंने महाराष्‍ट्र में 1995-1999 के दौरान बतौर लोक निर्माण मंत्री रहते हुए जिस आइडियल रोड बिल्डर्स (आइआरबी) समूह नामक निर्माण कंपनी को ठेका दिया उसी ने उनकी कंपनी पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड में भारी निवेश किया। आरोप यह भी है कि आइआरबी के अलावा पूर्ति समूह में जिन अन्य 16 कंपनियों का निवेश है उनका पता संदिग्ध है। तथ्य यह भी उजागर हुआ है कि कुछ कंपनियों का पता झुग्गीवासियों के लिए बनायी जा रही एक निर्माणाधीन इमारत में है। उसके अलावा निवेष करने वाली कंपनियों के डाइरेक्टर में गडकरी का ड्राइवर, अकाउंटेंट और उनके पुत्र निखिल के दोस्त का नाम है। इस खुलासे में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद पता चलेगा लेकिन संघ और भाजपा दोनों की मुष्किलें जरुर बढ़ गयी है। अच्छी बात यह है कि गडकरी ने अपने उपर लग रहे आरोपों की जांच किसी भी एजेंसी से कराने को तैयार हैं। लेकिन सवाल अब सिर्फ जांच की परिधि तक ही सीमित नहीं रह गया है। बात जब निकली है तो दूरतलक जाएगी ही। उनका राष्‍ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहना और दूसरे कार्यकाल की मंजूरी अब नैतिकता की परिधि में आ गया है। कांग्रेस पार्टी को गडकरी के बहाने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधने का अच्छा बहाना भी मिल गया है। देखना दिलचस्प होगा कि भ्रष्‍टाचार के मसले पर वाड्रा और वीरभद्र सिंह की घेराबंदी कर रही भारतीय जनता पार्टी अपने अध्यक्ष के उपर लगे आरोपों का बचाव कैसे करती है। लेकिन विचलित करने वाला तथ्य यह है कि गडकरी की आड़ लेकर नैतिकता की बात कर रही कांग्रेस दोहरे मापदंड अपना देष को गुमराह कर रही है। देश हैरान है कि कंपनी मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली एक तरफ नितिन गडकरी के कंपनी पर लगे आरोपों की जांच का एलान करते हैं वही सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और हिमाचल के कांग्रेसी नेता वीरभद्र सिंह पर लगे आरोपों पर चुप हैं। वाड्रा को क्लीन चिट दे रहे हैं। ऐसी ही पैंतराबाजी कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी दिखा रहे हैं। उचित तो यह होता कि सरकार गडकरी समेत वाड्रा और वीरभद्र सिंह सभी पर लगे आरोपों की ईमानदारी से जांच करती ताकि दुध का दुध और पानी का पानी हो जाता। लेकिन वह भ्रष्‍टाचार पर दोहरा मापदंड अपनाकर देश को निराश कर रही है। यह न्यायसंगत नहीं है। लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। गडकरी के कथित भ्रष्‍टाचार के साथ ही वाड्रा और वीरभद्र सिंह के भ्रष्‍टाचार की भी जांच होनी चाहिए। कांग्रेस और सरकार वाड्रा को आम आदमी बता जांच से इंकार नहीं कर सकती। देश जानना चाहता है कि अगर सोनिया गांधी के दामाद वाड्रा की जगह एक आम आदमी पचास लाख रुपए से तीन वर्श में पांच सौ करोड़ रुपए की पूंजी खड़ा करता तो क्या भारत सरकार उसकी जांच नहीं कराती? क्या उसे यों ही छोड़ देती? क्या हरियाणा की हुड्डा सरकार एक आम आदमी की संपत्ति की सुरक्षा के लिए अपने आइएएस अधिकारी का रात साढे़ दस बजे तबादला करती? क्या हरियाणा सरकार औने-पौने दामों में किसानों से भूमि अधिग्रहण कर कौडि़यों के भाव एक आम आदमी को देती? संभव ही नहीं है। सच तो यह है कि इस तरह के सभी विशेषाधिकार सिर्फ सोनिया गांधी के दामाद के लिए बनाए गए हैं। निश्चित रुप से अगर वाड्रा की जगह कोई दूसरा इस तरह के धंधों में लिप्त होता तो सरकार उसे कब का मजा चखा चुकी होती। हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष वीरभद्र सिंह पर भी भ्रष्‍टाचार के संगीन आरोप हैं। शिमला की विशेष अदालत ने 23 साल पुराने एक भ्रष्‍टाचार के मामले में उन पर आरोप पहले ही तय कर रखा है। उन पर कारोबारियों से घूस लेने का आरोप है। सबूत के तौर पर आडियो सीडी भी उपलब्ध है। लेकिन विडंबना यह है कि कांग्रेस पार्टी घूस के आरोपी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ रही है। सोनिया गांधी उनसे कदमताल मिला भ्रष्‍टाचार से दो-दो हाथ करने का हुंकार भर रही हैं। घूस लेने के अलावा वीरभद्र सिंह पर आयकर रिटर्न में संपत्ति का गलत ब्यौरा देने और बीमा पॉलिसी के जरिए पैसों के हेरफेर का भी आरोप है। जानना जरुरी है कि वीरभद्र सिंह ने आयकर विभाग को रिटर्न में अपनी संपत्ति का जो ब्यौरा दिया है वह आश्‍चर्य में डालने वाला है। मसलन उन्होंने अपनी सेब के बगीचे का तीन साल का एग्रीमेंट पहले एक विशंभर दास नाम के व्यक्ति के साथ किया और आयकर रिटर्न में बगीचे से कमाई पहले वर्ष 7.5 लाख रुपए, दूसरे वर्ष 15 लाख रुपए और तीसरे वर्ष 25 लाख रुपए दर्शायी। यह एग्रीमेंट 17 जून, 2008 को किया गया। मजे की बात यह है कि वीरभद्र सिंह उसी बगीचे का दुबारा एग्रीमेंट 15 जून, 2008 को जीवन बीमा निगम के एक एजेंट आनंद चौहान के साथ करते हैं। गौरतलब यह है कि आनंद चौहान वही व्यक्ति है जिसके द्वारा ‘वीबीएस’ के नाम पर बार-बार भुगतान करने एवं शिमला के पंजाब नेशनल बैंक में खाता खोल उसमें लाखों रुपए जमा करने का आरोप है। यही नहीं उसके द्वारा पांच करोड़ रुपए का चेकों के माध्यम से जीवन बीमा निगम की पॉलिसी के लिए भुगतान भी किया गया है। यहां दिलचस्प पहलू यह है कि वीरभद्र सिंह द्वारा 2012 में आयकर विभाग को जो संषोधित रिटर्न भेजा गया है उसमें 2 करोड़ 21 लाख रुपए की आय दिखायी गयी है। अब सवाल यह है कि दोनों एग्रीमेंट की राषि में इतना अंतर क्यों है? क्या आयकर विभाग को उसकी जांच नहीं करनी चाहिए? आनंद चौहान वीरभद्र सिंह उनकी पत्नी और उनके दोनों बच्चों के नाम की पॉलिसी का भुगतान करता है और उसकी जानकारी वीरभद्र सिंह को नहीं होती है यह भला कैसे संभव है? क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए? लेकिन दुर्भाग्य है कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्ववाली सरकार को वीरभद्र सिंह की इस कपट लीला में कुछ भी गड़बड़ नहीं दिखता है।

दरअसल कांग्रेस और उसके नेतृत्ववाली सरकार मान बैठी है कि उसका भ्रष्‍टाचार पुण्य कर्म है और दूसरे का भ्रष्‍टाचार पाप। वह इसे अच्छी तरह प्रमाणित भी कर रही है। अभी पिछले दिनों ही उसने टू-जी घोटाले के आरोपी ए राजा और कामनवेल्थ गेम्स के आरोपी षुरेष कलमाडी को विदेश मंत्रालय की संसदीय समिति में नामित किया। लोगबाग हैरान हैं कि कांग्रेस और उसके नेतृत्ववाली सरकार भ्रष्‍टाचारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर आखिर देश को क्या संदेश रही है? क्या यह लोकतांत्रिक परिपाटी, नैतिक मूल्यों और जनभावनाओं के खिलाफ नहीं है? क्या कांग्रेस और उसके नेतृत्ववाली सरकार का रेखांकित नहीं करता कि वह भ्रश्टाचार से लड़ने के बजाए उस पर पर्दादारी कर रही है? कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक अनैतिकता और भ्रश्टाचार पर दोमुंहापन न तो उसके हित में है और न ही देश के।