डॉ. कलाम एक पुण्य आत्मा

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भारत एवं पूरे विश्व में समय-समय पर पुण्य आत्माओं का उदय होता रहा है। इन पुण्य आत्माओं ने समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करते हुए दिशा देने का काम किया है। भारत में देखा जाये तो आर्य भटट, चरक ऋषि, स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सत्य साईं, गुरू नानक, संत कबीर, संत रविदास, स्वमी दयानंद सरस्वती, देवरहा बाबा, वीर शिवाजी, शहीद भगत सिंह, डॉ. हेडगेवार, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उंपाध्याय, जय प्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया सहित तमाम पुण्य आत्माओं का अवतरण हुआ है। इन लोगों ने समाज एवं राष्ट्र के लिए दुर्लभ कार्य किये हैं। विश्व स्तर पर देखा जाये तो नेल्सन मंडेला, अब्राहम लिंकन और मैक्समूलर जैसी तमाम पुण्य आत्माओं का अवतरण समय-समय पर होता रहा है।
ऐसी ही तमाम पुण्य आत्माओं में पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का भी नाम लिया जा सकता है जिन्होंने समाज में राष्ट्रसेवा एवं मानवता की ऐसी मिसाईल कायम की है जिसे इतिहास हमेशा याद रखेगा। इसी पुण्य आत्मा की बदौलत भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बना एवं पूरी दुनिया के समक्ष सीना तानकर खड़ा हुआ। डॉ. कलाम के ही कारण सर्वोत्तम टेक्नोलॉजी देश में आई। डॉ. कलाम के द्वारा विकसित टेक्नोलॉजी की बात की जाये तो वह पूरी दुनिया में न सिर्फ सर्वोत्तम टेक्नालॉजी है, बल्कि बहुउद्देशीय है।
एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने जो कुछ किया वह बेमिसाल है। पूरा हिन्दुस्तान उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानता है। डॉ. कलाम जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने एक राष्ट्रपति के रूप में भी ऐसा काम किया जिसकी मिसाल कहीं ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगी। इसके अलावा उनका प्रमुख कार्यक्षेत्रा अध्ययन एवं अध्यापन का था। वे हमेशा बच्चों को प्रोत्साहित करते रहते थे। उनका कहना था कि ‘सपने वह नहीं होते जो सोते समय देखे जाते हैं, बल्कि सपने वे होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।’
डॉ. कलाम का जीवन सादगी एवं मानवता से परिपूर्ण था। अध्ययन एवं अध्यापन उनका प्रिय विषय था। यही काम करते हुए उनका अंतिम समय भी बीता। डॉ. कलाम इतिहास में सबसे पहले व्यक्ति हैं जिनके अंतिम सांस लेने पर शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा रहा होगा, जिसकी आंखों से आंसू नहीं निकले होंगे।
राष्ट्रपति बनने के बाद जब डॉ. कलाम को यह पता चला कि उन्हें सब कुछ सरकार की तरफ से मिलेगा तो उन्होंने जो भी पूंजी एकत्रित की थी उसका दान कर दिया। ईमानदारी की बात की जाये तो वे इतने महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ देश के राष्ट्रपति बने किंतु उनके भाई आज भी छतरी ठीक करने की दुकान खोलकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। क्या ऐसे उदाहरण राजनीतिक इतिहास में देखने को मिलेंगे? डॉ. कलाम जैसी पुण्य आत्मा के दिखाये हुए रास्ते पर यदि देशवासी चलें तो उनके प्रति यही सच्ची श्रद्धांजली होगी। निःसंदेह उनका जीवन एकदम बेदाग एवं संत जैसा रहा है।
डॉ. कलाम को जहां दफनाया गया है, वहां का दृश्य भी ऐसा है जो अपने आप में बेमिसाल है। उनकी समाधि के एक तरफ मंदिर है तो दूसरी तरफ मस्जिद है। समाधि के पास मंदिर में आरती चलती रहती है तो मस्जिद से अजान चलती रहती है। आखिर यह सब क्या है? क्या यह अद्भूत संयोग नहीं है? क्या इस प्रकार का संयोग सबके साथ हो सकता है?
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस प्रकार का संयोग मात्रा किसी पुण्य आत्मा के साथ ही संभव है। डॉ. कलाम धर्मनिरपेक्षता की मिसाल थे। वे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा एवं चर्च सभी जगह जाते थे। हिन्दुओं का पवित्रा ग्रंथ गीता उनको पूरी तरह कंठस्थ थी। वे प्रतिदिन गीता का पाठ करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई भी बेहद गरीबी में रहकर की। डॉ. कलाम की अंतिम यात्रा में लोग घंटो पुष्प मालाएं लेकर उन्हें श्रद्धांजली देने के लिए खड़े रहे। इस देश की वैसे भी एक महान परंपरा रही है कि समय-समय पर डॉ. कलाम जैसी पुण्य आत्माओं ने जन्म लेकर राष्ट्र एव समाज को दिशा देने का काम किया है।
डॉ. हेडगेवार ने समाज से जातिवाद समाप्त करने का संकल्प लिया। शाखा में जितने भी स्वयंसेवक जाते हैं, वे अपने नाम के आगे जाति का इस्तेमाल नहीं करते हैं। यदि सभी लोग ऐसा करने लगें तो निश्चित रूप से समाज से जाति समाप्त हो जायेगी। इस प्रकार का कार्य कोई पुण्य आत्मा ही कर सकती है। आजादी के दीवाने भगत सिंह को जब फांसी होनी थी तो फांसी से पहले उनका वजन बढ़ गया था। क्या इस तरह की मिसाल और कहीं देखने को मिलेगी कि जिस व्यक्ति को फांसी दी जानी हो और उसे पता हो, तो भी उसका वजन बढ़ जाये। इस प्रकार का उदाहरण किसी पुण्य आत्मा के ही माध्यम से संभव हो सकता है।
भारत में डॉ. अब्दुल कलाम से बड़े-बड़े वैज्ञानिक हुए हैं, किंतुु आज के युग में और परिस्थितियों में विश्व के समक्ष भारत ने जो योगदान दिया है वह सब डॉ. कलाम की ही देन है। डॉ. कलाम में आध्यात्मिकता कूत-कूत कर भीर थी। स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया में इंसानियत एवं मानवता का झंडा बुलंद किया।
डॉ. कलाम को देश आज यूं ही नहीं याद कर रहा है बल्कि उसके तमाम कारण हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने समाज के समक्ष जिस तरह का आदर्श प्रस्तुत किया, यदि उस रास्ते पर हमारे देश के राजनेता चलें तो देश का कल्याण हो सकता है। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने लिए उतनी ही सुविधाएं लीं, जितनी नितांत आवश्यक थीं। फिजूलखर्ची को उन्होंने रोकने का प्रयास किया।
राष्ट्रपति पद से हटने के बाद डॉ. कलाम ने अपने लिए बड़े बंगले एवं सुख- सुविधाओं की अभिलाषा नहीं व्यक्त की। बल्कि उन्होंने कहा कि उनके लिए एक डुपलैक्स फ्लैट ही पर्याप्त होगा। राष्ट्रपति भवन में जो कुछ लेकर वे गये थे, उसी को लेकर वे वापस भी आये। जीवन में अपने लिए उन्होंने कुछ भी नहीं किया, जो कुछ किया भी किया – सब राष्ट्र के लिए किया।
आज धर्म के नाम पर लोग आपस में लड़ रहे हैं, किंतु उनके लिए एक ही धर्म था और वो था राष्ट्र धर्म। यदि समस्त देशवासी सिर्फ राष्ट्र धर्म का पालन करें तो क्या इस देश को कोई विश्व गुरू बनने से रोक सकता है? आज समाज में देखने में आ रहा है कि जो लोग साधन-संपन्न हैं, वे जो चाहते हैं हासिल कर लेते हैं। अमीर और अधिक अमीर हो रहे हैं तो गरीब और अधिक गरीब हो रहे हैं यानी कि अमीर एवं गरीब के बीच की खाईं लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि डॉ. कलाम के जीवन से प्रेरणा ली जाये तो निश्चित रूप से इस समस्या से निजात पाई जा सकती है किंतु क्या यह संभव है कि आज के राजनेता सार्वजनिक जीवन में उस प्रकार का आचरण करेंगे, जैसा डॉ. कलाम ने किया। साथ ही उन्होंने एक संदेश यह भी दिया कि अभावों में रहकर भी अपने को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
महान वैज्ञानिक डॉ. कलाम ने अपनी मेहनत एवं क्षमता के बल पर भारत को जो ऊंचाईंया प्रदान कीं, उनके कारण पूरा देश उनके कार्यों का हमेशा ऋणी रहेगा। मिसाइल की ताकत प्रदान करके देश को शक्ति संपन्न बनाने वाले कलाम साहब की नजर में हमेशा युवा भारत की तस्वीर होती थी।
डॉ. कलाम ने हमेशा युवाओं के बीच जोश पैदा करने वाला वातावरण बनाया। उनकी देश में कितनी लोकप्रियता थी इस का पता सोशल मीडिया से भी चलता है। फेसबुक, ट्विटर पर तो सिर्फ उन्हीं की चर्चा थी। सोशल मीडिया पर उन्हें जितने लोगों ने श्रदांजलि दी, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे हिन्दुस्तान की जनता के दिलों पर राज करते थे।
देश में राष्ट्रपति तो और भी हुए हैं किंतु सही अर्थों में जनता के राष्ट्रपति डॉ. कलाम ही थे। वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी ने अपनी शोक संवेदना में कहा कि डॉ. कलाम जनता के राष्ट्रपति थे। उनकी अंतिम यात्रा में जिस प्रकार लोगों का हुजूम उमड़ा वह किसी ऐसे राष्ट्रपति के ही साथ हो सकता है, जो वास्तव में जनता का ही राष्ट्रपति रहा हो।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि डॉ. कलाम जैसी पुण्य आत्माओं का अवतरण बहुत मुश्किल से होता है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि उनके दिखाये गये रास्ते पर हम सभी चलकर राष्ट्र एवं समाज का विकास करें एव जो काम उनके द्वारा अधूरे रह गये हों उसे आगे बढ़ाने का काम करें। यही उनके प्रति सच्ची श्रदांजली होगी। वैसे भी कोई देशवासी यह नहीं चाहेगा कि कलाम साहब ने जो सपना दिखाया है वह किसी भी रूप सें अधूरा रहे। उनके द्वारा बनाई हुई यह कोई सामान्य रहा नहीं है बल्कि वह ऐसी राह है जिस पर चलकर देश को जिस रास्ते पर भी चाहें ले जा सकते हैं। यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण बात है कि डॉ. कलाम के निधन पर अमेरिका में व्हाइट हाउस में भी झंडा झुकाया गया। इसके पहले ऐसा अन्य किसी भी भारतीय के देहान्त पर अमेरिका में झंडा नहीं झुका था।

  • अरूण कुमार जैन

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