नीयत या नियती

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नीयत और नियती दोनों ही मनुष्य से जुड़े हुए शब्द हैं जिनका मानव जीवन से पल-पल का संबंध है। नीयत मनुष्य के जेहन में इस कदर होती है कि उसका किसी को आभास नहीं हो सकता। यह या तो उसके कथन से अनुमान लगाया जा सकता है या उसके
द्वारा सम्पादित कार्यों, क्रिया-कलापों के घटित होने के पश्चात ही परिलक्षित हो पाता है। ठीक इसी प्रकार नियती का भी किसी को भान नहीं हो पाता। इसका ज्ञान भी कार्यों के सम्पादन या घटनाओं के घटित होने के पश्चात ही होता है। मनुष्य को खुद अपने विवेक से किसी की नीयत पर विश्वास करना होता है या अविश्वास तथा परिणाम को नियति पर छोड़ना पड़ता है।
हमारे सौर मण्डल में अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार केवल पृथ्वी पर ही जीवन है और इस पृथ्वी पर 70 प्रतिशत भाग जल है तथा 30 प्रतिशत भाग स्थल है। यह स्थल भी अनेक भौगौलिक और प्राकृतिक विषमताओं से भरा है। मानव इन विषमताओं से संघर्ष कर खुद को समायोजित करते हुए अपना जीवन-यापन करता है। उसके निवास और आवश्यकता हेतु स्थल भूभाग की उपलब्धता अत्यंत ही सीमित है। अतः सीमित साधनों के उपयोग के पहले उसे एक पूर्ण योजना और काफी सोच-विचार की जरूरत होती है।
भारत भी इन विविधताओं से अछूता नहीं है। यहां भी भौगोलिक विविधता और जीवन शैली की विविधता के कारण देशवासियों की आवश्यकताएं और जरूरतें भिन्न-भिन्न हैं। सन् 1947 से पहले लगभग 200 वर्षों तक यहां अंग्रेजों का शासन रहा। निश्चित ही यहां उनका शासन भारत के विकास के लिए नहीं वरन सोने की चिड़िया के नाम से विख्यात भारत के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और अपने आपको समृद्ध बनाने के लिए था और उन्होंने यही किया भी। फोर्ट विलियम हंटर व मैैक्समूलर की अध्यक्षता में गठित विलियम हंटर कमीशन के जरिये अंग्रेजों ने भारत में लगभग 34,735 कानून लागू किये तथा इन कानूनों को आजादी के समय भारत छोड़कर गये। इनमें से इण्डियन पुलिस एक्ट, लैण्ड एक्ज्वीशन एक्ट, इण्डियन एजुकेशन एक्ट आदि मुख्य हैं।
आज देशवासियों से किये वादे को अमलीजीमा पहनाने के लिए नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्रित्व में सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर देश के विकास व देशवासियों के रहन -सहन के स्तर को उठाने का प्रयास किया जा रहा है। यह भूमि अधिग्रहण कानून फोर्ट विलियम हंटर ने सन 1824 में सर्वप्रथम लागू किया था। जिनकी सहायता से सड़क, नहर और अन्य जन-सुविधाओं के विकास का सपना दिखाकर अचल सम्पत्तियों का अधिग्रहण किया गया। इसी समय इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति जोरों पर थी।
नई-नई आई रेल गाड़ी का भी भारत में अंग्रेजों द्वारा पदार्पण हुआ। तब उन्हें और ज्यादा भूमि की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने इसी विलियम हंटर के बंगाल वाले भूमि अधिग्रहण कानून में व्यापक परिवर्तन कर भूमि अधिग्रहण कानून-1894 बनाया तथा पूरे भारत में अपनी मर्जी के अनुसार रेल लाइनें बिछाई। निश्चित ही इस कानून में उनकी नीयत भारतीयों के विकास की अपेक्षा स्वार्थ सिद्धि पर ज्यादा थी। भारतीयों का जीवन तो नियती हाथों दम घुट रही थी। भारतीयांे की विडम्बना यह रही की स्वतंत्राता के पश्चात सरकारों द्वारा आज भी उसी कानून के आधार पर मुआवजा आधारित स्वार्थ सिद्धि की जाती रही।
अग्रेजों द्वारा भारत में लागू किये गये लगभग सभी कानून देशवासियों को कानूनी दांव-पेंच में उलझाकर समय की बर्बादी करना और येन-क्रेन-प्रकारेण अपना काम पूरा करना था। यानि उनकी नीयत और देशवासियों की नियती के बीच झूलता जीवन। सौ से ज्यादा वर्षों बाद यूपीए सरकार ने इस भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन कर एक अध्यादेश लाये जो विकास की अपेक्षा कानूनी दांव-पेंच और समय बर्बादी का दस्तावेज था।
हम सभी जानते हैं कि भारत की लोकतांत्रिक सरकार पांच सालों के लिये चुनी जाती है। पांच सालों में ही इसे अपने काम पूरे करने होते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि एक सरकार द्वारा लाई गई योजनायें अभी पाइपलाइन में होती हैं कि सरकार बदल जाती है और उसकी जनहित व विकास की योजनायें भी उसके जाने के साथ-साथ ठण्डे बस्ते में चली जाती है अर्थात योजनाओं को मूर्तरूप देने के लिये आवश्यक है कि योजनाओं के साथ ही समयावधि का भी पूरा-पूरा ख्याल रखे बिना विकास की योजनायें सत्यता का मूर्त रूप नहीं ले सकतीं।
मोदी जी का भूमि अधिग्रहण कानून अध्यादेश 2015 केवल इस समयावधि की समस्या पर अंकुश लगाकर अपनी योजनाओं को मूर्तरूप देने का जोरदार प्रयास है। यानि यहां भी एक बार फिर मोदी जी की नीयत और देशवसियों की नियती का मंथन और मंचन। मोदी जी के प्रधानमंत्राी बनने से पहले कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने 2007 में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का मसौदा किया। परंतु समय और कानूनी दांव-पेंच के अनसुलझे उलझन ने उसे 2013 तक खींच लाया। यह याद करना निरर्थक नहीं होगा कि इस नीति की हकीकत तथा कानून और नीयत की पवित्राता का उदाहरण श्रीमती सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा द्वारा ली गयी जमीन से देशवासियों का कितना हित और विकास हुआ है, हो सकता है।
निश्चित ही यदि मोदी जी की नीयत और देशवासियों की नियती दोनों ही खराब होगी तो परिणाम पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही नकारात्मक ही होगा परंतु यदि वास्तव में उनकी नीयत देश का सर्वांगीण विकास और देशवासियों का चहुंमुखी विकास के प्रयास का है तो देशवासियों की नियती अवश्य बदल जायेगी।
भूमि अधिग्रहण सरकार की ऐसी गतिविधि है जिसके द्वारा भूमि के मालिकों से किसी सार्वजनिक प्रयोजन या किसी कंपनी के उपयोग के लिए सरकार भूमि का अधिग्रहण करती है। इस अधिग्रहण के बदले में स्वामियों को मुआवजे का भुगतान करती है। सम्पत्ति की मांग और अधिग्रहण समवर्ती सूची में आता है यानि केंद्र और राज्य सरकारें इस मामले में कानून बना सकती हैं।
जिन विषयों को सरकार ने इस कानून से बाहर रखने वाले विषयों की सूची में रखा है उनमें से एक भी किसानों के विरोध या हानि से सम्बंधित नहीं हैं। जैसेः-
ऽ इंडस्ट्रियल कॉरिडोर दिल्ली या किसी महानगर में तो नहीं बनेगा। अवश्य ही भारत के किसी न किन्हीं ग्रामीण इलाकों से ही होकर गुजरेगा। इसके तहत ग्रामीण इलाके में उद्योग लगने से सीधा फायेदा ग्रामीणों को ही होगा। उनका आर्थिक और सामाजिक स्तर बढ़ेगा। उन्हें कमाने के लिए कृषि छोड़कर शहरों का रुख नहीं करना पड़ेगा।
ऽ इसी प्रकार यदि 2000 एकड़ में सरकार सिंचाई परियोजनायें लगाती है तो उसके आस-पास के लगभग तीन लाख हेक्टेयर भमि को सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध किया जा सकेगा।
ऽ इसी प्रकार किसानों को उनकी जमीन का बाजार भाव से चार गुना मुआवजा देने का प्रावधान है। केवल राजमार्ग मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालयों ने अब तक किसानों को 2000 करोड़ का मुआवजा दिया है।
ऽ सरकार के इस बिल के अनुसार जमीन मालिकों के अलावा उस पर निर्भर लोग भी मुआवजे के हकदार होंगे। पूरा मुआवजा मिलने के पश्चात ही जमीन से विस्थापन का प्रावधान है।
ऽ इसके अलावा राज्य सरकारों को यह तय करने की छूट दी गयी है कि उपजाऊ जमीन अधिग्रहीत करना है या नहीं या अधिग्रहीत करने की सीमा क्या है। निश्चित रूप से सरकार ने इन बदलावों में न्यायसंगत मुआवजे के अधिकार की पारदर्शिता पर ज्यादा बल दिया है।
ऽ मुकम्मल पुनर्वास इस कानून का मूल आधार है। बिना उसके पूरे देश में कोई भी जमीन किसी भी किसान से नहीं ली जा सकेगी।
ऽ दोषी अफसरों पर अदालत में कार्यवाई भी हो सकेगी तथा किसानों को अपने जिले में ही शिकायत या अपील करने का अधिकार होगा।
इस प्रकार सरकार की नीयत साफ है। अब छिद्रान्वेषण करने वालों को अपने काम भी तो करने है। अतः कमियां तो ढुंढेगे ही। वैसे मोदी सरकार ने अपना दरवाजा खुला रखा है। सुझावों और खामियों का स्वागत कर इसे फुलप्रूफ बनाने के लिए।

क्योंकि मोदी जी की मंशा हैः-
निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय।
बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाय।
अब भारत की जनता को अपने विवेक शक्ति का उपयोग करना है कि मोदी जी की नीयत पर विश्वास
करते हैं या अपने भाग्य को नियति पर छोड़ते हैं।

  • अरूण कुमार जैन

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