कविता

डॉ. मधुसूदन की कविता/ बुखारी जी से…

आप की नमाज में ”नम” धातु, है, ”देव वाणी” का।

और ”आमीन” हमारे ॐ का अपभ्रंश है।

”बिरादर” आपका, हमारा ”भ्रातर” है।

”कारवाई” आपकी, हमारी ”कार्यवाही” है।

मोहबत में भी मोह (प्रेम) भी तो, उधार हमारा है।

मक्का करते ही हो ना प्रदक्षिणा,

और काबा का पत्थर शालिग्राम है।

”मस्ज़िद” में ”मस्ज” धातु यह मज्जन है।

”धोकर साफ़ करने” के अर्थ वाला,

प्रवेश पर ”वज़ु” करते ही हो ना?

माँ को जब पुकारते हो ”अम्मा”

वह ”अम्बा” भी है, देव वाणी का,

”अम्बा माता”

तो क्या माँ को अम्मा पुकारना बंद करोगे?

फिर, क्यों डरते हो? इस वतन को , वंदन करते?

क्यों डरते हो, ”वन्दे मातरम” कहते?

हम मरेंगे, तो राख हो जाएंगे।

जल जाएंगे, खाक़ हो जाएंगे।

ऊड जाएंगे हवाओ में, चहुं ओर फैल जाएंगे।

अथवा जल में बह जाएंगे।

आप तो इस धरती में गड जाओगे,

युगो युगों तक,

कयामत तक,

चैन की नींद सोओगे।

जिस धरती में सोओगे,

दाना, पानी, आसरा ले ज़िंदगी जियोगे?

???????? क्या क्या कहे???????

जिस डाल पर बांधा घोंसला ?

उसी को काटने वाले को क्या कहोगे?