डॉ. मधुसूदन की कविता/ बुखारी जी से…

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आप की नमाज में ”नम” धातु, है, ”देव वाणी” का।

और ”आमीन” हमारे ॐ का अपभ्रंश है।

”बिरादर” आपका, हमारा ”भ्रातर” है।

”कारवाई” आपकी, हमारी ”कार्यवाही” है।

मोहबत में भी मोह (प्रेम) भी तो, उधार हमारा है।

मक्का करते ही हो ना प्रदक्षिणा,

और काबा का पत्थर शालिग्राम है।

”मस्ज़िद” में ”मस्ज” धातु यह मज्जन है।

”धोकर साफ़ करने” के अर्थ वाला,

प्रवेश पर ”वज़ु” करते ही हो ना?

माँ को जब पुकारते हो ”अम्मा”

वह ”अम्बा” भी है, देव वाणी का,

”अम्बा माता”

तो क्या माँ को अम्मा पुकारना बंद करोगे?

फिर, क्यों डरते हो? इस वतन को , वंदन करते?

क्यों डरते हो, ”वन्दे मातरम” कहते?

हम मरेंगे, तो राख हो जाएंगे।

जल जाएंगे, खाक़ हो जाएंगे।

ऊड जाएंगे हवाओ में, चहुं ओर फैल जाएंगे।

अथवा जल में बह जाएंगे।

आप तो इस धरती में गड जाओगे,

युगो युगों तक,

कयामत तक,

चैन की नींद सोओगे।

जिस धरती में सोओगे,

दाना, पानी, आसरा ले ज़िंदगी जियोगे?

???????? क्या क्या कहे???????

जिस डाल पर बांधा घोंसला ?

उसी को काटने वाले को क्या कहोगे?

15 COMMENTS

  1. बन्धु इन्हें सम्भवत: वहां भी चैन यानि विश्राम नही मिलेगा क्यों किवहन भी ये कयामत की प्रतीक्षा में ही बैचेन रहेंगे

  2. डॉ. राजेश जी कपूर, आप की पंक्तियां अच्छी लगी। पर डर रहा हूं, कि सदा इन अपेक्षाओं पर परखा गया तो? मानवीय भूलें हो सकती है। आप दर्शाते रहिए।

  3. सभी पाठकों का नाम लिए बिना धन्यवाद करता हूं। आप सभी के विचारों को पढा।सभी, मुझे भी विचार करने पर विवश करते हैं। ===>यह हमारे देव वाणी की गरिमा है। संसार भरमें ऐसी भाषा नहीं, और देवनागरी जैसी लिपि नहीं। लिख ही, रहा था, तो विचार आया, कि ====>नमाज पढने का आसन भी तो “वज्रासन” है। जब झुक कर सर नंवाते है, तो “शशांकासन” (खरगोश) बन जाता है। सोचा आपको अवगत कराउं।

  4. आपने हमारे मुंह की बात छीन ली। बहुत सुन्दर और तथ्यपरक कविता। इन बुखारियों की आंख कब खुलेगी? आप द्वारा दिए गए शोधपरक तथ्यों को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। आपके लेख भी बहुत उच्च कोटि के होते हैं। मैं आपका नियमित पाठक हूं। बस, आप लिखते रहिए और जागरण करते रहिए। शुभकामनाएं!

  5. aap kitna bhi inko sach bta do par sach ke pass se nikal jayege lekin kahavat hai na ki ,”patnala vahi girega”.or usme bhi bukhari sareekhe ho to phir kya ho sakta hai.ishwar sadbudhi de.Om.

  6. अल्लाह शब्द संस्कृत से लिया गया है
    अल्ल ह (:) इसका शाब्दिक अर्थ है माता सम पालन करने वाली या वाला

  7. सिन्हा जी एवं मधु भाई भगवान् करे आप लोगो की लेखनी चलती रहे | आप लोगो के लेखो का नियमित पाठक हूँ |उच्च कोटि के लेखो के लिए सादर नमन |

  8. अंतिम पंक्ति बहुत ही सुंदर, वो कहते है न कि: भूल रहे अपना वतन, भूल रहे कि संतान किस क़ी है.

  9. कविता क्या इतिहास है,जगाती इक विश्वास है.
    असुरों का काल है, शंकर का निश्वास है.अति उत्तम, साधुवाद! अमर कोष में माँ के लिए दिए पर्यायवाची अम्बा, अल्ला, अक्का, अम्बालिका आदि हैं. अतः इस्लाम में ईश्वर के लिए प्रयुक्त शब्द ”अल्ला” भी तो शुद्ध संस्कृत से लिया गया है.

  10. सांप को दूध पिला रहे हो – विष को और बढ़ा रहे हो . शैतान को गीता ! भैंस को वीणा ! क्यों वक्त बर्बाद कर रहे हो भाई… उतिष्ठकौन्तेय

  11. मधुसूदन जी प्रणाम

    आपकी छोटी सी कविता न जाने क्या क्या कह रही है .
    आम जनमानस देश के लिए कुछ भी करने को तैयार है .
    किन्तु अफ़सोस अब ये बुखारी सरीखे देश द्रोही देश हित में क्या है क्या नहीं ये निर्धारित करेगे और देश के आम नागरिको को राष्ट्र भक्ति का पाठ पदायेंगे .
    अब देश को इन बुखारियो के इशारे पर चलना होगा .
    इस्लाम के ये है सच्चे दुश्मन पहचान लो साथियों नहीं तो लुटिया डूबने ही वाली है

  12. मधुसुदन जी द्वारा जिस प्रकार कविता के माध्यम से अपनी बात प्रस्तुत की है वह वन्दनीय है. अमेरिका में रहकर अपनी भाषा व संस्कृति से जुड़ना वो भी एक तकनिकी विषय के प्राध्यापक होकर, वास्तव में सराहना योग्य है. अमेरिका में आप जैसे लोग ही माँ भारती का मस्तक ऊँचा रखे हैं. मेरा नमन.

  13. सुन्दर काव्य. मंदिर में भगवान की प्रतिमा पूर्वाभिमुख होती है दर्शन करते समय भक्तजन पश्चिमाभिमुख होते है इसी तरह बन्दे भी पश्चिमाभिमुख होकर नमाज़ अदा करते है

  14. विपिन किशोर सिन्हा जी,
    आपकी सराहना के अनुरूप प्रयास करता रहूंगा। क्या योगायोग है, कि मैं ने अभी अभी आपके “कहो कौन्तेय पर टिप्पणी डाली। यह “अहो रूपं अहो ध्वनि” ना समझा जाए। कहो कौन्तेय का आपका आजका शब्द चयन अत्त्युत्तम पाया। धन्यवाद।

  15. आपने हमारे मुंह की बात छीन ली। बहुत सुन्दर और तथ्यपरक कविता। इन बुखारियों की आंख कब खुलेगी? आप द्वारा दिए गए शोधपरक तथ्यों को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। आपके लेख भी बहुत उच्च कोटि के होते हैं। मैं आपका नियमित पाठक हूं। बस, आप लिखते रहिए और जागरण करते रहिए। शुभकामनाएं!

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