महिलाओं की आड़ में मुस्लिम समुदाय की दोहरी राजनीति

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भारत में इन दिनों एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। मुस्लिम समुदाय की महिलाएं विभिन्न मुद्दों पर मुखर होकर स्वयं को कट्टर दिखा रही हैं। ध्यान दीजियेगा, सीएए के विरोध में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक मोर्चा मुस्लिम महिलाओं ने ही संभाला था। अब यह सोची-समझी रणनीति थी या सच में मुस्लिम महिलाएं धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दे रही हैं यह चिंतन का विषय है। हाल ही में उत्तरप्रदेश के मशहूर शायर मुनव्वर राणा खासे विवादित रहे हैं। उनके ऊल-जलूल बयान समुदायों में वैमनस्यता तो पैदा करते ही हैं, राजनीतिक लाभ-हानि की दृष्टि से भी उनका उपयोग किया जाता है। उनकी पुत्री सुमैया राणा जो समाजवादी पार्टी से जुड़ी हुई हैं, ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सीएए के विरोध में संबोधन देते हुए कहा था, ‘हमें ध्यान रखना है कि हमें इतना भी तटस्थ नहीं होना है कि हमारी पहचान ही खत्म हो जाए। पहले हम मुसलमान हैं और उसके बाद कुछ और हैं। हमारे अंदर का जो दीन है, जो इमान है, वह जिंदा रहना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम अल्लाह को भी मुंह दिखाने लायक न रह जाएं।’

इसी प्रदर्शन के दौरान सुमैया राणा ने एक ऐसी बात कही जो सोचने पर मजबूर तो करती है, साथ ही भविष्य के बड़े खतरे की ओर इशारा भी करती है। उन्होंने कहा, ‘अभी तक दुनिया को यह पता था कि मुसलमानों की औरतें घरों में रहती हैं और घरेलू कामों में ही उलझी रहती हैं, लेकिन आज महिलाओं ने दिखा दिया है कि वह अपने आंचल को परचम भी बना लेना जानती हैं।’ उनका मुस्लिम महिलाओं को यह कहना एक तरह से यह इशारा है कि अब आगे भविष्य में जितने भी प्रदर्शन होंगे, उनमें मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और इतिहास गवाह है कि महिलाओं के प्रदर्शनों पर अधिक बल-प्रयोग करने से सत्ताएं सदा डरती रही हैं। तो क्या ऐसी स्थिति भारत सरकार के विरुद्ध भी खड़ी की जा रही है? क्या मुस्लिम समाज महिलाओं के कंधे का सियासी इस्तेमाल कर रहा है?
राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मत है, ‘मुस्लिम समुदाय में यह स्थिति हमेशा से रही है किन्तु मोदी सरकार आने के बाद मुस्लिम महिलाओं का सियासी इस्तेमाल बढ़ गया है। कहीं भी दंगा हो, विरोध करवाना हो, प्रदर्शन पर बिठवाना हो, सड़क जाम करनी हो; मुस्लिम समुदाय के पुरुष अब अपने घरों की महिलाओं को आगे कर रहे हैं ताकि सरकार बल-प्रयोग करने से पहले कई-कई बार सोचे। यह स्थिति मुस्लिम महिलाओं में तो कट्टरता बढ़ा ही रही है, उनके बच्चों को भी समय से पूर्व कट्टरता का जामा पहनाया जा रहा है जो देश के भविष्य के लिए चिंता का विषय है। उपरोक्त तथ्य इसलिए भी सच प्रतीत होते हैं क्योंकि भाजपाशासित प्रदेशों में ही यह स्थिति है, अन्य राज्यों में नहीं। चूँकि तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण, कश्मीर से 370 की विदाई जैसे मुद्दों ने मुस्लिम समुदाय को अन्दर तक उद्वेलित किया है अतः वे समय का इन्तजार करते हुए अपनी रणनीति भी स्पष्ट कर रहे हैं। सरकारें मुस्लिम समुदाय के इस प्रयोग को जितना शीघ्र समझ जायें, देश के लिए उतना ही अच्छा होगा।’
यहाँ एक बात और गौर करने वाली है कि जिन मुस्लिम महिलाओं को आगे करके मुस्लिम समुदाय अपने हित साध रहा है उनमें से अधिकाँश दबाव व डर के कारण धरना-प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं जो मुस्लिम पुरुषों की मानसिकता को साबित कर रहा है। दिल्ली में सीएए के विरोध में चल रहे धरना स्थल पर मुझे जाने का अवसर मिला था। मैं यह समझना चाहती थी कि जिस कानून की अभी मात्र चर्चा ही है उसे लेकर इतना बवाल क्यों? वहां जामिया में प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली एक लड़की (सुरक्षा कारणों से नाम नहीं दे रही) से बातचीत में पता लगा कि उसके पिता और भाई ने उससे कहा था कि यदि वह अपनी सहेलियों के साथ शाहीन बाग नहीं गई और इस लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया तो मोदी सरकार उसे और अन्य मुस्लिमों को पाकिस्तान भेज देगी। ज़रा सोचिये, ऐसी कितनी महिलाएं होंगी जिन्हें यह डर दिखाया गया होगा? कितनों को दबाव में धरना स्थल पर भेजा गया होगा? हालांकि इनमें से अधिकांश आगे चलकर कट्टर बन ही गई हैं।
दरअसल, अब मुस्लिम समाज दोहरी रणनीति पर काम कर रहा है। मुस्लिम पुरुष राजनीतिक रूप से भाजपा के विपक्षियों की ताकत बढ़ा रहा है वहीं मुस्लिम महिलाओं की आड़ में कानून-व्यवस्था को चुनौती देकर सरकार की साख को बट्टा लगा रहा है। जब मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी के लिए मोदी सरकार ने तीन तलाक को कानूनन अपराध माना था तब ऐसा लगा था कि मुस्लिम महिलाएं अब धर्म से ऊपर देशहित को तवज्जो देंगी लेकिन मैं शायद भूल गई थी कि मुस्लिम पहले मुस्लिम हैं बाद में कोई और। यही हाल मुस्लिम महिलाओं का है जो सुमैया राणा ने देश को याद दिलाया है। अब सरकार मुस्लिम समुदाय के इस नए ‘प्रयोग’ से कैसे निपटेगी यह तो वह ही जाने लेकिन भाजपा नीत सरकार में ऐसा होना यह ‘संयोग’ तो नहीं ही हो सकता। 
जिया मंजरी 

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