हिन्दू संघर्ष समिति श्रीलंका में हिन्दू पहचान को समाप्त करने व मुग़ल साम्राज्य की भाँति मंदिरों का अतिक्रमण कर उन पर बौध्द पहचान थोपने की कड़ी निंदा करती है । चीन के क़र्ज़ जाल में फँस कर अपने इतिहास के उच्चतम आर्थिक संकट में फँसा श्रीलंका अब अल्पसंख्यकों के दमन के लिये चीन के नक़्शे कदम पर चल पड़ा है ।
वहॉं की उग्र व सम्प्रदायिक पूर्वाग्रह से ग्रसित बौध्द धार्मिक नेतृत्व ने हिन्दुओं की संस्कृतिक पहचान को ख़त्म कर उनके मंदिरों व अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर अतिक्रमण कर उनकी हिन्दू पहचान पर सिंहली बौध्द चरित्र थोपना शुरू कर दिया है ।
हैरानी की बात ये है कि कई स्थानों पर माननीय न्यायालय द्वारा हिन्दू धर्मस्थानो के मूल चरित्र को बिगाड़ने पर ऐसे तत्वों व सरकार को फटकार लगाई है ।
कई मामले में न्यायालय के आदेश के बावजूद उसे अनसुना कर उसके विरोध में सेना के सहयोग से बौध्द महंत व पुजारी हिन्दू समाज के ऐतिहासिक,सॉंस्कृतिक व धार्मिक स्थलों का मूल स्वरूप बिगाड़कर उस पर ज़बरदस्ती बौद्ध स्तूप और बौद्ध उपासना स्थल बना रहे है । वो साफ़ तौर पर क़ानून को ठेंगे पर रखकर व न्यायालय की साफ़ तौर पर अवमानना करते समांतर सरकार ( state with in state )के तौर पर बर्ताव कर रहे है ।
ये स्पष्ट रूप से श्रीलंका के तमिल हिन्दुओं के मानवाधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता पर लाक्षित सांप्रदायिक हमला है और अब भी अगर इस सॉंस्कृतिक नरसंहार को राज्य प्रायोजित आतंक ना कहा जाये तो क्या कहा जाये । श्रीलंका में चल रहे सांस्कृतिक नरसंहार से वहाँ हिन्दू प्रतीकों व मानहिंदुओं की पहचान ख़तरे मे. ये बार बार तमिल हिन्दुओं के ज़ख़्मों को कुरेद कर उस पर नमक छिड़कने के समान है ।श्रीलंका में तमिल हिंदुओं को वर्तमान में एक प्राचीन हिंदू मंदिर के स्थान पर उत्तर-पूर्वी प्रांत मुल्लातिवु में एक बौद्ध विहार के निर्माण को लेकर तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इससे समस्त द्वीप निवासी हिन्दुओं में एक तीव्र रोष है ।
श्रीलंका में 2009 में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद से, कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षुओं द्वारा समर्थित श्रीलंकाई सरकार ने पुराने हिंदू मंदिरों के स्थलों पर बौद्ध पूजा स्थलों के निर्माण का एक कार्यक्रम शुरू किया है। ये एक तरह से सुनियोजित सांस्कृतिक नरसंहार है इसके बाद वो तमिल बहुल क्षेत्रों का जनसंख्यकीय स्वरूप बदलने हेतु तमिल हिंदू क्षेत्रों में सिंहली बौद्धों को बसाने के लिए आसपास के खेतों को हासिल करने का प्रयास किया जाता है ताकि वहॉं सिंहली लोगों की कॉलोनी बनाई जा सके । इसका उद्देश्य श्रीलंका के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के तमिल हिंदू चरित्र को दबाना और सिंहली बौद्ध चरित्र को थोपना है। भारत सरकार के प्रबल आग्रह के बावजूद अभी भी श्रीलंकाई राजनैतिक नेतृत्व वहॉं के तमिलों को मुख्य धारा में लाने के बजाये उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर उत्पीडित किया जा रहा है ॥
इससे पूर्व भी राजपक्षे सरकार ने राज्य प्रायोजित सिंहली उपनिवेशवाद को आगे बढ़ाने के लिए पूर्वी प्रांत में पुरातत्व विरासत प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रपति कार्य दल नियुक्त किया, जिसमें पूरी तरह से सिंहली परिषद शामिल थी और तमिल हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व शून्य था ।
ताजा घटना मुल्लातिवु जिले की है, जहां एक 3000 BC पुराना शिव अथि अय्यनार मंदिर कुरुन्थुर-मलाई में एक पहाड़ी पर स्थित था, जहां से आसपास के ग्रामीण इलाकों का सुरम्य दृश्य दिखाई देता था।
इस क्षेत्र में 2021 की शुरुआत में, 6 वीं शताब्दी के पल्लव-युग का शिव लिंग खुदाई में निकला था जिससे निःसंदेह इस हिंदू पूजा स्थल की प्राचीनता साबित होती है । इस पौराणिक व धार्मिक महत्व के स्थल पर अतिक्रमण करने व इसका मूल हिन्दू चरित्र व स्वरूप बिगाड़ने हेतु बौद्ध भिक्षुओं, सेना और पुरातत्व विभाग ने पहली बार 2018 में भूमि को हथियाने का प्रयास किया।
उन्होंने फरवरी 2021 में वहां हिंदू मंदिर को तोड़ा। जब हिन्दू पक्ष इसके ख़िलाफ़ में गया तो मजिस्ट्रेट कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस जगह के धार्मिक चरित्र में और कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। उस फैसले के बावजूद, न्यायालय की साफ़ तौर पर अवमानना करते हुयें उन्होंने मंदिर के परिसर में एक बौद्ध स्तूप बनाने का प्रयास जारी रखा । उनके इस कुत्सित प्रयास में शामिल होकर सरकार ने आसपास के 600 एकड़ कृषि भूमि के अधिग्रहण की योजना की मंशा ज़ाहिर की इस पर स्थानीय तमिल हिंदू आबादी ने जून 2022 में बुद्ध की मूर्ति के निर्माण और स्तूप का निर्माण शुरू होने पर जोरदार विरोध किया।
मजिस्ट्रेट कोर्ट ने जुलाई 2022 में एक आदेश जारी किया कि निर्माण बंद कर दिया जाए और आंशिक रूप से निर्मित स्तूप को हटा दिया जाए। सेना, बौद्ध भिक्षुओं और पुरातत्व विभाग ने सितंबर, 2022 में निर्माण फिर से शुरू किया। यह साफ़ तौर न्यायालय की अवमानना और कानून का उल्लंघन था। दिनोंदिन स्थानीय तमिल हिंदू आबादी का विरोध प्रदर्शन जारी रहा। स्तूप अब लगभग पूरा हो चुका है। अदालत ने मांग की है कि पुरातत्व आयुक्त अक्टूबर में अदालतों को रिपोर्ट करें और बताएं कि उन पर अदालत की अवमानना का आरोप क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए। स्थिति तनावपूर्ण है।
अपने शोध में, एक तमिल इतिहासकार, अकादमिक, लेखक और जाफना विश्वविद्यालय के वर्तमान चांसलर प्रोफेसर शिवसुब्रमण्यम पथमनाथन ने निष्कर्ष निकाला कि कुरुन्थुर रिजर्व निश्चित रूप से एक तमिल-हिंदू ऐतिहासिक स्थल है। श्रीलंका में चल रहे सांस्कृतिक नरसंहार से वहाँ हिन्दू प्रतीकों व मानहिंदुओं की पहचान ख़तरे मे है.
त्रिंकोमाली में इस बीच शिव को समर्पित थिरुकोनेश्वरम का प्राचीन तीसरी शताब्दी का हिंदू मंदिर (द्वीप पर भगवान शिव के पांच प्राचीन मंदिरों में से एक) भी इसी प्रकार बौध्द सांप्रदायिकता की आग में झुलसने जा रहे है ।
इस प्राचीन मंदिर के तमिल और संस्कृत साहित्यिक संदर्भ हैं। ये ऐताहसिक व पौराणिक महत्व रखता है क्योंकि पहले रावण द्वारा यहॉं लगातार पूजा की गई है और लंका विजय के बाद भगवान राम ने भी यहॉं पर भगवान शिव की अर्चना की है ।
यह हिंदू मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, जहां से आसपास के समुद्र का नजारा दिखता है। 1500 के दशक में पुर्तगालियों द्वारा नष्ट कर दिया गया, तमिल हिंदू आबादी ने आजादी के बाद इसे फिर से बनाया। युद्ध के दौरान, मंदिर और आसपास के क्षेत्रों को एक सैन्य क्षेत्र घोषित किया गया था। सैन्य सहायता के साथ, सिंहली बौद्धों ने युद्ध के दौरान पहाड़ी के दूसरी तरफ बौद्ध मंदिरों का निर्माण किया। सिंहली बौद्ध दुकानदारों को तत्काल आसपास की भूमि पर स्थायी रूप से बसाने का प्रयास करके सरकार ने अब प्राचीन हिंदू मंदिर परिसर के करीब अतिक्रमण करना शुरू कर दिया है। इसका मकसद एक बार फिर से जगह के हिंदू चरित्र को बदलना है।
स्थानीय हिंदू आबादी अशांत है और उस प्राचीन पवित्र मंदिर के हिंदू चरित्र को वापस लेने के प्रयासों का विरोध कर रही है।
प्रेस विज्ञप्ति
बहुत ही शर्मनाक बात है कि आर्थिक रूप से बर्बाद हो चुका श्रीलंका एक तरफ़ तो पूर्व क्रिकेटर अर्जुन रणतुंगा को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाकर भारत से रामायण के पौराणिक महत्व वाले स्थानों का प्रचार कर भारतीय पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने हेतु प्रयासरत है वहीं दूसरी तरफ़ श्रीलंका सरकार का पुरातत्व विभाग त्रिंकोमाली में पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व वाले शिव मंदिर को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है।
दुनिया भर में 120 करोड़ से अधिक हिंदू त्रिंकोमाली में प्राचीन शिव मंदिर की पूजा करते हैं। यह स्थान पवित्र है और मुख्य रूप से धार्मिक – ऐतिहासिक हिंदू ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है।
यह श्रीलंका में राज्य प्रायोजित नरसंहार से पीड़ित एक हानि-रहित अल्पसंख्यक की आस्था एवं विश्वास पर हमले का मामला है। श्रीलंका सरकार द्वारा हिंदुओं के पूजा स्थल के साथ छेड़छाड़ को हिंदुओं द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ रामायण में उल्लेख किया है कि राम ने रावण को हराने के बाद श्रीलंका के पांच शिव मंदिरों में भगवान शिव की पूजा की थी।
पौराणिक आख्यानों के हिसाब से श्रीलंका शिव भूमि है और त्रिंकोमाली रावण की शक्ति साधना का प्रमुख केन्द्र था।
ज्ञातव्य है कि रावण कैलाश पर्वत पर शिव की आराधना करने आया था। श्रीलंका में शिव और उनके राज्य के प्रति रावण की भक्ति निर्विवाद है। पश्चिम के आक्रामक कैथोलिक ईसाई मिशीनरी और श्रीलंका में कट्टरपंथी आक्रामक बौद्धों द्वारा त्रिंकोमाली शिव मंदिर के इतिहास को नष्ट करने के लिए निरंतर प्रयास रहे हैं। इतिहास में त्रिंकोमाली में किसी बौद्ध अवशेष का कोई रिकॉर्ड नहीं है। ये श्रीलंका के हिन्दूओं के उच्चतम मानबिंदु पर हमला है
नागा, यक्ष, वेद्दा इत्यादि प्राचीन तमिल हिंदू समुदायों ने इस वैदिक काल से प्रतिष्ठित और अनेक धार्मिक महाकाव्यों में वर्णित शिव मंदिर की रक्षा और संरक्षण किया है ।
बौध्द धर्म के आगमन के बाद भी, श्रीलंका के नागाओं, राजरत्ता, कल्याणी और रूहुनु राज्यों के शासको ने पीढ़ी दर पीढ़ी त्रिंकोमाली में इस महान शिव मंदिर को संरक्षित व संवर्धन किया।
पुरातात्विक साक्ष्य और साहित्यिक साक्ष्य त्रिंकोमाली में शिव मंदिर के अनन्य हिंदू अतीत के निर्णायक बिंदु हैं।
श्रीलंका की बौद्ध बहुल सरकार द्वारा हिंदू आस्था के उच्चतम मानबिंदु त्रिंकोमाली मंदिर के मूल स्वरूप व चरित्र को नष्ट करने ,नुकसान पहुंचाने या छेड़छाड़ करने के किसी भी प्रयास का भारत और दुनिया भर में 120 करोड़ हिंदुओं द्वारा अत्यधिक प्रतिरोध किया जाएगा। हिन्दू संघर्ष समिति इसकी कड़ी निंदा करती है और भारत सरकार से इस मामले में तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप करने की माँग करती है तथा विश्व के सभी हिन्दुओं से इस मामले पर जागरूक व त्वरित प्रतिक्रिया की माँग करती है ।
अयोध्या राम के लिए है। त्रिंकोमाली शिव के भक्त, वैदिक ब्राह्मण, रावण के लियें है। हिन्दू समाज द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु बाबरी मस्जिद के कलंक को हटा दिया गया था। बाबरी में जो हुआ वह त्रिंकोमाली में होगा यदि बौद्ध त्रिंकोमाली के हिंदू समाज की आस्था के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं।
क्या श्रीलंका सरकार पुरातत्व स्थलों को व्यवस्थित रूप से नष्ट करके श्रीलंका की हिंदू ऐतिहासिक जड़ों को मिटाना चाहती है? इन पुरातत्व स्थलों को शांतिप्रिय समावेशी उदार पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में संरक्षित किया जाना है।
ये पुरातत्व स्थल हैं, हमारे अतीत को देखने और समझने के लिए सहायकों और आने वाली पीढ़ी के लिए खिड़कियॉं और ये भारत श्रीलंका के प्राचीन संबंधों के सबूत भी है ।
ये ऐतिहासिक पुरातत्व स्थल अतीत के अनमोल खजाने हैं। विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए बने वैश्विक निकायों को वैश्विक समुदाय के खिलाफ इस तरह के नासमझ आक्रामक अपराध के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। और उस पर सबसे बड़ी विडंबना ये है कि श्रीलंका अपनी आर्थिक दुर्दशा को दूर करने के लिये भारतीय पर्यटकों की और टकटकी लगाकर बैठा है उन्हें भारत के हिंदू पर्यटकों से पैसा तो कमाना है और उन्हें रामायणकालीन स्थलों की मार्केटिंग करनी है जबकि उनके बहुत से वरिष्ठ राजनेता वहाँ की संसद में श्रीलंका में रामायण के ऐतिहासिक तथ्यों को कपोल कल्पित बताते है ॥
हिन्दू और हिन्दुस्तान के विरोध में उनका सांप्रदायिक पूर्वाग्रह उनके चीन जैसे कुटिल देश के जाल में फँसने को मजबूर करता है ।
वहाँ के धर्मांध राजनेताओें की बुध्दि पर तरस आता है वो हिन्दुओं और भारत को हर राजनैतिक मंच पर अपमानित करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते ।
शायद इसे ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना कहा जाता है ।
हैरानी की बात है कि उत्तर-पूर्व के हिंदू तमिलों का सिंहलीकरण और बौद्धीकरण तब हो रहा है जब श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस संकट में ना केवल भारत ने सबसे ज़्यादा मदद की है बल्कि वो हाल के महीनों में श्रीलंका मे बड़े निवेश लाने के लिए विभिन्न तरीकों से प्रयास कर रहा है ।
परन्तु श्रीलंका के कृतघ्न राजनेता अलग अलग राजनैतिक मंचों पर भारत को नीचा दिखाने का कोई मौक़ा नहीं चूकते तमिल हिन्दुओं को वो भारत का बड़ा समर्थक मानते हैं इसलिये पूर्वाग्रह के साथ वो समय समय पर तमिल हिन्दुओं को निशाना बनाते रहते है ।
इस समय वहॉं के तमिल हिन्दू भारत सरकार से निम्न के लिए आवश्यक कदम उठाने की अपील करते हैं, कि वो इस मामले में तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप करे और सुनिश्चित करें कि
कुरुंथौर-मलाई में बौद्ध स्तूप का निर्माण बंद हो और मंदिर के सच्चे अधिकारी हिन्दू समाज को शिव मंदिर सौंपा जायें ।
ज़बरदस्ती बौद्ध चरित्र थोपने के लिए तिरुकोनेश्वरम मंदिर की भूमि का अतिक्रमण करना बंद करें और मंदिर और पवित्रता की रक्षा करें ॥
जब तक उत्तर-पूर्व के हिंदू तमिलों का सिंहलीकरण और बौद्धीकरण पूरी तरह से बंद नहीं हो जाता, तब तक श्रीलंका को और सहायता देना बंद करें ।
पूर्वोत्तर श्रीलंका में हिंदू पहचान की रक्षा करने और क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बहाल करने के लिए भारत-लंका समझौते को पूरी तरह से लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव डालें।
भारत को जल्द से जल्द श्रीलंका पर दबाव डालकर तमिल हिन्दुओं को उचित राजनैतिक सहभागिता दिलवानी होगी ।
अरुण उपाध्याय
अध्यक्ष हिन्दू संघर्ष समिति