दुश्मन का काल बनने को कमांडो बनते हैं पैराट्रूपर्स

आगरा एयरबेस पर प्रतिवर्ष तैयार होते हैं 13 हजार पैराट्रूपर्स, मित्र देशों के जवान भी लेते हैं ट्रैनिंग

-जगदीश वर्मा ‘समंदर’

आगरा । भारतीय वायुसेना में पैराट्रूपर (छतरीधारी) सैनिकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है । 30 हजार फीट की ऊँचाई से पैराशूट लेकर कूदते ये जाँबाज दुश्मन के क्षेत्र में उतरकर उसके छिपे हुये ठिकानों को सर्च कर उसे नेस्तानाबूद कर देते हैं । भारतीय सेना में पैरा कमांडो बनने के लिये पैराट्रूपर होना जरूरी है । सर्जिकल स्ट्राईक के दौरान इन्हीं पैरा कमंाडों ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पैराशूट से उतरकर आतंकवादी कैम्पों को नष्ट किया था । आसमान से उतरकर ये जाबांज दुश्मन के लिये काल साबित होते हैं । स्पेशल सैन्य अभियानों के अलावा अपने देश में आपदा राहत कार्यों एवं रैस्क्यू आॅपरेशन को भी पैराट्रूपर्स बखूबी अंजाम देते हैं ।
आगरा ऐयरफोर्स स्टेशन स्थित देश के एकमात्र पैराट्रूपर्स टैªनिंग स्कूल में प्रतिवर्ष ऐसे ही 13000 से ज्यादा जाँबाज पैराट्रूपर्स जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। आजादी के तुरन्त बाद आगरा में स्थापित हुये इस ट्रैनिंग स्कूल में सर्वश्रेष्ठ पैराट्रूपर्स तैयार हो रहे हैं । 8 अक्टूबर को भारतीय वायुसेना का 87वाँ स्थापना दिवस है । इससे पूर्व चुनिंदा मीडिया कर्मियों को आगरा ऐयरबेस एवं पैराट्रूपिंग स्कूल का भ्रमण कराया गया ।

सर्वश्रेष्ठ बनना ही लक्ष्य –

चीफ ट्रैनर विंग कमाण्डर केबीएस साम्याल ने बताया कि पैराटूªपर्स की ट्रैनिंग में दो ही विकल्प होते हैं या तो ‘सर्वश्रेष्ठ’ बनना है या फिर ‘फेल’ होकर वापस जाना है । यहाँ थल सेना के पैरा कमांडो, जल सेना के मरीन कमांडो और नभ सेना के गरूड़ कमांडो को 12 दिन की बेसिक ट्रैनिंग दी जाती है । इसमें पहले चरण में विमान से हवा में कूदना, दूसरे में पैराशूट के साथ सामंजस्य बैठाना तथा तीसरे महत्वपूर्ण चरण में धरती पर लैंडिग करना सिखाया जाता है । यहाँ आने से पूर्व इन जवानों को अपनी रेजीमेंट से अलग 3 महीने का एक प्रोबेशन ट्रैनिंग कोर्स पूरा करना होता है । इसमें कठिन प्रशिक्षण के माध्यम से इन्हें मानसिक एवं शारीरिक रूप से मजबूत किया जाता है । जिससे विपरीत परिस्थितियों में भी यह अपने मिशन को अंजाम दे सकें ।

0.7 सैकेण्ड के अन्तर से 30 हजार फिट से लगाते हैं हवा में छलांग

स्क्वाड्रन वी. त्यागी ने पैराट्रूपर्स प्रशिक्षण प्रक्रिया समझाते हुये बताया कि 12 दिन की ग्राउण्ड ट्रैनिंग के बाद इन्हें विमान से 5 जम्प करायी जाती हैं जिसमें 1 रात्रि जम्प शामिल होती है। प्रारम्भ में इन्हें 240 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार में उड़ते विमान से कमांडों को 1250 फीट ऊँचाई से हवा में कूदना होता है । ड्राप जोन में 0.7 सैकेण्ड के अंतर से जवान एक दूसरे के पीछे छलाॅंग लगाते हैं । ये पैराट्रूपर एक सैकेण्ड में 17 से 18 फिट की गति से धरती की ओर आते हैं ।
इस प्रशिक्षण के बाद रिफ्रैश कोर्स एवं अन्त में काम्बेट फ्री फाॅल कोर्स भी कराये जाते हैं । जिसमें कमांडों अधिकतम ऊँचाई पर हवा में कलाबाजियाँ करते हुये जम्ब लगाते हैं । पूर्ण प्रशिक्षित कमांडो 30,000 फिट तक की ऊचाईं से छलांग लगा सकते हैं । 15 हजार फीट से ऊपर आॅक्सीजन सिलेण्डर की आवश्यकता होती है । सैन्य आॅपरेशन के समय प्रत्येक कमाण्डों आवश्यक उपकरण एवं हथियारों से लैस होकर दुश्मन क्षेत्र में उतरता है । यह रात्रि के समय भी कार्यवाही करने में सक्षम होते हैं ।

छलाँग लगाने से पहले करते हैं ‘छतरी माता की जय’ का उद्घोष –

आगरा एयरबेस स्थित पैराट्रूपर्स टैªनिंग स्कूल के द्वार पर ही एक पैराट्रूपर प्रतीक मूर्ति लगी है । जिसके नीचे लिखा है ‘छतरी माता की जय’ । इसके बारे में पूछने पर विंग कमाण्डर संतोष अस्थाना ने बताया कि पैराट्रूपर्स विमान में कूदने से पहले यही ‘उद्द्योष’ करते हैं । इसके बाद गिनती बोली जाती है । हजारों फिट ऊँचाई से हवा में कूदते एक जवान के लिये उसका पैराशूट (छतरी) ही भगवान होता है । अगर इसके खुलने में किसी भी तरह की गड़बड़ी या देरी हो जाये तो पैराट्रूपर की जान भी जा सकती है । सही लैंडिग और दुश्मन क्षेत्र में आॅपरेशन की सफलता की कामना के लिये कमांडो इसका उद्द्योष करते हैं ।

50 हजार से ज्यादा जम्प, अन्य देषों के पैराट्रूपर्स भी लेते हैं ट्रैनिंग-

विंग कमाण्डर केबीएस साम्याल ने बताया कि यहाँ प्रतिवर्ष 13 हजार से ज्यादा पैराट्रूपर्स को प्रशिक्षण दिया जाता है । प्रतिवर्ष हवा में 50 हजार से ज्यादा जम्प लगायी जाती हैं । भारत के साथ ही श्रीलंका, बांग्लादेश, तजाकिस्तान, यूएस जैसे मित्र देशों के कमाण्डों भी पैराट्रूपिंग की ट्रैनिंग लेते हैं । किक्रेट खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी ने भी आगरा के इसी एयरबेस पर पैराट्रूपर बनने की ट्रैनिंग ली थी ।  

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