भारत के हर शहर में अनूठे ढंग से होता है दशहरा!

ऋषभ त्रिपाठी
हिन्दी पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर वर्ष दशहरा या विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है। विजयदशमी श्री राम की  विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह आदिशक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं।आइये हम भारत की विविधता में इस पर्व के महत्व को जानने की कोशिश करते हैं।
कश्मीर– कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं।  पुरानी परंपरा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं। यह मंदिर एक झील के बीचोबीच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि देवी ने अपने भक्तों से कहा है कि यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक एक दिन पहले और भारत पाक युद्ध के पहले यहाँ का पानी सचमुच काला हो गया था।
हिमाचल प्रदेश– कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ स्त्रियाँ और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी आदि-आदि जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूम धाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है।
पंजाब– पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं, व मैदानों में मेले लगते हैं।
बंगाल, ओडिशा और असम-  यह बंगालियों,ओडिआ, और आसाम के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। पूरे बंगाल में पांच दिन तक  जबकि ओडिशा और असम मे चार दिन तक त्योहार चलता है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों में विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को बुलवा कर दुर्गा की मूर्ति तैयार करवाई जाती हैं। त्योहार के दौरान शहर में छोटे-मोटे स्टाल भी मिठाईयों से भरे रहते हैं। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके बाद सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन सुबह और शाम श्री आदिशक्ति की पूजा में होती है। अष्टमी के दिन महापूजा और बलि भी दी जाती है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। पुरुष आपस में गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं और देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं। 
उत्तर प्रदेश- सहारनपुर में शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ पर भक्तों की इस दिन खूब चहल पहल होती है पूरी शिवालिक घाटी शाकम्भरी देवी के जयकारो से गूंज उठती है यहाँ पर नवरात्रि में भारी मेला लगता है। आश्विन का मेला यहाँ बहुत बड़ा होता है और काफी किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। इसके अलावा सुल्तानपुर के दुर्गापूजा का अलग ही नजारा होता है। यहाँ बंगाल के बाद सबसे बड़ा और ज्यादा दिनों तक पंडाल व झांकिया लगती हैं।अयोध्या- यह नगर ही श्रीराम का है तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि यहाँ विजयदशमी का नजारा कैसा होता होगा। यहाँ दिवाली से पहले ही सारा शहर रोशनी से जगमगा जाता है। हर चौराहे पर भगवान श्रीराम के लीला का मंचन होता है। विजयदशमी के दिन मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें रावण का पुतला दहन किया जाता है।

गुजरात– यहाँ मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृत्य करते हैं। इस अवसर पर भक्ति तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है।
मध्यप्रदेश– मध्यप्रदेश में दशहरा पर्व का आयोजन  उत्तर भारत के समान होता है लेकिन यहाँ के मंदसौर की कहानी कुछ और है। यहां के लोग दशहरा के दिन सुबह-सुबह ढोल-बाजे के साथ जाकर रावण की प्रतिमा की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती हैं और शाम के समय रावण दहन किया जाता है। दहन से पहले लोग रावण से क्षमा याचना मांगते है। मंदसौर में रावण की एक विशाल प्रतिमा भी है जहां हर दिन लोग उसकी पूजा करने आते हैं। 41 फीट ऊंची और विशाल रावण की ये प्रतिमा लगभग चार सौ साल पुरानी मानी जाती है। यहां औरतें रावण को दामाद मानती हैं इसलिए उसकी पूजा करने के दौरान घूंघट करती हैं।  

छत्तीसगढ़– छत्तीसगढ़ के वनांचल बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को राम की रावण पर विजय ना मानकर, लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। यहां यह पर्व पूरे 75 दिन चलता है। प्रथम दिन जिसे काछिन गादि कहते हैं, देवी से समारोहारंभ की अनुमति ली जाती है। देवी एक कांटों की सेज पर विरजमान होती हैं, जिसे काछिन गादि कहते हैं। यह समारोह लगभग 15वीं शताब्दी से शुरु हुआ था। इसके बाद जोगी-बिठाई होती है, इसके बाद भीतर रैनी (विजयदशमी) और बाहर रैनी (रथ-यात्रा) और अंत में मुरिया दरबार होता है। इसका समापन अश्विन शुक्ल त्रयोदशी को ओहाड़ी पर्व से होता है।
महाराष्ट्र–  महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।
तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक-  दक्षिणी भारत के इन राज्यों में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं। पहले तीन दिन देवी लक्ष्मी  का पूजन होता है। अगले तीन दिन देवी सरस्वती की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा-शक्ति की देवी की स्तुति की जाती है। पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है। लोग एक दूसरे को मिठाइयां व कपड़े देते हैं। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए शुभ समय होता है। कर्नाटक में मैसूर का दशहरा भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का श्रृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है। इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं। इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।

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