आर्थिक मंदी के च्रकव्यूह में सरकार

प्रमोद भार्गव

आर्थिक विकास की छदम दौड़ में शामिल संप्रग द्धितिय बुरी तरह आर्थिक मंदी के च्रकव्यूह में उलझ गर्इ है। इसलिए उसे सबसे ज्यादा चिंता खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश की है। हालांकि इस हकीकत को झुठलाते हुए सरकार ने अपने रिपोर्ट कार्ड में दावा किया है कि उसकी नीतियों की अनुकूलता की वजह से एफडीआर्इ में 55 फीसदी की वृद्धी हुर्इ है। कार्ड में अपने मुंह,मिया मिटटु कहावत को चरितार्थ करते हुए दावा किया है कि वित्तीय साल 2011-12 में 28.4 करोड़ डालर का एफडीआर्इ आया है। जबकि यह आंकडो की कालाबाजी है, हकीकत में इतना पूंजी निवेश हुआ नहीं है। खाधान्न के रिकार्ड उत्पादन और आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से बैलेसिटक मिसाइल अग्नि.5 का सफल प्रक्षेपण भी सरकार अपनी उपलबिधयों के खाते में जोड़कर देख रही है। अग्नि.5 के अविष्कार की मिसाल निशिचत रूप से बेमिसाल है। लेकिन खाधान्न का 25 करोड़ टन रिकार्ड उत्पादन भण्डारण की समस्या के चलते सरकार की गले की हड्रडी बनने जा रहा है।

अपने दूसरे कार्यकाल की सरकार ने उपलबिधयों की फेहरिश्त भले ही जाहिर कर दी है, लेकिन अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री के सामने सबसे भयावह सिथति अर्थसंकट की ही है। देश की मुद्रा रसातल में है तो मंहगार्इ सिर पर चढ़ कर असमान में छलांग लगाने को आतुर है। बावजूद प्रधानमंत्री ने संप्रग.2 के तीसरे जलसे के मौके पर एफडीआर्इ में इजाफे की दुहार्इ दी। साल 2009.10 में 24.़1 अरब डालर का निवेश हुआ था। इसके बाद यह लगातार धट रहा है। 2010-11 में यह धटकर 18.32 अरब डालर रह गया था। मसलन निवेश में 32.3 फीसदी की कमी दर्ज की गर्इ थी। जाहिर है सरकार ने रिपोर्ट कार्ड में जो आंकडे दिए, वे अपनी उपलबिधयों में शुमार करने की दृष्टि से कंप्युटर की बाजीगरी का कमाल हैं।

गठबंधन के संकट के चलते खुदरा में तो पूंजी निवेश अटका ही हुआ है। सरकार जिन क्षेंत्रो में निवेश की भूमिका तैयार कर चुकी है, उनमें भी निवेश नहीं बढ़ा। सरकार ने बीमा क्षेत्र में एफडीआर्इ की सीमा बढ़ाने का निर्णय लिया था, लेकिन सिथति यथावत है। खुदरा में बहुबांड का फैसला जहां की तहां है। देश में सबसे बड़े स्तर पर निवेश जिस पास्को में होना था वह बीते पांच साल से लंबित है। 2 जी स्पेक्ट्र्रम धोटाले के उजाकार होने और कंपनीयों के आला आधिकारियों के जेल में जाने के बाद एफडीआर्इ की बात तो दूर रही, कंपनियां ही देश से नौ,दो,गयरह होने लगी हैं। राजनीतिक विवादों के चलते देशी वायु सेवाओं में अभी तक निवेश का फैसला नहीं हो सका है। ऐसे में सरकार कैसे सफैद झूठ बोल रही है कि 2011-12 में एफडीआर्इ में 55 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुर्ह ? महज अपनी पीठ थपथपाने के लिए। सरकार ने दूसरी बड़ी उपलबिध गिनाते हुए सभी प्रकार के खाधान्नो उत्पादन में 25 करोड़ टन की वृद्धी जतार्इ है। अकेले गेहूं का ही उत्पादन 9 करोड़ टन के करीब पहुंचने जा रहा है। वैसे तो अनाज का उत्पादन प्रकृति की अनुकंपा और मौसम की अनुकूलता पर निर्भर है। संयोग से बीते साल मौसम फसल पर मेहरबान रहा। नतीजतन,मघ्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ और बिहार जैसे जो प्रदेश फसल उत्पादन में फिसडड्री रहते थे, वे उत्पादन के नए कीर्तिमान बना रहे है। हैरानी इस पर है कि केंद्र्र और प्रदेश सरकारें न तो खाधान्न को समर्थन मूल्य पर खरीद पा रही हैं और न ही उसका समुचित भाण्डारण कर पा रही हैं। वारदाने का संकट सुरसामुख बना हुआ है। ऐसे विपरित हालातों में 200 करोड़ टन अनाज के सड़ने की आशंका प्रबल हो गर्इ है। लिहाजा इसे उपलबिध मानें या समस्या, सरकारों को आत्ममंथन करने की जरूरत है। पहले किसान जहां अच्छी फसल न होने के कारण आत्महत्या कर रहे थे, वहीं अब अनाज की खरीद न होने के कारण आत्महात्या की धटनाएं सामने आ रही है। सवाल है अन्नदाता को अच्छे उत्पादन के बावजूद समस्या से मुकित कहां मिली।

एक द्वीप से दूसरे द्वीप पर मार करने वाली मिसाइल अग्नि 5 निशिचत रूप से सामारिक क्षेत्र में भारत का सिर उंचा करने वाली उपलबिध है। किंतु वैज्ञानिक उपलबिधयां दीर्धकालीक शोध और समर्पण का पर्याय होती हैं। लेकिन वैशिवक पूंजीवाद को भारत में संरक्षण देने के मोहपाश से बंधी सरकार को देश की अनुसांधन शालाओं में क्या चल रहा है यदि इसकी वकार्इ फिक्र होती तो सेना के पास हथियारों के जखीरे की कमी है, ऐसी खबरें बाहर न आती। सच्चार्इ यह हैं कि पिछले आठ साल में आतंरिक सुरक्षा संप्रग 2 की प्रथामिकता में रही ही नहीं। ऐसा पहली बार हुआ है कि थल सेना अघ्यक्ष के जन्म तिथि विवाद से जुड़ा लिपिकीय स्तर के मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा और जंगहसार्इ हुर्इ। इसके बाद सेना प्रमुख द्धारा प्रधानमंत्री को लिखी वह गोपनीय चिटठी सार्वजानिक हो गर्इ, जिसमें गोला बारूद की कमी का हवाला था। बाद में इस तथ्य की पुष्टि संसदीय समीति ने भी कर दी। यहीं नहीे वी.के. सिंह ने वाहनों की खरीद में खुद को अपने ही एक मातहत द्वारा घूस की पेशकाश किए जाने का खुलासा करके सरकार के इस दावे की कलर्इ खोल दी कि रक्षा सौदों में कोर्इ भ्रष्टाचार नहीं है।

बहरहाल सरकार जिन उपलबिधयों को अपने खाते में जोड़कर देश की आर्थिक, सामाजिक व सुरक्षा संबंधी हालातों की बेहतरी का गुणगान कर रही है, वे संयोगवश उसकी झोली में आ गयी है। वरना मनमोहन सरकार तो धोटालों और विवादों के च्रकव्हूय में ऐसी फंसी है कि उसका अभिमन्यु की मौत मरना तय है। 2 जी स्पैक्ट्र्रम, राष्ट्र्रमण्डल खेल, आदर्श सोसायटी और देवास इनसेट से जुड़े कलंक को तो वह अब तक धो नहीं पार्इ, कोयले की दलाली में हाथ काले होने के प्रमाण और सामने आने लगे हैं। ऐसे में गठबंधन का दबाव आर्थिक मोर्चे की विफलता, मंहगार्इ की उतरोत्तर बढ़ रही मार, और कच्चे तेल के बढ़ते मूल्य तथा डालर के मुकाबले रूपये की घटती कीमतों के चलते देश को जिन बहुआयामी संकटो ने घेर लिया है, उनसे उबरने का कोर्इ रास्ता फिलहाल तो एकाएक खुलता दिखार्इ नहीं देता। 2009 के हालात आज एकदम उलट गए हैं। बावजूद अनिर्णय और दिशाभ्रम के घटाटोप ने सरकार को अंधेरे में डाल दिया है। इतने पर भी सोनिया गांधी कह रही हैं कि 2014 में जनता उनके कामकाज पर फैसला जनता करेगी, तो निशिचित है, सोनिया के पास ऐसी कोर्इ जादुर्इ छड़ी होगी, जिसका चमात्कार प्रत्यक्ष दिखार्इ देना बांकी हैं।

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