एक बवाल, कई सवाल…?

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एक बहुत बड़ा सवाल है कि आखिर विकास का कैसे हुआ विकास…? सिर पर है किसका हाथ? किसके साए में यह अपराधी अब तक फला-फूला। यह एक बड़ा एवं अनसुलझा सा सवाल है। जिसे समझने की जरूरत है। इस सवाल को नजर अंदाज करने की कदापि जरूरत नहीं। आज का समय एवं आज की परिस्थिति में जो कुछ दृश्य दिखाई दे रहा है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। उत्तर प्रदेश के इतिहास में इतनी बड़ी सामूहिक घटना शायद ही कभी घटी हो। अपराध के क्षेत्र की एक ऐसी घटना जिसने पूरे समाज को झिझोंड़ कर रख दिया। यह एक ऐसी घटना है जिसने एक साथ अनेकों सवालों को जन्म दिया। जिसका उत्तर खोज पाना आसान कार्य नहीं है। एक साधारण परिवार में जन्मा हुआ व्यक्ति अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाता है। उसके बाद दिन प्रतिदिन अपराध की दुनिया में आगे बढ़ता रहता है। और एक दिन अपराध के शिखर पर विराजमान हो जाता है। यह कैसे संभव हो सकता है क्योंकि यह कार्य एक दो दिन का नहीं है। यह गतिविधि दशकों से चल रही थी। एक अपराधी इतना बड़ा अपना रसूख कैसे स्थापित कर सकता है। यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर आसानी के साथ खोज पाना मुश्किल है। क्योंकि, जिस व्यक्ति के ऊपर इतने गम्भीर मुकदमें हों वह खुलेआम एक राजनेता की भाँति कैसे अपना जीवन जी सकता है। क्या एक अपराधी इतना बड़ा रसूख बिना किसी बड़े सहयोग के स्थापित कर सकता है। कदापि संभव नहीं। इसके पीछे कौन-कौन माननीय हैं इसका खुलासा होना नामुमकिन है। क्योंकि, जब एक अपाराधी राजनेताओं के दम पर पुलिस पर रोब गाँठ कर अपना रसूख स्थापित कर सकता है साथ ही अपराध की दुनिया में दिन प्रतिदिन एक के बाद दूसरा अपराध करता है और पुलिस किसी बड़े दबाव वश उस पर अंकुश लगाने में विफल हो तो भला वही पुलिस उन बड़े हाथों का नाम कैसे उजागर कर सकती है। यह भी संभव नहीं कि बिना किसी के दबाव वश किसी बड़े अपराधी को जेल से जमानत मिल जाए। किसी न किसी का दबाव होना स्वाभाविक है। जबकि मौजूदा सरकार के मुखिया अपने भाषणों में जघन्य अपराधियों को उनके सही ठिकाने पर भेजने की बात करते हैं। लेकिन यहाँ सही ठिकाना तो दूर जेल से भी ऐसे अपराधी को जमानत मिल जाती है। यह एक बड़ा सवाल है। जब एक ऐसा अपराधी जिसने उस समय के दर्जा प्राप्त मंत्री की हत्या कर दी वह पुलिस बल के सामने। अपराध की पराकाष्ठा यह रही कि इतना बड़ा अपराध वह भी थाने के अंदर अंजाम दिया गया था। और पुलिस विभाग तब मूकदर्शक बना हुआ तमाशा देखता रहा। संदेह इस बात से पैदा होता है कि जब गवाही का विषय आया तो किसी पुलिस वाले ने थाने के अंदर हुई हत्या की गवाही तक नहीं दी। जबकि इतना बड़ा अपराध थाने के अंदर अंजाम दिया गया था। इसलिए यह सवाल पुलिस पर खड़ा होता है। यदि पुलिस इतनी ढ़िलाई न बरतती तो आज यह दिन नहीं आता। आज इतनी बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों की जाने नहीं जाती। कुछ पुलिस वालों के ढुलमुल रवैए के कारण ही आज पुलिस कर्मी हताहत हुए।

एक बड़ा सवाल चट्टान की भांति सामने आकर खड़ा हो गया है। पुलिस के आने की सूचना। साथ ही दबिश डालने की सूचना। पुलिस संख्या की सूचना यह सब कैसे अपराधी तक पहुँच गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस के द्वारा निर्धारित किए गए समय की सही और सटीक जानकारी एक अपराधी तक पल-पल कैसे पहुँचती रही। इधर पुलिस अपनी योजना बनाती रही उधर अपराधी पुलिस की योजना के अनुसार अपना बल जुटाता रहा और रणनीति तैयार करता रहा। क्योंकि, मार्ग में जेसीबी खड़ी कर देना पूरे मार्ग को बाधित कर देना। आसपास की कई छतों के ऊपर अपने शातिर शूटरों को असलहों के साथ लैस करके सही स्थान पर पोजीशन के साथ बैठाल देना। यह पूरा दृश्य अपने आपमें बहुत कुछ कहता है। यह कोई साधारण व्यक्ति की क्षमता का विषय नहीं है। इस घटना को बहुत ही बड़े पैमाने पर अंजाम दिया गया। एक अपराधी का मनोबल बिना किसी बड़े सहयोग के कदापि नहीं बढ़ सकता। इतना बड़ा अपराध इस ओर इशारा करता है कि अपराधी का मनोबल किस चरम पर विराजमान है। ऐसा मनोबल बिना किसी बड़े हाथ के आशिर्वाद के बिना संभव ही नहीं है। किसी न किसी का सिर पर आशिर्वाद होना तो तय है। यह अलग बात है कि नाम न उजागर हो सके।

घटना की रिपोर्ट के मुताबिक सिपाही जितेंद्र पाल के पैर, हाथ, सीने, कमर में पांच गोलियां मारी गई थीं। दो गोलियां आर-पार निकल गई थीं। चौकी प्रभारी अनूप सिंह को सात गोलियां मारी गई थीं। उनके सीने, पैर और बगल में गोली लगी थी। थाना प्रभारी महेश के चेहरे, पीठ और सीने पर पांच गोली और दारोगा नेबूलाल के चार गोलियां लगी थीं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक थाना प्रभारी महेश यादव, चौकी प्रभारी मंधना अनूप सिंह, दारोगा नेबूलाल और सिपाही जितेंद्र पाल के शरीर से ही गोलियां व उनके टुकड़े बरामद हुए हैं। सीओ देवेंद्र मिश्रा, सिपाही राहुल, बबलू और एक अन्य को गोलियां छेदती हुई पार कर गई। सिपाही बबलू की कनपटी, चेहरे, सीने पर गोली लगी और सिपाही राहुल के पसली, कमर, कोहनी और पेट में चार गोली लगीं जो आरपार निकल गईं। सुल्तान के कमर, कंधे व सीने पर पांच गोलियां मारी गईं। बिकरू गांव में हमलावरों ने पुलिस टीम पर तमंचों के साथ एके-47 से भी गोलियां बरसाई थीं। रीजेंसी अस्पताल में एक्सरे से पहले शहीद सिपाही जितेंद्र पाल के शरीर से एके-47 की एक गोली बरामद हुई। यही नहीं, पोस्टमार्टम के दौरान यह पता चला कि चार जवानों के शरीर से गोलियां आरपार निकल गई थीं। अन्य चार जवानों के शरीर से 315 और 312 बोर के कारतूस के टुकड़े बरामद हुए हैं। दारोगा अनूप को सबसे ज्यादा सात गोलियां मारी गईं। वहीं सीओ देवेंद्र मिश्रा के चेहरे, सीने व पैर पर सटाकर गोली मारी गई। यह एक ऐसी घटना है जिसने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या पुलिस के सहयोग के बिना अपराधी अपराध के चरम सीमा पर पहुँच सकता है…? क्या किसी विश्वासाघाती के बिना एक-एक सेकेण्ड की सूचना प्राप्त होना संभव है…? क्या सिर पर किसी बड़े हाथ के बिना सत्ता के गलियारों में रसूख कायम होना संभव है…? यह ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर मिल पाना नामुमकिन है। क्योंकि, यह उत्तर कौन देगा…? क्योंकि, बिना समर्थन और सहयोग तथा क्षत्रछाया के बिना आज के युग में कुछ भी संभव नहीं है। यह सब कुछ तभी सुलभ एवं संभव हो पाता है जब आशिर्वाद प्राप्त हो। इस घटना ने जहाँ पूरे प्रदेश की जनता को भयभीत कर दिया वहीं कानून व्यवस्था के परखच्चे उड़ा दिए कि जब पुलिस विभाग और पुलिस अधिकारी ही सुरक्षित नहीं तो आम-जनमानस अपनी सुरक्षा की गुहार किससे लगाए। साथ ही अपराधियों की सिस्टम में पहुँच की भी शंका पैदा करता है। जिस प्रकार से पुलिस विभाग की गोपनीय सूचना लीक हुई वह अपने आपमें एक बहुत बड़ा सवाल है।

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  1. सज्जाद हैदर जी, आपके राजनैतिक निबंध पर मेरी टिप्पणी की प्रतिक्रिया देख मुझे अंग्रेजी समाचारपत्र इंडियन एक्सप्रेस पर तवलीन सिंह द्वारा प्रस्तुत वेबदैनिकी, The land of elected criminals याद आ गया| संवत २००६ में लिखा वेबदैनिकी भी राजनैतिक निबंध ही था जो कांग्रेस-राज में हुई जघन्य हत्या से उत्पन्न हाहाकार की प्रतिध्वनि बने मात्र क्षति-नियंत्रण था| यदि जेसिका लाल हत्या काण्ड को सामाजिक समस्या स्वरूप सुलझाने का प्रयास किया होता तो संभवतः जीतेजी मनु शर्मा के अवतार में फिर कोई विकास दुबे विकसित न होता| काश, कांग्रेस-राज में समाज का भी कोई महत्त्व होता| अंग्रेजों द्वारा स्थापित केवल राजनैतिक ढांचा होने पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अब तक “विकास पर अंकुश न लगा” तवलीन सिंह के कथन, “You can be a murderer, smuggler, rapist or thief but if you can find some rotten borough that will elect you – or that you can intimidate into electing you – then the cases against you become irrelevant. The very policemen who have been hunting you are forced to give you protection.” को चरितार्थ किया है! तिस पर आपकी प्रतिक्रिया में “भूतपूर्व अनेकों विकास पर अंकुश न लगना, …” अवश्य ही दोषयुक्त राजनैतिक स्थिति में सामाजिक समस्या का अनावरण है| धन्यवाद|

    जब मुझ बूढ़े को आप जैसे भारतीय युवा आशा की किरण बन राष्ट्रीय शासन के प्रति मेरा विश्वास जगाते हैं तो मैं भी आपके साथ खड़ा इस सामाजिक समस्या को ले आपको निराश नहीं देख सकता| अपराधियों द्वारा घात लगा आक्रमण में आपके “अबतक पुलिस की गिरफ़्त में न आना, यह फिर एक सवाल…|” के उत्तर दिए जाने से पहले शहीद हुए पुलिसकर्मी विकास दुबे को गिरफ्तार करने ही गए थे| कांग्रेस राज में “क्या सरेंडर की है तैयारी…? यदि सरेंडर होता है तो फिर…| समझ लेना चाहिए…|” सदैव निराशा के प्रतीक रहे हैं|

    आज इक्कीसवीं सदी में वर्तमान राष्ट्रवादी शासन के अंतर्गत अपराधी का आत्मसमर्पण अथवा जीवित पकड़े जाना ही समस्या निवारण व समाधान का पहला चरण है| क्रमशः

  2. जब तक नेताओं व अपराधियों के नेक्सस का अंत नहीं होगा तब तक यह खेल नहीं रुकेगा और यह मोने वाला नहीं है क्योंकि नेता इनके कन्धों पर चढ़ कर ही सदन में पहुँचते हैं और वे ही वहां से इन्हें संरक्षण देतेहैं , यह खेल एक राज्य में नहीं सभी राज्यों में है , सांसद भी इस से दूर नहीं हैं
    दुसरे यह किसी एक दल के साथ नहीं है सभी दलों को यह सौभाग्य प्राप्त है , विकास भी कोई एक या चार साल में इस जगह पर नहीं पहुंचा है , उसे सभी दलों ने , खुद पुलिस ने उसे संरक्षण दिया , किस ने , क्यों दिया यह अलग सवाल है लेकिन जब तक यह व्यवस्था चलेगी तब तक ऐसे लोग भस्मासुर बन कर परेशानी खड़ी करते रहेंगे
    आज जो लोग आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं कल वे लोग ही इनके पालनहार रहे हैं या भविष्य में हो जाएंगे
    जनता तो परेशां रही है , और रहेगी

  3. यह एक बवाल, यदि भारतीयों की अंतरात्मा को झकझोर समाज में अनुशासन व न्याय हेतु उनके निश्चय के बल पर फिर कभी दूसरा बवाल न होने पाए तो सज्जाद हैदर जी द्वारा उठाये कई सवाल, विशेषकर विकास के विकास का सवाल, जिस पर स्वयं विकास दुबे की मां, श्रीमती सरला देवी द्वारा दिए उत्तर, “विकास दुबे राजनेताओं के संपर्क में आने के बाद अपराध की दुनिया में शामिल हो गया था. वो विधानसभा चुनाव जीतना चाहता था” की कड़ी छान-बीन कर उचित उपाय ढूँढने होंगे| क्रमशः

    • बिना संरक्षण के संभव नहीं, यह तो तय है…| लेकिन ऐसे अनेकों विकास हैं जो आज लोकतंत्र की शोभा बढ़ा रहे हैं…| भूतपूर्व अनेकों विकास पर अंकुश न लगना, आज के नए विकास के जन्म का मुख्य कारण…| लेकिन आज के विकास का अबतक पुलिस की गिरफ़्त में न आना, यह फिर एक सवाल…| क्या सरेंडर की है तैयारी…? यदि सरेंडर होता है तो फिर…| समझ लेना चाहिए…|

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