एक नदी का उल्लास से भर जाना

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मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी मां स्वरूपा नर्मदा नदी उल्लास से भर गई होगी। यह स्वाभाविक भी है। मां अपने बेटों से क्या चाहती है? अपनों से दुलार और दुलार में जब पूरा समाज सेवा के लिए खड़ा हो जाए तो मां नर्मदा का पुलकित होना, उल्लास से भर जाना सहज और स्वाभाविक है। दुनिया में पहली बार किसी नदी को प्रदूषित होने से पहले बचाने का उपक्रम किया गया। कहने को तो इस दिशा में सरकार ने पहल की लेकिन सरकार के साथ जनमानस ने नर्मदा सेवा यात्रा को एक आंदोलन का स्वरूप दे दिया। चारों ओर से गूंज उठने लगी कि मां नर्मदा की सेवा का संकल्प लिया है। उसे प्रदूषित नहीं होने देंगे। यह अपने आपमें अंचभित कर देने वाला आयोजन था जो भारतीय समाज की जीवनशैली को एक नया स्वरूप देता है। एक नई पहचान मिलती है कि कैसे हम अपने जीवन के अनिवार्य तत्वों को बचा सकते हैं। स्मरण हो आता है कि हमारे ही देश भारत में किसी राज्य सरकार ने नदी का सौदा-सुलह कर लिया था और हम मध्यप्रदेशवासी किसी कीमत पर ऐसा नहीं कर सकते हैं। नमामी नर्मदा सेवा यात्रा इसका जीवंत प्रमाण है।
भारतीय संस्कृति में जीवन के लिए पांच तत्वों को माना गया है जिसमें जल एक तत्व है। इसलिए जल के बिना जीवन की कल्पना करना डरावना सा है। इसी के चलते हमारे पुरखों ने जल संरक्षण की दिशा में जो अनुपम कार्य किए हैं, वह हमारे लिए उदाहरण के रूप में मौजूद हैं लेकिन हमने समय के साथ नदी-तालाबों के संरक्षण के बजाय दोहन करने पर जोर दिया है। आज यही कारण है कि दुनिया भर में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। अब हम जाग रहे हैं लेकिन अब सम्हलने में एक सदी का वक्त लग जाएगा, इस बात में भी कोई संदेह नहीं। इस कठिन समय में जनचेतना जागृत करनेे के लिए मध्यप्रदेश में नमामि देवी नर्मदे-नर्मदा सेवा यात्रा-2016 एक सुखद संकेत है। निश्चित रूप से हम आज कोशिश करेंगे और इस कोशिश को हमारी नई पीढ़ी आगे बढ़ाने आएगी, यह उम्मीद की जानी चाहिए।
नर्मदा नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के अमरकटंक से होता है। नर्मदा नदी 16 जिले और 51 विकासखण्ड से होती हुई 1077 किलोमीटर का मार्ग तय करती है। नर्मदा एक नदी मात्र नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति है। इसलिए हम नमामि देवी नर्मदे-नर्मदा कहकर पुकारते हैं। समय के साथ मां नर्मदा का हमने दोहन किया, उसके संरक्षण की दिशा में हम अचेत रहे और आज मां नर्मदा का आंचल आहिस्ता-आहिस्ता सिकुड़ता चला जा रहा है और हालात यही रहे तो इस बात में कोई संदेह नहीं कि आने वाले समय में मां नर्मदा केवल इतिहास के पन्नों पर रह जाए। इस चुनौती से निपटने के लिए नमामि देवी नर्मदे, नर्मदा सेवा यात्रा आरंभ किया गया है। यह दुनिया का सबसे बड़ा नदी संरक्षण अभियान है, जिसमें समाज की भागीदारी सुनिश्चित की गई थी। 144 दिनों तक निरंतर इस यात्रा के जरिये जन-समुदाय को नर्मदा नदी के संरक्षण की जरूरत और वानस्पतिक आच्छादन, साफ-सफाई, मिट्टी एवं जल-संरक्षण, प्रदूषण की रोकथाम आदि के बारे में जागरूक करने की सार्थक कोशिश की गई।
मध्यप्रदेश के जनसम्पर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र नर्मदा सेवा यात्रा के बारे में कहते हैं कि-‘आज जब पूरे विश्व में पर्यावरण की बात हो रही है तब मुख्यमंत्री श्री चौहान का यह मानना एक सामयिक चिंतन ही है कि मध्यप्रदेश की नर्मदा मैया को पर्यावरणीय संकटों से उबारना बहुत आवश्यक है। गत दशकों में निरंतर वन कम होने से नर्मदा मैया की धार भी प्रभावित हुई है। जिस नदी ने हमें जल, विद्युत, कृषि, उद्यानिकी की सौगात दी है, उसे हम प्रदूषित करने में पीछे नहीं रहे। यह एक तरह का मनुष्य का अपराधिक कृत्य माना जाएगा कि हमारी नदियाँ लगातार प्रदूषित होती गई हैं। अब वह समय आ गया है जब पुरानी त्रुटियों के लिए पश्चाताप करते हुए नदियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए वातावरण बनाया जाए और मिलकर कार्य किया जाए। नर्मदा तट के पास स्थित गांव में स्वच्छ शौचालय बनेंगे, नगरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की व्यवस्था होगी, घाटों पर पूजन कुण्ड, मुक्ति धाम और महिलाओं के चेंजिंग रूम भी बनेंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि यात्रा के दौरान दोनो तटों पर एक-एक किलोमीटर तक फलदार, छायादार पौधे लगाए जाएंगे। इसकी शुरूआत हो चुकी है। स्वच्छता, जैविक खेती, नशामुक्ति और पर्यावरण संरक्षण के संयुक्त अभियान के रूप में यह यात्रा हमारे सामने है। समाज और सरकार के सामूहिक संकल्प से नर्मदा की पवित्रता का संरक्षण अवश्य सफल होगा।’
नर्मदा सेवा यात्रा का उद्देश्य टिकाऊ एवं पर्यावरण हितैषी कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये जन-जागृति, प्रदूषण के विभिन्न कारकों की पहचान और रोकथाम, जल-भरण क्षेत्र में जल-संग्रहण के लिये जन-जागरूकता, नदी की पारिस्थितिकी में सुधार के लिये गतिविधियों का चिन्हांकन और उनके क्रियान्वयन में स्थानीय जन-समुदाय की जिम्मेदारी तय करना, मिट्टी के कटाव को रोकने के लिये पौधे लगाना आदि है।
ज्ञात रहे कि नर्मदा नदी देश की प्राचीनतम नदियों में से है, जिसका पौराणिक महत्व भी गंगा नदी के समान माना जाता है। नर्मदा अनूपपुर जिले के अमरकंटक की पहाडिय़ों से निकलकर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर करीब 1310 किलोमीटर का प्रवाह-पथ तय कर गुजरात के भरूच के आगे खम्भात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। मध्यप्रदेश में नर्मदा का प्रवाह क्षेत्र अमरकंटक (जिला अनूपपुर) से सोण्डवा (जिला अलीराजपुर) तक 1077 किलोमीटर है, जो नर्मदा की कुल लम्बाई का 82.24 प्रतिशत है।
यही नहीं, नर्मदा अपनी सहायक नदियों सहित प्रदेश के बहुत बड़े क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल का बारहमासी स्रोत है। नदी का कृषि, पर्यटन और उद्योगों के विकास में अति महत्वपूर्ण योगदान है। इसके तटीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू, गेहूँ, कपास आदि हैं। नर्मदा तट पर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्यटन-स्थल हैं, जो देश-प्रदेश, विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। नर्मदा नदी का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक रूप से काफी महत्व है। नमामि देवी नर्मदे-नर्मदा सेवा यात्रा-2016 का संदेश केवल  नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए नहीं है अपितु देशभर की नदियों को बचाने और संवारने की पहल है। मध्यप्रदेश से उठी यह आवाज कल देश भर के लिए होगी और पूरी दुनिया मध्यप्रदेश के इस अतुलनीय प्रयास में सहभागी होगी, यह उम्मीद की जानी चाहिए।

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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