अमृत महोत्सव की परिकल्पना को साकार करता एकल अभियान

पूरा देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है। 75 वर्षों की स्वतंत्रता ने भारत को दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों की कतार में सम्मिलित करवा दिया है तो उसके पीछे प्रेरणा है उस भाव की जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को मानता है, उस शक्ति की जो समाज की एकजुटता से मिलती है, उस स्वाभिमान की जो हमारी सांस्कृतिक विरासत की थाती है। इसी समाज की एकता, शौर्य, स्वाभिमान को धार देता है ‘एकल अभियान’। भारत की बीते 75 वर्षों की यात्रा में एकल की 33 वर्षों की यात्रा उस भाव की साक्षी रही है जिसने अमृत महोत्सव के ‘उत्सव’ का अवसर दिया है। एकल अभियान से सम्बद्ध सभी संगठनों/आयामों ने अपनी स्थापना काल से ही भारतीयता के बोध को सशक्त कर आजादी के अमृत महोत्सव के भाव को पुष्ट किया है और निरंतर भविष्य के भारत के स्वप्न को साकार कर रहे हैं।

यह स्वतंत्रता हमें अनेक कष्टों को सहकर प्राप्त हुई है। अनगिनत भारत माँ के बेटों ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु स्वयं को होम कर दिया। भारत माँ के वीरगति प्राप्त लाल उस भूभाग से थे जो वास्तव में वंचित और शोषित था। हालांकि इसी वर्ग ने सतयुग में श्रीराम के साथ मिलकर बुराई पर विजय प्राप्त की तो वर्तमान में गाँधी जी के आंदोलनों का सबसे बड़ा अस्त्र भी यही समाज बना। इसी वनवासी समाज ने सच्चे अर्थों में भारत को भारत रहने दिया और इसकी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की है। आजादी के बाद के 75 वर्षों में वनवासी समाज की जिजीविषा ने स्वर्णिम भारत के खाके को तैयार किया है। इस प्रक्रिया में सरकारी, अर्ध-सरकारी व निजी संस्थाओं ने महती भूमिका का निर्वहन किया है। इसी परिपेक्ष्य में, गाँधी शांति पुरस्कार से सम्मानित; शिक्षा-संस्कार को समर्पित एकल अभियान ने भारत के ऐसे क्षेत्र को नवाचारों से पुष्ट कर क्रांतिकारी परिणामों को प्रस्तुत किया है जो वास्तव में उपेक्षित था।

किन्तु वनवासी समाज के जीवन में यह बदलाव स्वमेव हुआ? नहीं। स्वतंत्रता के पश्चात हुए व्यापक बदलावों के गवाह बनते भारत में ऐसे वनवासी क्षेत्र भी थे जो शिक्षा, संस्कार, सहकार, समानता, स्वाबलंबन के क्षेत्र में धीमी गति से प्रगति करने को विवश थे। सरकार उन तक पहुंची अवश्य थी किन्तु विश्वास की कमी के चलते वे विकास की अवधारणा से कोसों दूर थे। ऐसे विकट समय में, सुदूर वनवासी क्षेत्र में एक सूर्य चमका जिसकी लालिमा में विश्वास की चमक दिखाई दी। समाज के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का प्रण लिये कुछ सेवकों ने एकल विद्यालय की नींव रखी जो शिक्षा के माध्यम से स्वतंत्रता के उद्देश्य को पूर्ण करने में सहायक थे। प्रारंभ में शिक्षा को समर्पित इन विद्यालयों ने कालांतर में एक ऐसा स्वरूप लिया जिसमें शिक्षा के इतर संस्कार, सहकार, स्वाबलंबन, समानता पक्ष पुष्ट होते गए।

भारत के इतिहास में अंकित सन्‌ 1989, एक मूक क्रान्ति के आह्वान का साक्षी बना, जब एकल अभियान के चिंतकों ने विकसित और सशक्त भारत की कल्पना को साकार करने के लिए भारत के गाँवों को सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक रूप से सबल बनाने के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक करने का संकल्प लिया। और अंततः जन्म हुआ ‘एकल अभियान’ का जो भविष्य के भारत की नींव को मजबूत कर रहा है। मुझसे कई लोग पूछते हैं कि एकल अभियान ने अपनी गतिविधियाँ वनवासी क्षेत्रों में ही प्रारंभ क्यों कीं? दरअसल, यदि हम भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को देखें तो उसमें वनवासी बंधुओं/भगिनियों को वह स्थान नहीं प्राप्त हुआ जिसके वे हकदार थे। बिरसा मुंडा, जतरा भगत, तिलका मांझी, चिन्नमा, अल्लूरी सीताराम राजू, कोमाराम भीम, बुधु भगत, टंट्या मामा भीम जैसे अनगिनत वनवासी क्रांतिकारियों को बिसरा दिया गया। कालान्तर में इनका नाम सुनाई अवश्य पड़ता रहा किन्तु ‘नायक’ बनने के क्रम में वे अभी भी दूर थे। अब जब नायक ही उपेक्षित हों तो वनवासी समुदाय के विकास की सोच ही बेमानी थी। यही नहीं, श्रीराम जब माँ सीता की खोज में वन-वन भटक रहे थे तो इन्हीं वनवासियों ने उन्हें मार्ग दिखाया था। गाँधीजी के स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन में भी इसी वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इन परिस्थितियों में समाज के चिंतकों ने अपना ध्यान इस वर्ग की ओर लगाया ताकि गौरवशाली भारत की परंपरा का वाहक वनवासी समाज अपनी माँ, माटी और मानुष के माध्यम से भारत के बढ़ते कदमों के साथ कदमताल कर सके।

आज जबकि पूरा देश स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव की गूँज से आह्लादित है, एकल अभियान के माध्यम से एक लाख गाँवों में छह से चौदह वर्ष की आयु के तीस लाख ग्रामीण बालक-बालिकाएँ एकल विद्यालयों में अनौपचारिक और संस्कार शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दैनिक रूप से दो घंटे चलने वाले एकल विद्यालय के अनोखे पाठयक्रम में गीत, कविता, कहानी, गणित, योग, व्यायाम और खेलों के माध्यम से बच्चों के सर्वांगीण विकास पर अधिक बल दिया जाता है। एकल अभियान की शैक्षणिक क्रान्ति में बदलते समय के साथ ग्रामीण भारत की नई पीढ़ी को भी डिजिटल साक्षर बनाने का निर्णय भी लिया गया। कुछ चुने गए ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी बच्चों की भाँति ई-शिक्षा के अन्तर्गत टेबलेट के माध्यम से उन्हें साक्षर किया जा रहा है। 33 वर्षों में एकल विद्यालय ने 40 लाख बच्चों को शिक्षित कर उन्हें सरकारी, गैर-सरकारी विद्यालयों में प्रवेश दिलाया। 2011 के सरकारी आँकड़े के अनुसार, भारत में शिक्षा का स्तर 11 प्रतिशत बढ़ा जिसका श्रेय एकल को जाता है। स्वराज 75 की अवधारणा के अनुरूप शिक्षित हो रहे इन ग्रामवासी बच्चों का भविष्य भी भारत के भविष्य की भाँति ही उज्जवल है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पंचमुखी शिक्षा के माध्यम से सर्वांगीण विकास का खाका खींच रहे वनबन्धु परिषद ने नगर-ग्रामीण के मध्य की दूरी पाटने का कार्य किया है। धन संग्रह से लेकर उसके उचित क्रियान्वयन तक की प्रक्रिया वनबन्धु परिषद कर रही है ताकि एकल अभियान के वृहद लक्ष्यों में आर्थिक बाधा उत्पन्न न हो। भारत लोक शिक्षा परिषद के अंतर्गत भी विद्यालयों के सुचारू संचालन पर ध्यान दिया जाता है। वनबन्धु परिषद्, भारत लोक शिक्षा परिषद्, एकल विद्यालय फाउंडेशन (विदेशों में) ने बड़ी संख्या में देश-विदेश के नगरीय, संभ्रात समाज को वनवासी की कुटिया से जोड़ा तथा उनके दुःख-दर्द और उपेक्षा के दुष्परिणामों से परिचित कराया। इन संगठनों के कारण 35,000 से अधिक छोटे-बड़े नगरों ने सहयोगी व दानदाताओं का सहयोग प्राप्त हुआ। एकल ग्लोबल ने विश्व के तमाम बड़े शहरों में एकल चैप्टर के साथ सामंजस्य स्थापित कर एक नजीर प्रस्तुत की है।

इसी प्रकार एकल की ग्रामोत्थान योजना गाँधीजी और नानाजी देशमुख के ‘ग्राम स्वराज’ की अवधारणा को साकार कर रही है। इसके अन्तर्गत ‘कम्प्यूटर ट्रेनिंग वेन्स’ जिन्हें ‘एकल ऑन व्हील्स’ कहा जाता है; के माध्यम से सम्पूर्ण भारत के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों और युवाओं को डिजिटल शिक्षा प्रदान की जा रही है। एकल के ग्रामोत्थान संसाधन केन्द्रों ने निकटवर्ती ग्रामीण युवाओं के लिए भी अपनी कम्प्यूटर लैब्ज में स्वरोजगार के नए अवसर सृजित किए हैं। ग्रामीणों के आर्थिक उन्‍नयन के लिए एकल के ग्रामोत्थान संसाधन केन्द्रों ने गो आधारित कृषि और कृषि आधारित व्यापार की संरचना को सरल ढंग से ग्रामीणों के सम्मुख रखा है। समग्र विकास के लक्ष्य को सामने रखते हुए इन केन्द्रों में ग्रामीण महिलाओं के लिए सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र और ब्यूटीशयन प्रशिक्षण केन्द्र भी खोले गए हैं। वर्ष 2021 तक ऐसे सोलह ग्रामोत्थान संसाधन केन्द्र देश की चारों दिशाओं में विस्तार पा चुके हैं तथा अधिक केन्द्र अभी निर्माण की प्रक्रिया में हैं। आत्मनिर्भरता, कौशल विकास, स्किल इंडिया, कृषि को बढ़ावा, उद्यमिता, ग्राम स्वराज से जागृति, भ्रष्टाचार पर रोक आदि विषयक कार्य ग्रामोत्थान फाउंडेशन के माध्यम से किये जा रहे हैं। मेक इन इंडिया, फॉर दी इंडिया की अवधारणा पर चल रहे इन केन्द्रों के कार्यरत होने से आज रोजगार के लिए शहरों की ओर होने वाले ग्रामीणों के पलायन में भी धीरे-धीरे न्यूनता आ रही है।

भारत के दूरस्थ गाँवों में शहरों की भाँति मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं का आज भी अभाव है। एकल के अंतर्गत आरोग्य योजना ने अपनी अनेक स्वास्थ्य सेवाएं इन क्षेत्रों में आरम्भ की हैं। कोरोना महामारी की अवधि में एकल द्वारा ग्रामीण समाज को न केवल जागरूक करने का उत्कृष्ट कार्य किया गया बल्कि लाखों की संख्या में मास्क बनाकर हेल्‍थ-वर्कर्स और समाज में निःशुल्क वितरित किए। एक अनुमान के अनुसार, आरोग्य फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं ने कोरोना काल में 3 लाख से अधिक गाँवों की रक्षा की। ‘उपचार से रोकथाम बेहतर’ में विश्वास रखते हुए एकल ने ग्रामीण परिवारों में पोषण वाटिका बनाने का कार्य किया। एकल की दो आई-वैन गाँव-गाँव जाकर ग्रामीणों को निःशुल्क चश्मे और दवाईयाँ उपलब्ध करा रही है। निःशुल्क स्वास्थ्य जागरूकता शिविरों का आयोजन भी समय-समय पर नियमित रूप से किया जाता है। आयुर्वेद की पारम्परिक वनोषधियों के प्रयोग से सामान्य रोगों से बचाव के उपाय आरोग्य के कार्यकर्ताओं से जानकर ग्रामीण लाभान्वित हो रहे हैं। एकल कार्यकर्ताओं के प्रयासों से सामान्य साफ-सफाई और स्वच्छता के प्रति भी ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ी है। ग्राम वैद्य योजना ने ग्रामवासियों को इतना प्रशिक्षित कर दिया है कि वे अब सामान्य स्वास्थ्यगत समस्याओं में शहरों की ओर न देखते हुए घरेलू नुस्खों से उपचार कर लेते हैं।

भारतीय संस्कृति की समृद्ध परम्पराओं को एकल श्रीहरि सत्संग समिति के कार्यकर्ता पूरे मनोयोग से संरक्षित कर रहे हैं। अनेक गाँव आज इनके प्रयासों से नशा मुक्त हो चुके हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगी है। सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामवासी और वनवासी आज ‘एकल रथ’ के माध्यम से अपनी प्राचीन संस्कृति के गौरवशाली मूल्यों और इतिहास से परिचित हो रहे हैं। ग्राम स्वराज मंच ग्रामीणों को किस प्रकार सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, ग्रामीणों का जीवनस्तर उच्च हो, पर ध्यान केन्द्रित करता है। एकल युवा के माध्यम से युवाओं को जोड़कर उन्हें ग्रामीण परिवेश से परिचित करवाने पर चिंतन होता है ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़कर उनके प्रति अपने कर्तव्यों को पूर्ण कर सकें।

एकल की इस 33 वर्षों की यात्रा में ‘कुम्भ’ का बड़ा महत्त्व रहा है। इन ‘एकल कुम्भ’ के माध्यम से संगठन विस्तार को तो धार मिली ही, कार्यकर्ताओं को देशसेवा का मूलमन्त्र भी मिला। वर्ष 2005 में प्रथम कार्यकर्ता कुम्भ का आयोजन इंदौर में हुआ जिसमें 3,500 पूर्णकालिक सेवाव्रती सम्मलित हुए। इस कुम्भ को कार्यकर्ताओं को ही समर्पित किया गया। वर्ष 2009 में दिल्ली में दूसरा कुम्भ संपन्न हुआ जिसे ‘एकल कुम्भ’ कहा गया। इसमें सेवाव्रती कार्यकर्ताओं के साथ ग्राम संगठन तथा नगर संगठन को एक साथ मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। पांच दिवसीय यह कुम्भ कई अर्थों में अद्वितीय रहा। 15,000 की संख्या में वृहद् परिवार के रूप में एकल के विराट स्वरूप का दर्शन प्राप्त हुआ। पहली बार विदेश के बंधु भी सम्मिलित हुए। पूरे नगर में प्रभात फेरियां निकाली गईं। वर्ष 2015 में तीसरा कुम्भ ‘परिणाम कुम्भ’ के नाम से धनबाद में आयोजित हुआ। इस कुम्भ के माध्यम से देश ने एकल अभियान के परिणामपरक पक्ष को जाना, समझा और सराहा। इससे यह बात भी सिद्ध हुई कि संपर्क से संगठन और संगठन से परिणामकारी स्वरूप बनता है। वर्ष 2020 में लखनऊ में ‘परिवर्तन कुम्भ’ का भव्य आजोयन हुआ जिसने सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रमाण प्रस्तुत किये। इस तथ्य पर भी मुहर लगी कि एक लाख से अधिक गाँवों में एकल अभियान की उपस्थिति से परिवर्तन की किरणें पहुँच चुकी हैं।

विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. अशोक सिंघल ने एकल को ब्रह्मास्त्र की संज्ञा देते हुए इसकी महत्ता पर प्रकाश डाला था। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं पर केन्द्रित एकल अभियान के सेवा-कार्यों को पूरे विश्व से मिल रहे जनसमर्थन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एकल अब सम्पूर्ण विश्व का है। अतएव, भारत के वनवासी और ग्रामीण क्षेत्र भी समृद्ध बनें, संस्कारित और शिक्षित हों, अपने इसी लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर आगे बढ़ रहा है एकल अभियान। और न सिर्फ आगे बढ़ रहा है बल्कि स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में भारत को ‘विश्व गुरु’ बनाने की ओर अग्रसर भी कर रहा है।

– सिद्धार्थ शंकर गौतम

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ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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