इलेक्शन की माउथ स्ट्राइक

                              प्रभुनाथ शुक्ल

होली रंग और मन मिजाज का त्यौहार है। क्योंकि अपना देश भी रंगीला है। यहां की हर बात निराली है। होली और चुनाव में चोली-दामन का साथ है। दोनों उमंग, उन्माद, उत्साह, उम्मीद, रंग-भंग, दबंग, मृदंग और हुड़दंग के महामिश्रण से निर्मित हैं। होली में छेड़छाड़ के एक सौ एक गुनाह माफ है। गुलाल लगाने के बहाने कुछ भी करिए बस एक ठुमका लगा दीजिए बुरा न मानो होली है…। होली और चुनाव के मौसम एक साथ आते हैं, जिसमें रंग और दिल का मिश्रण बेहद बेजोड़ बनता है। होली में जहां रंग भरे गुब्बारे फोड़े जाते हैं वहीं चुनाव में बहकी जुबान के एटमी बम गिराए जाते हैं। जिसका जश्न हमारे पड़ोस में मनता है। चुनाव का मौसम कई शब्दावलियों को जन्म देता है। लोकतंत्र से जुड़े इस महापर्व में काफी समानता दिखती है। गधे और इंसान को एक नजर से देखा जाता है। जिंदगी भर बोझ ढ़ोनेवाले गधे चुनावी में सूर्खियां बटोरते हैं। जुबानी हमले से कोई बादशाह बन जाता है। कोई मौन रख कर मौनी बाबा।

अबकी चुनाव में तीन केंद्रीय मुद्दे हैं सवाल, सबूत और रफाल। तीन सवालों में पूरी सियासत फाल हो रही है। कौन कितना फाल होगा, कहां तक फाल होगा फिलहाल स्पीडोमीटर नहीं हैं। चुनावी मौसम में रुपया और जुबान लुढक़ने की होड़ में शामिल हैं। क्योंकि फागुन में फाल होने की होड़मची है। चेला और गुरु में आगे निकलने की आपाधापी है। एक सवाल पूछ रहा है तो दूसरा सबूत मांग रहा। कोई मनोबल गिराने में लगा है। फास्ट फूड के दौर में मनोबल भी रंगभरे गुब्बारे जैसे हैं। नेताओं की जुबान की तरह जाने कहां, कब और कैसे गिर जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता। आजकल देशद्रोहियों का उत्पादन अधिक होने लगा है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि अधिक पैदावार की वजह से इन्हें निर्यात करने के लिए विदेशी समझौते करने पडेंगे। पेट फुलाने पचकाने वाले बाबा का अनुसंधान चल निकला है। धवलपोशी महामिलावटी अनुलोम-विलोम की होड़ में लगे हैं। नासिका के एक द्वार से चोर घूस रहा है दूसरे से चैकीदार निकल रहा। चोर और चैकीदार एक दूसरे के विपरितार्थी यानी विलोमी हैं, फिर भी गजब का तालमेल है। चैकीदार, चोर है या फिर चोर ही चैकीदार है। बात कुछ हजम नहीं होती। सियासत का यह मुहावरा भ्रम पैदा करता है। ठीक उसी तरह नारी बीच सारी है, कि सारी बीच नारी है,नारी की ही सारी है, कि सारी ही की नारी है। लोग यह समझ नहीं पाए कि आखिर चोर है कौन ? बस थोड़ा इंतजार कीजिए दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

अभी तक हम चोर-चोर मौसेर भाई का जुमला पढ़ते आ रहे थे लेकिन महामिलावट की नई परिभाषा नेे मेरी भी नींद उड़ा दी है। दोनों की ईमानदारी पर सवाल और संकट है। देश भर में चोर और चैकीदार उलझ गए हैं। कभी छत्तीस के आंकड़ने वाले तिरसठ होने लगे हैं। इस महाबहस में दोनों का अस्तित्व दांव पर लगा है। न चोर अपने को चोर कह पा रहा न चैकीदार खुद को चैकीदार। महामिलवट की राजनीति ने दोनों का बेड़ागर्त कर दिया है। एक कौम में चैकीदार बनने की होड़ मची है। जिसका असर चैकीदारों की रोजी-रोटी पर है। दूसरी तरफ चोरों का धंधा मंदा पड़ गया है। क्योंकि हर जगह चैकीदार तैनात हैं। उनकी यह समझ में नहीं आ रहा है कि महामिलावटियों की जमात हमारे धंधे को चैपट करने पर क्यों तूली है। चैकीदारों के साथ चोरों की भी नैतिकता एवं ईमानदारी खतरे में है। लिहाजा समय की मांग देखते हुए चैकीदार और चोरों ने नया फैसला किया है। महा फैसले से महामिलावटियों के रंग में भंग मच गया है। मीडिया ब्रीफिंग में चोरों और चैकीदारों की कामधारी संस्था ने फैसला किया है वह नामदारों और कामदारों के महामिलावटी गठजोड़ के खिलाफ महागठबंधन बनाएगी। यह गठबंधन सभी सीटों पर एक साथ चुनाव लड़ेगा। संयुक्त बयान में कहा गया है कि हमसे सवाल और सबूत मांगने वालों को जनता सबक सीखाएगी।…बुरा न मानों भइया, यह चुनावी होली है। 

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