शर्मनाक मीडिया, बेशर्म बुखारी

21
179

-आवेश तिवारी

शाही इमाम अहमद शाह बुखारी नाराज हैं उन्होंने, वहीद को काफिर कहा और पीट दिया, बस चलता तो उसके सर कलम करने का फतवा जारी कर देते, हो सकता है कि एक दो दिनों में कहीं से कोई उठे और उसके सर पर लाखों के इनाम की घोषणा कर दे, वो मुसलमान था उसे ये पूछने की जुर्रत नहीं होनी चाहिए थी कि क्यूँ नहीं अयोध्या में विवादित स्थल को हिन्दुओं को सौंप देते। वैसे मै हिन्दू हूँ और मुझमे भी ये हिम्मत नहीं है कि किसी से पूछूं क्यूँ भाई कोर्ट के आदेश को सर आँखों पर बिठाकर इस मामले को यहीं ख़त्म क्यूँ नहीं कर देते, क्यूंकि मै जानता हूँ ऐसे सवालों के अपने खतरे हैं, बुखारियों के वंशजों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को चप्पे चप्पे पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है। वहीद अकेला नहीं है अखबार के कालमों से लेकर ब्लागों और वेबसाइटों के बड़े नामों पर हर जगह वो लोग उन सभी पर एक साथ हल्ला बोल रहे हैं जो अदालत के निर्णय के साथ या निरपेक्ष खड़े हैं। मुझे नहीं मालूम कि अभिव्यक्ति का ऐसा संकट आपातकाल में भी था की नहीं? अफ़सोस इस बात का भी है कि मीड़िया का एक बड़ा हिस्सा इस मामले में आँखें मूँद कर तमाशा देख रहा है, कल जब वहीद पीट रहा था, उस वक़्त भी वो मुस्कुराते हुए तमाशा देख रहे थे, मौका मिलता तो अपनी तरफ से भी दो चार थप्पड़ लगा देते।

शाही इमाम द्वारा वहीद की पिटाई सिर्फ एक पत्रकार की पिटाई नहीं थी ,वो ऐसा करके देश के उन सभी मुसलमानों को ये सन्देश देना चाह रहे थे कि जो कोई मुसलमान, बाबरी मस्जिद के खिलाफ या राम मंदिर के समर्थन में कुछ कहेगा या फिर भाई चारे की बात करेगा(ऐसे मुसलमानों की तादात काफी अधिक है ,जो मंदिर मस्जिद से अधिक अमन चैन चाहते हैं ) उन सभी का वो ऐसा ही हश्र करेंगे। ये कुछ ऐसा ही है कि जब कभी कोई हिन्दू अदालत के फैसले के समर्थन में या फिर विवादित स्थल मुसलमानों को सौपने की बात कहे और प्रवीण तोगड़िया एवं अन्य बजरंगी उस पर टूट पड़ें, मगर प्रवीण तोगड़िया ने ऐसा किया नहीं, अगर करते तो शायद देश में भूचाल आ गया होता, चैनलों, अख़बारों और वेब पोर्टल हर जगह पर सिर्फ यही खबर होती, हमारे लाल झंडे वाले साथी घूम घूम कर प्रवीण के साथ साथ भगवा झंडे को गरियाते, शायद मै भी उनमे शामिल होता। लेकिन अब …….!

अभी एक बड़े चैनल पर एक खबर फ्लेश हो रही थी “बुखारी को गुस्सा क्यूँ आता है?” मानो बुखारी का गुस्सा न हो किसी ऐसे व्यक्ति का गुस्सा हो जो एक अरब हिन्दुस्तानियों की तक़दीर लिख रहा हो। हिंदुस्तान की मीड़िया ने राजनैतिक पार्टियों की तरह साम्प्रदायिकता की आपनी अपनी परिभाषाएं गढ़ ली हैं। कहीं पर वो भगवा ब्रिगेड के साथ दिखाई पड़ता है तो कहीं कठमुल्लाओं के विरोध में इन दोनों ही सथितियों में वो अक्सर अतिवादी हो जाता है, इन सबके बीच मीड़िया की वो धारा कहीं नजर नहीं आती जो कट्टरपंथ के विर्रुद्ध निरपेक्ष खड़ी हो, वो बटाला हाउस के इनकाउन्टर में हुई निर्दोषों की हत्याओं पर उतना ही चीखे जितना कश्मीरी पंडितों पर ढाए जाने वाले जुल्मों सितम पर। ये हमारे समय का संकट है कि निरपेक्षता की परिभाषा के साथ प्रगतिशील और समाजवादी पत्रकारिता के नाम पर बार बार बलात्कार किया जा रहा है। ऐसा अगर कुछ और सालों तक रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हिंदुस्तान में सिर्फ दो किस्म के पत्रकार बचेंगे एक वो जो खुद के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए.धर्मनिरपेक्षता की चादर तान हिन्दुओं को गरियाते रहते हैं,और उन्हें मुसलमानों का दुश्मन नंबर एक करार देते हैं , दूसरे वो जिन्हें हर मुसलमान में आतंकवादी और देशद्रोही ही नजर आता है और जो भगवा रंग को ही भारत भाग्य विधाता मान लेने का मुगालता पाल रखे हैं।

ये सरोकार से दूर होती जा रही समकालीन पत्रकारिता का स्याह चेहरा है जहाँ हेमचन्द्र की हत्या पर जश्न मनाये जाते हैं, गिलानी की गमखोरी पर पुरस्कार बटोरे जाते हैं, वहीँ वहीद के अपमान पर चुप्पी साध ली जाती है। अब समय आ गया है कि बुखारी और बुखारी के वंशजों को उनकी औकात में लाया जाया, लेकिन इसके लिए सबसे पहले ये जरुरी होगा कि मीड़िया खुद ब खुद धर्मनिरपेक्षता के पैमाने तय करे जो सर्वमान्य हो। हमें ये भी तय करना होगा कि व्यवस्था को गाली देने की आड़ में कहीं राष्ट्र के अस्तित्व को ही तो चुनौती देने का काम नहीं किया जा रहा है। तब शायद ये संभव होगा कि हम में से कोई हिन्दू या मुस्लिम पत्रकार उठे और बुखारी को उन ३६ हजार लोगों की ताकत एक साथ दिखा दे (बतौर बुखारी वहीद जैसे ३६ हजार उनके आगे पीछे घूमते हैं)

Previous articleबुखारी, कांग्रेस और दिग्विजय
Next article‘प्रवक्‍ता डॉट कॉम’ के दो वर्ष पूरे होने पर विशेष
आवेश तिवारी
पिछले एक दशक से उत्तर भारत के सोन-बिहार -झारखण्ड क्षेत्र में आदिवासी किसानों की बुनियादी समस्याओं, नक्सलवाद, विस्थापन,प्रदूषण और असंतुलित औद्योगीकरण की रिपोर्टिंग में सक्रिय आवेश का जन्म 29 दिसम्बर 1972 को वाराणसी में हुआ। कला में स्नातक तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय व तकनीकी शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश से विद्युत अभियांत्रिकी उपाधि ग्रहण कर चुके आवेश तिवारी क़रीब डेढ़ दशक से हिन्दी पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद से आदिवासी बच्चों के बेचे जाने, विश्व के सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्मों की तस्करी, प्रदेश की मायावती सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खुलासों के अलावा, देश के बड़े बांधों की जर्जरता पर लिखी गयी रिपोर्ट चर्चित रहीं| कई ख़बरों पर आईबीएन-७,एनडीटीवी द्वारा ख़बरों की प्रस्तुति| वर्तमान में नेटवर्क ६ के सम्पादक हैं।

21 COMMENTS

  1. मै तिवारी जी के लेखा से सहमत हूँ.
    आज कुछ लोग रोजी रोटी के लिए परेशां है तो कुछ आपनी ताकत के बल आज भी तानाशाही कर रहे है. मरता गरीब ही है. इसलिए इस देश मै अमन शांति रहनो दो
    प्रेम बाबु शर्मा 09811569723

  2. अवधेश तिवारी जी
    निम्न वेब्साईट पर जाकर देखिए कि भारतका मिडिया का स्वामित्व किसका है।
    https://www.scribd.com/doc/937050/Who-Owns-the-Media-in-India
    संक्षेपमें उद्धृत निम्न पढिए।
    There are several major publishing groups in India, the most prominent among them being the
    Times of India Group,
    the Indian Express Group,
    the Hindustan Times Group,
    The Hindu group,
    the Anandabazar Patrika Group,
    the Eenadu Group,
    the Malayalam Manorama Group,
    the Mathrubhumi group,
    the Sahara group, the Bhaskar group,
    and the Dainik Jagran group.
    Let us see the ownership of different media agencies.
    Most of the media is controlled by Christian missionary groups or CIA.
    The rest of the media is controlled by Gulf muslims.
    NDTV: A very popular TV news media is funded by Gospels of Charity in Spain supports
    Communism. Recently it has developed a soft corner towards Pakistan because Pakistan
    President has allowed only this channel to be aired in Pakistan. Indian CEO Prannoy Roy is co-
    brother of Prakash Karat, General Secretary of Communist party of India.His wife and Brinda
    Karat are sisters. India Today is now bought by NDTV and and is a Hindu bashing media.

    CNN-IBN: This is 100 percent funded by Southern Baptist Church with its branches in all over
    the world with HQ in US. The Church annually allocates $800 million for promotion of its
    channel. Its Indian head is Rajdeep Sardesai and his wife Sagarika Ghosh.

  3. मैं मेरी समझ के अनुसार, मुसलमानों की (विवशताओं पर ) कठिनाइयों पर कुछ प्रकाश डालना चाहता हूं। यह कठिनाइयां आजके समय में उभरकर आती हुयी मुझे प्रतीत हो रही हैं।
    विचारके लिए, स्थूल रीतिसे, भारतीय मुसलमानोंको निम्न चार गुटों मे बांटा जा सकता है। (१) बुखारी जैसे, *कट्टर* देशद्रोही की सीमा वाले, (१क) इनके *अनुयायी* आदेशपर चलनेवाले (२) आधुनिक शिक्षा युक्त *सुधारवादी*(२क) सुधारवादी* जो सुधारका पक्ष निडरतासे खुलकर रखते हैं, (२ख) *मौन सुधारवादी* जो सुधार चाहते तो हैं, पर *कट्टर* गुटकी मारसे डरते हैं, इसलिए मौन रहते हैं।(२ग) शिक्षायुक्त चतुर जो अपनी चतुराइ से इस्लाम में कट्टर गुटका प्रभाव जानते हैं। इसी ज्ञानके आधारपर वे उपरसे नाटकीय श्रद्धा दिखाते हुए, शासक, अधिकारी, नेता इत्यादि बनकर मलाई खाने में सफल होते हैं।
    और, जब सुधारकको इस्लाम से “जातिबहार” निकाला जाता है, उसका बहिष्कार किया जाता है, फतवा निकाला जाता है, जैसा अन्वर शेख, तसलिमा, सलमान रश्दी, हमीद दलवाई इत्यादि लोगोंके साथ हुआ है। सारांश==> ऐसे इस्लामको सुधारने कौन आगे बढेगा?
    वास्तवमें भारत में यह सुधार होना अधिक संभव है। पर फिर कांग्रेस, कम्युनिस्ट, और लल्लु पंजु पार्टियां, इत्यादि राजनीति से प्रेरित गुट का अस्तित्व भी तो इस्लामके पीछडे रहने पर निर्भर करता है। इस विश्लेषण में भी, मीन मेख निकालने के लिए वे ही आगे बढ जाएंगे। फिर भी मुझे यही सच्चाई प्रतीत होती है। अन्य विचार, सच प्रतीत होनेपर स्वीकारने में मुझे कोई कठिनाइ नहीं।

  4. आवेश जी लेख के लिए शुभकामनाएं…… सुरेश जी के बारे में मैं थोड़ा बहुत जानता हूं। वे किसी हिन्दू संगठन के सदस्य नहीं है। उन्हें जो दिखता है वे लिखते हैं। खैर यहां सुरेश जी की चर्चा करने का कोई औचित्य भी नहीं है।
    आपका लेख सामयिक हैं। उसके अधिकांश हिस्से से मैं सहमत हूं, लेकिन पूर्णत: नहीं। मैंने भी इस मुद्दे पर लिखा है। बुखारी जैसे लोग इस देश के मुसलिमों को भड़काते हैं और उन्हें मुख्य धारा से दूर ले जाते हैं। दुख तो तब होता है जब बहुसंख्या में मुसलमान इन जैसे लोगों के बहकावे में आते हैं। चिश्ती जैसे महानुभावों की जरूरत है इस देश को।

  5. suresh chiplunkar par kaphi halki tippani kar di avdesh tumne. khair sureshji ko samjhne ke liye ek samagra drishkon ki jarurat hai. kisi bhi tark se suresh ko jhuthla nahi sakte. isliye aisi ashobhniya tippani kar rahe ho

  6. तिवारी जी आपके सामयिक लेख के लिए बधाई. वास्तव में कुछ पाठकों ने समस्या को जड़ तक छुआ है. इस समस्या के कई पहलु है.
    १ मीडिया का हठधर्मी होना. मतलब मीडिया का सेकुलर प्रेम, जिसके लिए मुसलमान एक ऑब्जेक्ट है वो उसमे विविधता नहीं देखता. मीडिया की नजर में सारे मुसलामानों का एक ही दृष्टिकोण है.
    २ अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति. जैसे घर का लड़का रेप या मर्डर कर दे तो भी घरवाले अपने लड़के का बचाव करते हैं. इसी तरह अल्पसंख्यकों के संरक्षक मीडिया है.
    ३ तेजी से धन कमाने की लालसा. सेकुलर ताकतों के पास अकूत पैसा है. और वो सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज हैं. यहाँ पर काली कमाई की सम्भावना ज्यादा है. पत्रकारिता से जुड़े हुए अयोग्य लोगों को shortcut matter चाहिए रहता है. अर्थात धरा की दिशा में कोई भी बह सकता है. अयोग्य पत्रकार आसानी से धरा में बह कर अपनी दूकान चला सकते हैं.
    ४ हिन्दू प्रेम में ज्यादा स्कोप न होना. इस क्षेत्र में काम करने वाले पत्रकार गरीबी में जीवन निर्वाह करते हैं. इसलिए कोई चांस नहीं लेना चाहता.
    ५ पत्रकारिता में सिद्धांतों का अभाव. राष्ट्रवादी पत्रकारिता में भी स्कोप है बशर्ते कोई तात्कालिक फायदे का गुलाम न हो.
    ६ भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता की लोकप्रियता का अभाव. अभी भी विदेशी भाषाओं की पत्रकारिता देश में लीड करती है और वो यहाँ की समस्याओं को विदेशी चश्मे से देखती हैं.
    ७ पत्रों का किसी विचारधारा विशेष से चिपके होना. देश में अभी भी स्वतंत्र मीडिया का भरी अभाव है. और स्वंत्र मीडिया किसी भी मामले की तह तक पहुँचने के बजाये सतही मूल्याङ्कन करता है जैसे अयोद्ध्या में मस्जिद गिरा तो हिन्दुओं को पानी पी पी कर गालियाँ दे दी. उन्होंने कभी जोखिम नहीं उठाया की मस्जिद क्यों गिराई गयी?
    ८ अल्पसंख्यकों के संरक्षक की भूमिका में होने की वजह से मुस्लिम अत्याचारों से आँख मुंड लेना. जैसे गोधरा में निर्दोष हिन्दुओं की हत्या करके गुजरात को अराजकता में धकेलने का दोषी कौन है मीडिया ने आजतक पता नहीं लगाया? बुखारी मीडिया का छोटा bachcha है इसलिए bhkhari के khilaph kade tevar मीडिया नहीं अपना rahi है.

  7. बुखारी ने वही किया जो उसकी दूकान चलाने के लिए जरूरी था.आज भी स्वतत्र विचार रखने वालों को भारत में कितनी पूछ है?यहाँ सब तबकों में बटे हुए हैं.रह गयी बात मिडिया की तो उनकी भी jabaan लखनवी फैसले ने बंद कर दी थीऔर चूँकि उनके लिए भी रोजी रोटी का sawaal paidaa ho gayaa tha ,Bukhaariyon के kaarnaame hi to unko jeewan daan dete hain,to we inkaa haath kyon roke?Lakhnau kort ke faisale ne bahuto ki pol khol kar rakh di.Pravaktaa bhi uska gawaah hai.Ab to aage aage dekhiye hotaa hai kya?kyonki ab to supreme kort jaane ki taiyari ho rahi hai,jisase yah maamalaa kuchh aur khinche.Pataa nahi agar wahaan se bhi kuchh isi tarah ka faisalaa aayaa tb kyaa hoga?

  8. तिवारी जी का लेख तो उत्तम है ही, सुरेश चिपलूनकर जी की टिप्पणी भी उनके गहन अध्ययन और देश की परिस्थितियों की सही समझ की परिचायक है. उनकी टिप्पणियों से देश की दुश्मन ताकतों के पेट में दर्द होना स्वाभाविक है. सुरेश जी चोट सही जगह पर मारते हैं न, तो दर्द भी होगा और फिर उलट कर वे गद्दार प्रहार भी तो करेंगे सुरेश जी पर. पर इन्हें परवाह कहाँ है. देश को जगाने के अपने पवित्र काम से बाज आने वाले नहीं ये दीवाने. मेरी शुभकामनाएं.

  9. इस देश का दुर्भाग्य है की अँगरेज़ जिस बीज को बो गए थे उसकी फसल अब उनके ये कारिंदे काट रहे हैं. भारत के मुसलमानों को यह तभी समझ में आएगा की उनके असली खैरख्वाह शाही इमाम, और मुहम्मद आज़म यह शाहबुद्दीन जैसे लोग नहीं हैं. देश के मुसलमानों को अब यह सोचना होगा की सुधर की प्रक्रिया उनके भीतर से ही चलनी होगी. मंदिर मस्जिद तो खैर मुद्दा है ही ऐसा पर भारत के मुस्लमान न जाने कब तक सर्व इस्लाम के भूत से लपते रहेंगे जबकि यह तो खिलाफत आन्दोलन के दौरान ही स्पष्ट हो गया था की दुनियां आगे जा रही है. मुसल मान खलीफा का रोना रोते रहे और वहां खलीफा को मुसलमानों ने ही समाप्त कर आधुनिकता की रह पकड़ ली. काश उसके बाद से ही मुसल मन जागरूक हो पते. भारत में मुस्लिम तुष्टि कारन की जो पराकाष्ठ है वह आअत्म्घति है और मुलिमों के लिए तो यह ज़हर के सामान है. मुस्लिम समाज में भी एक पीढ़ी है जो १९९० के बाद जन्मी है. एक पीढ़ी है जो भारत की प्रगति में बड़ी हुयी है, शयद वह भारत के स्वर्णिम काल में आगे भी बढ़ना चाहेगी तो में उसी पीड़ी से कहूँगा की आओ ऐसे परेशानी वाले प्रश्न और उठाओ, पूछो अपने इन नेताओं से की क्यूँ मुस्लमान बच्चों को मुख्या धरा में नहीं आना चाहिए, क्यूँ उन्हें मुख्या धारा के स्कूलों में नहीं पढना चाहिए,

  10. तिवारी जी आपको इस साहसिक आलेख के लिए लख-लख बधाई ….हालाँकि में पहले भी अपनी टिप्पणी प्रेषित कर चुका हूँ किन्तु हिंदी लिप्यान्तरण की समस्या थी …अतएव
    आपके शानदार आलेख पर पुनह टिप्पणी का लोभ सम्वरण न कर सका …..आपको तीन सुझाव निवेदन के रूप में निम्नुसार हैं ….
    एक -आपकी समझ वैज्ञानिकता और धर्मनिरपेक्षता से परिपूर्ण है ….
    दो -प्रवक्ता .कॉम पर आपका आलेख प्रकाशित करने के लिए ,संजीव भाई को साधुवाद ….
    तीन -सभी धर्मो में कट्टरपंथी हैं ,किन्तु हिन्दू इस देश में बहुसंख्यक होने से अल्पसंख्यक वर्ग के कुछ स्वयम भू नेता या धर्म गुरु अपने ही सहधर्मियों को वोट बैंक बनाकर उनका शोषण करते हैं .हिन्दू -मुस्लिम दोनों आपस में एकता और भाई चारा चाहते हैं किन्तु जिनका उद्देश्य सत्ता हो उन्हें देश की चिंता क्यों होगी ?भारत के हिन्दू मुस्लिम समझ चुके हैं की अब वे धर्म के आधार पर राजनेतिक धुर्विकरण नहीं होने देंगे .विकाश ,नीतियां ,कार्यक्रम और शुचिता ही तय करेंगे की देश का संचालन कोण करेगा ? अब अकेले कोई भी पार्टी या धर्म जात का सहारा लेकर सत्ता में नहीं आने वाला .बुखारी जैसे शख्स किसी के भी कोई काम के नहीं .हिन्दू कट्टरपन्थ्यों के खिलाफ मेने स्वयम कितना कुछ लिखा है ,मीडिया ने तोगड़िया ,नरेंद्र मोदी ,और अन्य बजरंगियों के खिलाफ लगातार प्रतिरोध किया और संघ के वरिष्ठतम व्यक्तित्व पर भी अंगुली उठाई किन्तु ,संघ परिवार नेइस तरह का ओछा व्यवहार जैसा की बुखारी ने किया -कभी नहीं किया -इक्का दुक्का नादानों की मूर्खता पूर्ण टिप्पणी अपवाद हो सकती हैं ,किन्तु में पूरी ईमानदारी से कहना चाहूँगा की बुखारी जैसे लोगों से अब मुस्लिम जमात को कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहिए ,क्योकि इस तरह की घटनाओं से बहुमत पक्ष में कट्टरवादी अवयवों को खाद पानी मिलता है और धर्मनिरपेक्षता का ह्रास होता है ,janta के सरोकारों -गरीवी ,अशिक्षा ,स्वाश्थ्य तथा विकाश के विमर्श हासिये पर चले जाते हैं .

  11. ओर कुछ सुरेश चिपलूनकर की तरह खाकी निकर के गुलाम हैं.रहा सवाल बुखारी के आचरण का वो बहुत निंदनीय था

  12. shahi Immam Bukhari ne Apni Hakikat sabko dikha di he. pure desh ke sache musalman bhaiyo ne Bukhari ka Bahishkaar kar dena chahiye. sath hi kanunan kadi karyawahi honi chahiye. aise talibani logo ke liye Bharat me koi jagah nahi he. ab faisla musalman bhaiyo ko karna he,?

  13. किस मीडिया की बात कर रहे है आप, आज कल मीडिया भी राजनीति की तरह पैसे और पद का साधन हो गया है. अब मीडिया मे इक्के दुक्के स्वतन्त्र पत्रकार है जो हाशिये पर चले गये है, अत: उनको सुनने वालो की सन्ख्या नगण्य होती जा रही है.
    कुछ बेचैन और उत्साही लोग जरूर ब्लाग आदि के माध्यम से वेबसाईटो पर अपनी भडास निकाल रहे है. जिनके साधन बहुत सीमित है और बडी जनसन्ख्या तक पहुच असम्भव है.

  14. Kattarwadiyon ko apne hi bhai Waheed ke uthae sawal par Bukhariji ka tilmilana sharmnaak hai. Waheed bhai ki rashtrhit evam rashtr-vafadari ki mai kadr karta hoon. Raha sawal media ki bhoomikao ka hai to Chiplunkarji aap sabhi ko ek hi nazariye se dekhna chhodie. Ghar jakar dekhiye ki aap ke hi bachche kahi rishwat aadi to nahi kha rahe hai, kisi sarkari naukri me bhrashtachar to nahi kar rahe hai ? Darasal hum India me rah rahe hai, jab yaha ke har vyakti me sudhar hoga tab rashtra me sudhar hoga, aap jo kuchh likh rahe malum pada ki uska palan aap ke hi ghar me nahi ho raha hai halanki aap ki bhavnaen achhi hai.

  15. imaam bukhari ne jo nindneey aachran kiya hai uski ninda hona chahiye na keval ninda apitu is ghatna se hindu-muslim dono aor ke udarwadiyon ko sbk ssekhna chaahiye ki kattarwad ek khatrnaak pruvrtti ka naam hai jo samaaj or desh ko dhwst kar skti hai .
    musalmaano men yadi 2-4 vaheed hain to hinduon men lakhon hain jo danke ki chot par kahte hain ki hr vivad ka faisla nyaay ke manch pr hona chahiye …musalmano .alpsankhyko or dalit varg ke hiton ko praathmikta se sadha jana chahiye …meedia ne jo kiya sahi kiya …anaavshyk tool dene se mamla galat disha men mud jaane ka andesha bhi rhtaa hai …sbr ka fal meetha hota hai …bukhari ji ke din lad gaye ab unhe musalmaan apnaa sarvosrva nahin maante ..bukhari ji ki kuntha ka kaaran bhi yhi hai …

  16. ये सब तालिबानी हैं. हिन्दुओं और मुसलमानों को इन्हें उखाड़ फेंकना होगा. अब भी आंखें न खुलीं तो देश का भविष्य गर्त में जाना तय है..

  17. मीडिया से उम्मीद लगाये बैठे हैं आप?

    जरा बड़े-बड़े मीडिया हाउसों के “असली मालिकों” के बारे में पता कीजिये, कुछ कांग्रेस के दरबान हैं, कुछ वामपंथियों के नौकर हैं, जबकि कुछ को चर्च ने मजदूर बना रखा है…

    पूरा मीडिया ५ M (मार्क्स, मुल्ला, मिशनरी, माइनो, मार्केट) के हाथों गिरवी है…

Leave a Reply to सुरेश चिपलूनकर Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here